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आधुनिक पेशों ने बढ़ायी संतानहीनता

रोहित एक बैंक में अधिकारी हैं और उनकी पत्नी रश्मि भी एक प्राइवेट फाइनांसियल कंपनी में अधिकारी के पद पर हैं। उनकी शादी को सात साल हो गए हैं और उन्हें किसी चीज की कमी नहीं है। फिर भी वे खुश नहीं हैं। शादी के तीन साल बाद जब उन्होंने अपने घर-परिवार का मुआयना किया तो पाया कि उनके पास सारी सुख-सुविधायें हैं, लेकिन वे संतान सुख से वंचित हैैं। इसके बाद उन्हें एक बच्चे की जरूरत बड़ी शिद्दत से महसूस होने लगी। उन्होंने स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क किया। उसके बाद 30 वर्षीया रश्मि की सोनोग्राफी की गई और 34 वर्षीय रोहित के शुक्राणुओं की जांच की गई, लेकिन रश्मि में कोई खराबी नहीं पाई गई और रोहित में भी बच्चे पैदा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में शुक्राणु मौजूद थे। फिर भी वे बच्चे पैदा करने में असमर्थ थे। अब वे लोग इनफर्टिलिटी का इलाज करा रहे हैं। रोहित और रश्मि की तरह ही ऐसे कई दम्पति हैं जिनमें पति-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं और अच्छा वेतन पाते हैं। कहने को तो उनके पास सब कुछ है, लेकिन वे बच्चे पैदा करने में असमर्थ हैं और इसी चिंता में घुलते रहते हैं। ऐसे दम्पति घर के बाहर सफल साबित होते हैं, लेकिन घर में खासकर बिस्तर पर असफल साबित होते हैं। ऐसे दम्पति बेडरूम में भी प्यार-मोहब्बत की बातें करने की बजाय आफिस और नौकरी की ही बातें करते हैं। बिस्तर पर भी वे तनाव मुक्त नहीं हो पाते। हर महीने ये सुखद समाचार की उम्मीद लगाए बैठे रहते हैं, लेकिन इन्हें निराशा ही हाथ लगती है। 
एक काॅल सेंटर में काम कर रहे नितिन का कहना है कि उसकी जिंदगी मशीन बन कर रह गयी है। हालांकि यहां काम करने के एवज में उसे मोटी तनख्वाह मिलती है, लेकिन उसके लिए दिन-रात एक समान हो गए हैं। वह नौकरी के अलावा किसी अन्य चीज के बारे में सोच ही नहीं पाता। 
मुंबई में अलग-अलग टी वी चैनलों में रिपोर्टर के तौर पर कार्य करने वाले 33 वर्षीय निखिल और उसकी 31 वर्षीय पत्नी दीपा का भी कहना है कि उनकी जिंदगी समाचार और शूटिंग के बीच ही उलझकर रह गयी है। कभी-कभी वे लोग सोचते हैं कि ऐसी भाग-दौड़ की जिंदगी में उनकेे लिए डबल बेड का क्या काम।
आखिर क्या कारण है कि अपनी मेहनत से कैरियर की बुलंदी तक पहुंचने वाले और सारी सुख-सुविधाओं का उपभोग करने वाले दम्पति संतान सुख से वंचित हैं। इसका एक बड़ा कारण तनाव है। महानगरों और बड़े शहरों के लोगों में जिस रफ्तार से काम-काज के तनाव बढ़ते जा रहे हैं, उसी रफ्तार से उनमें इनफर्टिलिटी की समस्या भी बढ़ती जा रही है। तनावपूर्ण नौकरी, काम का अधिक दबाव, अधिक समय तक काम करने तथा तनाव पूर्ण जिंदगी होने से उनमें काम वासना में कमी हो रही है, साथ ही उनकी सेक्स तथा प्रजनन क्षमता भी प्रभावित हो रही है। 
तनाव के कारण हाल के वर्षों में पुरुषों में शुक्राणुओं में आश्चर्यजनक कमी आयी है। महिलाओं में भी तनाव के कारण अंडा बनने तथा अंडोत्सर्ग की क्षमता कम हो रही है। काम वासना में कमी तो अब एक आम समस्या बन गयी है। 
शादी के बाद पति-पत्नी के डेढ़ साल तक असुरक्षित सेक्स करने के बाद भी गर्भ नहीं ठहरने को इनफर्टिलिटी कहा जाता है। हमारे देश में छह में से एक दम्पति इनफर्टाइल है और शहरों में नौकरी करने वाले 20 फीसदी युवा दम्पति तनाव जनित इनफर्टिलिटी का सामना कर रहे हैं। इसके लिए पति और पत्नी में से कोई एक या दोनों जिम्मेदार हो सकते हैं। संतानहीनता के 40 फीसदी मामलों में पुरुष, 40 फीसदी मामलों में महिला और 20 फीसदी मामलों में दोनों जिम्मेदार होते हैं। हालांकि इसके लिए वातावरण में पाये जाने वाले विषैले पदार्थ भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। 
सोने-जागने की अनियमिता, अधिक भाग-दौड़ और कार्य के अधिक दबाव से हमारी जैविक घड़ी प्रभावित होती है जिसका प्रभाव प्रजनन तंत्र पर भी पड़ता है। पुरुषों पर कार्य का अधिक बोझ होने के कारण उनमें शुक्राणु की संख्या कम हो रही है और उनमें महिलाओं की तुलना में इनफर्टिलिटी की समस्या तेजी से बढ़ रही है। एक अनुमान के अनुसार अपने देश में 12-15 प्रतिशत लोग इनफर्टिलिटी के शिकार होते हैं, लेकिन ज्यादातर लोग विभिन्न कारणों से प्रजनन विशेषज्ञों से इलाज नहीं करा पाते और गैर चिकित्सकीय उपायों का सहारा लेते हैं जिससे उनकी समस्या और बढ़ जाती है।
सूचना प्रौद्योगिकी और कम्प्यूटर साॅफ्टवेयर के क्षेत्र में काम करने वाले दम्पतियों पर हाल में किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला कि उनमें उच्च रक्त चाप, मधुमेह, मोटापा और काम वासना में कमी जैसी समस्याएं बहुत अधिक होती हैं। ऐसे व्यवसायों से जुड़े 26 से 32 वर्ष के लोगों तथा पति-पत्नी में से एक के भी ऐसे व्यवसायों से जुड़े होने पर उनमें इन बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इनके अलावा पुरुषों में शुक्राणुओं में कमी तथा महिलाओं में प्रोलेक्टिन हार्मोन के स्तर में वृद्धि तथा मासिक स्राव संबंधित बीमारियां हो जाती हैं जिसका प्रभाव उनकी प्रजनन क्षमता पर भी पड़ता है। इन सारी समस्याओं का कारण तनाव होता है। 
आजकल क्लिनिक में वैसे दम्पति भी आने लगे हैं जिन्हें पहला बच्चा तो हो जाता है लेकिन दूसरे बच्चे में समस्या आती है। इसका मुख्य कारण बार-बार गर्भपात कराना है, क्योंकि इससे महिला का प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो जाता है या यूटेरस में खराबी आ जाती है। इसके अलावा 5-6 साल तक लगातार गर्भनिरोधक गोलियां लेने से भी प्रजनन तंत्र में खराबी आ जाती है और ओवुलेशन नहीं होता। हालांकि आजकल कम पोटेंसी की गर्भनिरोधक गोलियां आ गयी हैं। इन्हें कुछ समय तक लेने पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। 
इनफर्टिलिटी के उपचार के लिए इसके कारण का पता लगाना जरूरी है। इसके लिए पति-पत्नी दोनों की पूरी जांच की जाती है। मौजूदा समय में कृत्रिम वीर्य संचलन (आर्टिफिशियल इनसेमीनेशन), इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आई वी एफ) तथा भ्रूण प्रत्यारोपण, अंतः कोशिका द्रव्य शुक्राणु इंजेक्शन (आई सी एस आई) जैसी तकनीकों की बदौलत निःसंतान दम्पति संतान का सुख प्राप्त कर सकते हैं। इन तकनीकों की सहायता से न सिर्फ प्रजनन दोष वाली महिलाएं, बल्कि अधिक उम्र की महिलाएं भी मां बनने का सौभाग्य प्राप्त कर सकती हैं।
किसी पुरुष के वीर्य में शुक्राणु की अत्यधिक कमी होनेे, कोई आनुवांशिक रोग होने, शीघ्रपतन, कोई जननांग विकार होने या महिला में गर्भाशय ग्रीवा म्यूकस में कोई खराबी होने पर कृत्रिम वीर्य संचलन (आर्टिफिशियल इनसेमीनेशन) नामक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें किसी अन्य पुरुष के वीर्य का भी उपयोग किया जा सकता है।
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आई वी एफ) तथा भ्रूण प्रत्यारोपण की तकनीक का इस्तेमाल महिला की डिम्बवाहिनी (फैलोपियन ट्यूब) के क्षतिग्रस्त होने, बंद होने या न होने पर किया जाता है। इसे परखनली शिशु विधि (टेस्ट ट्यूब बेबी) भी कहते हैं। अंतः कोशिका द्रव्य शुक्राणु इंजेक्शन (आई सी एस आई) नामक तकनीक के तहत शुक्राणु को सीधा अंतः कोशिका द्रव्य में प्रवेश करा दिया जाता है। जब किसी पुरुष में शुक्राणु की मात्रा बहुत कम होती है तब इस विधि का इस्तेमाल किया जाता है। 
आजकल कैरियर बनाने के चक्कर में लोग अधिक उम्र में शादी करते हैं और देर से बच्चे पैदा करना चाहते हैं। कई दम्पति देर से संतान जनने के लिये अपनी प्रजनन क्षमता की जांच कराए बगैर ही परिवार नियोजन के तरीकों का इस्तेमाल शुरू कर देते हैं, लेकिन बाद में यही प्रवृति प्रजननहीनता का कारण बनती है। 


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