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कृत्रिम अंडाशय की बदौलत कैंसर और बांझपन की शिकार महिलायें भी मां बन सकेंगी

कृत्रिम अंडाशय की बदौलत कैंसर एवं बांझपन की शिकार  महिलायें भी मां बन सकेंगी। वैज्ञानिकों ने ऐसा पहला कृत्रिम मानव अंडाशय का आविश्कार किया है जिससे कैंसर रोगियों में बांझपन के इलाज में सहायता मिल सकती है। इस कृत्रिम मानव अंडाशय का विकास अमरीका के ब्राउन विश्वविद्यालय और वुमेन एंड इंफैंट्स हाॅस्पीटल के अनुसंधानकर्ताओं ने किया है। 
ब्राउन विश्वविद्यालय के वारेन अल्पर्ट मेडिकल स्कूल के प्रसूति एवं स्त्री रोग के प्रोफेसर और वुमेन एंड इंफैंट्स हाॅस्पीटल में रिप्रोडक्टिव इंडोक्राइनोलाॅजी एंड इनफर्टिलिटी विभाग के निदेशक सैंड्रा कार्सन कहते हैं कि अंडाषय तीन मुख्य प्रकार की कोशिकाओं से बना होता है और ऐसा पहली बार हुआ है कि इसे ट्रिपल सेल लाइन के साथ 3-डी टिश्यू संरचना के साथ बनाया गया है। 
कार्सन कहते हैं कि यह अंडाशय न सिर्फ यह जानने के लिए एक जीवित प्रयोगशाला उपलब्ध कराती है कि स्वस्थ अंडाशय कैसे कार्य करती है, बल्कि यह विषैले पदार्थों या अन्य रसायनों के संपर्क जैसी समस्याओं का पता लगाने के लिए टेस्टबेड की तरह भी कार्य कर सकती है, अंडे की परिपक्वता और स्वास्थ्य को बाधित कर सकती है। 
हाॅस्टन के प्रजनन चिकित्सक स्टीफन क्रोट्ज कहते हैं कि कृत्रिम अंडाशय कैंसर का इलाज कराने वाली महिलाओं में भविश्य में प्रजनन को संरक्षित रखने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। कीमोथेरेपी या रेडियेषन की शुरुआत से पहले अपरिपक्व अंडों को फ्रीज कर बचाया जा सकता है और उसके बाद रोगी के षरीर से बाहर कृृत्रिम अंडाशय में इसे परिपक्व किया जा सकता है। 
अंडाशय को बनाने के लिए अनुसंधानकर्ताओं ने थीका कोषिकाओं का छत्ता बनाया। इसके लिए अस्पताल में प्रजनन उम्र (25-46 वर्श) की रोगियों के द्वारा दान दिये गए अंडों का इस्तेमाल किया गया। थीका कोशिकाओं के छत्ते के आकार में विकसित होने के बाद दान दिये गए ग्रैनुलोसा कोशिकाओं के गोलाकार भाग को थीका कोशिकाओं से ढके ग्रैनुलोसा और अंडों में प्रवेष कराया गया जैसा कि असली अंडाशय में होता है। उसके बाद यह परीक्षण किया गया कि यह संरचना एक अंडाशय की तरह कार्य कर सकती है और यह अंडे को परिपक्व कर सकती है। प्रयोग में यह संरचना अंडों को पोषण करने और इन्हें पूर्ण रूप से परिपक्व करने में सक्षम पायी गयी। इस आविष्कार से इन विट्रो ऊसाइट परिपक्वता के लिए 3-डी टिश्यू इंजीनियरिंग के सिद्धांतों के इस्तेमाल में पहली बार सफलता मिली है।
हालांकि कार्सन कहते हैं कि उनका इरादा कभी कृृत्रिम अंगों का आविष्कार करना नहीं था बल्कि एक अनुसंधान वातावरण का निर्माण करना था जिसमें वह अध्ययन कर सकें कि थीका और ग्रैनुलोसा कोशिकाएं तथा ऊसांइटस किस तरह प्रतिक्रिया करती हैं।


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