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जब हो दूसरे बच्चे को जन्म देने में दिक्कत

हर माता—पिता अपने पहले बच्चे को भाई या बहन का उपहार देना चाहते हैं। पहली बार माता—पिता बनने का सुख अनमोल होता है लेकिन दूसरे बच्चे को जन्म देने का निर्णय करना भी अत्यंत रोमांचक कदम होता है। यदि आपके पहले बच्चे के गर्भधारण में कोई परेशानी नहीं आई हो और जब आप दूसरी बार गर्भधारण करना चाह रही हों और इसमें आपको दिक्कत आ रही होए तो आपको सदमा हो सकता है। जब आपको दूसरी बार गर्भधारण करने में परेशानी हो रही होए तो इसे सेकंडरी इंफर्टिलिटी कहा जाता है।
सेकंडरी इनफर्टिलिटी को इस प्रकार परिभाषित किया जाता है कि दम्पति में से एक या दोनों पार्टनर के पहले से बच्चे हों और बाद में एक साल तक असुरक्षित और उचित समय पर शारीरिक संबंध बनाने के बाद भी वे गर्भधारण करने में असमर्थ हों। पहले से एक बच्चा होने के बावजूदए सेकंडरी इनफर्टिलिटी प्राइमरी इनफर्टिलिटी की तरह ही तकलीफदेह हो सकता है।
अंडाशय में अंडाणु के कम भंडार : महिलाएं अपने सभी अंडों (उसाइट) के साथ पैदा होती हैं जो उनमें हमेशा रहते हैं। लेकिन जैसे-जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती जाती है उनके अंडों के भंडार में कमी आने लगती है। इसका मतलब यह है कि समय के साथ उनकी अंडों की मात्रा और गुणवत्ता कम हो जाती है। ऐसा 37 वर्ष की उम्र के बाद तेजी से होता है। इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों में यहां तक कि कम उम्र की महिलाओं में भी अंडों का कम भंडार होने की समस्या में बढ़ोत्तरी देखी गई है।
प्रजनन प्रणाली की जटिलताएं : पैल्विक ऐडहीशन, एंडोमेट्रियोसिस, इंट्रायूटेरिन ऐडहीशन, और  या फैलोपियन ट्यूब की असामान्यताएं आपके प्रजनन तंत्र की संरचनाओं को प्रभावित कर सकती हैं जिससे स्वस्थ गर्भ धारण करना अधिक मुश्किल हो जाता है। फर्टिलिटी से संबंधित ये समस्याएं पहले से हो सकती हैं या पहले की गर्भावस्था के बाद विकसित हो सकती हैं।
मेल फैक्टर इनफर्टिलिटी : उम्र बढ़ने के साथ केवल महिला की फर्टिलिटी ही प्रभावित नहीं होती है बल्कि पुरुषों में भी उम्र बढ़ने के साथ शुक्राणु की गुणवत्ता और मात्रा में कमी आती है। स्वास्थ्य में परिवर्तन या दवा के इस्तेमाल के कारण भी मेल इनफर्टिलिटी प्रभावित हो सकती है।
जीवनशैली से संबंधित कारक : वजन बढ़ने से पुरुष और महिला दोनों में इनफर्टिलिटी हो सकती है। बहुत अधिक वजन बढ़ने पर महिलाओं में आवुलेटरी डिसफंक्शन हो सकता है और पुरुषों में शुक्राणु के उत्पादन में कमी और इरेक्टाइल डिसफंक्शन में वृद्धि हो सकती है। धूम्रपान भी पुरुषों और महिलाओं दोनों की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है। 
सेकंडरी इनफर्टिलिटी उपरोक्त कारणों में से किसी भी एक कारण, एक से अधिक कारणों से हो सकती है, या कई बार इसके कारणों का पता भी नहीं चल पाता।
सेकंडरी इनफर्टिलिटी के इलाज के विकल्प : इनफर्टिलिटी के सभी रोगियों के लिए अच्छी खबर यह है कि इस क्षेत्र ने पिछले दो दशकों में भारी प्रगति की है।
यह एक आम गलत धारणा है कि प्रजनन संबंधी उपचार का मतलब इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) होता है। जबकि सच्चाई यह है कि सेकंडरी इनफर्टिलिटी के इलाज के लिए कई उपचार विकल्प हैं जिनमें इनफर्टिलिटी की दवाओं से लेकर इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन (आईयूआई या आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन) और कई अन्य उपाय भी शामिल हैं।
इनफर्टिलिटी की दवाएं : इसके इलाज के तौर पर मुंह से ली जाने वाली दवाइयां ओवेरियन फाॅलिकल को उत्तेजित करने के लिए दी जाती हैं ताकि अधिक अंडे रिलीज हो सकें। एक प्रजनन चक्र में कई अंडे का उत्पादन करने के लिए इनजेक्टेबल दवाओं का भी सामान्य रूप से इस्तेमाल किया जाता है। इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन (आईयूआई) के साथ इन दोनों तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है।
इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन (आईयूआई) : इसके तहत पार्टनर या दाता से वीर्य लेकर ओव्यूलेशन के दौरान महिला के गर्भाशय गुहा में सीधे डाल दिया जाता है। इससे शुक्राणु फैलोपियन ट्यूबों के जितना संभव हो उतने करीब होते हैं जहां निषेचन होता है।
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) : इसके तहत भ्रूण का निर्माण करने के लिए शरीर से बाहर अंडे को शुक्राणु के संपर्क में लाया जाता है उसके उसे सीधे गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।
एआरटी में प्रगति के साथ, पुरुष और महिला इनफर्टिलिटी दोनों के इलाज के लिए और जिन रोगियों में बार—बार आईवीएफ फेल्योर, बार—बार गर्भपात हो जा रहा हो, उनके इलाज के भी बहुत अधिक विकल्प उपलब्ध हो गए हैं। और सौभाग्य से इन विकल्पों की मदद से, हर दम्पति के माता—पिता बनने का सपना सच हो सकता है।


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