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धूम्रपान बढा़ता है ब्रेन हैमरेज एवं ब्रेन अटैक का खतरा

धूम्रपान दिमागी नस के फटने (बे्रन हैमरेज) और मस्तिष्क घात (ब्रेन हैमरेज) का कारण बन सकता है। अमेरिकन एसोसिएशन आफ न्यूरोलाॅजिकल सर्जन्स के अनुसार धूम्रपान रक्त धमनियों में सिकुड़न पैदा करके ब्रेन हैमरेज और ब्रेन अटैक की जानलेवा स्थितियां पैदा करता है। धूम्रपान के अलावा मोटापे, शराब सेवन और दिमागी तनाव से भी ब्रेन हैमरेज और ब्रेन अटैक हो सकते हैं। ब्रेन हैमरेज और ब्रेन अटैक होने पर मरीज की जान बचाने के लिये तत्काल आपरेशन करना जरूरी होता है। 
न्यूरोसर्जनों ने अपने हाल के अध्ययन के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि सिगरेट पीने से ब्रेन अटैक एवं ब्रेन हैमरेज का खतरा बढ़ता है। अमरिकन एसोसिएशन आफ न्यूरोलाॅजिकल सर्जन्स की वैज्ञानिक शोध पत्रिका जर्नल और न्यूरोसर्जरी में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट के अनुसार धूम्रपान से दिमागी नस के फटने की आशंका बढ़ती है। दिमागी नस के फटने से ब्रेन हैमरेज और ब्रेन अटैक जैसी खतरनाक स्थितियां पैदा हो सकती है। 
दिमाग की नस में गुब्बारे जैसा बनने की स्थिति को एन्युरिज्म कहा जाता है। यह गुब्बारा कभी भी फट सकता है जिससे मस्तिष्क रक्तस्राव (ब्रेन हैमरेज) हो सकता है और तत्काल इलाज नहीं होने पर मरीज की जान जा सकती है। दिमागी नस के फटने अथवा ब्रेन हैमरेज के मुख्य कारण उच्च रक्त चाप और दिमाग की नसों में गुच्छे बन जाने अर्थात आर्टिरियोवीनस मालफाॅर्मेशन (ए वी एम) है। मधुमेह के रोगियों में ब्रेन हैमरेज की आशंका अधिक होती है। धूम्रपान के अलावा मोटापे, शराब, भागदौड़ और दिमागी तनाव से भी दिमागी नस के फटने एवं बे्रन हैमरेज की आशंका  बढ़ती है। 
एक अनुमान के अनुसार केवल अमरीका में करीब 18 हजार लोग हर साल दिमागी नस के फटने के कारण या तो असामयिक मौत अथवा विकलांगता के शिकार बनते हैं।  
सिगरेट का धुंआ दिमाग की नसों के फटने के अलावा दिमाग की नसों में अवरोध का भी कारण बनता है। इससे ब्रेन अटैक हो सकता है। ज्यादातर मामलों में ब्रेन अटैक उस स्थिति में होता है जब किन्हीं कारणों से मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति किसी रक्त धमनी के फट जाने, उसमें रक्त का थक्का बन जाने या कहीं से थक्का आ कर वहां फंस जाने, उसमें वसा या कोलेस्ट्रोल के जम जाने के कारण बाधित हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के अनुसार ब्रेन अटैक आज असामयिक मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण बन गया है। 
जर्नल आफ न्यूरोसर्जरी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार फिनलैंड के हेलसिंकी स्थित हेलसिंकी यूनिवर्सिटी सेंट्रल हास्पीटल के न्यूरोसर्जरी विभाग के न्यूरोसर्जनों ने उनके पास इलाज के लिये आने वाले मरीजों की जांच के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि सिगरेट पीने से दिमागी नस में अवरोध अथवा दिमागी नस के फटने की आशंका कई गुना बढ़ती है। इन सर्जनों का कहना है सिगरेट छोड़ना अथवा सिगरेट से परहेज करना एन्युरिज्म से बचने का अच्छा विकल्प है।
इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं का कहना है कि एन्युरिज्म के फटने की आशंका धूम्रपान, मरीज की उम्र और एन्युरिज्म के आकार पर निर्भर करती है। इस अध्ययन से इस बात की पुष्टि हुयी है कि धूम्रपान से एन्युरिज्म का आकार बढ़ता है। अमेरिकन एसोसिएशन आफ न्यूरोलाॅजिकल सर्जन्स के अनुसार धूम्रपान से रक्त धमनियों में सिकुड़न पैदा होती है। यह तो पता चला है कि धूम्रपान से एन्युरिज्म के आकार में वृद्धि होती है लेकिन अभी यह पता नहीं चला है कि धूम्रपान नया एन्युरिज्म पैदा करता है या नहीं। 
एन्युरिज्म का रोगी अगर गुब्बारा फटने के चार घंटे के अंदर न्यूरोसर्जरी के किसी अच्छे अस्पताल में पहुंच जाये तो तुरत आपरेशन के जरिये फटे हुए गुब्बारे को एक विदेशी क्लिप के जरिये सील कर दिया जाता है। इस एन्युरिज्म का इलाज पहले 24 या 48 घंटे के अंदर नहीं हो पाने पर इसके दोबारा फटने की आशंका बहुत ज्यादा होती है। अगर पहले ब्रेन हैमरेज से रोगी बच भी जाता है तोे एन्युरिज्म के दूसरी या तीसरी बार फटने पर रोगी का जीवित रहना असंभव हो जाता है। एन्युरिज्म और आर्टिरियोवीनस मालफाॅर्मेशन की सर्जरी सभी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित आपरेशन थियेटर में ही संभव हो पाता है जहां अल्ट्रासाउंड, माइक्रोस्कोप, डिजीटल सब्सट्रैक्शन एंजियोग्राफी और न्यूरोसर्जरी की आधुनिकतम मशीनें और औजार उपलब्ध हो। इसलिए हमारे देश में बहुत कम अस्पतालों में एन्युरिज्म और आर्टिरियोवीनस मालफाॅर्मेशन का आपरेशन संभव है। 
ब्रेन अटैक में हाथ-पैर या शरीर के आधे या पूरे हिस्से का सुन्न पड़ जाने, बैठे-बैठे हाथ-पैर में थोड़ी कमजोरी महसूस होने, सुन्नपन का अहसास होने, आवाज लड़़खड़ाने, आंखों के आगे अंधेरा छा जाने जैसे लक्षण हो सकते हैं। हो सकता है कि कुछ समय बाद ये ठीक हो जाये लेकिन कुछ समय बाद इसी तरह के लक्षण दोबारा उभर सकते हैं। इलाज में विलंब होने पर दिमाग को पूर्ण घात लग सकता है और मरीज की मौत तक हो सकती है। 
ब्रेन अटैक होने पर आसपास की मस्तिष्क की कोशिकाओं को भारी क्षति होती है और इन कोशिकाओं को दोबारा जीवित करना मुश्किल होता है। ब्रेन अटैक होने के तीन से छह घंटे के भीतर मरीज को अस्पताल ले आने पर उसे लकवा या अन्य विकलांगता से बचाया जा सकता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में होने वाली नयी शोधों से अर्जित उपलब्धियों की बदौलत आज पक्षाघात के मरीजों को जीवनदान दिया जा सकता है। 
नयी चिकित्सा तकनीकों की मदद से मरीजों को भविष्य में दोबारा पक्षाघात होने के खतरे से बचाया जा सकता है। अगर मरीज तीन घंटे के भीतर सभी सुविधाओं से युक्त अस्पताल पहुंच जाये तो उसे क्लाॅट डिजाॅलविंग थिरेपी की नयी तकनीक से आपरेशन किये बगैर बचाया जा सकता है। धूम्रपान और शराब सेवन से बचना चाहिये तथा जो लोग शराब या धूम्रपान का सेवन करते हैं और जिनकी उम्र 40 साल से ज्यादा है उन्हें अपने रक्त चाप की नियमित जांच करानी चाहिये क्योंकि रक्त चाप ठीक रहने से ब्रेन अटैक की आशंका कम रहती है। 


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