बच्चे को जन्म देने में असमर्थ 33 वर्षीय महिला बच्चे के लिए मन्नत मांगने वैष्णो देवी मंदिर जा रही थी लेकिन रास्ते में ही उसकी दुर्घटना हो गयी। अचानक हुए भूस्खलन से वह 5 घंटे तक दबी रही और फिर बचाव दल ने उसकी जान बचायी।
अष्मिता (33 वर्ष) नामक इस महिला की शादी 8 साल पहले हुई थी। लेकिन वह सालों से गर्भधारण नहीं कर पा रही थी और वह आखिरी उम्मीद के साथ वैष्णो देवी के दर्शन करने गई थी। लेकिन भूस्खलन में वह बुरी तरह से घायल हो गयी थी और बचाव दल के द्वारा उसे बाहर निकालने के बाद भी गंभीर रूप से खून बह रहा था। उसे 3 महीने तक आईसीयू में भर्ती रखा गया लेकिन अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान ही उसने नोटिस किया कि उसे पीरियड नहीं हो रहा है। जांच में गर्भाशय में संक्रमण पाया गया। वह दुर्घटना के एक साल बाद तक गर्भधारण करने की कोशिश करती रही, लेकिन उसका पीरियड नहीं होना कुछ गंभीर समस्या का संकेत थी।
बच्चे को जन्म देने की उसकी सभी उम्मीदें चकनाचूर हो गयी। वह हतोत्साहित हो गयी थी क्योंकि उसकी मन्नत पूरी नहीं हो सकती थी। धीरे-धीरे वह चोटों से उबर गई लेकिन उसका पीरियड फिर से षुरू नहीं हुआ और वह राय के लिए इंदिरा आईवीएफ अस्पताल आई।
पूरी जानकारी लेने के बाद उसके गर्भाशय गुहा की विस्तृत जांच की गई। इसके अवलोकन चैंकाने वाले थे। घातक चोटों के कारण, उसके गर्भाशय की लाइनिंग पूरी तरह से चिपक गई थी जो उसके मासिक धर्म के दौरान रक्त के प्रवाह को रोक रही थी। यह भी देखा गया कि उसके एंडोमेट्रियम की मोटाई सामान्य से बहुत कम (गर्भ धारण करने के लिए सामान्य रूप से आवश्यक 7 -12 मिमी के मुकाबले 4.5 मिमी) थी।
इंदिरा आईवीएफ हाॅस्पिटल, फरीदाबाद की आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. ज्योति गुप्ता ने कहा, ''टीम ने गर्भधारण में आ रही बाधाओं का पता लगाने के लिए उसके गर्भाशय गुहा की विस्तृत जांच करने के लिए डायग्नोस्टिकहिस्टेरोस्कोपी करने का फैसला किया। यह देखा गया कि उसका गर्भाशय मकड़ी के जाल की तरह पूरी तरह से चिपका हुआ था और गुहा गायब थी। यह स्थिति गंभीर रूप से असामान्य थी। दूसरी सर्जरी से बचने के लिए, ऐडहीषन को हटाकर गुहा बनाने के लिए ऑपरेटिव हिस्टेरोस्कोपी की गई। 3 महीने के अंतराल के बाद यह प्रक्रिया दोबारा की गई और गुहा के निर्माण में सुधार देखा गया और अंततः बचे हुए स्थान का भी सृजन किया गया।''
उसकी पतली एंडोमेट्रियम लाइनिग के साथ एक अन्य प्रमुख जटिलता यह भी थी कि इसकी मोटाई 4.5 मिमी से भी कम थी जबकि इसकी सामान्य मोटाई 7 से 12 मिमी होती है। ये जटिलताएं बहुत महत्वपूर्ण थीं और आईवीएफ के दौरान इलाज के लिए ये सबसे कठिन पहलू थीं।
डॉ. गुप्ता ने कहा, ''उसके ऐडहीशन और कैविटी को देखने के बाद, उसके गर्भाशय की लाइनिंग को मोटा करने के लिए प्लेटलेट रिच प्लाज्मा (पीआरपी) तकनीक से इलाज किया गया। पीआरपी थेरेपी ऐसे रोगियों के लिए वरदान साबित हो रही है। इस थेरेपी के तहत, रोगी के अपने शरीर से ही रक्त का नमूना निकालकर उससे सेंट्रिफ्युगेषन प्रक्रिया के माध्यम से प्लेटलेट्स निकाला जाता है। पीआरपी में ग्रोथ फैक्टर और हार्मोनल संतुलन की प्रवृत्ति होती है और यह शरीर की प्रतिरोधकता को भी बेहतर बनाता है। रोगी केे नियमित अंतराल पर पीआरपी के तीन सत्र किये गये और 3-5 एमएल इंजेक्ट किये गये। प्रत्येक सत्र के बाद उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई और 18 दिनों में ही इसकी मोटाई 7.2 मिमी हो गई, जो आईवीएफ तकनीक के माध्यम से गर्भ धारण करने और भ्रूण के स्वस्थ आरोपण के लिए पर्याप्त है।''
आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान, भ्रूण को उसके गर्भाशय में सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया गया। उसकी डिलीवरी जल्द ही होने वाली है। उसकी नियमित जांच की जा रही है जिसमें पता चला रहा है कि भ्रूण बिल्कुल स्वस्थ है और उसके दिल की धड़कन भी सामान्य है। इतने संघर्ष करने और जीवन को जोखिम में डालने के बाद, अब रोगी को लग रहा है कि उसकी मन्नत माता वैष्णो देवी ने पूरी कर दी है।
गंभीर दुर्घटना की शिकार महिला आईवीएफ की मदद से बनी मां
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