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नैनोटेक्नोलॉजी निकालेगी खाद्य संकट का हल

सन् 2030 तक विश्व की जनसंख्या के 9 अरब हो जाने का अनुमान है और इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए भोजन की मांग को पूरा करना कृषि के लिए एक चुनौती होगी। लेकिन सिंथेटिक बायोलॉजी, नैनोटेक्नोलॉजी, जेनेटिक इंजीनियरिंग और बायोटेक्नोलॉजी की बदौलत इस चुनौती का सामना किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में स्वास्थ्यकर और प्रचुर मात्रा में जानवर आधारित खाद्य जरूरतों को बायोटेक्नोलॉजी पूरा कर सकती है।
मास्को के मालिक्ययुलर फिजियोलॉजिस्ट और पषुओं में मांसपेशियों के विकास पर अध्ययन करने वाले रॉड हिल कहते हैं, ''तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण आने वाले दशकों में स्वास्थ्यकर, पौष्टिक और पर्याप्त मात्रा में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति करना कृषि और विज्ञान के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती होगी।'' 
पिछले 10 हजार सालों के सभ्यता और कृषि के इतिहास को देखकर हमें संदेह है कि पृथ्वी किसी तकनीकी सहयोग के बगैर भी पर्याप्त मात्रा में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति करती रह सकती है।''
यूनिवर्सिटी ऑफ इडाहो एनिमल के खाद्य वैज्ञानिक रॉड हिल और लैरी ब्रेनेन हिल कहते हैं, ''किसी तकनीकी सहायता के बगैर खाद्य उत्पादन एक अलभ्य विचार है। मौजूदा समाज में तकनीकीगत हस्तक्षेप कृषि क्रांति को आधार प्रदान करता है और विश्व की खाद्य जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करता है।''
यूनिवर्सिटी ऑफ मिसौरी के प्रोफेसर केविन वेल्स का विश्वास है कि आनुवांशिक रूप से रूपान्तरित जानवर मानवता के मंच पर भविष्य में स्थान रखेगा जैसा कि आनुवांशिक रूप से रूपांतरित पौधे अभी कर रहे हैं।
बायोप्रोसेसिंग इंजीनियरिंग और नैनोटेक्नोलॉजी के लिए अमरीकी कृशि राश्ट्रीय कार्यक्रम के के प्रमुख हांग्डा चेन विश्व की सुरक्षित और स्वास्थयकर आहार की बढ़ती जरूरत को पूरा करने के लिए नैनोटेक्नोलॉजी जैसी वैज्ञानिक विधियों  के इस्तेमाल पर कार्य कर रहे हैं। जबकि जे. क्रेग वेंटर इंस्टीट्यूट में पॉलिसी विश्लेषक माइकल गारफिंकेल जीन या क्रोमोसोम के सृजन की नवीनतम विधियों के इस्तेमाल सिंथेटिक बायोलॉजी पर कार्य कर रहे हैं। वे मानव जीनोम की सिक्वेंसिंग के पथप्रदर्शक रहे हैं।
यूनिवर्सिटी पर नेवाडा लास वेगास की प्रोफेसर सुसाना प्रिस्ट के अनुसार आम लोगों के द्वारा नयी तकनीकों को स्वीकार करना या परित्याग करना भविष्य की खाद्य आपूर्ति को सुनिश्चित कर सकता है। उनके अनुसार ऐसी तकनीकों पर आम लोगों के व्यवहार को जानने के लिए लोगों से चर्चा करना जरूरी है।
ब्रेनेन भी सुसाना प्रिस्ट की मत से सहमत हैं। वह कहते हैं, ''हमने ऐसी ढेर सारी तकनीकें देखी हैं जिन्हें हम इस्तेमाल में नहीं ला सके क्योंकि उपभोक्ताओं ने इसे स्वीकार नहीं किया।''
ब्रेनेन कहते हैं, ''इन तकनीकों के जरिये 50 सालों में खाद्य क्रांति संभव है लेकिन हम लोगों ने अभी तक इन तकनीकों के इस्तेमाल को नहीं अपनाया है क्योंकि इसे लेकर हमारे मन में एक तरह का डर है और हममें समझ का भी अभाव है। इसलिए इस पर व्यापक चर्चा की जरूरत है। हम सिर्फ तकनीक पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकते हैं बल्कि हमें तकनीक के सामाजिक और राजनीतिक पहलूओं को भी ध्यान में रखना होगा।''    


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