Header Ads Widget

We’re here to help you live your healthiest, happiest life.

शाकाहार से मोतियाबिंद का उपचार  

मोतियाबिंद हमारे देश में महामारी बन चुका है। प्रदूषण, धूम्रपान एवं धूप के दुष्प्रभावों से मोतियाबिंद होने का खतरा बढ़ता है। मोतियाबिंद के उपचार के लिये आपरेशन के अलावा कोई और विकल्प कारगर नहीं माना जाता है। नयी दिल्ली स्थित मजीदिया अस्पताल के वरिष्ठ नेत्र शल्य चिकित्सक तथा ग्रेटर कैलाश पार्ट-दो स्थित नेत्रायन आई केयर सेंटर के निदेशक डा. विशाल ग्रोवर बताते हैं कि अब लेजर आधारित फेको इमल्शिफिकेशन की नई तकनीक की मदद से मोतियाबिंद का आपरेशन सुई एवं टांके के बगैर किया जा सकता है। लेकिन मोतियाबिंद से बचाव ही इसका सबसे बेहतर उपचार है। नवीनतम अध्ययनों से पता चला है कि विशेष शाकाहार की मदद से न केवल मोतियाबिंद से बचा जा सकता है बल्कि कई स्थितियों में इलाज भी किया जा सकता है।
नेत्र अंधता का सबसे बड़ा कारण सफेद मोतिया अथवा मोतियाबिंद हमारे देश में सबसे प्रचलित एवं पुराना नेत्र रोग है। इस रोग के पुराना हो जाने पर आम तौर पर आपरेशन के अलावा कोई चारा नहीं होता। लेकिन रोग की आरंभिक अवस्था में खान-पान तथा विशेष आहार की मदद से इसकी रोकथाम की जा सकती है। 
नयी दिल्ली स्थित मजीदिया अस्पताल के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. विशाल ग्रोवर के अनुसार मोतियाबिंद अथवा सफेद मोतिया आंख के लेंस में सफेदी आ जाने को कहते हैं जिसके कारण आंख में प्रवेश करने वाली रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है। इसके कारण एक स्थिति में मरीज को दिखाई देना बंद हो जाता है। यह बीमारी आमतौर पर 55 से 65 की आयु के बीच होती है। लेकिन कई लोगों में यह बीमारी 40 साल में ही या उससे पहले ही आरंभ हो जाती है और एक-दो साल में गंभीर रूप ले लेती है। किशोरों में मोतियाबिंद परिपक्व होने की दर बहुत अधिक होती है। 
एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में तकरीबन चार करोड़ अंधे लोगों में से एक करोड़ 70 लाख लोग मोतियाबिंद के कारण अंधेपन के शिकार हैं। भारत मोतियाबिंद के मामले में सबसे अग्रणी देश है। एक अनुमान के अनुसार देश में 80 लाख लोग मोतियाबिंद के आपरेशन के इंतजार में हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में तेजी से बढ़ते प्रदूषण के कारण आज मोतियाबिंद का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। मोतियाबिंद मधुमेह और गुर्दे की खराबी जैसे मेटाबोलिक रोगों, मायोपिया (निकट दृष्टि), ग्लूकोमा, शक्तिवर्द्धक स्टेराॅयड के सेवन, धूम्रपान और पोषक तत्वों की कमी के कारण भी होता है। अध्ययनों से पाया गया है कि सुनियोजित आहार के जरिये खास पोषक तत्व अधिक मात्रा में ग्रहण करके न केवल मोतियाबिंद पर काबू पाया जा सकता है और रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है बल्कि कई मामलों में मोतियाबिंद का इलाज भी किया जा सकता है। 
नयी दिल्ली के ग्रेटर कैलाश (पार्ट-दो )स्थित नेत्रायन डा. ग्रोवर आई केयर सेंटर के प्रमुख डा. विशाल ग्रोवर बताते हैं कि इस समय मोतियाबिंद की कोई भी कारगर दवाइयां उपलब्ध नहीं है और ऐसे में आपरेशन ही मोतियाबिंद का एकमात्र उपाय है। 
आंखों की लेजर एवं माइक्रो सर्जरी विशेषज्ञ डा. ग्रोवर के अनुसार मोतियाबिंद के आपरेशन के जरिये कुदरती लेंस को निकाल कर उसके स्थान पर दूसरा लेंस लगा देना होता है। आंख के भीतर से निकाले गये कुदरती लेंस के स्थान पर दूसरा लेंस प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इस प्रत्यारोपित लेंस को इंट्राआकुलर लेंस कहा जाता है। साधारण आपरेशन के तहत आंख में चीरे लगाकर पहले कुदरती लेंस को निकाल लिया जाता है और फिर उसकी जगह पर इंट्राआकुलर लेंस फिट करके टांके लगाकर चीरे को बंद कर दिया जाता है। यह लेंस सारी जिंदगी रोशनी को पर्दे पर फोकस करता रहता है जिससे साफ दिखाई पड़ता है। 
डा. विशाल ग्रोवर के अनुसार अब चीरा एवं टांके लगाये बगैर मोतियाबिंद के आपरेशन करने की एक नई विधि का विकास हुआ है जिसे फेको इमल्शिफिकेशन कहा जाता है।
डा. ग्रोवर के अनुसार इस नवीनतम विधि से आपरेशन करने पर मरीज को कोई दर्द नहीं होता। यहां तक कि आपरेशन से पूर्व मरीज की आंख को सुन्न करने के लिये सुई लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ती। आपरेशन के लिये आंख में इतना सूक्ष्म चीरा लगाया जाता है कि वह स्वयं भर जाता है इसलिये उसे सिलने के लिये कोई टांका भी नहीं लगाना पड़ता। टांका नहीं लगाये जाने के कारण मरीज को बाद में कोई दिक्कत नहीं होती है। यह छोटा चीरा भारी दबाव को भी बर्दाश्त कर सकता है। इसलिये इस तकनीक से आपरेशन करने के बाद मरीज को आंखों पर पट्टी लगाने तथा पानी आदि से बचाने जैसे परहेज करने की जरूरत नहीं होती है। फेको इमल्शिफिकेशन तकनीक में जो सुधार हुआ है उसकी बदौलत मरीज आपरेशन के तत्काल बाद देख सकता है और अपना काम-काज कर सकता है। आजकल नई तकनीकों की मदद से कच्चे मोतिये पर आपरेशन करने से ज्यादा बेहतर परिणाम मिलने लगे हैं।
कुछ नवीनतम अध्ययनों से पता चला है कि खान-पान एवं रहन-सहन में सुधार करके तथा धूप एवं धुयें से आंखों का बचाव करके मोतियाबिंद से एक हद तक बचा जा सकता है। अनेक देशों में किये गये अध्ययनों से साबित हुआ है कि पोषक तत्वों से भरपूर आहार खास तौर पर संतुलित शाकाहार लेने पर मोतियाबिंद की काफी हद तक रोकथाम होती है। अध्ययनों में पाया गया है कि विशेष शाकाहार चिकित्सा से कई मामले में मोतियाबिंद ठीक हो जाता है। हालांकि यह चिकित्सा छह माह से तीन साल तक लेने की जरूरत पड़ सकती है। अमरीका के सुप्रसिद्ध पोषण वैज्ञानिक एडेली डेविस ने अपने अध्ययन में पाया कि कुछ विशेष पोषक तत्व मोतियाबिंद से बचाव करते हैं। उन्होंने पशुओं पर किये गये अपने अध्ययन में पाया कि जिन पशुओं को पैंटोथेनिक अम्ल या अमीनों अम्ल, ट्राइप्टोफेन या विटामिन बी 6 से वंचित रखा गया उनमें मोतियाबिंद पाया गया। उनका कहना है कि मोतियाबिंद के मरीजों का आहार बी 2, बी 6, बी काॅम्प्लेक्स पैंटोथेनिक अम्ल, विटामिन सी, डी और ई तथा अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होने चाहिये। इसके आलवा मरीज को आंखों के व्यायाम करने चाहिये। 


Post a Comment

0 Comments