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डिप्रेशन से भागें नहीं, इसें स्वीकारें और इससे लड़ें

अक्सर हम लोगों को यह यह कहते हुए सुनते हैं कि डिप्रेशन विप्रेशन कुछ नहीं होता, बस अमीरों के चोंचले हैं, ख़ाली दिमाग़ का फ़ितूर है। जबकि डिप्रेशन वास्तविकता है। यह डिप्रेशन उम्र जेंडर या सोशल स्टेटस देखकर नहीं आता। यह ज़रूर है कि पढ़े लिखे और वेल टू डू फैमिली के लोग इसका पता लगाकर सही दिशा में कदम बढ़ाते हैं जबकि ग़रीब तबके के या अज्ञानी लोग ज़िन्दगी ख़त्म करने तक का एक्सट्रीम स्टेप ले सकते हैं चाहे वे इसे 'डिप्रेशन' नाम से न भी पुकारें। 


अगर कोई इंसान यह कहे कि उसे जीवन में कभी भी डिप्रेशन नहीं हुआ, या तो वह झूठ बोल रहा है या वह वाकई मोह माया के परे सच्चा सन्त है।हम सभी की ज़िंदगी में कभी न कभी ऐसी फेज़ आती है जब हमें दुनिया अपनी दुश्मन लगने लगती है। या लगता है हर कोई हमें जज करने बैठा है। लगता है ज़िन्दगी बेमकसद, बेसबब है। लगता है किसी को हमारी कद्र या ज़रूरत नहीं। कई बार सब कुछ छोड़ देने का दिल करता है। कभी कभी दुनिया भी। पर हम किस तरह से और कितनी जल्दी इस परिस्थिति से उबरते हैं, वही तय करता है कि हमारा मानसिक स्वास्थ्य ठीक है या हमें मदद की ज़रूरत है। इसे मैं मदद कहना पसन्द करूँगी इलाज की बजाय। क्योंकि सही वक्त पर सही मदद मिल जाए तो कुछ गलत होने से बचाया जा सकता है।



दरअसल किसी खास परिस्थिति को झेलना, दबाव, तनाव, हार, त्वरित निर्णय लेने की क्षमता इन सबके बीज हमारे बचपन में बोए जाते हैं। अगर बच्चा भय, तनाव या असुरक्षा के माहौल में बड़ा हुआ है तो ये होता ही है। पर बज़ाहिर ऐसा कुछ न हो पर जिसके अभिभावक ऐसी सोच रखते हों कि ज़्यादा गोद में लेने से, लाड़ दुलार दिखाने से बच्चा बिगड़ जाएगा या रो रहा है तो रोने दो थक जाएगा तो खुद ही चुप हो जाएगा, ऐसे बच्चों का भावनात्मक पहलू काफी हद तक अविकसित रह जाता है। कई अपराधियों के इमोशनल कोशेंट्स किसी अबोध शिशु जितने पाए गए। मेरी आगामी किताब में मस्तिष्क विकास और व्यक्तित्व निर्माण पर पूरा एक भाग ही है। यहां डिप्रेशन के परिपेक्ष्य में बात करें तो अगर आपको या आपके किसी प्रियजन को इससे उबरने में दिक्कत हो और मित्रों की सलाह काम न आ रही हो तो प्रोफेशनल्स से मदद लेने में हिचकें नहीं। पागलों के डॉक्टर के पास जाने वाले पागल नहीं घोषित हो जाएंगे आप इससे। बल्कि समझदारी का ही सबूत देंगे।



बहरहाल एक काम जो हम कर सकते हैं, हम सभी, जिनके बच्चे हैं (बच्चे 3 साल के हैं या 33 साल के, फर्क नहीं पड़ता) और जिनके पति/पत्नी हैं, वे अपने बच्चों से, अपने जीवनसाथी से ये ज़रूर कह दे, कहे नहीं तो लिख दे, कि अभी तक जितनी भी आलोचनाएं की हैं, डाँट फटकार लगाई है, सिर्फ इसलिए क्योंकि आपको उनकी परवाह है क्योंकि आप उनसे बहुत प्यार करते हैं। ईमानदारी से मान लीजिये कि कई बार आपके व्यंग्यबाण आपके कटाक्ष बहुत तीखे हो जाते हैं दिल दुखाते हैं जिनपर आपको पछतावा भी होता है पर झिझक और कम्युनिकेशन गैप के कारण माफी नहीं मांग पाते पर फिर भी आप ये सब इसलिए नहीं करते कि आप उनकी दूसरों से तुलना करते हैं और उन्हें कमतर पाते हैं। उन्हें बताइये आप उन्हें किसी प्रतियोगिता में नहीं उतारना चाहते। उन्हें बताएं आप जो रोकटोक करते हैं इसलिए क्योंकि आपको उनकी सेहत की फिक्र है न कि इसलिए कि वे आपको किसी खास शेप साइज़ वज़न या रंग में देखकर प्यार करते हैं। उन्हें बताएं उनके ग्रेड उनका सिलेक्शन उनकी नौकरी उनका पैकेज सब सेकंडरी है। प्रायोरिटी सिर्फ और सिर्फ वे ही थे हैं और रहेंगे। आपकी बातें आपके अपनों की ज़िंदगी बदल सकती हैं। बना भी सकती हैं बिगाड़ भी सकती हैं। करके देखिए अच्छा लगेगा....


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