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डाइस्टनिक स्र्टोम नामक दुर्लभ मूवमेंट डिसआर्डर के मरीज को मिला नया जीवन

श्री नरेंद्र खन्ना डाइस्टनिक स्टोर्म नामक एक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित थे जिनका आर्टेमिस हाॅस्पिटल में सफलतापूर्वक आपरेशन किया गया है। यह रोगी पिछले 15 महीनों से सरवाइकल डाइस्टनिया से पीड़ित था और उसके शरीर की गतिविधियां अनियंत्रित हो चुकी थीं। उसे गंभीर स्थिति में अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 
आर्टेमिस हाॅस्पिटल में एग्रीम इंस्टीच्यूट फाॅर न्यूरो साइंसेज के न्यूरोसर्जरी के निदेशक डॉ. आदित्य गुप्ता ने कहा, ''उन्हें आईसीयू में डाइस्टनिक नामक बहुत ही गंभीर स्थिति में भर्ती कराया गया था। यह बीमारी बहुत ही दुर्लभ है और संभावित रूप से एक घातक मूवमेंट डिसआर्डर है। कई विशेषज्ञों और अस्पतालों में दिखाने के बाद, उन्हें एम्स के डॉक्टरों ने हमारे पास भेजा किया। रोगी के शरीर के गतिविधियां पूरी तरह से अनियंत्रित हो गई थी और इसलिए उनके शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए सीडेशन की बहुत अधिक खुराक पर रखा गया था। यही नहीं, सीडेशन की अधिक खुराक की भरपाई करने और उनके शरीर की गतिविधियों को पूरी तरह से रोकने के लिए एक ब्रीदिंग ट्यूब लगाई गई थी। यहां तक कि उन्हें 5 दिनों तक मैकेनिकल वेंटिलेटर पर रखने के बाद भी, दवाएं पूरी तरह से शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं थीं और इसलिए टीम ने अगला उपचार करने का फैसला किया।'' 
जब मरीज को इमरजेंसी में भर्ती कराया गया था, तो देखा गया कि रोगी ने मूत्राशय पर अपना नियंत्रण खो दिया था, उसे मूत्र संक्रमण और निमोनिया हो गया था जिसे सर्जरी से पहले कम किया जाना था। आईसीयू में दी गई दवाओं और इंजेक्शन से वह लगभग बेहोशी की अवस्था में रहा। उसकी हालत स्थिर हो जाने के बाद, उससे कैनुला हटाया गया और सर्जरी के लिए तैयार किया गया।
आर्टेमिस हाॅस्पिटल में एग्रीम इंस्टीच्यूट फाॅर न्यूरो साइंसेज के न्यूरोलाॅजी के निदेशक डॉ. सुमित सिंह ने कहा, ''टीम ने डीप ब्रेन स्टिमुलेशन सर्जरी करने का फैसला किया जो मस्तिष्क के लिए पेसमेकर की तरह है। उसके मस्तिष्क में तारों के सेट को डालने के लिए उसके मस्तिश्क की सर्जरी की गई। इस तार को त्वचा के नीचे कॉलरबोन में स्थापित पेसमेकर सेट से जोड़ा गया है। टाइस्टनिया की ऐसी गंभीर स्थिति में डीबीएस के साथ तेजी से प्रतिक्रिया करते देखना टीम के लिए बेहद आश्चर्यजनक और विस्मयकारी था। रोगी ने बहुत अच्छी प्रतिक्रिया दिखाई और उसकी शारीरिक गतिविधि कम होना शुरू हो गई और वह तुरंत आईसीयू से बाहर निकलने में सक्षम हो गया। फिजियोथेरेपिस्ट ने उसे बैठना, खुद खाना खाना, चलना सीखाना शुरू किया और हम श्री खन्ना की प्रगति और सुधार को देखकर बहुत खुश हैं।''
रोगी को गंभीर डाइस्टनिक स्टाॅर्म था, जो बहुत दुर्लभ और जटिल है। इस बीमारी से पीड़ित मरीजों में शरीर के अंगों का पोष्चर बहुत ही विचित्र होता है। उन्हें अत्यधिक दर्द होता है और उनका पूरा शरीर मुड़ा हुआ महसूस करता है। शुरुआती अवस्थाओं में इसका इलाज नहीं कराने पर समय के बाद ऐसी विकृतियां विकसित हो जाती हैं और रोगी की स्थिति दिनोंदिन खराब होती जाती है और शरीर में चौबीसों घंटे मुूवमेंट होता रहता है।
मरीज की पत्नी संगीता खन्ना ने कहा, ''उन्हें बहुत ही दुर्लभ बीमारी थी जिसे प्राइमरी जेनरलाइज्ड डाइस्टनिया कहा जाता है। वह पिछले 2-3 सालों से इस बीमारी से पीड़ित थे। उन्होंने कई अस्पतालों, न्यूरोलॉजिस्ट और मूवमेंट डिसआर्डर स्पेशियलिस्ट से दिखाया लेकिन डाइस्टनिक मूवमेंट को नियंत्रित नहीं किया जा सका। उनके अनियंत्रित मूवमेंट को घर पर पूरी तरह से नियंत्रित करना मुश्किल हो गया था और हम लगभग उम्मीद खो चुके थे। लेकिन सर्जरी के बाद, मेरे पति अच्छी तरह से ठीक हो गए हैं और अब हमेशा की तरह सामान्य हैं। मैं डॉक्टरों की टीम की वास्तव में आभारी हूं।''
डीबीएस ऐसी सर्जरी है जो डायस्टनिया रोगियों के लिए नियमित रूप से की जाती है। लेकिन स्टेटस डाइस्टनिकस वाले कई रोगी की सीधे डीबीएस नहीं की जाती है। यह देखना बेहद आश्चर्यजनक और विस्मयकारी था कि सर्जरी के बाद अगले ही दिन श्री खन्ना नींद के किसी भी इंजेक्शन या सीडेटिव के बिना ही सामान्य रूप से लेटे रहे। 2-3 दिनों के भीतर ऐसे रोगी में डीबीएस की इतनी अच्छी प्रतिक्रिया देखना बहुत ही सुखदायी और खुशी भरा क्षण था। डायस्टनिया रोगियों में आम तौर पर 3-6 महीने में ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद होती है।


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