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छरहरा बनने के चक्कर में सेहत से खिलावाड़ करती महिलायें

फिल्मों और टेलीविजन के बढ़़ते प्रभाव के कारण छरहरा बनाने की अंधी होड़ न केवल कम उम्र की लड़कियों बल्कि उम्रदराज महिलाओं की सेहत पर कहर ढा रही है। ताजे अध्ययनों से पता चला है कि न केवल कम उम्र लड़कियां और युवतियां बल्कि साठ साल से अधिक उम्र की महिलायें अपने अपने वजन और शारीरिक आकार को लेकर दुखी और तनावग्रस्त रहने लगी हैं और इस चक्कर में वे खान-पान संबंधी अनिमितताओं (इटिंग डिसआर्डर) की शिकार हो जाती हैं।


हालांकि आम तौर पर खान-पान संबंधी अनिमितताओं से जुड़ी एनोरेक्सिया नरवोसा और बुल्मिया जैसी बीमारियों को मुख्य तौर पर किशोरियों एवं युवतियों की समस्याएं मानी जाती रहीं हैं, लेकिन कुछ ऐसे साक्ष्य भी मिले हैं जिनसे पता चलता है कि मध्य वय और उससे अधिक उम्र की महिलाएं भी इटिंग डिसआर्डर की शिकार होती हैं और अपनी कद-काया को लेकर तनावग्रस्त रहती हैं। 


वैज्ञानिकों के अनुसार छरहरा बनने के चक्कर में डायटिंग और स्लिमिंग पिल्स जैसे उपायों का सहारा लेने के कारण आज लड़कियों और महिलाओं में एनोरेक्सिया नरवोसा, बुल्मिया, डिसमोर्फिया, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, बांझपन, हृदय रोग और डिप्रेशन जैसी स्वास्थ्य समस्यायें तेजी से बढ़ रही हैं। 


फिल्मों एवं टेलीविजन के बढ़ते प्रभाव के कारण आज ज्यादातर महिलायें मोटापा को अपना दुश्मन मानने लगी हैं। इस सोच के चलते वे खातीं क्योंकि उन्हें डर होता है कि  अधिक खाने से वे मोटी हो जाएंगीं। इस कारण आज 5-12 साल उम्र की बच्चियां के अलावा उम्रदराज महिलायें भी एनोरेक्सिया नरवोसा तथा डिसमोर्फिया जैसी गंभीर मानसिक बीमारियों से पीड़ित होकर मनोचिकित्सक से अपना इलाज करा रही हैं। इस प्रवृति को बढ़ाने में ब्यूटी पार्लरों, कॉस्मेटिक सर्जरी सेंटरों तथा स्लिमिंग केन्द्रों की भी मुख्य भूमिका है। 
आस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने हाल में किये गए एक अध्ययन में पाया कि 60 से 70 साल की 475 महिलाओं में से करीब 60 फीसदी महिलाओं ने कहा कि वे अपने शरीर से असंतुष्ट हैं और करीब चार फीसदी महिलाएं इटिंग डिसआर्डर का इलाज करा रही थीं। इन्सब्रक मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इस अध्ययन की प्रमुख डा. बारबरा मैंगवेथ मैटजेक के अनुसार आश्चर्यजनक बात तो यह है कि उम्रदराज महिलाओं की बड़ी संख्या में इटिंग डिसआर्डर से ग्रस्त होने के बावजूद चिकित्सक उनकी इस समस्या से अनभिज्ञ हैं। इसका कारण यह है कि उम्रदराज महिलाओं की शारीरिक बनावट और उनके इटिंग डिसआर्डर पर अब तक कोई अनुसंधान नहीं हुआ है। 


इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इटिंग डिसआर्डर के नवंबर 2006 के अंक में प्रकाशित इस शोध रिपोर्ट में मैंगवेथ मैटजेक और उनके सहयोगियों के अनुसार उन्होंने उम्रदराज महिलाओं शारीरिक बनावट और उनकी खाने की आदतों के लक्षण पर यह सर्वेक्षण किया। उन्होंने इस अध्ययन में पाया कि 60 फीसदी से अधिक महिलाएं अपने शरीर को लेकर असंतुष्ट थीं। इनमें वैसी महिलाएं भी शामिल थीं जिनका वजन सामान्य था। तकरीबन 90 फीसदी महिलाओं ने कहा कि वे अपने शरीर में चर्बी महसूस कर रही हैं।


मैंगवेथ मैटजेक के अनुसार इस अध्ययन से इस विचार को बल मिलता है कि एक बार यदि कोई महिला स्लिम रहना चाहती है तो उसकी यह सोच उम्र के साथ भी खत्म नहीं होती है। बल्कि उम्र बढ़ने पर भी उनके विचार, इच्छाएं और पसंद पहले जैसे ही रहते हैं। 
इस अध्ययन में 18 महिलाएं या करीब 4 फीसदी महिलाएं अपने शरीर में विकृति महसूस कर रही थीं और उनमें इटिंग डिसआर्डर के लक्षण काफी अधिक थे। अन्य 4 फीसदी महिलाओं में इटिंग डिसआर्डर के एक ही लक्षण थे और अधिकतर महिलाओं का अपने खान-पान पर नियंत्रण था, या उनमें शिथिलता थी या वे वजन को कम करने के लिए डाइयुरेटिक्स का इस्तेमाल कर रही थीं।


मैंगवेथ मैटजेक के अनुसार उम्रदराज महिलाओं में इटिंग डिसआर्डर की पहचान करना बहुत चुनौतीपूर्ण है क्योंकि उम्रदराज लोगों में उपापचय में परिवर्तन और वजन कम होते जाने के साथ-साथ कमजोरी भी सामान्य समस्या है। और इस समस्या को समझने के लिए अभी और भी अनुसंधान की जरूरत है।


आजकल लड़कियों और महिलाओं में छरहरा बनने की बढ़ती होड़ का फायदा उठाते हुये बड़े शहरों यहां तक कि कस्बों में वजन घटाने और छरहरा बनाने का दावा करने वाली स्लिमिंग क्लिनिकों की भरमार हो गयी है। लेकिन कई बार ऐसी क्लिनिक लड़कियों को छरहरा तो नहीं बनाती उन्हें अनेक बीमारियों से पीड़ित अवश्यक कर सकती हैं। ऐसी ज्यादातर क्लिनिकों में सुप्रशिक्षित आहार विशेषज्ञ भी नहीं होती जबकि इनका होना अत्यन्त आवश्यक होता है ताकि वे बता सकें कि स्लिमिंग पिल्स से वजन कम करने के दौरान किस तरह के खाद्य पदार्थ लेने चाहिए ताकि कम खाने के बावजूद व्यक्ति पर अधिक दुष्प्रभाव नहीं हो। स्लिमिंग पिल्स लेने से पहले व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक जांच भी जरूरी है। अगर व्यक्ति को कोई ऐसी बीमारी हो जिसमें स्लिमिंग पिल्स लेने पर बीमारी के बढ़ने या कोई अन्य बीमारी होने का खतरा हो तो ऐसी हालत में स्लिमिंग पिल्स लेने की सलाह नहीं देनी चाहिए। 


नयी दिल्ली स्थित विद्यासागर मानसिक एवं स्नायु रोग संस्थान (विमहांस) के मनोचिकित्सक डा. जीतेन्द्र नागपाल ेके पास हर महीने कम से कम दो लोग स्लिमिंग फिल्स का शिकार होकर आते हैं। यह एक नया चलन है और 15-30 वर्ष की आयु वालों में ज्यादा है। 
उनके अनुसार जब कोई व्यक्ति तक स्लिमिंग पिल्स लेता है, उसका वजन कम होता रहता है, लेकिन दवा का सेवन बंद कर देने पर उसका वजन पहले से भी अधिक हो जाता है क्योंकि दवा बंद करते ही उसकी भूख बढ़ जाती है और वह ज्यादा खाने लगता है। अगर कोई व्यक्ति बचपन से ही अपौष्टिक आहार ले रहा हो और अपना वजन कम करने के लिए स्लिमिंग पिल्स लेना शुरू कर दे तो कम खाने के कारण उसके शरीर में अनिवार्य पोषक तत्वों की कमी हो जाएगी और वह कुपोषण का शिकार हो जाएगा।


नयी दिल्ली स्थित दिल्ली साइक्रेटिक सेंटर के मनोविशेषज्ञ डा. सुनील मित्तल  के अनुसार कुछ युवतियां और महिलायें छरहरा दिखने और मोटापा कम करने के लिए स्लिमिंग पिल्स और डायटिंग के साथ- साथ व्यायाम का भी सहारा लेते हैं। वे खाने में कैलोरी तो कम लेते हैं लेकिन अपनी शारीरिक क्षमता से अधिक व्यायाम करते हैं जिससे कुछ ही दिनों में उनका वजन बहुत कम हो जाता है। लेकिन साथ ही वे अनेक बीमारियों से घिर जाते हैं। इनमें सबसे सामान्य बीमारी एनोरेक्सिया नरवोसा, बुलीमिया, डिसमोर्फिया आदि हैं। 


कई महिलायें बाजार में छरहरा बनाने के दावे के साथ बेची वाली दवाइयां भी आज काफी संख्या में उपलब्ध हो गयी है, लेकिन ये मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस में स्थित भूख को नियंत्रित करने वाले केन्द्र को प्रभावित करती हैं जिससे खाने की इच्छा कम हो जाती है और कम खाने के कारण व्यक्ति का वजन कम होने लगता है। इसके साथ ही ये दवाइयां कमजोरी, थकावट, हदय की धड़कन में असमान्य वृद्धि, अनिद्रा, कब्ज, डायरिया, जी मिचलाने, अवसाद (डिप्रेशन), आलस्य, कामेच्छा में कमी, चिड़चिड़ाहट, रक्त चाप में कमी या वद्धि, चेहरे में सूजन, यौन संबंधों में ठंडापन एवं बांझपन, दृष्टि भ्रम, मिजाज में अचानक परिवर्तन जैसी बीमारियां पैदा करती हैं।


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