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कानून नहीं होने की आड़ में अस्पतालों में मरीजों की जान से खिलवाड़ 

नयी दिल्ली। भारत में मरीजों की जान समुचित कानून के अभाव में चिकित्सकों एवं स्वास्थ्यकर्मियों की मेहरबानी पर टिकी हैं। देश में ज्यादातर अस्पतालों में शल्य क्रियाओं एवं इंडोस्कोपी जैसी चिकित्सकीय प्रक्रियाओं के दौरान वैसे उपकरणों (सिंगल यूज डिवाइसेस) का दोबारा इस्तेमाल हो रहा है जो केवल एक बार इस्तेमाल के लिये बनाये गये हैं। ऐेसे उपकरणों को संशोधित (रिप्रोसेस) करके दोबारा इस्तेमाल किये जाने के कारण मरीज हेपेटाइटिस और एच.आई.वी. से ग्रस्त होने के खतरे को झेल रहे हैं। 
विश्व के अन्य देशों में कड़े कानून होने के कारण रिप्रोसेस किये हुये सिंगल यूज डिवाइसेस के दोबारा इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध लगा हुआ है, लेकिन भारत में इस संबंध कोई कानून नहीं होने के कारण यह सिलसिला बेरोकटोक चल रहा है। यह पाया गया है कि अस्पतालों में सर्जरी एवं अन्य चिकित्सकीय प्रक्रियाओं से पूर्व मरीजों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती कि उनपर किस तरह के उपकरण इस्तेमाल में लाये जायेंगे। उनसे यह पूछा नहीं जाता है कि अपनी सर्जरी अथवा चिकित्सकीय प्रक्रियाओं के लिये वे बिल्कुल नये उपकरण चाहते हैं अथवा पूर्व में इस्तेमाल में लाये गये उपकरण। लेकिन इस बारे में कानून बन जाने पर स्वास्थ्यकर्मी मरीजों पर रिप्रोसेस किये हुये सिंगल यूज डिवाइसेस का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। 
वालेंटरी आरगेनाइजेशन इन इंटरेस्ट आफ कंज्युमर एजुकेशन (वॉयस) ने उपभोक्ता संरक्षण  अभियान के तहत देश के अस्पतालों में सिंगल यूज डिवाइसेस के दोबारा इस्तेमाल के संबंध में मरीजों की सहमति लेने की व्यवस्था कायम किये जाने का आह्वान किया है। वॉयस की ओर से किये गये एक सर्वेक्षण में यह पाया गया है कि चिकित्सक मरीजों को कोई जानकारी दिये बगैर या उनकी सहमति लिये बगैर पूर्व में इस्तेमाल की गयी सिंगल यूज बायप्सी फोरसेप्स का इस्तेमाल करते हैं लेकिन अपने सगे - संबंधियों के लिये बिल्कुल नयी बायप्सी फारसेप्स को चुनते हैं। 
वॉयस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री बेजॉन मिश्रा बताते हैं, '' हमने अपने सर्वेक्षण में यह पाया  कि अस्पतालों में मरीजों को यह नहीं बताया जाता है कि उनकी सर्जरी में इस्तेमाल किये जाने वाले उपकरण क्या पहले किसी अन्य मरीज की सर्जरी के लिये भी उपयोग में लाये जा चुके हैं। मेरा मानना है कि यह बहुत महत्वपूर्ण बात है जिसे मरीज को बतायी जानी चाहिये। ''
उन्होंने कहा कि मरीजों को सिंगल यूज डिवाइसेस को रिप्रोसेस करके दोबारा इस्तेमाल में लाये जाने के बारे में अपनी सहमति या असहमति देने का मौका दिया जाना चाहिये। यहां तक कि चिकित्सकीय प्रक्रियाओं और उपकरणों के चुनाव में मरीजों की भी भागीदारी होनी चाहिये। 
सिंगल यूज डिवाइसेस वैसे उपकरण हैं जो शरीर के किसी हिस्से पर केवल एक बार इस्तेमाल के लिये बनाये जाते हैं। प्रथम इस्तेमाल में ही मरीज के रक्त एवं अन्य तरह के शारीरिक तरल पदार्थों के संपर्क में आ जाने के कारण ये उपकरण पूरी तरह से बेकार हो जाते हैं। इन उपकरणों में छोटे-छोटे दरार, छल्ले और जोड़ होने के कारण इन्हें समुचित रूप से साफ और किटाणुरहित करना मुश्किल होता है। दरअसल इन्हें दोबारा साफ तथा किटाणुरहित करने के लिये बनाया नहीं ही नहीं जाता है और इस कारण जब इन्हें रिप्रोसेस करके दोबारा इस्तेमाल किया जाता है तो इनकी कार्यक्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है। 
सिंगल यूज डिवाइसेस को लेकर हुये अध्ययनों से पता चला है कि एक बार इस्तेमाल के बाद उन पर उतक और शारीरिक तरल रह जाते हैं, ये पूरी तरह से किटाणु रहित नहीं हो पाते और उनकी कारगरता खत्म हो जाती है। यह भी पाया गया है कि रिप्रोसेसिंग की सामान्य स्टेरेलाइजेशन तकनीकें ऐसे उपकरणों पर से जैविक उतकों के अवशेषों को हटाने में सक्षम नहीं हो पाती हैं इस कारण इनपर अत्यंत नुकसानदायक रोगाणु , विषाणु और अन्य सूक्ष्म जीवाणु रह जाते है इस कारण जब इनका दोबारा इस्तेमाल किया जाता है तक ये जीवाणु दूसरे मरीज के शरीर में जा सकते हैं। 


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