कई लोगों को लगता है कि गुर्दे की बीमारियां केवल वयस्कों में होती है, लेकिन वास्तविकता यह है कि बच्चों को भी गुर्दा की कई बीमारियां हो सकती हैं जिनका इलाज यदि समय पर नहीं कराया जाये तो क्रोनिक किडनी फेल्योर भी हो सकता है।
बच्चों में गुर्दे की बीमारी निम्न कारणों से हो सकती है:
— जन्म दोष
— वंशानुगत बीमारियां
— संक्रमण
— नेफ्रोटिक सिंड्रोम
— सिस्टेमिक बीमारियां
— आधात (ट्राॅमा)
— मूत्र में रुकावट या रिफ्लेक्स
लक्षण
— चेहरे, पैर और शरीर में सूजन, कम मूत्र का बनना, मूत्र के साथ रक्त, झाग, प्रोटीन, एल्बुमिन और मवाद का आना।
— रक्तचाप अधिक है, तो गुर्दे की बीमारी होने की संभावना हो सकती है। बच्चों में रक्तचाप की जाँच की जानी चाहिए।
— बच्चों में मूत्र मार्ग में संक्रमण आम नहीं है। अगर पेशाब करते समय जलन हो रही हो या पेशाब के साथ मवाद आ रहा हो, या ऐसा बुखार हो जिसके कारण का पता नहीं चल पा रहा हो तो मूत्र में रुकावट का पता लगने के लिए गुर्दे की पूरी तरह से मूल्यांकन करना आवश्यक हो जाता है। इस तरह की समस्या का अगर जल्दी पता लगाकर इलाज करा लिया जाये तो ऐसे बच्चों में भविष्य में किडनी फेल्योर को रोका जा सकता है।
— गुर्दे की बीमारी की पहचान के अन्य लक्षणों में पेशाब करने में परेशानी होना या बहुत अधिक या बहुत कम मूत्र का निकलना, अंतरवस्त्र (अंडर गार्मेंट) का मूत्र से हमेशा गीला रहना, रात में बिस्तर पर पेशाब होना, सो कर जागने के बाद आंखों के चारों ओर सूजन होना आदि शामिल हो सकते हैं।
गुर्दे की विटामिन डी को सक्रिय करने और हमारी हड्डियों को मजबूत बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बच्चों में विटामिन डी की कमी के लक्षण और सही ढंग से विकास नहीं हो पाना भी गुर्दे की बीमारी के संकेत हो सकते हैं।
पहचान
गुर्दे से संबंधित बीमारियों की पुष्टि करने के लिए, गुर्दा रोग विशेषज्ञ निम्नलिखित एक या अधिक परीक्षण करा सकते हैं:
— मूत्र परीक्षण
एल्बुमिन के लिए डिपस्टिक परीक्षण। मूत्र में एल्बुमिन की मौजूदगी का संकेत है कि गुर्दे क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।
यूरिन एल्बुमिन- टू- क्रिएटिनिन रेशियो। यह एक और अधिक सटीक परीक्षण है। गुर्दे की बीमारी की पुष्टि करने के लिए यूरिन एल्बुमिन-टू-क्रिएटिनिन रेशियो परीक्षण आवश्यक हो सकता है।
— गुर्दे की फिल्टर करने की क्षमता का पता लगाने के लिए यूरिया और क्रिएटिनिन स्तर जैसे रक्त परीक्षण।
— गुर्दे के आकार को देखने के लिए और किसी भी प्रकार की संरचनात्मक असामान्यताओं की पहचान करने के लिए अल्ट्रासाउंड, इंट्रावीनस पायलोग्राफी (आईवीपी), मिक्टुरेटिंग सिस्टो यूरेथ्रोग्राम (एमसीयू) और सीटी स्कैन जैसी इमेजिंग।
— गुर्दे में स्कार की पहचान करने के लिए डीएमएसए और गुर्दे के कार्य करने के प्रतिशत का पता लगाने के लिए डीटीपीए जैसे न्यूक्लियर स्कैन।
— गुर्दे की बीमारी का कारण और गुर्दे को हुए नुकसान का पता लगाने के लिए गुर्द की बायोप्सी।
प्रारंभिक चरण का उपचार: बच्चों में गुर्दे की बीमारी का उपचार बीमारी के कारणों पर निर्भर करता है। बच्चे के गुर्दे का मुख्य लाभ यह है कि, बच्चों में गुर्दे का विकास हो रहा होता है, इसलिए यदि समय पर उपचार कराया जाये तो इसमें ठीक होने की क्षमता होती है। नेफ्रोटिक सिंड्रोम का इलाज संभव है। गुर्दे में किसी भी प्रकार की संरचना संबंधित असमान्यता की पहचान कर उसे ठीक किया जाना चाहिए।
क्रोनिक अवस्था: बच्चों में किडनी फेल्योर का कारण बनने वाली गुर्दे की बीमारी का गुर्दे के सही ढंग से काम करने के लिए उपचार अवश्य किया जाना चाहिए। इसके उपचार के दो प्रकार के विकल्प उपलब्ध हैं - डायलिसिस और गुर्दा प्रत्यारोपण। बच्चों में ब्लड डायलिसिस में कठिनाइयां पैदा हो सकती है, क्योंकि बच्चों में रक्त वाहिकाएं छोटी होती हैं और अधिकतर मशीन मुख्य रूप से वयस्कों के लिए ही बनाये गये हैं। पेरिटोनियल डायलिसिस एक और विकल्प है। गुर्दा प्रत्यारोपण हालांकि चुनौतीपूर्ण है, लेकिन सबसे अच्छा विकल्प है।
गुर्दा प्रत्यारोपण के दो प्रकार के होते हैं: जीवित-दाता प्रत्यारोपण और निर्जीव-दाता प्रत्यारोपण। भारत में जीवित-दाता प्रत्यारोपण अधिक लोकप्रिय है। इसमें बच्चे में उसके करीबी या प्रिय व्यक्ति का गुर्दा प्रत्यारोपण किया जाता है जो अभी भी जिंदा है। एक स्वस्थ गुर्दा दो असफल गुर्दे का काम कर सकता है, इसलिए कुछ अन्य अंगों के विपरीत, गुर्दा जीवित दाता द्वारा दान किया जा सकता है। लेकिन परिवार के छोटा होने और इस कारण ब्लड ग्रूप के मैच नहीं कर पाने के कारण कभी-कभी उपयुक्त दाता उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। लोगों के द्वारा मस्तिष्क मृत्यु को स्वीकार करने और मृत्यु के बाद अंगों को दान करने की प्रतिज्ञा लेने से अंगों की कमी कम हो सकती है और कई लोगों की जान बचाई जा सकती है।
बच्चों में गुर्दा प्रत्यारोपण
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