किराऐ पर कोख : उपकार या व्यापार


15 गर्भवती महिलाऐं एक साथ एक बडे आरामदायक कमरे में सोने की तैयारी कर रही हैं, उनकी देखभाल के लिए डॉक्टरों का एक दल,रसोईये ओैर सहायक हरदम तैयार रहते हैं, ये नजारा आमतौर पर असामान्य हो सकता हैं, लेकिन डॉ आन्नद के अस्पताल में आम बात हैं, ये सभी महिलाऐं बच्चे पैदा करने में अक्षम महिलाओं के लिए बच्चे पैदा करने की तैयारी कर रही हैं। 
विशेषज्ञों के अनुसार भारत में सेरोगेट मदरर्स आसानी से मिल जाती हैं। डॉ नंदा कहती हैं,''ये एक नेक काम हैं, एक महिला किसी भी वजह से खुद अपना बच्चा बिना किसी सेरोगेट मदर की मदद के नही पा सकती,दुसरी तरफ एक और महिला जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं,अपने परिवार के लिए कुछ करना चाहती हैं, अगर ये दोनो एक दूसरे की मदद करना चाहते हैं, तो इसमें लोगो को आपति नही होनी चाहिऐं। 
सेरोगेसी की मदद से अपना बच्चा पा चुकी एक विदेशी महिला ने अपनी खुशी कुछ इस तरह जताई, बच्चे को पाने की खुशी को बयान करना मुश्किल हैं, दुनिया भर की दौलत भी इस खुशी के लिए कम हैं। सरोगेट मदर बन चुकी एक महिला रेखा ने बताया कि गर्भ के दौरान इस बच्चे से इन्हे बहुत लगाव महसूस हुआ, लेकिन बच्चे से ज्यादा लगाव उसके माता-पिता को हैं, वे इसका बहुत ख्याल रखेंगें। 


सरोगेट मदर बनने के लिए जरूरी है स्वास्थ्य
सेरोगेट मदर बनने के लिए महिला का शारीरिक तौर पर स्वस्थ होना बहुत जरूरी हैं। महिला का पहले मां बन चुका होना भी अच्छा होता हैं, सेरोगेसी से पहले महिला सहित 
माता-पिता को उचित जानकारी दी जाती हैं। गर्भ के दौरान पूरा खर्च जिसमें चिकित्सा और खाना शामिल हैं अलग से दिया जाता हैं,लिखित तौर पर ये भी तय कर लिया जाता हैं ​कि सेरोगेट मदर बच्चे को जन्म के तुरन्त बाद बच्चे के माता-पिता को सौंप देगीं। 
भारत में अकसर नजदीकी रिशतेदार जैसे बहनें या अन्य भी सेरोगेट मदर बन जाती है, असम की एक महिला ने अपनी बेटी के लिए सेरोगेट मदर बनी,उन्होनें दो जुडवा बच्चों को जन्म दिया। सेरोगेट मदर की कोख में उस महिला के अण्डाणु और पुरूष के शुक्राणु का वैज्ञानिक तरीके से निषेचन करवाया जाता हैं, इसी कारण बच्चे में सारे अनुंवाशिक गुण अपने माता-पिता के ही होते हैं। नैन-नक्श से लेकर आदतों तक सभी कुछ अपने मूल माता-पिता के ही होते हैं। वैज्ञानिक तरीके से अगर समझा जाए तो ये ठीक उसी तरह हैं जैसे हम कई बार अपना बरतन छोटा पडने पर हम किसी और का बरतन कुछ दिनों के लिए रख लें।
भारत में सेरोगेसी के तरीके को वैद्यानिक रूप 2002 में मिला। कई और देशों में भी वैद्यानिक होने के बावजूद भारत सबसे बडे केन्द्र की तरह उभरा हैं। 
इसका एक बडा कारण भारत के एक बडे तबके का आर्थिक रूप से कमजोर होना भी हैं, साथ ही भारत में अपेक्षतः कम खर्चिली चिकित्सा भी विदेशियों के इस और खिचांव का कारण हो सकता हैं।दिल्ली सहित भारत के तमाम हिस्सो में ऐसे अस्पताल मिल जाऐगें जहा सेरोगेट मदर्स मिल जाऐगीं। 


किसी के घर को रोशन करने तक तो ठीक हैं, लेकिन एक व्यापार के रूप में स्थ्ति काफी भयावह रूप ले सकता हैं।आमतौर पर बच्चे के जन्म तक तो सेरोगेट मदर का ख्याल रखा जाता हैं, लेकिन बाद में उसका कोई खास ख्याल नहीं रखा जाता। अगर सिर्फ पैसो की मजबूरी के कारण एक महिला अपना स्वास्थ्य दाव पर रखे,पीडा सहे यहॉ तक की अपनी जान का जोखिम उठाए तो ये एक प्रकार का से उच्च वर्ग का निम्न वर्ग को पैसो के बल पर प्रयोग करना ही हुआ। व्यापार का रूप ले चुके इस उपकार ने नव धनाढयो के लिए भी एक अतिरिक्त विकल्प का काम किया हैं। अब अपने काम या आराम में व्यस्त धनी महिलाऐं सेरोगेट मदर के जरिये अपने परिवार के लिए बच्चा दे सकती हैं। मां बनने के इस अतिरिक्त विकल्प ने फैशन और ग्लैमर की दुनिया में तो एक वरदान का काम किया हैं। 
अमूमन देखा जाता हैं कि गर्भ के दौरान मां का बच्चे के साथ एक भावनात्मक रिश्ता जुड जाता हैं।जो उम्रभर बना रहता हैं, मगर सेरोगेसी के जरिये पैदा बच्चे के साथ ऐसा कोई रिश्ता जुडना मुश्किल होता हैं, तो बच्चे पर मनोवैज्ञानिक तौर पर पडने वाले प्रभाव नकारात्मक भी हो सकता स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले समय में और अधिक सेरोगेसी के केस भारत में आने की संभावना हैं। डॉ इंदिरा हिंदुजा सेरोगेसी विशेषज्ञा ने बताया कि,लोगो कि झिझक अब बदल रहीं हैं, अब लोग ज्यादा खुले हैं।मगर सेरोगेसी के बढता प्रचलन अनाथ बच्चों को गोद लेने वाले विकल्प को भी बेकार बना देता हैं। 
घर मे चिराग के लिए सेरोगेट मदर का उपकार एक सराहनीय काम हैं। मगर एक व्यापार के रूप में सिर्फ उच्च वर्ग का धन के दम पर शोषण ही हैं।