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दिल की सेहत भी बिगाड़ता है उच्च रक्तचाप

उच्च रक्तचाप के लिए चिकित्सीय भाषा में हायपरटेंशन शब्द का इस्तेमाल होता है। इसका अर्थ यह है कि आपका रक्तचाप अनियमित रूप से स्तरीय माप 140/90 एमएम एचजी से ज्यादा बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि दुनिया भर में करीब दस करोड़ लोगों को उच्च रक्तचाप की समस्या है। और हर साल करीब 71 लाख लोग उच्च रक्तचाप और इससे जुड़ी बीमारियों के कारण अपनी जान गंवाते हैं। इसमें हैरानी की कोई बात नहीं कि उच्च रक्तचाप को 'साइलेंट किलर' कहा जाता है। साइलेंट कहने की सबसे बड़ी वजह यह है कि अधिकतर लोगों में इस बीमारी के कोई भी संकेत नजर नहीं आते। लोगों में बरसों बाद अचानक ही इस बीमारी के लक्षण पता चलते हैं।
दिल की बीमारी
हायपरटेंशन तेजी से बढ़ती हुई स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ उच्च रक्तचाप से बचना लगभग असंभव हो गया है। उम्र और हायपरटेंशन के संबंध का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 60 से 69 वर्ष की उम्र के करीब 50 फीसदी लोगों में उच्च रक्तचाप होने का खतरा होता है। वहीं 70 वर्ष और इससे अधिक उम्र के करीब 75 फीसदी लोगों को हायपरटेंशन की शिकायत होती है। दरअसल, जिन पुरुषों अथवा महिलाओं को क्रमशः 55 अथवा 65 वर्ष की उम्र में हायपरटेंशन की शिकायत न हो, उन्हें भी जीवन भर में यह रोग होने की आशंका 90 प्रतिशत होती है। यदि इस रोग का इलाज न किया जाए अथवा सही तरीके से न किया जाए, तो इससे दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता हे। हायपरटेंशन हृदयाघात और हार्ट फेल्योर, किडनी की बीमारियां, और आंखों को भी काफी हद तक नुकसान पहुंचाता है। उच्च रकतचाप से दिल की बीमारियां होने का खतरा दो से तीन गुना बढ़ जाता है। हायपरटेंशन आपके दिल को कई प्रकार से प्रभावित कर सकता है -
यह हृदय को रक्त पहुंचाने वाली धमनियों को सख्त अथवा मोटा कर सकता है। जिससे उनकी चौड़ाई कम हो जाती है। परिणामस्वरूप हृदय को पर्याप्त मात्रा में रक्त नहीं मिल पाता और हृदय रोग और कोरोनेरी हृदय रोग होने का अंदेशा काफी बढ़ जाता है।
इससे दिल का दौरा पड़ सकता है। वास्तव में जिस व्यक्ति को एक्यूट हार्ट अटैक आया हो, उसे पहले से हायपरटेंशन होता है, जो अचानक सामने आता है और फिर उसका इलाज किया जाता है। 
हायपरटेंशन से दिल की मांसपेशियां असामान्य रूप से मोटी हो जाती हैं, जिसे बायां निलय अतिवृद्धि कहा जाता है। जो भविष्य में कार्डियोवैस्कुलर डिजीज के कारण मौत होने का बड़ा कारक होता है। 
उच्च रक्तचाप हृदय पर काफी दबाव डालता है। इससे हृदय को सामान्य से अधिक काम करना पड़ता है। इससे दिल का आकार लगातार बढ़ता रहता है और बाद में यह कमजोर होने लगता है। यही समस्या आगे चलकर हार्ट फेल्योर का कारण बन जाती है। 
ऑप्टीमल यानी उच्चतम रक्तचाप स्थानिक हृदयाघात के 50 फीसदी मामलों के लिए उत्तरदायी होता है। सिस्टोलिक रक्तचाप में 20 एमएमएचजी अथवा डास्टोलिक रक्तचाप में 10 एमएमएचजी की बढ़त रक्तचाप से होने वाली मौत का खतरा दोगुना कर देती है। 
उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारियों के बीच गहरा संबंध है और ये दोनों एक दूसरे का खतरा बढ़ा सकते हैं। रक्तचाप जितना अधिक होगा, दिल का दौरा और हार्ट फैल्योर का खतरा उतना अधिक होगा। हायपरटेंशन के कारण 90 फीसदी मरीजों को दिल की बीमारियां होने का खतरा होता है। इसके साथ ही यह दिल का दौरा पड़ने की आशंका दोगुनी बढ़ा देता है। 
हायपरटेंशन के सही इलाज से इस बीमारी के व्यापक गंभीर परिणामों से बचा जा सकता है। हायपरटेंशन के इलाज की शुरुआत अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में बदलाव से होती है। अपने खानपान में बदलाव और शारीरिक क्रियापलापों में बढ़ोत्तरी से रक्तचाप को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके साथ ही जरूरी है कि आप अपने वजन पर काबू रखें। और साथ ही डॉक्टर की सुझायी दवाओं का भी सही समय पर सेवन करें।
एंटीहायपरटेंनसिव थेरेपी से हार्ट अटैक के मामलों में 20 से 25 फीसदी तक कमी लाई जा सकती है। वहीं, हार्ट फैल्योर के मामले भी औसतन 50 फीसदी से भी अधिक तक कम किये जा सकते हैं।


 


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