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कम हो रहे हैं शुक्राणु

बढ़ते प्रदूषण, धूम्रपान, शराब एवं नशीली दवाईयों के सेवन, तनाव और तंग किस्म के आधुनिक जांघिये के इस्तेमाल जैसे कारणों से शुक्राणुओं के कम बनने की समस्या बढ़ रही है। शुक्राणुओं के कम बनने की समस्या के कारण करीब 15 प्रतिशत दम्पति निःसंतान होने की त्रासदी झेल रहे हैं। अमरीका के नेशनल इंस्टीट्युट आफ हेल्थ के अनुसार संतानहीनता के सभी मामलों में से 40 प्रतिशत मामलों में पुरुष बंध्यत्व जिम्मेदार हैं।
प्रजनन विशेषज्ञ डा. याचना ग्रोवर बताती हैं कि बहुत अधिक धूम्रपान का भी प्रजनन क्षमता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि धूम्रपान से शुक्राणुओं की संख्या एवं शुक्राणुओं की गतिशीलता में कमी आती है। 
प्रजनन विशेषज्ञों के अनुसार गर्मी का शुक्राणुओं के उत्पादन पर काफी दुष्प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि तंग किस्म के आधुनिक जांघिये भी शुक्राणु निर्माण पर बुरा असर डालते हैं क्योंकि इन्हें पहने रहने से अंडकोष का तापमान बढ़ जाता है। कई लोग बहुत गर्म पानी से भरे टब में बैठ या लेट कर स्नान करते हैं लेकिन इससे उनकी प्रजनन क्षमता पूरी तरह समाप्त हो सकती है। जिन लोगों को होटलों और फैक्टरियों में भट्ठियों के पास रहना पड़ता है उन्हें भी बंध्यत्व का शिकार होना पड़ सकता है। 
डा. ग्रोवर ने बताया कि शुक्राणुओं में कमी के 10 से 20 फीसदी मामलों में हार्मोनल असंतुलन जिम्मेदार हो सकता है। कुछ में यह समस्या वेरिकोसली नामक विकार से संबंधित है। वेरिकोसली में अंडकोष की शिराओं में असामान्य फैलाव आ जाता है, जिससे अंडकोष का तापमान बढ़ जाता है, उस पर खिंचाव पड़ने लगता है और उसमें शुक्राणु बनने की गति घट जाती है। इसके अलावा रतिजरोग, दुर्घटनावश जननांग प्रणाली के किसी हिस्से में चोट, प्रोस्टेट ग्रंथि और अंड ग्रंथि में सूजन, कनफेड (मम्पस) के कारण अंडग्रंथि को हुयी क्षति और जन्मजात विकार के कारण अंडग्रंथियों के अपनी जगह न होकर पेट में रह जाने से पुरुषों में शुक्राणु की कमी हो सकती है। अंडग्रंथियों के काम नहीं करने और शुक्राणुवाही नलियों में रूकावट होने पर शुक्राणु संख्या बिल्कुल शून्य हो सकती है। 
चेन्नई के अपोलो अस्पताल में प्रजनन पर शोध करने वाली डा.याचना ग्रोवर बताती हैं कि पुरुष बंध्यत्व के उपचार की दिशा में हाल के वर्षों में काफी अनुसंधान हुये हैं जिनकी बदौलत कई कारगर औषधियों, हार्मोनों तथा तकनीकों का विकास हुआ है। दवाईयों और हार्मोनों के कारगर नहीं होने पर कृत्रिम गर्भाधान के तरीके अपनाये जाते हैं। कृत्रिम गर्भाधान के एक तरीके के तहत पति का वीर्य लेकर उसे कृत्रिम तरीके से परिष्कृत कर, स्त्री का गर्भ ठहराने की कोशिश की जाती है। यह तरीका उन मामलों में काम आता है जिनमें या तो पुरुष के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या कम होती है या वीर्य में शुक्राणुनाशक तत्व (स्पर्म एंटीबाॅडी) होते हैं अथवा स्त्री के सरविक्स की परिस्थितियां शुक्राणुओं के लिये प्रतिकूल होती हैं या फिर किन्हीं कारणों से पति-पत्नी के बीच प्राकृतिक यौन संबंध संभव नहीं हो पाता है। जिन मामलों में वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बहुत कम होती है उनमें यह तरीका कम कामयाब हो पाता है। ऐसे मामलों में बेहतर कामयाबी हासिल करने के लिये वीर्य का पहला हिस्सा छंटनी करके इस्तेमाल किया जाता है। इस विधि में डिंब उत्सर्ग (ओव्यूलेशन) के संभावित दिनों में 24 घंटों के अंतर पर, दो बार गर्भाधान की कोशिश की जाती है।


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