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बढ़ रहा है पित्ताशय की पथरी का प्रकोप

पित्ताशय (गाॅल ब्लैडर) की पथरी की समस्या हमारे देश में बहुत अधिक है। रहन-सहन एवं खान-पान के तौर-तरीकों में तेजी से आ रहे बदलाव खास तौर पर फास्ट फुड के बढ़ते प्रचलन के कारण पित्ताशय की पथरी का प्रकोप बढ़ रहा है।
आहार पचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने, पित्त को संग्रह करके रखने और भोजन ग्रहण करने के बाद पित्त को जरूरत के अनुसार आंतों में पहुंचाने वाले पित्ताशय में पथरी की समस्या से हमारे देश में तकरीबन तीन से चार फीसदी लोग पीड़ित हैं। यह समस्या दक्षिण भारत की तुलना में उत्तरी भारत में ज्यादा है। उत्तरी भारत में तो पित्ताशय की पथरी की समस्या अमरीका जैसे विकसित देशों के समान ही व्यापक होती जा रही है। यह देखा गया है कि पश्चिमी आहार शैली अथवा फास्ट फूड खाने वालों में पित्ताशय की पथरी की समस्या अधिक आम होती है। यह पाया गया है कि जिन लोगों के रहन-सहन एवं खान-पान की शैली में अचानक बदलाव आया हो उन्हें इसकी समस्या ज्यादा होती है क्योंकि शरीर के जीन आहार की आनुवांशिक आदत में आये इस बदलाव को तत्काल स्वीकार नहीं कर पाते। यह देखा गया है जो लोग गांव से पलायन करके शहर आते हैं और जिनके खान-पान एवं रहन-सहन में अचानक परिर्वतन आता है वैसे लोगों एवं उनके बच्चों को पित्ताशय की पथरी की समस्या अधिक होती है। 
पित्ताशय की पथरी की समस्या बच्चों और महिलाओं में भी सामान्य है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में यह बीमारी अधिक होती है। महिलाओं में हार्मोन में परिवर्तन के कारण इसका प्रकोप अधिक है। गर्भावस्था के हार्मोन से पित्ताशय की गतिशीलता धीमी पड़ जाती है जिसके कारण कुछ संदिग्ध महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान पथरी बढ़ जाती है। कई महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान की जाने वाली अल्ट्रासाउंड में उनके पित्ताशय में पथरी दिख जाती है।
पित्ताशय लीवर में बनने वाली पित्त का संग्रह करता है। पित्त भोजन पचाने में मदद करता है। पेट को आहार पचाने के लिये जब पित्त की जरूरत होती है तब पित्ताशय से पित्त निकल कर आहार में मिल जाता है। ऐसा माना जाता है कि चर्बी जैसे खाद्य पदार्थों को पचाने में इसकी खास जरूरत पड़ती है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में नित हो रहे शोधों एवं अनुसंधानों से पित्ताशय की पथरी के बारे में हमारी धारणा तेजी से बदल रही है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में अब पित्ताशय को उतना महत्वपूर्ण नहीं माना जाता है जितना पहले माना जाता था। आज माना जाता है कि पित्ताशय के बगैर भी रहना संभव है जबकि कुछ साल पहले तक यह समझा जाता था कि पित्ताशय के बगैर किसी व्यक्ति का जीवित रहना संभव नहीं है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है, बल्कि पित्ताशय के बगैर भी व्यक्ति की पाचन शक्ति सामान्य रहती है और वह लंबी जिंदगी जीता है। इसलिए पित्ताशय को निकाल देने पर रोगी को कोई हानि नहीं पहुंचती है। इसके बगैर पाचन क्रिया में कोई फर्क नहीं पड़ता है। पित्ताशय को निकाल देने पर पित्त सीधा लीवर और दूसरी नलियों में जमा होता है।
पित्ताशय में मौजूद चर्बी में काॅलेस्ट्राॅल होता है। इसके अलावा पित्ताशय में पित्त का पिगमेंट होता है। ये सब रसायनिक तौर पर काफी अस्थायी होते हैं और ये घनीभूत होकर पथरी का रूप धारण कर लेते हैं। पथरी की समस्या सामान्य एवं स्वस्थ व्यक्ति में भी बिना किसी कारण के हो सकती है। जिन लोगों में पित्ताशय की मांसपेशियां ठीक से सिकुड़ नहीं पाती हंै उसमें पित्त की गतिशीलता अर्थात पित्त के अंदर-बाहर होने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है जिससे पथरी बनना और आसान हो जाता है।
आज ज्यादा से ज्यादा लोगों में पित्ताशय की पथरी होने के मामले प्रकाश में आ रहे हैंै। इसका एक कारण यह है कि अल्ट्रासाउंड की सुविधा व्यापक हो रही है और जिससे सामान्य एवं स्वस्थ लोगों में भी पित्ताशय की पथरी का पता चलने लगा है। लेकिन कई बार कुछ चिकित्सक जाने-अनजाने लोगों को पित्ताशय की पथरी को निकालने के लिये आपरेशन कराने की सलाह दे देते हैं। पथरी को लेकर मरीज के मन में इस तरह की आशंका होती है कि पथरी होने का नाम सुन कर ही घबरा जाता है और पथरी निकलवाने का आपरेशन करवाने को तैयार हो जाता है। कुछ लोग कैंसर के डर से भी पथरी का आपरेशन करवा लेते हैं। लेकिन पथरी का अंधाधुध आपरेशन करना उचित नहीं है क्योंकि जिन लोगों में पित्ताशय की पथरी होती है, उनमें से सिर्फ 0.5 प्रतिशत लोगों अर्थात 200 में से सिर्फ एक मरीज को ही पथरी के कारण कोई परेशानी होती है और उन्हें आपरेशन की आवश्यकता पड़ती है। 
पित्ताशय की पथरी को साइलेंट स्टोन कहा जाता है, क्योंकि इस पथरी के कारण अक्सर मरीज को कोई तकलीफ नहीं होती है और मरीज को आपरेशन कराने की जरूरत नहीं होती। लेकिन जब पथरी के कारण किसी तरह की तकलीफ होने लगे तब आपरेशन कराने में देर नहीं करना चाहिए, क्योंकि आपरेशन में देर करने पर काॅम्प्लीकेशन होने की आशंका 30 प्रतिशत तक हो जाती है। 
अल्ट्रासाउंड कराने पर पित्ताशय में अगर बहुत बड़ी पथरी नजर आ रही हो तो भी चिकित्सक आपरेशन कराने की सलाह देते हैं क्योंकि बड़ी पथरी का आपरेशनबढ़  नहीं कराने पर कैंसर का खतरा रहता है। पित्ताशय में अधिक वृद्धि होने, पित्ताशय में गंभीर संक्रमण होने के कारण बुखार तथा मवाद होने पर भी आॅपरेशन की जरूरत पड़ सकती है। इसके अलावा मधुमेह के रोगियों में ज्यादा खतरा रहता है इसलिए ऐसी स्थिति में आॅपरेशन कराने में विलंब नहीं करना चाहिए। 
आजकल पथरी का आपरेशन बहुत सुरक्षित हो गया है। कुछ साल पहले तक इसका आपरेशन पेट में चीरा लगाकर किया जाता था। अब कुछ साल से पथरी का आपरेशन लैपरोस्कोपी की मदद से होने लगा है जिसमें पेट में 10-11 मिली मीटर का एक छेेद किया जाता है। इसमें कोई टांका या पट्टी लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती हैै, बल्कि आपरेशन के बाद इस छेद पर मेडिकल सुपर ग्लू लगा दिया जाता है ताकि मरीज घर पर नहा भी सके। आपरेशन के चार घंटे बाद मरीज चल सकता है और रात को सामान्य भोजन करता है। आपरेशन के अगले दिन मरीज को अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है। 
अब पित्ताशय की पथरी माइक्रोलैपरोस्कोपी आपरेशन के द्वारा निकाली जाने लगी है। यह आपरेशन दूरबीन से किया जाता है और इसके लिए मात्र तीन मिली मीटर का छेद किया जाता है। इसलिए अब मरीज को आपरेशन के नाम से घबड़ाना नहीं चाहिए और अगर चिकित्सक आपरेशन की सलाह दे तो जल्द से जल्द आॅपरेशन करा लेना चाहिए। लैपरोस्कोपी आपरेशन में कभी-कभी लेजर का भी इस्तेमाल किया जाता है लेकिन यह रोगी की स्थिति पर निर्भर करता है। 
पित्ताशय की पथरी के इलाज के लिए आपरेशन के अलावा और भी कई विकल्प  हैं लेकिन वे अधिक कारगर नहीं हैं, खतरों से भरे हैं और रोगी पर इनके दुष्प्रभाव भी होते हैं। पथरी के इलाज के लिये अपनायी जाने वाली एक वैकल्पिक पद्धति के तहत रोगी के पेट में एक छेद करके औजार डाल दिया जाता है। यह औजार पेट में मिक्सी की तरह घूमता है और सारी पथरी को चूर-चूर करके और साफ करके निकाल देता है, लेकिन इसमें पेट में पित्ताशय के आस-पास की संरचनाओं के क्षतिग्रस्त होने की भी आशंका होती है। एक अन्य उपाय के तहत पेट में छेद करके एक विषैला रसायन डाल दिया जाता है जिससे पथरी घुल जाती है, लेकिन इसमें भी पेट के दूसरे हिस्सों के क्षतिग्रस्त होने या उसमें छेद होने का खतरा रहता है। इसलिए पथरी निकालने के लिए इन उपायों का सहारा नहीं लिया जाता है। हालांकि वैसे उपायों पर अभी शोध हो रहे हैं ताकि जो रोगी आपरेशन कराने लायक नहीं हों उन्हें किसी और तरीके से पथरी से निजात दिलाया जा सके। जैसे हृदय रोगियों को बेहोश नहीं करने की स्थिति में बिना आपरेशन किये ही पथरी का इलाज हो सके। लेकिन आपरेशन के लायक मरीजों की आपरेशन के जरिये ही पथरी निकालनी चाहिए। 
इस मामले में चिकित्सक की भी अहम भूमिका है। उसे रोगी को उचित सलाह देना चाहिए। क्योंकि पित्ताशय का आपरेशन जरूरी नहीं होने पर नहीं करना चाहिए और न ही आपरेशन में इतना विलंब करना चाहिए कि काॅम्प्लीकेशन का खतरा हो जाए। काॅम्प्लीकेशन होने पर बड़ा आपरेशन करना पड़ता है और रोगी को कई दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ सकता है। इसमें रोगी की जान को भी खतरा हो सकता है। काॅम्प्लीकेशन बढ़ने पर पित्ताशय से पथरी निकलकर पैंक्रियाज को प्रभावित कर सकती है जिसे पैंक्रियाटाइटिस कहते हैं। इसका आपरेशन काफी खर्चीला है। 
पित्ताशय की पथरी का इलाज आम तौर पर दवाइयों से नहीं किया जाता है। सिर्फ उन्हीं रोगियों का दवा से इलाज किया जाता है जिनका पित्ताशय कार्य कर रहा होता है और उसमें छोटी-सी एक पथरी ही होती है। दवा से पथरी का इलाज करने पर रोगी को काफी लंबे समय तक दवा लेनी होती है जिससे रोगी पर दवा के काफी दुष्प्रभाव पड़ते हैं। इसके अलावा दवा बंद होने पर दोबारा पथरी हो सकती है। 
आम धारणा है कि पित्ताशय के आपरेशन के बाद व्यक्ति का वजन बढ़ जाता है, लेकिन ऐसा पुराने जमाने में होता था जब पेट खोलकर आपरेशन किया जाता था और आपरेशन के बाद मरीज काफी दिनों तक बेवजह आराम करता था तथा व्यायाम नहीं करता था। इस तरह व्यक्ति का वजन आराम करने के कारण बढ़ता था न कि आपरेशन के कारण।


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