आज, दुनिया में करोड़ों लोग अनावश्य रूप से अंधे या दृष्टिहीन हैं जिनका इलाज किया जा सकता है या उनकी आंख को खराब होने से बचाया जा सकता है। हालांकि आज कारगर और अत्यधिक सस्ते समाधान मौजूद हैं लेकिन उन पर अमल नहीं किया जाता है जो कि एक शर्मनाक सामाजिक स्थिति है और इन लोगों के साथ अन्याय है। दुनिया भर में इस समस्या की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए हर साल अक्टूबर के दूसरे गुरुवार को वल्र्ड साइट डे मनाया जाता है।
भारत का विशाल परिदृश्य लगातार अपने आप को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहा है, लेकिन इसकी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करने की सख्त जरूरत है। हर किसी के लिए और हर जगह आंखों की देखभाल सुलभ हो रहा है लेकिन यह एक यथार्थवादी और प्राप्त होने वाला लक्ष्य है। वर्तमान समय में ग्रामीण शहरी विभाजन व्यापक रूप से हो रहा है। अभी ग्रामीण क्षेत्रों में 2.1 9 लाख की आबादी के लिए केवल 1 नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में 25 हजार की आबादी के लिए 1 नेत्र रोग विषेशज्ञ है। यह एक ऐसा देश है जहां 13 करोड़ 30 लाख लोग अंधे या दृष्टिहीन हैं। इनमें वे 1 करोड़ 10 लाख बच्चे भी शामिल हैं जो एक साधारण नेत्र परीक्षण की कमी और एक जोड़ी उचित चश्मे का इंतजाम नहीं होने के कारण दृष्टि से वंचित हैं। यहां तक कि अधिक प्रशिक्षित नेत्र तकनीशियनों और ऑप्टोमेट्रिस्ट को उपलब्ध कराने के लक्ष्य को प्राप्त करने से भी यह विभाजन कम हो जाएगा। सेंटर फाॅर साइट ग्रूप आफ हाॅस्पिटल्स के अध्यक्ष और चिकित्सा निदेशक पदमश्री पुरस्कार विजेता डॉ. महिपाल सचदेव ने कहा, ''जीवन शैली में परिवर्तन, गैजेट्स के अत्यधिक उपयोग, मधुमेह के बढ़ते मामलों के कारण बच्चों में मायोपिया और वयस्कों में डाइबेटिक रेटिनोपैथी में काफी वृद्धि हुई है। इसलिए बच्चों के लिए स्कूल जाने के पूर्व और वयस्कों के लिए कम से कम सालाना आंखों की जांच सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
मोतियाबिंद और रिफ्रैक्टिव त्रुटि अंधापन के सबसे आम और आसानी से रोकने योग्य कारण हैं। भारत को देश के रूप में न केवल बुजुर्गों की जिंदगी की गुणवत्ता को बढ़ाने बल्कि देश के कामकाजी लोगों की कार्य क्षमता को भी बढ़ाने के लिए मोतियाबिंद शल्य चिकित्सा कवरेज को सामाजिक इक्वैलाइजर संकेतक के रूप में लाना आवश्यक है। कॉर्नियल अंधापन को भी एक बड़ी चीज मानने की जरूरत है क्योंकि कोई व्यक्ति एक बार दुनिया छोड़ने के बाद भी दुनिया को देख सकता है। भारत ऐसा देश है जहां सबसे ज्यादा प्रत्यारोपण की आवश्यकता है।
नवीनतम रोबोटिक कैटेरैक्ट सर्जरी या फेम्टोसेकंड लेजर असिस्टेड कैटेरेक्ट तकनीक ने मिनीमली इंवैसिव कैटेरेक्ट सर्जरी को अत्यधिक सटीक और अनुमानित बना दिया है। इसके अलावा इंट्राओकुलर लेंस के लिए प्रौद्योगिकियों में प्रगति के कारण मोतियाबिंद सर्जरी के एक से कुछ दिनों के भीतर ही बिल्कुल स्पष्ट दृष्टि पाना संभव हो गया है। ट्राइफोकल, मल्टीफोकल और टोरिक आईओएल जैसे नए लेंस डिज़ाइनों ने मोतियाबिंद सर्जरी के बाद चश्में पर निर्भरता को भी कम कर दिया है।
लेजर की मदद से चश्मे को हटाना अब भी दुनिया भर में की जाने वाली सबसे लोकप्रिय और सफल कॉस्मेटिक सर्जरी है। चश्मा हटाने के लिए नवीनतम तकनीक- स्माइल (एसएमआईएलई) अमेरिका और पश्चिमी दुनिया में उपलब्ध होने से पहले ही भारत के केंद्रों में उपलब्ध हो गयी थी। यह सर्जरी एक मिनीमली इंवैसिव (फ्लैप मुक्त) प्रक्रिया है और बहुत स्थायी और सटीक परिणाम प्रदान करती है। यह कॉर्नियल फ्लैप की आवश्यकता को समाप्त करने में लैसिक से भी बेहतर है - और इस प्रकार यह किसी भी संभावित फ्लैप संबंधित जटिलताओं को समाप्त करता है।
नए एंटी वीईजीएफ इंजेक्शन और इंट्राविट्रियल इम्प्लांट्स के विकास के कारण अब डाइबेटिक रेटिनोपैथी और उम्र से संबंधित मैकुलर डीजेनेरेशन जैसे रेटिना संबंधी बीमारियों के उपचार में भी काफी प्रगति हुई है। यहां तक कि उपचार के परिणाम में सुधार करने के लिए तकनीक में विकास जारी है, लेकिन चुनौती अब भी केवल सभी के लिए इसे सुलभ बनाना ही है।''
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