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रेबीज का उपचार एवं बचाव

रेबीज साधारण सी बीमारी है, लेकिन भारत में यह 'साइलेंट किलर' की तरह है। पूरी दुनिया में हर साल 59 हजार लोगों की मौत रेबीज के कारण होती है। हैरान करने वाली बात है कि रेबीज से मरने वालों की तादाद भारत में सबसे ज्यादा है जहां 21000 लोग रेबीज के कारण अपनी जान गंवाते है। 
विश्व में कुत्तों की संख्या सबसे ज्यादा तेजी से भारत में बढ़ रही है जहां 15 फीसदी से ज्यादा कुत्तों को टीका नहीं लगा होता है। भारत में हर साल कुत्ते के काटने के 17 लाख से अधिक मामले आते हैं। इनमें से ज्यादातर लोगों की दर्दनाक मौत हो जाती है। ये मौतें ज्यादातर खबरें ग्रामीण क्षेत्र से आती हैं, लेकिन रेबीज किसी को को नहीं छोड़ता। भारत में ज्यादातर मौतें गलत या अधूरे तरीके से टीका लगाने के कारण होती हैं।
रेबीज पागल जानवर के काटे जाने वाली लार से फैलता है। कुत्ते, चमगादड़, बंदर, बिल्ली, भेड़िया या भालू के काटे जाने भी रेबीज फैल सकता है। काटने के बाद रेबीज वायरस कई गुना बढ़ता जाता है और सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर हमला करता है। इंसानों में इसके लक्षण कुछ दिनों से लेकर महीनों तक में दिखाई देते हैं।
एक बार लक्षण दिखने के बाद उल्टी गिनती शुरू हो जाती है। रोगी की हालत घंटे दर घंटे बिगड़ती जाती है। रोगियों को तब आइसोलेशन सेंटर भेज दिया जाता है, ताकि हिंसक होने पर वो किसी को नुकसान न पहुचाएं। यह जानना कॉफी मुश्किल होता है कि कौन-सा कुत्ता रेबीज से ग्रस्त है, कौन सा नहीं। इसलिए सही इलाज लेना ही इससे बचने का सुरक्षित उपाय होता है।
इस बीमारी के लक्षण देर से प्रकट होते हैं और तब इस बीमारी पर काबू पाना बहुत मुश्किल हो जाता है अतः जरा सा भी संदेह हो तो उपचार ले लेना जरूरी होता है। जानकारी और सावधानी ही इसका सबसे अच्छा बचाव है। रेबीज से सचेत करने और अवगत कराने के उद्देश्य से ही विश्व रेबीज दिवस भी घोषित किया गया है जो हर वर्ष 28 सितम्बर को मनाया जाता है।
भारत में कुत्ते और बन्दर की असीमित संख्या होने के कारण इनके द्वारा काटने की घटनाएँ बहुत ज्यादा होती है। अतः इन्ही से रेबीज़ होने की संभावना सबसे अधिक होती है। हालाँकि सरकार द्वारा इनकी संख्या सीमित रखने के प्रयास चलते रहते है लेकिन हमें इनसे बहुत सावधान रहना  चाहिए। रेबीज का कारण सिर्फ कुत्ते का काटना ही नहीं होता। बन्दर, बिल्ली और चमगादड़ आदि के काटने से भी रेबीज हो सकता है। इसके अलावा पालतू पशु जैसे गाय, बैल, घोड़ा, बकरी आदि भी रेबीज का कारण बन सकते हैं। जंगली जानवर जैसे लोमड़ी, गीदड़, भालू, शेर आदि के दिए हुए जख्म रैबीज फैला सकते हैं। लेकिन चूहे या गिलहरी के काटने से रेबीज नहीं होता है। 
रेबीज कैसे होता है
जब रेबीज से ग्रस्त जानवर किसी इंसान को काट लेता है या दांत से खरोंच लगा देता है तो उसकी लार में मौजूद वाइरस इंसान की त्वचा में चले जाते हैं। ये वाइरस त्वचा से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और मेरुदंड में जाकर बढ़ते रहते हैं। तंत्रिका तंत्र की मदद से ये दिमाग तक पहुँच जाते हैं इससे दिमाग में सूजन आ जाती है। दिमाग में पहुँचने के बाद वाइरस बहुत तेजी से वृद्धि करते है। सिर में और मेरुदंड में बहुत तकलीफ होने लगती है। दिमाग की कार्यविधि बाधित हो जाती है। धीरे धीरे दिमाग काम करना बंद कर देता है और व्यक्ति कोमा में चला जाता है या लकवा ग्रस्त हो जाता है और इसके बाद मृत्यु हो सकती है।
त्वचा के अलावा म्युकस मेम्ब्रेन के माध्यम से जो आँख , नाक और मुंह में होती है, वाइरस शरीर में और फिर दिमाग में प्रवेश कर सकते हैं। दिमाग के जितने पास वाइरस का प्रवेश होता है उतनी ही जल्दी ये घातक प्रभाव डालते है। जैसे गर्दन या सिर पर जानवर का काटना। अतः ऐसी स्थिति में जल्द से जल्द उपचार होना आवश्यक हो जाता है।
रेबीज के लक्षण 
काटे जाने के जितने दिन बाद लक्षण प्रकट होते है वह समय इंक्यूबेशन पीरियड कहलाता है। यह चार सप्ताह से से बारह सप्ताह तक हो सकता है। हालाँकि कभी कभी यह समय कुछ दिन से लेकर छह साल तक भी हो सकता है। शुरुआत में फ्लू जैसे लक्षण प्रकट होते है। जैसे बुखार, थकान और झनझनाहट तथा कटे गए स्थान पर जलन आदि।
रेबीज दो प्रकार का होता है जिनके लक्षण इस प्रकार होते हैं: 
फ्यूरियस रेबीज
इसके होने पर स्वभाव उग्र  हो जाता है तथा व्यक्ति अजीब सा व्यवहार करने लगता है। इसके अलावा नींद न आना, चिंता, भ्रम, गुस्सा, बुरे सपने आना, लार अधिक आना, निगलने में तकलीफ होना, पानी से डरना आदि लक्षण प्रकट होने लगते हैं। रेबीज होने पर इंसान को निगलने में इतनी दिक्कत होने लगती है कि वह पानी को देखते ही डरने लग जाता है।
पेरेलाइटिक रेबीज 
इस प्रकार का रेबीज होने पर व्यक्ति में उपरोक्त लक्षण तीव्र होते है तथा धीरे धीरे व्यक्ति लकवा ग्रस्त हो जाता है। आखिरकार कोमा में चला जाता है और मृत्यु हो जाती है। लगभग 30 प्रतिशत लोगों को इस प्रकार का रेबीज होता है।
किसी जानवर के काट लेने पर क्या करें
काटे जाने के घाव को तुरंत लगातार 15  मिनट तक साबुन से तथा साफ पानी से धोना चाहिए। साबुन नहीं हो तो सिर्फ साफ पानी से लगातार 15 -20 मिनट तक धोएं। इसके बाद घाव पर एथेनॉल या कोई अन्य एंटी सेप्टिक लगायें। इस प्रारंभिक उपचार के बाद तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें। घाव की स्थिति देखकर डॉक्टर आगे की उपचार प्रक्रिया शुरू कर सकता है। इसके उपचार में टेटनेस का इंजेक्शन या रैबीज इम्यूनोग्लोबुलीन इंजेक्शन लगाया जा सकता है। इसके बाद चार वैक्सीन ओर लगवाने होते है।
यह सारी प्रक्रिया पोस्ट एक्सपोजर प्रोफीलैक्सिस कहलाती है। इंजेक्शन जितना हो सके जल्दी लगवा लेना चाहिए। यही सबसे सुरक्षित तरीका होता है। कुत्ते के काटने के घाव ठीक हो जाये तो भी इसका पूरा कोर्स लेना चाहिए। बीच में इलाज छोड़ना नहीं चाहिए।
रेबीज होने से बचने के लिए 14 दिन की अवधि में 5 इंजेक्शन लगाए जाते है। एक समय ऐसा भी था जब कुत्ते के काटने पर सोलह इंजेक्शन लगवाने पड़ते थे वह भी पेट में जो बहुत तकलीफ देह होते थे। लेकिन अब सिर्फ 4 या 5 इंजेक्शन से ही उपचार हो जाता है। ये इंजेक्शन बहुत महंगे नहीं होते। कुछ सरकारी अस्पताल में तो ये बिना किसी शुल्क के भी उपलब्ध हैं।
रेबीज से बचाव कैसे करें
रेबीज का वैक्सीन लगवाने से इससे बचाव हो सकता है। यदि घर में कुत्ता या अन्य पालतू पशु है तो उसे रेबीज का वैक्सीन तथा बूस्टर डोज़ समय से लगवा लेना चाहिए। कुत्ता पालने का शौक रखते हों तो यह लापरवाही बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। पालतू कुत्ते को बाहर अकेला घूमने फिरने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए। खुद भी ध्यान रखें और बच्चों को भी कुत्ते से सावधान रहना सिखायें। यदि जानवरों के साथ ही काम करने वाला पेशा हो, पशु को पालने का शौक हो या जंगल में घूमते हों, तो रेबीज के वैक्सीन पहले से ही लगवा लेना चाहिए। इसमें एक महीने के अंतराल में 3 वैक्सीन लगाए जाते है।


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