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बच्चों में जन्मजात एवं गंभीर विकृतियाँ 

हर माता-पिता की दिली तमन्ना होती है कि उसकी संतान स्वस्थ एवं सही-सलामत पैदा हो और वह हर तरह की विकृतियों से मुक्त हो। लेकिन हर माता-पिता पर कुदरत मेहरबान नहीं होती। एक अनुमान के अनुसार लगभग दो प्रतिशत बच्चे जन्मजात विकृतियों के साथ ही पैदा होते हैं। इन बच्चों में से 50 फीसदी बच्चे तो गंभीर किस्म की विकृतियों से ग्रस्त होते हैं। ये विकृतियाँ आनुवांशिक या अन्य कारणों से हो सकती है। सामान्य जन्मजात विकृतियों में से अधिकतर विकृतियों का पता तो बाहर से ही चल जाता है। इन विकृतियों में बच्चे का ओठ कटा होना, तालु नहीं होना, हाथ या पैर की उंगलियाँ कम या ज्यादा होना, पैर की उंगलियों का जुड़ा होना, हाथ पूरा बना हुआ नहीं होना, पेट से आँतों का बाहर होना, पीठ पर नस का फोड़ा होना आदि प्रमुख हैं। कुछ विकृतियाँ शरीर के अंदर होती हैं और इनका बाहर से पता नहीं लगता, लेकिन ये गंभीर विकृतियाँ होती हैं। इन विकृतियों में दिल में सुराख, आँतों में रूकावट और साँस की तकलीफ जैसी विकृतियाँ शामिल हैं। 
नस के फोड़े की विकृति अत्यंत गंभीर किस्म की समस्या है जिसका इलाज अत्यंत जटिल है। अनुमान के अनुसार ढाई सौ बच्चों में से तकरीबन एक बच्चा इस बीमारी से ग्रस्त होता है। नस का फोड़ा सिर के पीछे, कमर, कमर के नीचे वाले हिस्से या मलद्वार के ठीक ऊपर रीढ़ की हड्डी में हो सकता है। 
अगर महिला के किसी बच्चे में इस तरह की विकृतियाँ हुयी हैं तो भविष्य में गर्भधारण होने की स्थिति में वे फाॅलिक एसिड की गोलियों का सेवन किसी स्त्राी रोग विशेषज्ञ की सलाह से आरंभ कर सकती हैं। इससे होने वाले बच्चे में जन्मजात विकृतियाँ होने की आशंका कम होती है। अध्ययनों से यह पाया गया है कि फाॅलिक एसिड की गोलियों के सेवन से जन्मजात विकृतियाँ होने की आशंका कम हो जाती है। लेकिन फाॅलिक एसिड का सेवन गर्भधारण के तीन महीने पूर्व से लेकर गर्भधारण के तीन महीने बाद तक जारी रखना चाहिये। 
ऐसी किसी विकृति की आशंका होने पर तत्काल योग्य विशेषज्ञ से संपर्क करना जरूरी है क्योंकि इन बीमारियों का जल्द से जल्द निवारण हो जाये उतना अच्छा है। 


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