बिनाइन ट्यूमर की जांच आम तौर पर गलत होती है, जबकि साइबरनाइफ की मदद से इसका बेहतर उपचार संभव है

42 वर्षीय राहुल एक साल से अधिक समय से दाहिने कंधे में उभार महसूस कर रहे थे। हालांकि वे इसे एक मामूली समस्या मानकर इसकी अनदेखी कर रहे थे। उन्होंने इस पर तब ध्यान दिया जब इसके लक्षण लगातार बढ़ने लगे और इसके कारण उनकी दैनिक गतिविधियों में परेशानी आने लगी। उन्होंने पाया कि उनका उभार तेजी से बढ़ रहा है। जब उन्होंने एक विशेषज्ञ से परामर्श करने का फैसला किया, तो ज्यादातर डॉक्टरों ने सर्जरी करने की सलाह दी, जबकि कई अन्य डाॅक्टरों ने कहा कि यह कैंसर हो सकता है। निराश होकर, उन्होंने कीमोथेरेपी और सर्जरी से बचने के लिए सेकंड ओपिनियन लेने का फैसला किया। बेहतर निदान के लिए, रोगी आर्टेमिस अस्पताल, गुरुग्राम गया। वहां अल्ट्रासाउंड किया गया क्योंकि अन्य तरीकों से इसकी पहचान करना मुष्किल था। अल्ट्रासाउंड की मदद से पता चला कि ट्यूमर दूधिया सफेद रंग का था और बढ़ रहा था।
उचित जांच रिपोर्टों से पता चला कि लिम्फ नोड्स ठोस से द्रव पिंड में परिवर्तन हो गया था और प्रभावित क्षेत्र में त्वचा की ताजा वृद्धि देखी गयी। आगे और भी रक्त परीक्षणों से कैंसर रहित ट्यूमर कोशिकाएं और इंफ्लामेटरी कोशिका की प्रतिक्रिया का खुलासा हुआ। टीम ने साइबरनाइफ उपचार करने का फैसला किया जो कि नाॅन-इंवैसिव है और इस तरह के ट्यूमर के लिए उपयुक्त है। किसी भी दुष्प्रभाव के बिना, रोगी को पूरी तरह से इलाज किया गया और उसी दिन अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। रोगी नियमित पोस्ट-ऑपरेटिव चेक-अप के लिए 2 सप्ताह से अधिक समय तक अस्पताल आता रहा। अब वह पूरी तरह से स्वस्थ है और परेशानी मुक्त जीवन जी रहा है।
कैंसर रहित ट्यूमर क्या है?
कैंसर रहित ट्यूमर या बिनाइन ट्यूमर ट्यूमर कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि होती हैं जो संख्या में तेजी से बढ़ती नहीं हैं और आस-पास के ऊतकों में नहीं फैलती हैं। अगर ऐसे ट्यूमर का इलाज नहीं किया जाता है तो ये ऐसे ट्यूमर गंभीर समस्या पैदा कर सकते हैं। लेकिन इलाज से इसके ठीक होने की आम तौर पूरी संभावना होती है। ट्यूमर को एक बार हटा देने के बाद, ऐसी कोशिकाओं के पुनः विकास की संभावना लगभग शून्य होती है। ऐसे सभी ट्यूमर घातक नहीं होते हैं, लेकिन समय पर इलाज नहीं होने पर इनके कैंसरजन्य होने की संभावना बहुत अधिक होती है।
कैंसर रहित ट्यूमर के प्रकार
— एडेमोना - ये सबसे आम प्रकार के बिनाइन ट्यूमर हैं जो ग्रंथियों की पतली एपिथेलियल परत से उत्पन्न हो सकते हैं। ऐसे ट्यूमर सबसे अधिक लिवर, पिट्यूटरी ग्रंथियां, थायराइड ग्रंथियां, कोलन या गर्भाशय गुहा में पॉलीप्स में होते हैं।
— फाइब्रॉएड - ऐसे ट्यूमर किसी भी अंग के संयोजी ऊतकों में बढ़ सकते हैं। इस तरह के ट्यूमर को कैंसरजन्य बनने से रोकने के लिए इन पर तत्काल ध्यान देने और उचित उपचार की आवश्यकता होती है।
— हेमांजिओमा - जब रक्त वाहिका कोशिकाएं त्वचा या अन्य अंदरूनी अंगों में बनती हैं, तो इसे हेमांजिओमा कहा जाता है। यह अक्सर सिर, गर्दन और धड़ क्षेत्र में होता है और लाल या नीली रंग के रूप में दिखाई देता है। इसके कारण जब रोगी को देखने, सुनने या चलने-फिरने में कठिनाई होती है तो ऐसे मामलों में सर्जरी करना आवश्यक हो सकता है।
— लिपोमा - यह वयस्कों में पाया जाने वाला सबसे आम प्रकार का बिनाइन ट्यूमर है जो वसा कोशिकाओं से बढ़ता है और यह गर्दन, कंधे और पीठ में होता है। ये स्पर्श करने पर आम तौर पर मुलायम होते हैं, इधर-उधर फिसलते हैं और धीरे-धीरे बढ़ते हैं। इसमें तेजी से वृद्धि होने या दर्द होने पर इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि इसके कारण आगे होने वाली जटिलताओं को रोका जा सके।
साइबरनाइफ - बिनाइन ट्यूमर के लिए सबसे अच्छा विकल्प
साइबरनाइफ विकिरण सर्जरी कैंसरजन्य और कैंसर रहित ट्यूमर के इलाज के लिए उपलब्ध सबसे उन्नत और नाॅन-इंवैसिव विकिरण चिकित्सा है। इसमें अधिक मात्रा वाली विकिरण की सटीक बीम का इस्तेमाल किया जाता है। यह ऐब्लेटिव मात्रा प्रदान करने के लिए सबसे अच्छा विकल्प है और सर्जरी से चिकित्सा के लिए एक वैध विकल्प है। नाॅन-इंवैसिव होने के कारण, इसमें किसी भी प्रकार से रक्त की हानि नहीं होती है जिसके कारण रोगी को एनेस्थिसिया देने की जरूरत नहीं पड़ती है। यहां तक कि जब पारंपरिक उपचार विफल हो जाते हैं, तब साइबरनाइफ पारंपरिक विकिरण को बढ़ावा देकर सर्जरी के बाद और बार- बार होने वाले मामलों में भी प्रभावी होता है।
साइबरनाइफ रेडिएशन थेरेपी 3 सेंटीमीटर तक के आकार वाले ट्यूमर के लिए सबसे अधिक कारगर साबित होती है और शुरुआती चरण, प्राथमिक, चिकित्सकीय रूप से अक्षम ट्यूमर वाले मरीजों के लिए बहुत ही शक्तिशाली और सटीक तकनीक है। इससे इलाज करना पूरी तरह से सुरक्षित है और शरीर में बार-बार होने वाली बीमारी या षरीर में एक बीमारी वाले मरीजों में एक नया विकल्प भी प्रदान करता है। इससे इलाज में कोई दर्द नहीं होता है और इसके कोई जोखिम भी नहीं हैं। इससे इलाज डे-केयर में ही हो जाता है और सेशन के खत्म होने के बाद जल्द ही रोगी को अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है और इसके कारण रोगी को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं होती है। इससे इलाज के तहत रोगी के ट्यूमर पर विकिरण की उच्च मात्रा की किरणें सीधे डाली जाती है और इसके लिए एक परिष्कृत छवि मार्गदर्शन प्रणाली का उपयोग किया जाता है।
एम 6 - साइबरनाइफ को ट्यूमर के आसपास के ऊतक को क्षति पहुंचाए बगैर ही यहां तक कि शरीर में कहीं भी मूव करने वाले ट्यूमर तक बिल्कुल सही और सटीक मात्रा में विकिरण देने के लिए डिजाइन किया गया है। यही विशेषताएं इसे किसी भी बिनाइन ट्यूमर का इलाज करने के लिए एक आदर्श उपचार विकल्प बनाती है।
बिनाइन ट्यूमर आमतौर पर एक डे-केयर प्रक्रिया होती है जिसके उपचार में मुश्किल से एक घंटा लगता है और उसके बाद रोगी बिना किसी परेशानी के अपनी दैनिक गतिविधियां फिर से करने के लिए तैयार होता है। इससे इलाज में किसी भी अन्य पारंपरिक उपचार के समान ही खर्च आता है। यह प्रक्रिया दर्द रहित और प्रकृति में नाॅन-इंवैसिव भी है, साथ ही रोगी की रिकवरी भी जल्द होती है।