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हकलाहट बन सकती है स्लीप एप्निया का कारण

स्लीप एप्निया अभी तक रहस्यमय बीमारी बनी हुई है। अमरीकी वैज्ञानिकों ने हाल के अध्ययनों में हकलाने और स्लीप एप्निया का आपस में गहरा संबंध पाया है। ये दोनों स्थितियां बचपन में मस्तिष्क में हुई क्षति के कारण उत्पन्न होती हैं। कैलिफोर्निया लाॅस एंजेल्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने स्लीप एप्निया के रोगियों का अध्ययन करने पर पाया कि इनमें से  तकरीबन 40 फीसदी रोगी बचपन में हकलाते थे। स्लीप एप्निया खर्राटे का ही गंभीर रूप है जिसमें रात में सोते समय व्यक्ति की सांस कुछ क्षण के लिए रूक जाती है। इसलिए स्लीप एप्निया के रोगियों के हृदय गति रूकने के कारण मौत होने की काफी आशंका होती है।
स्नायु जीवविज्ञान (न्यूरो बाॅयोलाॅजी) के प्रोफेसर तथा इस अध्ययन के प्रमुख डा. रोनाल्ड हार्पर का कहना है कि पिछले दशकों में स्लीप एप्निया के लिये टांसिल बढ़ने के कारण श्वसन के रास्ते के संकरेपन, जबड़े के छोटे होने और गले में अत्यधिक वसा जमने जैसे कारणों को जिम्मेदार माना जाता था। लेकिन इस अध्ययन से पता चला है कि स्लीप एप्निया के रोगियों में मस्तिष्क के क्षेत्रा में श्वसन के रास्तों की मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाले तार भी अव्यवस्थित होते हैं। ये इस बीमारी को और बढ़ा देते हैं। इस अध्ययन के तहत स्लीप एप्निया के 21 मरीजों और इस बीमारी से मुक्त 21 लोगों के सिर की मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग (एम.आर.आई.) जांच करने पर स्लीप एप्निया के रोगियों के मस्तिष्क की कोशिकाओं में भूरे पदार्थ की आश्चर्यजनक कमी पायी गयी। इसमें चोट लगे स्थान में आवाज का उत्पादन तथा संचालन करने वाला क्षेत्रा भी शामिल था। इस तरह मस्तिष्क में चोट का भी स्लीप एप्निया से सीधा संबंध पाया गया। स्लीप एप्निया से पीड़ित व्यक्ति की तुलना में स्वस्थ व्यक्ति के मस्तिष्क के इस क्षेत्रा में दो से 18 फीसदी की वृद्धि पायी गयी।
इस अध्ययन में सहयोग करने वाले डा. पाॅल मैके का कहना है कि मस्तिष्क के स्पीच केन्द्र में पूर्व में हुई क्षति के कारण हवा आने-जाने के रास्ते को नियंत्रित करने वाली मांसपेशियों में समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जो कि बाद में धीरे-धीरे स्लीप एप्निया की आशंका को बढ़ाता है।
स्लीप एप्निया के रोगियों को बचपन में ही आवाज में खराबी आ जाने और उनके स्पीच केन्द्र में भूरे रंग के पदार्थ की कमी हो जाने के कारण बाद में स्लीप एप्निया की आशंका बढ़ जाती है।
शोधकर्ताओं के अनुसार स्लीप एप्निया के 30 फीसदी रोगियों के जीवनकाल में आवाज में खराबी पायी गयी। पूरी आबादी में तकरीबन सात फीसदी लोग खर्राटे लेते हैं। मैके का कहना है कि आवाज में रूकावट या हकलाहट के आधार पर स्लीप एप्निया को मापा और इसका इलाज किया जा सकता है। भविष्य में मस्तिष्क की कुछ संरचनाओं के अध्ययन और आवाज की खराबी से ग्रस्त बच्चों के परीक्षण के आधार पर स्लीप एप्निया के खतरों की भविष्यवाणी की जा सकती है।


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