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कड़ाके की ठंड में अपनी जान और सेहत की कैसे करें रक्षा 

सर्दियां आते ही ठंड से होने वाली मौतें अखबारों की सुर्खियां बनने लगती हैं। कड़ाके की ठंड बेघर तथा सुविधाओं से वंचित लोगों के लिए कहर साबित होती है। साथ ही मधुमेह, दमा और दिल के मरीजों के लिए भी ठंड खतरे की घंटी होती है। दिल्ली डायबेटिक रिसर्च सेंटर (डी डी आर सी) के अध्यक्ष का कहना है कि ठंड के कारण उच्च रक्त दाब बढ़ने से मधुमेह और हृदय रोगियों की मौत की आशंका बढ़ जाती है और इस कारण उन्हें विशेष तौर पर सावधान रहने की जरूरत होती है।

सर्दियों में हाइपोथर्मिया, उच्च रक्त चाप, मधुमेह, दमा तथा दिल के दौरे के कारण हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है। 
विशेषज्ञों के अनुसार सर्दियों में न केवल तेज ठंड से उत्पन्न हाइपोथर्मिया के कारण, बल्कि उच्च रक्त चाप, दिल के दौरे, दमा और मधुमेह के कारण असामयिक मौत की घटनायें कई गुना बढ़ जाती हंै। हमारे देश में हर साल ऐसी मौतों की संख्या लाखों में होती हैं। 
हाइपोथर्मिया का खतरा एक साल से कम उम्र के बच्चों तथा बुजुर्गों को बहुत अधिक होता है। अनुमान है कि जब कभी भी तापमान सामान्य से एक डिग्री सेल्शियस घटता है तब आठ हजार और बुजुर्ग मौत के हवाले हो जाते हैं।


एडाहाइपोथर्मिया के कारण मौत का शिकार होने वालों में ज्यादातर लोग मानसिक रोगी, दुर्घटना में घायल लोग, मधुमेह, हाइपोथाइराइड, ब्रांेकोनिमोनिया और दिल के मरीज तथा शराब का अधिक सेवन करने वाले होते हैं। 
बेघर लोगों तथा ठंड से बचाव की सुविधाआंे से वंचित लोगों को हाइपोथर्मिया से मौत का खतरा अधिक होता है। पर्वतारोहियों को अत्यधिक ठंड से प्रभावित होने का खतरा अधिक होता है, लेकिन आम तौर पर पर्वतारोही ऐसी आपात स्थिति की तैयारी करके पर्वतारोहण करते हैं।
विभिन्न अध्ययनों एवं आंकड़ों के अनुसार हाइपोथर्मिया से होने वाली करीब 50 प्रतिशत मौतें 64 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों में होती है। बुजुर्गों को कम उम्र के लोगों की तुलना में हाइपोथर्मिया से पीड़ित होने की आशंका बहुत  अधिक होती है, क्योंकि ठंड से बचाव की शरीर की अपनी प्रणाली उम्र के साथ कमजोर पड़ती जाती है। इसके अलावा उम्र बढ़ने के साथ सबक्युटेनियस वसा में कमी आ जाती है और ठंड को महूसस करने की क्षमता भी घट जाती है। इसके अलावा शरीर की ताप नियंत्राण प्रणाली भी कमजोर पड़ जाती है। 
जाड़े के दिनों में मधुमेह और हृदय रोगियों के लिये खतरा अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि ठंड के कारण एंजाइना, रक्त चाप और शुगर बढ़ने की आशंका अधिक होती है। 
ठंड के असर के कारण शरीर का तापमान अत्यधिक गिर जाने पर हाइपोथर्मिया की स्थिति उत्पन्न होती है। ठंड के संपर्क में लंबे समय तक रहने पर कम ठंड रहने पर भी हाइपोथर्मिया उत्पन्न हो सकती है। 
हमारे शरीर में ठंड से बचाव की प्राकृतिक प्रणाली काम करती है, जिसके तहत ठंड के संपर्क में आते ही त्वचा तक रक्त का प्रवाह बंद हो जाता है ताकि और अधिक ताप क्षय रूक जाये। बचाव की इस प्रणाली के तहत शरीर में गर्माहट लाने के लिये स्वतः कंपकपी शुरू हो जाती है और खास हार्मोनों का उत्सर्जन होने लगता है। लेकिन अधिक ठंड में यह सुरक्षा प्रणाली आम तौर पर विफल हो जाती है। अगर ऐसे में शरीर से ताप क्षय को तत्काल रोका नहीं जाये और शरीर में गर्माहट लाने के उपाय नहीं किये जायें तो मौत हो सकती है। 
कंपकपी, लड़खड़ाहट और घबराहट हल्की हाइपोथर्मिया के लक्षण हैं जबकि अत्यंत तेज कंपकपी और कंपकपी का अचानक बंद हो जाना, श्वसन में कमी आ जाना, दिल की धड़कन और नब्ज का धीमा चलना और कुछ भी नहीं सोच पाना आदि मध्यम हाइपोथर्मिया के लक्षण हैं। अति हाइपोथर्मिया की स्थिति में कंपकपी बंद हो जाती है, मरीज बेहोश हो जाता है, श्वसन या तो अत्यंत धीमा हो जाता है या बंद हो जाता है तथा नब्ज या तो अनियमित हो जाती है या चलनी बंद हो जाती है। 
हाइपोथर्मिया होने पर तत्काल चिकित्सकीय सुविधाओं की जरूरत होती है। हाइपोथर्मिया होने पर मरीज को तत्काल सूखे एवं गर्म कपड़ों से लपेट देना चाहिये ताकि शरीर से और अधिक ताप क्षय नहीं हो। अगर दिल की धड़कन एवं नब्ज नहीं चल रही हो तो तत्काल कोर्डियोपल्मनरि रिससिटेशन (सीपीआर) दिया जाना चाहिये। बार-बार गर्म पानी और मालिश के जरिये गर्मी पहुंचाने की कोशिश से परहेज करना चाहिये, क्योंकि अगर यह गलत तरीके से किया गया तो उतकों को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। मरीज को अल्कोहल या निकोटिन नहीं देना चाहिये। 
हाइपोथर्मिया से बचने के लिए कई गर्म कपड़े पहनना चाहिए, खूब गर्म तरल पेय का सेवन करना चाहिए, पौष्टिक भोजन करना चाहिये, लेकिन अल्कोहल से परहेज करना चाहिये। सर्दियों में कमरे को रूम हीटर या अन्य उपायों से गर्म रखना चाहिये।


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