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क्या ई-सिगरेट पर प्रतिबंध से जन स्वास्थ्य को होगा नुकसान?


सरकार ने पिछले दिनों ई सिगरेट पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन कई विशेषज्ञों एवं संस्थाओं का कहना है कि सरकार के इस कदम से जन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचेगा।  
काउंसिल फॉर हार्म रिड्यूस्ड अल्टरनेटिव्स (सीएचआरए) और एसोसिएशन ऑफ वैपर्स इंडिया (एवीआई) ने ई-सिगरेट पर प्रतिबंध के नतीजों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों को आगाह करते हुए कहा कि इससे लाखों स्मोकर्स सुरक्षित विकल्पों से वंचित हो जाएंगे और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसका खासा नकारात्मक असर पड़ेगा। सीएचआरए सुरक्षित विकल्पों को अपनाकर तम्बाकू से होने वाले नुकसान को कम करने की दिशा में काम करने वाला राष्ट्रीय संगठन है। वहीं एवीआई देश भर में ई-सिगरेट का प्रतिनिधित्व करने वाला एडवोकेसी ग्रुप है।
सीएचआरए ने कहा कि सरकार द्वारा ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करना खासा दुखद है, जो सिगरेट की तुलना में 95 प्रतिशत कम नुकसानदेह है। यह इसलिए भी हैरत की बात है, क्योंकि दूसरी तरफ सरकार नशे की लत और संक्रामक बीमारियों पर रोकथाम के लिए इससे जुड़े कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देती है।
निकोटिन की तुलना में सिगरेट के जलने से निकलने वाले जहरीले रसायन और टार दुनिया भर में होने तम्बाकू जनित बीमारियों की मुख्य वजह हैं। वैपर्स बॉडी ने संकेत किया कि ई-सिगरेट में निकोटिन तो होता है, लेकिन टार नहीं होता है क्योंकि यह जलती नहीं है। एवीआई ने कहा कि ई-सिगरेट पर प्रतिबंध से देश के 12 करोड़ स्मोकर्स कम जोखिम वाले माध्यम निकोटिन के सेवन से वंचित हो जाएंगे।
सीएचआरए के डायरेक्टर सम्राट चौधरी ने कहा, 'चाहे रिफाइंड तेल हो या कम प्रदूषण वाली कारें हों, हम रोजमर्रा के जीवन में सुरक्षित उत्पादों को अपनाकर नुकसान में कमी के विचार पर अमल करते हैं। तम्बाकू के इस्तेमाल में भी कम नुकसान वाले विकल्पों को अपनाकर यूजर्स की जिंदगी को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया जा सकता है। सरकार अभी तक तम्बाकू की बुरी आदत छोड़ने के लिए लोगों से भावनात्मक अपील करने पर निर्भर रही है, लेकिन उसने गम्स और पैचेस से इतर विकल्पों की अभी तक कोई पेशकश नहीं की। इनकी सफलता की दर खासी कम रही है। सरकार की सभी उत्पादों और सेवाओं के लिए उपभोक्ताओं को ज्यादा विकल्प उपलब्ध कराने की नीति से इतर ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाना पीछे हटने वाला कदम है।'
एवीआई के डायरेक्टर प्रतीक गुप्ता ने कहा, 'हमारी हैल्थ बॉडीज द्वारा वैपिंग के स्वास्थ्य पर असर के संबंध में कराई गई स्टडीज को देखते हुए ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने का विचार बिना सोचा-समझा है। इसके अलावा यूके जैसे देशों में हुई कई वैज्ञानिक स्टडीज के बाद एक्सपर्ट्स और सरकारों ने स्मोकर्स के बीच वैपिंग को प्रोत्साहन दिए जाने की बात को मान लिया है। इसलिए ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने की जल्दबादी समझ से परे है।'
ई-सिगरेट न सिर्फ सिगरेट की तुलना में कम नुकसानदेह है, बल्कि इससे स्मोकर्स को निकोटिन पर निर्भरता से छुटकारा पाने में भी मदद मिलती है। इसके अलावा वैपिंग आसपास खड़े लोगों के लिए कम जोखिम भरी है, जो पैसिव स्मोकिंग के शिकार होते हैं।
अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और यूके जैसे विकसित देशों में ई-सिगरेट के इस्तेमाल को रेग्युलेटरी मंजूर के अच्छे नतीजे सामने आए हैं। इन देशों में हाल के वर्षों में स्मोकिंग की दर तेजी से गिरी है।
इसके विपरीत भारत में स्मोकिंग का चलन तेजी से बढ़ रहा है और ऐसे में स्मोकर्स की इच्छा-शक्ति पर निर्भर रहने के बजाय काफी कुछ करने की जरूरत है, क्योंकि इसमें असफलता की दर 95 प्रतिशत के आसपास है। इसके अलावा, एक सीमा से ज्यादा टैक्स बढ़ाने के दूसरे नुकसान हो सकते हैं और स्मोकर्स ज्यादा नुकसानदेह और सस्ते विकल्पों की ओर रुख कर सकते हैं।
चौधरी ने कहा, 'हम सरकार और स्वास्थ्य विभागों सें तम्बाकू की महामारी से लड़ने में तम्बाकू के नुकसान में कमी की भूमिका पर गंभीरता से विचार करने का अनुरोध करते हैं, जिससे देश में हर साल 10 लाख लोगों की मौत हो रही है।' उन्होंने कहा कि स्वीडिश स्नस के रूप में कम जोखिम वाले धुआंरहित तम्बाकू भी उपलब्ध है, जो ई-सिगरेट के समान ही है और जिसे नुकसान में 95 प्रतिशत की कमी पाई गई है। उन्होंने कहा, 'इसके लिए “छोड़ो या मर जाओ” के नैतिकतावादी नजरिए की तुलना में ज्यादा व्यावहारिक नजरिए की जरूरत होगी।'
गुप्ता ने किशोरों यानी टीन्स में वैपिंग का इस्तेमाल बढ़ने के आरोपों के जवाब में कहा, 'दुनिया की तुलना में भारत में वैपर्स, पूर्व स्मोकर्स हैं। हम कम उम्र और नॉन स्मोकर्स द्वारा इसके इस्तेमाल का विरोध करते हैं और इस दिशा में उठाए जाने वाले कदमों का समर्थन करेंगे।'
एवीआई डायरेक्टर ने कहा कि सरकार किशोरों को इसके इस्तेमाल से रोकने के लिए सिगरेट और अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम के अंतर्गत ई-सिगरेट की बिक्री को रेग्युलेट कर सकती है।


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