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मायस्थिनिया : आखें जब हो शराबी-शराबी

कमजोरी और थकान हमारी जिंदगी का एक सामान्य हिस्सा है लेकिन अगर किसी व्यक्ति को कोई वस्तु उठाने पर, सीढ़ियां चढ़ने पर, थोड़ी देर पैदल चलने पर या व्यायाम करने पर अत्यधिक थकान होती हो तो यह मायस्थिनिया नामक गंभीर बीमारी के शुरूआती लक्षण हो सकते हैं। इसका तत्काल समुचित इलाज नहीं होने पर जान भी जा सकती है। मायस्थिनिया के इलाज में दवाई अधिक कारगर नहीं होती है जबकि सर्जरी का विकल्प इसके मरीजों के लिए अधिक कारगर और सुरक्षित है।
कमजोरी और थकान महिलाओं की आम समस्या है लेकिन कभी-कभी जिसे हम साधारण और रोजमर्रा की थकान समझ रहे होते हैं वह मायस्थिनिया जैसी खतरनाक बीमारी के शुरूआती लक्षण हो सकते हैं।
मायस्थिनिया की शुरूआत में बालों में कंघी करना कठिन हो सकता है, किसी वस्तु को बार-बार उठाने, सीढ़ियां चढ़ने और चलने-दौड़ने जैसी गतिविधियों से अचानक अत्यधिक थकान का अनुभव हो सकता है। कई बार बैठे-बैठे या थोड़ा व्यायाम के बाद सांस फूलने लग सकती है। बीमारी के थोड़ा और बढ़ने पर एक आंख की पलक ज्यादा झपकने लग सकती है, एक आंख या दोनों आखें पूरी तरह से खुल नहीं पाती हैं, दोनों आंखें की पलकें हमेशा गिरी रह सकती हैं, आंखें शराबी की तरह लग सकती हैं, आंखों को किसी एक वस्तु पर केन्द्रित करने की क्षमता कम हो सकती है, आंखों से एक वस्तु की दो तस्वीरें दिख सकती हैं, चेहरा भावरहित हो सकता है, हांेठ बाहर की तरफ ज्यादा निकल सकते हैं, मुस्कुराने की कोशिश करने पर चेहरा गुर्राने जैसा हो सकता है, निचला जबड़ा ज्यादा नीचे की तरफ झुक जा सकता है, पानी पीने के दौरान पानी नाक से निकल सकता है या खाते वक्त घुटन सी महसूस हो सकती है, मुंह से अधिक लार निकल सकता है, जबान बोलते वक्त लड़खड़ा सकती है या ऊंची आवाज में बोलने में कठिनाई महसूस हो सकती है। ये लक्षण मायस्थिनिया के संकेत हो सकते हैं और ऐसे में तुरंत किसी कार्डियोथोरेसिक सर्जन से सलाह लेना चाहिए।
मायस्थिनिया आखिर है क्या
मायस्थिनिया ग्रैविस एक आॅटोइम्यून बीमारी है। यह या तो पैदाइशी (आनुवांशिक) तौर पर होती है या अत्यधिक शारीरिक श्रम या संक्रमण के कारण होती है। कभी-कभी बहुत ज्यादा गर्मी या बहुत ज्यादा ठंड लगने से भी यह बीमारी हो सकती है। लड़कियों को पहले मासिक धर्म के बाद मायस्थिनिया हो सकती है। कभी-कभी अत्यधिक उत्तेजना से भी मायस्थिनिया की शुरूआत हो सकती है। मायस्थिनिया किसी भी उम्र के पुरुष और महिला को हो सकती है लेकिन पुरुषों की तुलना में महिलाओं में यह बीमारी ज्यादा और अपेक्षाकृत कम उम्र में होती है।                   
डा. पाण्डे के अनुसार इस बीमारी में शरीर की मांसपेशियों को गतिशील बनाने वाले एसिटाइलकोलीन रिसेप्टर नामक पदार्थ की कमी हो जाती है जिससे मांसपेशियों की गतिशीलता में रूकावट आ जाती है। एसिटाइलकोलीन रिसेप्टर की कमी होने का मुख्य कारण खून में ए.सी.एच.आर. एंटीबाॅडी का ज्यादा मात्रा में जमाव होना है। यह एंटीबाॅडी मांसपेशियों को चुस्त-दुरुस्त रखने वाले ए.सी.एच. रिसेप्टर को नष्ट करती रहती है जिसके कारण मांसपेशियां थोड़ा सा ही काम करके थकानग्रस्त हो जाती हैं और निर्जीव अवस्था में पहुंच जाती हंै। इसलिए मायस्थिनिया के मरीजों को ऐसा महसूस होने लगता है कि जैसे शरीर में जान ही न रह गई हो। 
मायस्थिनिया का सबसे प्रमुख कारण छाती में स्थित थाइमस ग्रन्थि के आकार में वृद्धि या उसका ट्यूमर में परिवर्तित हो जाना है। यह ग्रन्थि छाती में हृदय के बाहरी सतह के ऊपर होती है। मायस्थिनिया के कम से कम 90 फीसदी मामलों में थाइमस ग्रन्थि तथा करीब 10 फीसदी मामलों में आॅटोइम्यून बीमारियां जिम्मेदार होती हैं।
अधिकतर मरीजों में मायस्थिनिया की शुरूआत 'शराबी आंखों' से होती है। उनकी एक आंख की पलक या दोनों आंखों की पलकें गिरी हुई होती हैं। सामने देखने पर पलक उठती नहीं है या उठकर तुरंत गिर जाती हंै। मायस्थिनिया के मरीज बगैर आंख बंद किये सिर को सामने रखकर एक मिनट तक ऊपर नहीं देख सकते हैं। एक मिनट से पहले ही उनकी पलकें नीचे गिर जाएंगी। यही नहीं वे एक से सौ तक ऊंची आवाज में गिनती भी नहीं कर सकते हैं। जैसे-जैसे गिनती बढ़ती जाती है आवाज नीची होती जाती है और अंत में आवाज फुसफुसाहट में बदल जाती है। बीमारी और बढ़ जाने पर चेहरा भावशून्य हो जाता है। धीरे- धीरे कमजोरी हाथ-पैरों में भी फैलती चली जाती है। इसके मरीज दोनों हाथों को पी.टी. की मुद्रा में फैलाकर एक मिनट तक नहीं रख सकते हैं। बीमारी और अधिक बढ़ जाने पर मरीजों को खाना निगलने और सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाती है। यह अवस्था जानलेवा हो सकती है। इसलिए इस अवस्था के आने के पहले ही इलाज शुरू कर देना चाहिए।
डा. पाण्डे के अनुसार मायस्थिनिया से पीड़ित महिला के गर्भधारण करने पर नवजात शिशु में भी मायस्थिनिया के लक्षण हो सकते हैं क्योंकि ए.सी.एच.आर. एंटीबाॅडी मां के खून से बच्चे के खून में प्रवेश कर जाती है। बच्चे को मायस्थिनिया की वजह से दूध पीने और सांस लेने में कठिनाई होती है और वे जोर से रो नहीं पाते। उनकी पलकंे गिरी रहती हैं। स्त्राी रोग विशेषज्ञों को मायस्थिनिया से पीड़ित गर्भवती महिलाओं की देखभाल विशेष तरीके से करनी चाहिए और नवजात शिशु में भी मायस्थिनिया होने की संभावना के बारे में पहले से तैयार रहना चाहिये। ऐसी गर्भवती महिलाओं का प्रसव अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित आई.सी.यू. वाले किसी बड़े अस्पताल में ही कराना चाहिए।
मायस्थिनिया के लक्षण प्रकट होते ही  तुरंत किसी कार्डियोथोरेसिक सर्जन से संपर्क करना चाहिए। मायस्थिनिया की जांच के लिए टेंसीलोन टेस्ट, इलेक्ट्रोमायोग्राफी और खून का ए.सी.एच.आर. एंटीबाॅडी टेस्ट जैसे कई तरह के परीक्षण करने पड़ते हैं। ये सभी परीक्षण किसी बड़े अस्पताल में ही कराने चाहिए। इन सभी परीक्षणों से मायस्थिनिया की सही अवस्था का पता लगाया जाता है जिससे इलाज का सही दिशा निर्धारण होता है।
कई चिकित्सक मायस्थिनिया को मायोपैथी समझकर उसका इलाज करते रहते हैं। मायोपैथी मांसपेशियों की विकृत अवस्था की बीमारी है जबकि मायस्थिनिया मांसपेशियों की गतिशीलता में कमी आने की वजह से होती है।
मायस्थिनिया का इलाज ऐसे अस्पताल में कराना चाहिए जहां कार्डियोथोरेसिक या थोरेसिक सर्जरी और अत्याधुनिक आई.सी.यू., कृत्रिम सांस यंत्रा (वेंटीलेटर) और इनवेसिव मानीटरिंग की सुविधायें हों। इलाज और आॅपरेशन के दौरान तथा बाद में एक सकुशल एनीस्थिजियो- लाॅजिस्ट और अनुभवी न्यूरोलाॅजिस्ट की जरूरत पड़ती है। मरीज के आॅपरेशन के पहले प्लाज्माफेरेसिस की जरूरत पड़ सकती है जिसमें मायस्थिनिया के मरीज का रक्तशोधन करके दोषी ए.सी.एच.आर. एंटीबाॅडी नामक तत्व की मात्रा घटायी जाती है। इसके लिए अस्पताल में प्लाज्माफेरेसिस की मशीन से युक्त अत्याधुनिक ब्लड बैंक का होना बहुत जरूरी है। मायस्थिनिया का सबसे उत्तम और कारगर इलाज सर्जरी है जिसमें पूरी तरह से दोषी 'थाइमस' ग्रंथि को मरीज की छाती से निकाल दिया जाता है। आॅपरेशन के तीन लाभ होते हैं। ज्यादातर मामलों में 'थाइमस' ग्रंथि के निकल जाने से मायस्थिनिया का जड़ से सफाया हो जाता है। सर्जरी का  दूसरा लाभ यह होता है कि इससे मायस्थिनिया के लक्षण काफी हद तक नियंत्रण में रहते हैं और विकराल रूप नहीं धारण कर पाते हैं। इसका तीसरा लाभ यह होता है कि अगर मरीज को सर्जरी के बाद दवा की जरूरत पड़ती है तो उसकी मात्रा बहुत कम हो जाती है। इसलिए आजकल विदेशों में भी मायस्थिनिया के इलाज के लिए सर्जरी (थाईमेक्टमी) को ही प्राथमिकता दी जाती है। जब आॅपरेशन के कारगर होने की संभावना नहीं होती है तब दवाईयों का सहारा लिया जाता है। दवाईयों के अपने दुष्प्रभाव भी होते हैं। मिसाल के तौर पर प्रेडनीसोलोन नामक दवाई की वजह से मरीज के शरीर में नमक और पानी का जमाव हो जाता है जिससे शरीर अनावश्यक रूप से स्थूल हो जाता है।
हमारे देश में अधिकांश चिकित्सक मायस्थिनिया के इलाज के लिये आॅपरेशन को प्राथमिकता देने के बजाय  दवाईयों का ही सहारा लेते हैं लेकिन इससे समय और धन की बर्बादी होती है जबकि सर्जरी मायस्थिनिया के मरीजों के लिये सबसे सुरक्षित और कारगर है।      
डा.के.के.पाण्डे नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में वरिष्ठ कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्क्युलर सर्जन हैं।


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