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गर्मी में क्रीम-पाउडर के अंधाधुंध प्रयोग से बचें

गर्मी का मौसम आते ही पसीना और पसीने की बदबू को रोकने के लिए विभिन्न किस्म के क्रीमों और पाउडरों का इस्तेमाल शुरू हो जाता है। टेलीविजन एवं पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से इनके लुभावने और भ्रामक विज्ञापन दिये जाते हैं। महिलायें इन विज्ञापनों के प्रभाव में आकर बिना सोचे-समझे इन पाउडरों और क्रीमों का इस्तेमाल शुरू कर देती हैं। बहुत कम महिलायें इनका  इस्तेमाल शुरू करने से पहले इनके स्वास्थ्य संबंधी दुष्प्रभावों पर गौर करती हैं ।


बहुत कम महिलायें यह जानती हैं कि टेलकम पाउडर और दुर्गंधनाशक क्रीम हमारे शरीर की त्वचा के साथ-साथ गुर्दे और फेफड़े जैसे महत्वपूर्ण अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। ये त्वचा में जलन, खुजली और घाव पैदा कर सकते हैं।


अधिकतर पाउडर और दुर्गंधनाशक क्रीम पसीना रोकने वाले होते हैं। इनमें पाये जाने वाले रसायन त्वचा के छिद्रों को बंद कर देते हैं, जिससे पसीना निकलना बंद हो जाता है। त्वचा के छिद्रों का बंद होना हमारे शरीर के लिए अनेक तरह से खतरनाक साबित हो सकते हैं।


पसीना निकलना शरीर की स्वाभाविक और अनिवार्य क्रिया है। पसीने के रूप में शरीर की गंदगी और विषैले पदार्थ बाहर निकल आते हैं। इसके अलावा पसीना निकलने की प्रक्रिया गर्मी के दिनों में शरीर को ठंडा रखने में सहायक होती है। त्वचा के छिद्रों के बंद हो जाने से गुर्दा और त्वचा से तरलनुमा विषैले पदार्थों का निकलना बंद हो जाता है जिससे त्वचा निस्तेज और रोगयुक्त हो जाती है। विषैले पदार्थों के बाहर नहीं निकल पाने के कारण गुर्दे को ज्यादा काम करना पड़ता है और गुर्दे में खराबी आ जाती है।


त्वचा से पसीना निकलने की प्रक्रिया रक्त में ऑक्सीजन पहुंचाकर रक्त के शुद्धिकरण में सहायक होती है। छिद्रों के बंद हो जाने से इस प्रक्रिया में बाधा पहुंचती है जिससे फेफड़े को ज्यादा काम करना पड़ता है। इस तरह पाउडर और क्रीम न केवल त्वचा को बल्कि गुर्दा और फेफड़े को भी नुकसान पहुंचाते हैं। इसके अलावा सभी दुर्गंधनाशक कुछ न कुछ सीमा तक जहरीले होते हैं। अमरीका की शीर्षस्थ दवा कंपनियों द्वारा विष विज्ञान के बारे में तैयार किए गए 'द क्लिनिकल टौक्सीकोलॉजी एंड कामर्शियल प्रोडक्ट्स' नामक महत्वपूर्ण कोश के अनुसार विषाक्तता के पैमाने पर इन दुर्गंधनाशकों की विषाक्तता एक से छह तक होती है। जिस दुर्गंधनाशक की विषाक्तता 'एक' होती है, उसमें विषाक्तता नहीं के बराबर होती है जबकि जिस दुर्गंधनाशक की विषाक्तता 'छह' होती है, उस दुर्गंधनाशक की विषाक्तता घातक होती है। बाजार में बिकने वाले तमाम दुर्गंधनाशकों में विषाक्तता का स्तर एक से तीन तक होता है। ऐसे दुर्गंधनाशकों के इस्तेमाल करने से व्यक्ति की मौत तो नहीं होती और न ही उस पर घातक प्रभाव पड़ता है लेकिन इतना अवश्य है कि अगर इनका इस्तेमाल लंबे समय तक किया जाए तो त्वचा और शरीर के अन्य अंगों पर काफी दुष्प्रभाव पड़ सकता है।


टेलकम पाउडर और क्रीम अधिक और बदबूदार पसीने से छुटकारा नहीं दिला सकते, क्योंकि ये मनुष्य की चयापचय की प्रक्रिया को नहीं बदल सकते, अलबत्ता ये हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाने के अलावा खर्च बढ़ाते हैं।


हमारे शरीर के अंग और त्वचा सही ढंग से काम कर सकें इसके लिए आवश्यक है कि त्वचा के छिद्र खुले हों और शरीर से स्वाभाविक तौर पर पसीना निकलता रहे। इसके लिए जरूरी है कि त्वचा पर पाउडर का छिड़काव न किया जाए और न ही इस पर कोई क्रीम लगायी जाए। त्वचा पर पाउडर अथवा क्रीम का इस्तेमाल करने से पसीना ठीक से नहीं निकल पाता और जो थोड़ा-बहुत पसीना निकलता भी है वह हवा नहीं मिलने के कारण सूख नहीं पाता। पसीना के सूख नहीं पाने तथा आसपास मौजूद बैक्टीरिया की गतिविधियों से दुर्गंध का जन्म होता है। यह अलग बात है कि टेलकम पाउडरों और क्रीमों में प्रयुक्त सुगंधित पदार्थों के कारण पसीने की बदबू दब जाती है। पाउडर कंपनियां पाउडर में ऐसे सुगंधों का इस्तेमाल करती हैं जो मोहक होते हैं और दिमाग के एक खास हिस्से के 'न्यूरानों' को अपना दास बना लेते हैं।


टेलकम पाउडर अत्यंत महीन किस्म का चूर्ण होता है। इसका ज्यादातर हिस्सा मैगनीशियम सिलिकेट का बना होता है। यह बहुत ही नरम पदार्थ का बना होता है। अच्छा टेलकम पाउडर सफेद रंग का गंधहीन चूर्ण होता है। यह चुटकी में लेने पर फिसलता है। कुछ लोग ताजा-तरीन दिखनेे तथा चेहरे को साफ करने के लिए टेलकम फेस पाउडर का भी इस्तेमाल करते हैं। टेलकम पाउडर कई तरह के होते हैं। अच्छे किस्म के टेलकम पाउडर में मैगनीशियम सिलिकेट के अलावा काओलिन, कैल्शियम कार्बोनेट, जिंक ऑक्साइड, जिंक स्टीयरेट, मैगनीशियम कार्बोनेट और सुगंध वाले पदार्थ मौजूद होते हैं। जिंक ऑक्साइड एक जीवाणुनाशक के रूप में इस्तेमाल होता है। सुगंध के लिए आम तौर पर पौधों के रस से तैयार किये गए क्रिस्टल चूर्णों का ही इस्तेमाल होता है। कई टेलकम पाउडरों में टिटेनियम ऑक्साइड और चाक मिट्टी भी मिला दी जाती है। क्रीम वाले दुर्गंधनाशकों में मुख्य तौर पर ऑक्सी-क्विनोलिन सल्फेट होता है। यह विषैला रसायन शरीर के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करता है। इनमें फार्मलडिहाइड भी पाया जाता है। यह प्रसिद्ध विषैला रसायन है जिसका इस्तेमाल शव-संलेपन में किया जाता है। इन दुर्गंधनाशकों में प्रयुक्त एक अन्य रसायन जिंक सल्फो-कार्बोनेट जाना-माना कीटनाशक है। दुर्गंधनाशक बनाने में इसका प्रयोग इसके संकोचन गुण के कारण किया जाता है। अन्य हानिकारक रसायनों में प्रोपिलीन लाइकौल भी प्रमुख है जिसका इस्तेमाल गाड़ियों के रेडियेटरों में एंटीफ्रीज के रूप में होता है।


कुछ दुर्गंधनाशक पेंसिलनुमा होते हैं। इनमें इन रसायनों के अलावा पेट्रोलैक्टम भी होता है जिसका इस्तेमाल दुर्गंधनाशकों को पेंसिल या छड़ का आकार देने के लिए होता है। पेट्रोलैक्टम त्वचा में जलन और खुजली उत्पन्न करता है। यह जलन अनेक त्वचा रोगों को जन्म दे सकती है। पेंसिल दुर्गंधनाशकों में सोडियम हाइड्रोक्साइड भी होती है जो एक एक तरह का कॉस्मेटिक सोडा है और जिसका इस्तेमाल कपड़ा धोने में होता है। यह अगर त्वचा पर गिर जाये तो त्वचा को जला सकता है। अन्न्य दुर्गंधनाशकों में बेंजोइक अम्ल और क्लोरेट हाइड्रेट पाया जाता है। बेंजोइक अम्ल इतना जहरीला होता है कि अगर कोई बच्चा इसे निगल जाये तो उसके शरीर में ऐंठन होने लगती है और कभी-कभी मृत्यु भी हो सकती है। क्लोरेट हाइड्रेट क्षयकारक है। यह कपड़ा और मजबूत धातु को भी गला सकता है। अगर मनुष्य या कोई पशु इसकी कुछ बूंदों को निगल जाये तब उसे बेहोशी आ सकती है और कभी-कभी मृत्यु भी हो सकती है। गर्मी के दिनों में ये विषैले रसायन वाष्पीकृत होकर विषैली गैस में तब्दील हो जाते हैं। दुर्गंधनाशक से जितना नुकसान उसे लगाने वाले को होता है उतना ही नुकसान उसकी बगल वालों को होता है क्योंकि विषैली गैसें शरीर के अंदर सांस के जरिये पहुंच कर शरीर के अंदुरूनी हिस्से को नुकसान पहुंचाती है।


पसीने का बाहर निकलना स्वभाविक और प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसे पाउडर या क्रीम के जरिये रोकना खतरनाक साबित हो सकता है। पसीने की बदबू से बचने के लिये त्वचा को साफ रखना, समय-समय पर हाथ-पांव धोना और अच्छी तरह स्नान करना सबसे बेहतर उपाय है।


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