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रिश्ते में आता खुलापन 

हाल के वर्षों में भारतीय समाज में परम्परागत मूल्यों और जीवन के तौर-तरीकों में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। इन बदलावों की एक कड़ी है - पारिवारिक रिश्तों में आने वाला खुलापन। आज ज्यादातर माता-पिता बच्चों के साथ डांट-डपट करने के बजाय दोस्ताना व्यवहार करने लगे हैं और उन्हें हर संभव खुश रखने की कोशिश करते हैं। आज ज्यादातर महिलायें मां के बजाय अपनी बेटी की दोस्त कहलाने पर गर्व महसूस करती हैं। वे अपनी बेटियों के मामले में दखलअंदाजी या रोक-टोक नहीं करतीं और न ही उन पर अपने विचार या निर्णय थोपती हैं। इस तरह का खुलापन दाम्पत्य संबंधों में भी आया है। आज कई पति-पत्नी एक दूसरे के मामले में पहले की तरह दखलअंदाजी नहीं करते हैं।
पारिवारिक संबंधों में आ रहे बदलाव जैसे विषयों पर देश-विदेश में 200 से अधिक संगोष्ठियों का आयोजन करने वाले दिल्ली के विशेषज्ञ डा. पतंजलि देव नैयर कहते हैं कि ज्यादातर युवा दोस्ताना व्यवहार करने वाले माता-पिता और अपने दोस्तों के बीच स्पष्ट अंतर नहीं कर पाते हैं। जो माता-पिता बच्चों के सिर्फ दोस्त होते हैं वे उन्हें केवल लाड़-न्यार और सुरक्षा देते हैं लेकिन अन्य बातों की ओर ध्यान नहीं देते। बच्चे कौन से मूल्य सीख रहे हैं और किसी तरह की गतिविधियों में लिप्त हो रहे हैं, इसके बारे में वे ज्यादा ध्यान नहीं देते। इस कारण बच्चे गलत रास्ते पर भी बढ़ सकते हैं। पहले के समय में माता-पिता बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखते थे, लेकिन उस समय बच्चों को समझाने का उचित वातावरण नहीं था जिसके कारण बच्चों को ऐसा लगता था कि माता-पिता उन पर अपने विचार थोप रहे हैं। हालांकि इससे बच्चों की चेतना और सोच प्रभावित होती थी, लेकिन बच्चों के गलत गतिविधियों में लिप्त होने की आशंका कम रहती थी।
दिल्ली में रहने वाली 18 वर्षीय स्नेहा और 15 वर्षीय नेहा की मां मधु कहती हैं, ''हमलोग भी उस समय छोटे स्कर्ट पहनते थे और बॉयफ्रैंड रखते थे, लेकिन हमारी सीमाएं बिल्कुल स्पष्ट थीं। हमलोग देर रात तक घरों से बाहर नहीं रहते थे और हमारे हर क्रियाकलापों की जानकारी माता-पिता को रहती थी। लेकिन अब चीजें तेजी से बदल रही हैं। अब माता-पिता और बच्चों में बहुत अधिक वाद-विवाद होता है और वे अपने विचार एक दूसरे पर थोपने की कोशिश करते हैं। बच्चों को आजादी देने से पूर्व बच्चों को मूल्यों की शिक्षा देनी चाहिए और उसके बाद बच्चों के विवेक पर छोड़ देना चाहिये कि वे क्या करना चाहते हैं। लेकिन बच्चों को मूल्यों की शिक्षा कड़ाई और डांट-डपट कर नहीं दी जानी चाहिये।''
दूसरी तरफ मॉडलिंग एवं अभिनय के क्षेत्र में जगह बनाने की कोशिश कर रही दिल्ली की श्वेता  कृष्णन कहती हैं, ''पहले लोगों की यह शिकायत होती थी कि उनके माता-पिता हर समय उनके साथ रहते हैं। लेकिन मेरी मां ने मुझे स्वतंत्र छोड़ दिया। मैं अब किसी भी परिस्थिति का मुकाबला स्वयं कर सकती हूं।''
उनकी मां उमा कहती हैं कि हमारे जमाने और आज के जमाने में बहुत बदलाव आ गया है। मां और बच्चा दो अलग-अलग प्राणी होते हैं इसलिए एक दूसरे की जिंदगी में दखल कैसे दिया जा सकता है। कृष्णन कहती हैं कि जब मैं और मॉम किसी पार्टी में एक साथ जाते हैं तो हमलोग मां-बेटी कम और दोस्त ज्यादा होते हैं।
देश के दूसरे भागों में भी मां-बेटी का रिश्ता दोस्ताना होता जा रहा है। जब कल्पना ने 28 साल पहले अपने माता-पिता का घर छोड़ा था उस समय लोगों में एक दूसरे के मामले में दखल देने की आदत बहुत अधिक थी। माता-पिता यहां तक कि पड़ोसी और रिश्तेदार भी हर मामले में दखलअंदाजी करते थे, लेकिन जब कल्पना की बेटी जूही ने उनका घर छोड़ा तो उसने अपनी मां को एक मददगार के रूप में पाया। जब कल्पना को महसूस हुआ कि उसकी बेटी अलग रहना चाहती है तो उसने तुरंत सहमति दे दी। हालांकि जूही को अपने पति को इसके लिए तैयार करना पड़ा था। लेकिन जूही को लगता है कि उसकी मां अपने घर में अपने ढंग से अकेली रहकर भी खुश रहेगी। जूही को काम के सिलसिले में अक्सर रात भी बाहर बितानी पड़ती है, लेकिन उसके पड़ोसी उसके मामले में कभी ताक-झांक नहीं करते।
दिल्ली के एक कॉलेज की प्रोफेसर सोनाली सिंह रिश्तों में खुलापन आने से खुश हैं। वे कहती हैं कि खुलापन आने से वह और उनके विद्यार्थी बिना किसी रोक-टोक के अपनी मर्जी से रह सकते हैं। लड़के-लड़कियों के रिश्ते में खुलापन आने से किसी लड़की को छेड़ना मुश्किल होता जा रहा है। लड़कियां किसी लड़के पर अधिक समय तक निर्भर रहना पसंद नहीं करती हैं और वे परिवर्तन चाहती हैं। लेकिन अधिकतर युवा इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग करना नहीं चाहते। उनके कॉलेज की एक छात्रा कहती है कि मैं जब भी जहां जाना चाहती हूं, चली जाती हूं। इसके बारे में सिर्फ अपने माता-पिता को बता देती हूं।
हमारे देश में संबंधों में आ रहे खुलापन में अब भी सबसे बड़ी बाधा शादी है। ज्यादातर पति आज भी अत्यंत व्यस्त रहने वाली पत्नी से अपने लिए अलग से समय चाहते हैं। पति के लिए समय और पति का आदर करना हमारे समाज का मूल मंत्र है। जबकि घरेलू कार्यों में पति का सहयोग अब भी नहीं के बराबर ही है। अध्ययनों से पता चलता है कि घरेलू कार्यों का जिम्मा अब भी महिलाओं यहां तक कि कामकाजी महिलाओं पर भी है।



आज शादी के मानदंड भी अस्पष्ट होते जा रहे हैं और पति-पत्नी के बीच तीसरे या चौथे व्यक्ति का समावेश होता जा रहा है। ऐसा रंगरेलियां मनाने के उद्देश्य से नहीं किया जा रहा है, बल्कि पति या पत्नी के अलावा एक संवेदनशील साथी की जरूरत के कारण ऐसा हो रहा है। 
दीपाली कहती हैं, ''पति के अलावा मेरा एक पुरुष दोस्त भी है जिससे मुझे काफी सहयोग मिलता है। मेरे पति को मेरे रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन मुझे पता है कि वे उससे कुछ दूरियां चाहते हैं। ऐसा मेरे साथ भी होता है। जब भी मैं अपने पति के साथ किसी महिला को देखती हूं तो उनकी नजदीकियों से मुझे ईर्ष्या होने लगती है। लेकिन इन सब बातों का प्रभाव हमारी शादी पर नहीं पड़ता।'' 
दूसरी तरफ एक प्राइवेट कंपनी में कार्य करने वाले अविवाहित राकेश गुप्ता का कहना है कि शादी के पहले या शादी के बाद दोस्त के साथ होने वाला भावनात्मक लगाव प्यार में भी बदल सकता है। ऐसा तब होता है जब पति और पत्नी एक साथ एक दफ्तर में कार्य नहीं करते हैं और घर में एक साथ बहुत कम समय बिताते हैं जबकि सहकर्मी के साथ रोजाना 12 से 15 घंटे बिताने पड़ते हैं।
मनोचिकित्सकों का कहना है कि सीमा से परे संबंधों का प्रचलन आजकल पूरे विश्व में तेजी से बढ़ रहा है, इसलिए शादी के नियमों को फिर से लिखा जाना चाहिए। हालांकि ऐसे संबंध वास्तव में बहुत गंभीर नहीं होते हैं। फिर भी अधिकतर पति को पत्नी से और पत्नी को पति से दोस्त रखने पर तब तक कोई आपत्ति नहीं होती है जब तक कि उसमें सेक्स शामिल नहीं होता है।
एक पी.आर. कंपनी में कार्य करने वाले सुमित और बीमा कंपनी में कार्य करने वाली अनुराधा में शादी के बाद तीन साल साथ रहने के बाद तलाक हो गया। अनुराधा कहती हैं कि तलाक के बाद भी हम अच्छे दोस्त हैं। हमलोग एक दूसरे के दोस्तों को अच्छी तरह जानते हैं। तलाक के कारण के बारे में वह बताती हैं कि सुमित नहीं चाहता था कि मैं कोई प्राइवेसी रखूं लेकिन वह अक्सर शाम में एक महिला दोस्त के साथ होता था और उस समय मुझे कोई अहमियत नहीं देता था।
दूसरी तरफ सुमित का कहना है, ''मैंने इस बात पर कभी ध्यान नहीं दिया कि मेरी पत्नी अपने पुरुष दोस्त के साथ फिल्म देखने या कॉफी पीने जा रही है। यह बात मुझे जरूर चुभती थी कि देर रात में दफ्तर का काम खत्म होने पर जब उसके दोस्त उसे घर छोड़ने आते थे और उसे उनका एहसान जताना पड़ता था। हमलोग परिस्थिति में बदलाव नहीं ला सकते थे, इसलिए अलग हो जाना ही उचित समझा।''
काउंसलर रीमा माथुर कहती हैं, ''दोस्ती शादीशुदा जिंदगी में ताजगी का झोंका लाती है। मेरा पति एक बीमा कंपनी में कार्य करता है। कभी-कभी उसे देर रात तक दफ्तर में रुकना पड़ता है। उसके पास गाड़ी नहीं है लेकिन उसके कई पुरुष और महिला दोस्तों के पास गाड़ी है और वे उसे देर रात में घर छोड़ने आते हैं। लेकिन मुझे उसके महिला दोस्तों से कोई ईर्ष्या नहीं होती है। मैं खुद भी कार्य के दौरान कई हैंडसम पुरुषों से मिलती हूं। लेकिन अगर मिलने-जुलने वालों से और सहकर्मी से प्यार होने लगता तो अब तक मैं दर्जर्नोंं पुरुषों से प्यार कर चुकी होती।''
आशा बनर्जी कहती हैं कि विपरीत लिंग के साथ दोस्ती के मूल्य गिरते जा रहे हैं। यदि किसी की शादी किसी तीसरे व्यक्ति के कारण टूटती है तो यह स्वभाविक है कि तीसरे व्यक्ति के साथ पति या पत्नी की दोस्ती बंधनों को तोड़ चुकी है। जब कोई पति या पत्नी विपरीत लिंग वाले दोस्त के बारे में अधिक सोचने और उसकी अधिक परवाह करने लगता है तो यह अपने पार्टनर के साथ विश्वासघात होता है। इसलिए समझदार लोग दोस्ती की खातिर अपनी शादीशुदा जिंदगी को जोखिम में नहीं डालते। 


 


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