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घुटने के दर्द से पीड़ित रोगियों के लिए घुटना प्रत्यारोपण की आधुनिक प्रक्रियाएं वरदान साबित हो रही हैं

मेरठ: आजकल लोगों की जीवन शैली अस्वस्थ होती जा रही है और साथ ही उनकी दिनचर्या भी षारीरिक रूप से निश्क्रिय होती जा रही है जिसके कारण मोटे लोगों को 40 साल के बाद ही जोड़ों से संबंधित समस्याएं होने लगी है। 
डाॅ. अखिलेष यादव ने कहा, ''उम्र बढ़ने के साथ- साथ घुटने की समस्याओं में वृद्धि होना आम है, लेकिन इसका समय पर पता लगाना और कंप्यूटर की सहायता से मिनिमली इनवेसिव तकनीक के साथ टोटल नी रिप्लेसमेंट के क्षेत्र में हुई प्रगति अब बेहतर रिकवरी और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक बेहतर मार्ग प्रदान कर रही है। सर्जरी अब अत्यधिक विशिष्ट और उन्नत वातावरण में की जाती है, जिसके कारण रोगी को अस्पताल से डिस्चार्ज करने का समय कम हो गया है और दर्द भी नहीं होता है। इससे रोगी को अस्पताल में कम समय तक रहना पड़ता है, तेजी से रिकवरी होती है और रोगी को अधिक संतुश्टि मिलती है।'' 
ऐसी जटिलताएं अक्सर रोगी के द्वारा लापरवाही के कारण उत्पन्न होती हैं। षुरू में, जोड़ों का दर्द अधिक तकलीफदेह नहीं होते हैं, लेकिन समय के साथ स्थिति बिगड़ती जाती है और दर्द बढ़ता जाता है। इसके बाद ही मरीज इलाज कराना चाहते हैं।
उन्होंने कहा, ''श्री गजराज जब यूपी पुलिस में डीएसपी के पद पर तैनात थे और अपनी सेवाएं दे रहे थे तो उनके दोनों घुटनों में चोट लगी थी। इससे धीरे-धीरे उनके दैनिक काम भी प्रभावित होने लगे। उनके घुटने धीरे-धीरे कमजोर होते गए और उन्हें खड़े रहने या कम समय तक चलने में भी काफी दर्द हो रहा था। कुछ समय तक तो वह दर्द को नजरअंदाज करते रहे लेकिन जब हालत गंभीर हो गई तो वह इलाज के लिए आए। लेकिन दवा से उनकी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा था, इसलिए ऑर्थोपेडिक्स टीम ने उन्हें टोटल नी रिप्लेसमेंट कराने की सलाह दी। सर्जरी के बाद, वह सामान्य रूप से चलने में सक्षम है और दर्द रहित सामान्य जीवन जी रहे हैं। इसलिए शुरुआती जांच के महत्व को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह इष्टतम परिणामों के लिए उचित उपचार को निर्धारित करने मंे मदद करता है।'' 
यह सर्जरी मिनिमली इंवैसिव तकनीक से की जाती है जिससे रोगी की तेजी से रिकवरी होती है और वह जल्द ही अपनी पूर्ण दैनिक गतिविधियां करने लगता है। मरीज अपने नए ज्वाइंट्स को सामान्य घुटने की तरह ही महसूस करता है और घुटने में सामान्य घुटने की तरह ही स्थिरता पाता है। इस सर्जरी के बाद रोगी को 20 वर्षों तक किसी अन्य या बार-बार नी रिप्लेसमेंट सर्जरी कराने की आवश्यकता नहीं होती है।


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