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जन्मजात हो सकता है हर्निया

आधुनिक समय में हर्निया महिलाओं एवं पुरुषों की सामान्य  समस्या बन गयी है। हर्निया का प्रकोप बढ़ने का मुख्य कारण लोगों में मोटापे की बढ़ रही समस्या तथा व्यायाम एवं शारीरिक श्रम से बचने की बढ़ रही प्रवृतियां हैं। इन कारणों से मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। जांघ के विशेष हिस्से की मांसपेशियों एवं लिगामेंट के बहुुत अधिक कमजोर हो जाने के कारण पेट (आंत) के हिस्से मांसपेशियों से होकर बाहर निकल जाते हैं। इसे ही हर्निया कहा जाता है। वैसे हर्निया होने के जन्मजात कारण भी होते हैं। बच्चों में आम तौर पर जन्मजात कारणों से ही हर्निया होती है। कई मामलों में बचपन से ही हर्निया होती है लेकिन इसके लक्षण 23 से 30 साल के बीच उस समय उभरते हैं जब मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। 
बच्चों एवं पुरुषों में जन्मजात अथवा अचानक वजन बढ़ने जैसे अन्य कारणों से होने वाली हर्निया जांघ में जांघिया वाले क्षेत्र(ग्रोइन एरिया) में ही होती है।
पुरुषों में अधिक उम्र में  वजन में अचानक परिवर्तन के अलावा प्रोस्टेट की समस्या, खांसी, कब्ज और मूत्र त्यागने में दिक्कत जैसे कारणों से भी हर्निया होने की आशंका बढ़ती है क्योंकि इन कारणों से पेट पर अधिक जोर पड़ता है। दूसरी तरफ महिलाओं में हर्निया होने के कारण आम तौर वही नहीं होते जो पुरुषों के लिये होते हैं। महिलाओं में प्रसव अथवा बच्चेदानी निकालने के लिये किये जाने वाले आपरेशन के बाद हर्निया होने की आशंका बढ़ जाती है क्योंकि आपरेशन के कारण मांसपेशियां कमजोर हो जाती है्र। आपरेशन के कारण होने वाली हर्निया को इनसिशनल हर्निया कहा जाता है। इस तरह की हर्निया होने की आशंका उन महिलाओं में अधिक होती है जिनका प्रसव या  बच्चेदानी निकालने के लिये आपरेशन किया गया हो। 
हर्निया की समस्या हालांकि पुरूषों एवं महिलाओं दोनों में पायी जाती है लेकिन परुषों में यह बीमारी महिलाओं की तुलना में तकरीबन आठ गुना अधिक व्यापक है। यह बीमारी मध्यम वय के लोगों में खास तौर पर वैसे लोगों में अधिक सामान्य है जिन्हें खड़े रहकर काम करना पड़ता है। हर्निया के रोगियों को असहनीय कष्ट सहना पड़ता है। हर्निया के बहुत अधिक समय तक रहने के कारण नपुंसकता और आंत के फटने जैसी समस्यायें हो सकती है। 
हर्निया के इलाज के लिये एकमात्र उपाय आपरेशन है लेकिन अब लैपरोस्कोपी अथवा लेजर तकनीक की मदद से हर्निया का आपरेशन अत्यंत कष्टरहित एवं कारगर बन गया है। हर्निया के परम्परागत आपरेशन के तहत हर्निया को काट कर निकाल लिया जाता है लेकिन इस आपरेशन के साथ मुख्य समस्या यह है कि मरीज को आपरेशन के बाद औसतन डेढ़ महीने तक आराम करने की जरूरत होती है। यही नहीं इस आपरेशन के बाद दोबारा हर्निया होने की आशंका बनी रहती है।
परम्परागत आपरेशन के बाद दोबारा हर्निया होने की आशंका करीब 20 प्रतिशत तक होती है। परम्परागत आपरेशन की तुलना में लीशटेंस्टियन रिपेयर नामक तकनीक अधिक कारगर है और इस तकनीक से आपरेशन करने पर आपरेशन के बाद दोबारा हर्निया होने की आशंका एक प्रतिशत से भी कम होती है। इस तकनीक के तहत कम से कम टांके लगाये जाते हैं और कमजोर मांसपेशियों पर एक विशेष नेट रोपित कर दिया जाता है। हालांकि इस तरीके से आपरेशन करने पर भी मांसपेशियों में चीर-फाड़ करने की जरूरत पड़ती है और मरीज को आपेरशन के दौरान कष्ट सहना पड़ता है और आॅपरेशन के बाद काफी समय तक विश्राम करनी होती है। 
अब लैपरोस्कोपी आधारित सर्जरी के विकास के बाद हर्निया के आपरेशन के लिये मांसपेशियों में चीर-फाड़ करने की आवश्यकता समाप्त हो गयी है। लैपरोस्कोपी सर्जरी के तहत किसी भी मांसपेशी को काटे या मांसपेशियों में चीर-फाड़ किये बगैर उदर के निचले हिस्से की त्वचा में मात्र आधे इंच का चीरा लगाकर मांसपेशियों के बीच अत्यंत पतली ट्यूब (कैनुला) प्रवेश करायी जाती है। इस ट्यूब के जरिये लैपरोस्कोप डाला जाता है। यह लैपरोस्कोप अत्यंत सूक्ष्म कैमरे से जुड़ा होता है।
फाइबर आप्टिक तंतु के जरिये भीतर की तस्वीरों को परिवर्द्धित आकार में उससे जुड़े टेलीविजन के माॅनिटर पर देखा जा सकता है। टेलीविजन माॅनिटर पर तस्बीरों को देखते हुये इस पतली ट्यूब के रास्ते आधे इंच के व्यास वाली एक और पतली ट्यूब प्रवेश करायी जाती है। इस ट्यूब की मदद से हर्निया को हटाकर वहां एक विशेष जाली (नेट) फिट कर दी जाती है जिससे भविष्य में दोबारा हर्निया होने की आशंका समाप्त हो जाती है। 
हालांकि फिलहाल लैपरोस्कोपी आपरेशन परम्परागत आपरेशन की तुलना में दोगुना महंगा है क्योंकि इसके लिये जरूरी उपकरण विदेशों से आयातित होते हैं लेकिन लैपरोस्कोपी आपरेशन के बाद मरीज शीघ्र काम काज करने लायक हो जाता है और उसे अधिक समय तक अस्पताल में नहीं रहना पड़ता है। अमरीका में किये गये अध्ययनों से पता चलता है कि परम्परागत आपरेशन के बाद मरीज को करीब 48 दिन आराम करने की जरूरत होती है जबकि नयी तकनीक से आपरेशन करने के बाद करीब नोै दिन का आराम पर्याप्त होता है। 
अब लैपरोस्कोपी का अधिक विकसित रुप माइक्रो लैपरोस्कोपी के रुप में सामने आया है। भारत में यह तकनीक कुछ गिने-चुने चिकित्सा केन्द्रों में उपलब्ध हो गयी है। इस नयी तकनीक के कारण हर्निया का आपरेशन और अधिक कष्टरहित एवं कारगर बन गया है। मरीज को उतना ही कष्ट होता है मानो उसे सुई चुभोई जा रही है। परम्परागत माइक्रोस्कोप आपरेशन के लिये 11 मिली मीटर व्यास का चीरा लगाने की जरूरत होती है जबकि माइक्रोलैपरोस्कोपी आपरेशन के तहत मात्र पांच मीली मीटर व्यास का चीरा लगाना ही पर्याप्त होता है। यही नहीं माइक्रोलैपरोस्कोपी आपरेशन के बाद टांके को हटाने की जरूरत नहीं पड़ती है। इस तरह दूर-दराज के मरीजों को दोबारा सर्जन के पास आने की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे मरीज स्थानीय चिकित्सक से ही चेकअप आदि करवा सकते हैं।


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