आधुनिकता ने छीनी आंखों की नींद

आधुनिक जीवन शैली ने हमें जिन कीमती चीजों से महरूम किया है उसमें आंखों की नींद भी शामिल है। विशेषज्ञों के अनुसार कैरियर एवं नौकरी के दवाब, पैसे की होड़, प्रतिस्पर्धा, घर-दफ्तर के तनाव, रात्रि क्लब और पार्टियां, टेलीविजन और फिल्मों के अलावा तेजी से पसरती माॅल संस्कृति के घालमेल से उपजी आधुनिक जीवन शैली के कारण आज तेजी से अनिद्रा (इनसोमनिया) का प्रकोप बढ़ रहा है। यहां तक कि बच्चे एवं युवा भी इस समस्या के ग्रास बन कर बीमारियों के शिकार बन रहे हैं।
एक अनुमान के अनुसार देश के महानगरों एवं बड़े शहरों में रहने वाले करीब 30 प्रतिशत लोग अनिद्रा के शिकार हैं। ऐसे लोगों को उच्च रक्त चाप, दिल के दौरे और मस्तिष्क आघात जैसी जानलेवा एवं गंभीर बीमारियां होने का खतरा अधिक रहता है। विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाओं के लिये अनिद्रा आज की बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन गयी है। 
हमारे देश की एक तिहाई आबादी जीवन के किसी न किसी मोड़ पर नींद से संबंधित किसी न किसी तरह की बीमारी का शिकार होती है। तनावपूर्ण जीवनशैली, भागमभाग और मनोवैज्ञानिक कारणों से शहरों में यह समस्या बहुत अधिक व्याप्त हो गयी है। 
श्वसन एवं नींद से जुड़ी समस्याओं के विशेषज्ञ डा. दीपक तलवार बताते हैं कि आज यह साबित हो चुका है कि जागने के दौरान उभरने वाली ज्यादातर बीमारियां एवं समस्याओं की जड़ नींद से जुड़ी होती हैं। 
वरिष्ठ न्यूरोलाॅजी विशेषज्ञ डा. महावीर भाटिया कहती हैं कि अगर आप तीन से चार सप्ताह से अधिक समय से ठीक से नींद नहीं ले पाये हों और इस कारण आपका कामकाज प्रभावित हो रहा हो तो आपको चिकित्सक से परामर्श करना चाहिये। इनसोमनिया के कई लक्षण हैं जिनमें सिर दर्द, एकाग्रता में कमी, दिन में थकावट, मूड उखड़ा रहना, स्मृति लोप, कार्यक्षमता में कमी आदि शामिल है। इनसोमनिया का इलाज नहीं होने पर मरीज सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों से कट जाता है, बहुत अधिक गलतियां करता है, उसकी कार्यक्षमता कम जाती है, उसके साथ दुर्घटना होने की आशंका अधिक होती है और स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है। 
मनोचिकित्सक डा. राजेश नागपाल का कहना है कि मौजूदा समय में अनिद्रा की समस्या पुरूषों की तुलना में महिलाओं में काफी अधिक है। उनके अनुसार नींद से महरूम महिलाओं को डिप्रेशन, मोटापा एवं दिल की बीमारियां होने के खतरे बहुत ज्यादा रहते हैं।
नये शोधों से पता चला है कि नींद में खलल पड़ने से महिलाओं के शरीर में हार्मोन के उत्पादन में व्यावधान आता है जिसके कारण वे अपने को हमेशा भूखी महसूस करती हैं। इसके अलावा नींद नहीं आने के कारण वे नींद की गोलियों का सेवन करती हैं जिससे हार्मोन असंतुलन और बढ़ जाता है और वे कई समस्याओं की शिकार बन जाती हैं। 
कई अध्ययनों से इंसोमनिया और डिप्रेशन में गहरा संबंध होने की पुष्टि हुई है। इंसोमनिया अक्सर शारीरिक एवं मानसिक रूग्नता को जन्म देती है या बढ़ाती है। इंसोमनिया के शिकार लोग आम तौर पर दुर्घटनाओं से 3.5 से 4.5 प्रतिशत अधिक शिकार होते हैं। उनके साथ काम-काज दुर्घटनायें 1.5 प्रतिशत और सड़क दुर्घटनायें 2.5 प्रतिशत अधिक होती है। 
चंडीगढ़ के पी जी आई एम ई आर के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डा. अजीत अवस्थी का कहना है कि व्यायाम एवं पोषण की तरह ही अच्छी नींद को स्वस्थ्य जीवन शैली का अनिवार्य हिस्सा माना जाना चाहिये। शारीरिक एवं मानसिक रूग्नता को जन्म देती है या बढ़ाती है। इंसोमनिया के शिकार लोग आम तौर पर दुर्घटनाओं से 3.5 से 4.5 प्रतिशत अधिक शिकार होते हैं। उनके साथ काम-काज दुर्घटनायें 1.5 प्रतिशत और सड़क दुर्घटनायें 2.5 प्रतिशत अधिक होती है। 
शयन चिकित्सा के विशेषज्ञ डा. संजय मनचंदा के अनुसार इनसोमनिया के कई रोगियों को कई-कई दिनों तक नींद नहीं आने की शिकायत होती है। दरअसल ऐसे लोगों की नींद इतनी खराब होती है कि उन्हें सारी रात नींद नहीं आने का अहसास होता है। ऐसे लोगों का दिन बहुत खराब गुजरता है, वे हर समय थकावट और आलस्य महसूस करते हैं। ऐसे लोग दिन में अपने काम ठीक तरीके से नहीं कर पाते। अगर यह स्थिति काफी समय तक कायम रहे तब उनके कार्य करने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है और उनका कैरियर प्रभावित हो सकता है। उनका सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन समस्याग्रस्त हो सकता है। 
डा. दीपक तलवार बताते हैं कि इनसोमनिया कई रूपों में सामने आती है। आम तौर पर यह किसी छिपी बीमारी का लक्षण है। कई लोगों को बिस्तर पर जाने के बाद काफी देर से नींद आती है परन्तु नींद आने के बाद ऐसे लोग देर तक सोते रहते हैं। ऐसे लोगों की जैविक घड़ी परिवर्तित हो जाती है। ऐसा उन लोगों के साथ होता है जो या तो शिफ्ट ड्यूटी करते हैं या जिनकी जीवनशैली अनियमित होती है। 
डा. तलवार कहते हैं कि कई लोगों को नींद तो आती है लेकिन बीच-बीच में टूटती रहती है जबकि कई लोगों को कम देर तक नींद आती है। उनके अनुसार अनिद्रा के कारणों का पता शयन अध्ययन (स्लीप स्टडिज) से ही लग पाता है। इस अध्ययन के दौरान मरीज की हृदय गति, आंखों की गति, शारीरिक स्थिति, श्वसन मार्ग की स्थिति, रक्त प्रवाह आदि का मानीटर किया जाता है। इससे यह पता लग जाता है कि रोगी को सोने के समय क्या दिक्कत आती है। 
अधिक अवधि तक नींद आने से कहीं अधिक जरूरी अच्छी नींद का आना है। आम तौर पर माना जाता है कि रोजाना सात-आठ घंटे की नींद जरूरी है लेकिन अगर अगर अच्छी एवं गहरी नींद आये तब चार-पांच घंटे की नींद ही पर्याप्त होती है।
डा. तलवार के अनुसार नींद की स्थिति बुनियादी तौर पर दो तरह की हो सकती है - रैम स्लीप (रैपेडाई मूवमेंट) और नाॅन रेम स्लीप (नाॅन रैपेडाई मूवमेंट)। सामान्य तौर पर रैम स्लीप 20 से 25 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होती है। लेकिन अगर यह किसी व्यक्ति में 50 प्रतिशत से अधिक हो तो मरीज को सारी रात सपने आते रहते हैं जिसकी वजह से वह ऐसा महसूस करता है कि सारी रात उसे नींद नहीं आई है। इसलिए सुबह जागने पर वह ताजगी महसूस नहीं, बल्कि आलस्य और थकावट-सा अनुभव करता हैं।
इनसोमनिया किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है। पुरुषों की तुलना में महिलाएं इस बीमारी से काफी अधिक प्रभावित होती हैं। इनसोमनिया के तकरीबन 60 फीसदी मामले दूसरी बीमारियों के कारण होते हैं।
इनसोमनिया कई कारणों से हो सकती है जिनमें से एक कारण रेस्टलेस लेग सिन्ड्राॅम है। ऐसे रोगियों की टांगें नींद में छटपटाती रहती है, जिससे दिमाग के अंदर नींद में बार-बार व्यवधान पड़ता है और बार-बार नींद खुलती रहती है। हालांकि इनसोमनिया की पहचान इसके लक्षणों से ही हो जाती है, लेकिन इसकी पुष्टि के लिए रोगी की नींद का अध्ययन करना जरूरी है क्योंकि जब तक रोगी की नींद का अध्ययन नहीं किया जाएगा बीमारी की गंभीरता का भी पता नहीं चल पाएगा। अधिक समय तक इस बीमारी से ग्रस्त रहने पर व्यक्ति डिप्रेशन के भी शिकार हो जाता है क्योंकि इनसोमनिया के लक्षण उसे  मानसिक रोगी बना देते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें मानसिक इलाज की भी जरूरत पड़ जाती है।
डा.तलवार के अनुसार विदेशों के बीच विमानों से यात्रा करने वाले लोगों को यह बीमारी होने की आंशका बहुत अधिक होती है। ऐसे लोगों के लिये अलग तरह की  चिकित्सा दी जाती है। उनके अनुसार नींद से जुड़ी हुयी एक और बीमारी नार्कोलेप्सी है । इसके कारणों का अभी तक पता नहीं चला है लेकिन माना जाता है कि यह बीमारी आनुवांशिक कारणों से होती है। यह आम तौर पर बीस वर्ष की अवस्था के बाद ही शुरू होती है। 
अत्यधिक निद्रा इसका प्रमुख लक्षण है । इसमें नींद का इतना भयानक दौरा पड़ता है कि व्यक्ति अपने आप को रोक नहीं पाता और वह अचानक काम करते समय नींद में चला जाता है। इस रोग का दूसरा लक्षण नींद से बाहर आने के वक्त मरीज को ऐसा महसूस होता है कि उसके पैरों और शरीर में कोई ताकत हीं नहीं बची है। उसे ऐसा आभास होता है कि वह उठ कर बैठ नहीं पायेगा। हालांकि यह अवस्था तुरंत समाप्त हो जाती है। इसके अलावा ऐसे लोगों को अचानक गिर जाने का खौफ हमेशा होता है। ऐसे मरीज जब सोते हैं तब उनके साथ स्वप्न क्रम लगातार चलता रहता है जिसके कारण उन्हें ऐसा महसूस होता है कि वे सारी रात सोये ही नहीं।