भारत में नारियों को देवी माना जाता है। यही नहीं, हमारे देश के प्राचीन इतिहास में कई महिला विद्वान और महिला शासकों के उदाहरण भरे पड़े हैं। पौराणिक कथाओं और लोक कथाओं में भी इस बात को उजागर किया गया है कि यहां महिलाओं को हमेशा सम्मान और आदर दिया गया है। भारत ही दुनिया का ऐसा पहला देश है जहां सबसे पहले महिलाओं को मताधिकार दिया गया। भारतीय संविधान विश्व में सबसे अधिक प्रगतिशील संविधानों में से एक है जो पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकारों की गारंटी देता है। जाहिर है कि यह दिखाने के लिये तर्कों की कमी नहीं है कि भारत की महिलाएं स्वतंत्र हैं और इन्हें समाज में बराबरी के अधिकार हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा ही है यह अब भी विवाद का विषय है। दूसरी तरफ, कई ऐसे तर्क और तथ्य भी हैं जिनके आधार पर यह दिखाया जा सकता है कि आजादी के वर्षों बाद भी भारत में महिलाएं अपने मूल अधिकारों से बंचित हैं और वे सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्तर पर गैरबराबरी एवं भेदभाव की शिकार हंै।
आंकड़ों में महिलाओं की स्थिति एवं उनके अधिकार
— भारत में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की संख्या अधिक है जबकि कुछ देशों में स्थिति इसके उलट है। भारत में सन् 1991 में 1000 पुरुषों पर सिर्फ 927 महिलाएं थीं जबकि सन् 2001 में 1000 पुरुषों पर 933 महिलाएं थीं। इस असंतुलन के कई कारण हैं जिनमें नारी भ्रूण हत्या और बालिकाओं के साथ बचपन से ही होने वाले भेदभाव प्रमुख हैं।
— कई महिलाएं खराब पोषण के कारण अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठती हैं- वे एनीमिया से ग्रस्त और कुपोषित हो जाती हैं। लड़कियां और महिलाएं परिवार में पोषण संबंधी भेदभाव का सामना करती हैं और परिवार के सभी सदस्यों के खाना खा लेने के बाद बचा-खुचा भोजन खाती हैं।
— औसतन भारतीय महिलाएं 22 साल की उम्र से पहले ही पहले बच्चे को जन्म दे चुकी होती हैं। प्रजनन इच्छा और प्रजनन स्वास्थ्य पर भी उनका नियंत्रण नहीं होता है।
— हमारे देश में 65.5 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में सिर्फ 50 प्रतिशत महिलाएं ही साक्षर हैं। लड़कों की तुलना में बहुत कम लड़कियां स्कूल जाती हैं। यहां तक कि जिन लड़कियों का स्कूल में दाखिला होता है उनमें से ज्यादातर को बाद में स्कूल से निकाल लिया जाता है।
— पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कम पारिश्रमिक दिया जाता है। महिलाओं के श्रम को कम कर आंका जाता है और उनके श्रम की कोई पहचान नहीं होती है। ऐसा कोई राज्य नहीं है जहां महिलाएं कृषिगत एवं अन्य कार्यों में पुरुषों के समान वेतन पाती हैं। महिलाओं की श्रम की अवधि पुरुषों की तुलना में अधिक लंबी होती है और उनके श्रम का घरेलू और सामाजिक कार्यों में अधिक योगदान होने के बावजूद उन्हें उनके श्रम के एवज में कोई पारिश्रमिक नहीं दिया जाता है और उनके श्रम को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
— महिलाओं को सरकारी एवं गैर सरकारी विभागों में नीति निर्धारक एवं अन्य महत्वपूर्ण पदों एवं स्थानों पर प्रतिनिधित्व के बहुत कम अवसर दिये जाते हैं। वर्तमान में, विधायिका में 8 प्रतिशत से कम, कैबिनेट में 6 प्रतिशत से कम तथा उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में 4 प्रतिशत से भी कम सीटों पर महिलाएं विराजमान हैं। प्रशासनिक अधिकारियों और प्रबंधकोें में 3 प्रतिशत से भी कम महिलाएं हैं।
— महिलाओं को भूमि और संपत्ति के अधिकारों में भी कानूनी भेदभाव का सामना करना पड़ता है। अधिकतर महिलाओं के नाम उनकी अपनी कोई संपत्ति नहीं होती है और वे पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं पाती हैं।
— महिलाओं को ताउम्र परिवार के अंदर और बाहर हिंसा, अत्याचार एवं भेदभाव का सामना करना पड़ता है। पुलिस आंकड़ों से पता चलता है कि देश में हर 26 मिनट में एक महिला के साथ छेड़खानी होती है,, हर 34 मिनट में एक बलात्कार होता है, हर 42 मिनट में यौन प्रताड़ना की एक घटना होती है, हर 43 मिनट में एक महिला का अपहरण होता है और हर 93 मिनट में एक महिला मारी जाती है।
महिला पुरूष का बिगड़ता अनुपात
भारत में महिलाओं और बच्चों में स्वास्थ्य सुविधाओं और पोषण में काफी सुधार होने के कारण यहां आबादी में महिलाओं की संख्या में वृद्धि होने की संभावना व्यक्त की गई थी, लेकिन यहां उल्टा हुआ। पिछले 70 सालों में यहां महिला और पुरुष अनुपात और भी बिगड़ गया है। यह अनुपात यह बयान करता है कि भारत में अब भी महिलाओं को दोयम दर्जे की नागरिकता ही हासिल है। इन सब से यह साबित होता है कि भारत में महिलाओं को जन्म से लेकर उनकी जिंदगी की हर अवस्था में उन्हें उनके अधिकारों और हकों से वंचित किया जाता है और उनके साथ कई तरह के भेदभाव किये जाते हैं।
गुम हो चुकी महिलाएं
भारत में यदि महिलाओं और पुरुषो के साथ समान व्यवहार किया जाता रहता तो यहां हर 100 पुरुष पर 105 महिलाएं हो सकती थीं। इस तरह यहां की एक अरब तीन करोड़ की वर्तमान आबादी में 51 करोड 20 लाख महिलाएं हो सकती थी। जबकि नवीनतम अनुमान के अनुसार यहां की आबादी में अभी 49 करोड 60 लाख महिलाएं हैं। इससे यह पता चलता है कि भारत में तीन करोड़ 20 लाख महिलाएं गुम हो चुकी हैं। इनमें से कुछ को तो जन्म से पहले ही मार दिया गया और बाकी को जन्म के बाद के वर्षों में मारा गया और उनसे जीने का अवसर छीन लिया गया।
नारी भ्रूण हत्या
इक्कीसवीं सदी के द्वार पर खड़ा हमारा समाज एक तरफ जहां लड़कियों को बराबरी का दर्जा देने का दावा और वादा कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ बेटियों के प्रति इतना निष्ठुर भी होता जा रहा है कि उन्हें जन्म लेने के अधिकार से ही वंचित कर देने पर आमादा है।
हालांकि 'मादा' शिशु की हत्या की वीभत्स प्रथा अब काफी कम हो गई है, लेकिन उसका स्थान अब नारी भ्रूण हत्या ने ले लिया है। ऐमनियोसेंटियोसिस और अल्ट्रासाउंड तकनीक ने जहां गर्भ में ही भ्रूण के लिंग परीक्षण को संभव बनाया है, वहीं ये तकनीकें कन्या भ्रूणों के लिए अभिशाप बन गई हैं। नारी भ्रूण हत्या और बचपन से लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव और तिरस्कार के मुख्य कारण समाज में महिलाओं की दोयम स्थिति, दहेज प्रथा और पुरुष प्रधान मानसिकता हैं।
प्रतिष्ठा के साथ जीवन
यहां कुछ और सवाल भी उठ सकते हैं। भारत में महिलाओं की स्वतंत्रता और समानता का अर्थ क्या है? क्या वे इन अधिकारों को व्यवहार में लाकर प्रतिष्ठा के साथ रह सकती हैं? क्या वे अपनी संभावनाओं एवं क्षमताओं को विकसित करने, जो वे करना चाहती हैं उसे चुनने या जो वे बनना चाहती हैं वह बनने के लिए स्वतंत्र हैं? क्या वे ज्ञान अर्जित करने, सृजनशाील बनने, कमाऊ बनने और लंबी तथा स्वस्थ जिंदगी जीने के लिये स्वतंत्र हैं? क्या वे हिंसा, भेदभाव, दवाबों, डर और अन्याय से सुरक्षित हैंें? क्या पुरुषों की तरह उन्हें समान शर्तों पर समान मौके चुनने एवं पाने के अधिकार दिये जाते हैं? इसका सार यह है कि आज भारतीय महिलाएं कितना स्वतंत्र हैं? वे पुरुषों के कितना समान हैं? दुर्भाग्य से, इन सवालों का सरल और सीधा जवाब नहीं है। स्वतंत्रता और समानता के विभिन्न आयामों एवं पहलुओं को आसानी से मापा नहीं जा सकता। उदाहरण के तौर पर मानवीय प्रतिष्ठा, आत्म सम्मान, मानसिक और भावात्मक सुरक्षा और दूसरों की नजर में सम्मान महिलाओं की जिंदगी के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इन्हें मापने के लिए हमारे पास कोई आसान रास्ता नहीं है। इसके बावजूद जीवन स्तर के कुछ ऐसे पहलू भी हैं जिन्हें मापा जा सकता है और इन पहलुओं के आधार पर महिलाओं की स्थिति का आकलन किया जा सकता है। इन पहलुओं में जनसंख्या असंतुलन, सामाजिक प्रथायें, महिलाओं के प्रति सामाजिक व्यवहार, साक्षरता और स्वास्थ्य का स्तर, आर्थिक आत्मनिर्भरता, निजी एवं सार्वजनिक निर्णय निर्धारण में भूमिका, राजनीतिक वायदे आदि प्रमुख हैं।
बुनियादी अधिकारों से महरूम आधी आबादी
~ ~
SEARCH
LATEST
6-latest-65px
POPULAR-desc:Trending now:
-
- Vinod Kumar मस्तिष्क में खून की नसों का गुच्छा बन जाने की स्थिति अत्यंत खतरनाक साबित होती है। यह अक्सर मस्तिष्क रक्त स्राव का कारण बनती ह...
-
विनोद कुमार, हेल्थ रिपोर्टर वैक्सीन की दोनों डोज लगी थी लेकिन कोरोना से बच नहीं पाए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक...
-
INDIAN DOCTORS FOR PEACE AND DEVELOPMENT An international seminar was organised by the Indian Doctors for Peace and Development (IDPD) at ...
-
अत्यधिक प्रतीक्षित इंडो इंटरनेशनल फैशन कार्निवल एंड अवार्ड्स सीजन 2: मिस, मिसेज और मिस्टर स्टार यूनिवर्स ने एक शानदार लोगो लॉन्च इवेंट के सा...
-
The woman in the picture with a smile is Salwa Hussein !! She is a woman without a heart in her body. She is a rare case in the world, as...
Featured Post
Air Pollution Fuels Alarming Rise in Childhood Asthma Cases (On World Asthma Day - 6 May)
- Vinod Kumar, Health Journalist In a month, 3-4 kids, aged 6-10, report symptoms like frequent coughing, breathlessness during play, dis...
