रंजो-गम से भरी इस दुनिया में दिल का दौरा पड़ने की घटनायें अत्यंत सामान्य हैं। इसके बावजूद हममें से ज्यादातर लोग यह नहीं जानते कि जब खुद को या अपने किसी प्रियजन को अचानक दिल का दौरा पडे तो क्या किया जाये। देखा यह गया है कि जब किसी व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ता है तब खुद उससे या उसके परिवार वालों से घबराहट में या अनजाने में ऐसी गलतियां हो जाती हैं जिससे मौत और करीब आ पहुंचती है। आज जब दिल का दौरा सबसे बडे़ हत्यारे के रूप में तब्दील हो चुका है, हमारे लिये यह जानना आवश्यक है कि दिल का दौरा पड़ने पर क्या किया जाये।
आम तौर पर ज्यादातर लोग दिल के दौरे की सही पहचान नहीं कर पाते हैं। उसे अपच, पेट में गैस या एसिडिटी समझ कर मरीज को सामान्य फिजिशियन के पास ले जाते हैं जिससे अत्यंत कीमती वक्त की बर्बादी होती है और मरीज के लिये खतरा और बढ़ जाता है। नयी दिल्ली स्थित एस्कार्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर में हृदय रोग विशेषज्ञ डा. सुमन भंडारी बताते हैं कि तकरीबन 80 प्रतिशत मरीज हृदय रोग चिकित्सक के पास तब पहुंचते हैं जब दिल के दौरे के कारण हृदय को काफी क्षति पहुंच चुकी होती है। डा. भंडारी के अनुसार दिल का गंभीर दौरा पड़ने की ज्यादातर स्थितियों में एक घंटे के भीतर ही मरीज की मौत होने की आशंका रहती है और अगर इस दौरान मरीज को हृदय चिकित्सा की आधुनिकतम सुविधाओं से युक्त अस्पताल पहुंचा दिया जाये तो उसकी जान बचने की संभावना बढ़ जाती है। डा. भंडारी बताते हैं कि मरीज को अस्पताल पहुंचने तक जीवनरक्षक दवाइयां और छाती की मालिश एवं कृत्रिम श्वसन (कार्डियो पल्मोनरी रिसस्सिटेशन) जैसे प्राथमिक उपचार मिल सके तो मरीज की जान बचने की संभावना बहुत अधिक होती है। लेकिन हमारे देश में दिल के दौरे के प्राथमिक उपचार के बारे में लोगों में अज्ञानता एवं अजागरुकता के कारण मरीज के सगे-संबंधी मरीज की मदद नहीं कर पाते।
डा. भंडारी के अनुसार दिल के दौरे को चिकित्सकीय भाषा में मायोकार्डियल इंफै्रक्शन कहा जाता है और यह दरअसल रक्त आपूर्ति बाधित हो जाने के कारण हृदय की कुछ मांसपेशियों की मौत है। आम तौर पर हृदय को रक्त की आपूर्ति करने वाली किसी रक्त धमनी में रक्त के थक्के या काॅलस्ट्रोल के जमाव के कारण रुकावट पैदा हो जाने से हृदय को रक्त की आपूर्ति रुक जाती है। हृदय की कुछ मांसपेशियों के मर जाने के कारण छाती में तेज दर्द उठता है। इन मांसपेशियों की मौत से हृदय के उतकों में विधुतीय अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है। विधुतीय अस्थिरता के कारण हृदय की धड़कन या तो अनियमित हो जाती है या रुक जाती है। इससे हृदय मस्तिष्क सहित शरीर के विभिन्न अंगों को स्वच्छ रक्त नहीं भेज पाता है। ऐसी स्थिति में अगर पांच मिनट के भीतर भी रक्त का प्रवाह चालू कर दिया जाये तो भी मस्तिष्क को स्थायी क्षति पहुंच चुकी होती है और मरीज की मौत हो जाती है।
डा. भंडारी बताते हैं कि मरीज की जान बचाने के मामले में दिल के दौरे की सही-सही पहचान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दिल के दौरे (मायोकार्डियल इंफ्रैक्शन) के दौरान सीने में बहुत तेज दर्द उठता है। यह दर्द छाती के बिल्कुल बीच के भाग (वक्षास्थि) के ठीक नीचे से शुरू होकर आसपास के हिस्सों में फैल जाता है। कुछ लोगों में यह दर्द छाती के दोनों तरफ फैलता है लेकिन ज्यादातर लोगों में यह बायीं तरफ अधिक फैलता है। यह दर्द हाथों और अंगुलियों, कंधों, गर्दन, जबड़े और पीठ तक पहुंच सकता है। कई बार दर्द छाती के बजाय पेट के ऊपरी भाग से उठ सकता है। लेकिन नाभि के नीचे और गले के ऊपर का दर्द दिल के दौरे का परिचायक नहीं होता है। हालांकि अलग-अलग मरीजों में दर्द की तीव्रता एवं दर्द के दायरे अलग-अलग होते हैं। कई लोगों को इतना भीषण दर्द होता है कि मानों जान निकली जा रही हो जबकि कुछ मरीजों खास तौर पर मधुमेह एवं उच्च रक्तचाप के मरीजों को कोई लक्षण या दर्द के बगैर ही दिल का दौरा पड़ता है। कई लोगों को दर्द के साथ सांस फूलने, उल्टी होने और पसीना छूटने जैसे लक्षण भी प्रकट होते हैं।
डा. सक्सेना बताते हैं कि किसी मरीज को दिल का दौरा पड़ने पर मरीज को तत्काल जमीन पर लिटा देना चाहिये और देखना चाहिये कि उसकी नब्ज एवं दिल की धड़कन चल रही है या नहीं। मरीज अगर होशोहवास में हो तो शीघ्र नाइट्रोग्लीसरीन, एस्प्रीन, डिस्प्रीन या कोई अन्य एनाॅलजेसिक दवा की एक या दो गोलियां मरीज की जुबान के नीचे रख देने से मरीज को दर्द से राहत मिलती है तथा मरीज की एंग्जाइटी घटती है। गंभीर स्थिति में जब मरीज बेहोश हो जाये और मरीज की सांस नहीं चले तो मरीज की छाती की मालिश करनी चाहिये और उसके मुंह से अपने मुंह को सटाकर कृत्रिम श्वसन देना चाहिये। इसे चिकित्सकीय भाषा में कार्डियो पल्मोनरी रिसस्सिटेशन कहा जाता है और यह मरीज की जान बचाने में अत्यंत सहायक होता है। हालैंड, इंग्लैंड, फ्रांस और बेल्जियम जैसे देशों में हृदय रोग चिकित्सा का प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले डा. भंडारी बताते हैं कि मरीज के अस्पताल पहुंचने पर चिकित्सक की सबसे पहली कोशिश अवरुद्ध रक्त धमनी को खोलने की तथा हृदय की मांसपेशियों में रक्त प्रवाह बहाल करने (रीप्रफ्युशन) की होती है। अवरुद्ध रक्त धमनी के खुल जाने से मरीज को दर्द से मुक्ति मिल जाती है और उसकी जान पर आया खतरा टल जाता है। डा. सक्सेना के अनुसार आजकल अवरुद्ध रक्त धमनी को खोलने के लिये बैलून एंजियोप्लास्टी नामक तकनीक का इस्तेमाल किया जाने लगा है जिसमें किसी तरह की चीर-फाड़ नहीं करनी पड़ती है।
क्या करें
मरीज जब होश में हो
0 उसके श्वसन पर नजर रखें।
0 मरीज को जमीन पर या बिना गद्दे वाले पलंग पर सीधा लिटा दें।
0 उसके कपड़े ढीला कर दें या खोल दें।
0 उसके जुबान के नीचे सोर्बिटेट, एस्प्रीन, डिस्प्रीन या कोई अन्य एनालजेसिक या दर्दनिवारक गोली रख दें।
0 कमरे के दरवाजे एवं खिड़कियां खोल दें तथा मरीज के आसपास भीड़ नहीं होने दें ताकि मरीज को ताजी हवा मिलती रहे।
0 मरीज की टांगों को ऊपर उठायें ताकि उसके हृदय एवं मस्तिष्क तक खून पहुंच सके।
0 अगर नब्ज धीमी चल रही हो या नहीं चल रही हो तो समय खोये बगैर कार्डियो पल्मोनरी रिसस्सिटेशन आरंभ करें। 0 उसे सांत्वना दें तथा उसकी हिम्मत बढ़ायें।
मरीज जब बेहोश हो
0 मरीज को तत्काल लिटा दें।
0 अगर नब्ज चल रही हो तो मरीज को स्ट्रेप्टोकाइनेस या यूरोकानेस नामक दवाई का इंजेक्शन दें।
0 मरीज की नब्ज एवं श्वसन पर निगरानी रखें। अगर नब्ज नहीं चल रही हो तो उसकी तत्काल सी पी आर आरंभ करें और तब तक जारी रखें जब तक कि अस्पताल में डाक्टरों की निगरानी में नहीं पहुंच जाये।
0 अगर मरीज उल्टी कर रहा हो तो उसके मुंह को एक तरफ मोड़ दें, उसके मुंह को खोल दें और जीभ बाहर निकाल दें।
क्या नहीं करें
0 मरीज को खड़ा करने या बिठाने की कोशिश नहीं करें।
0 उसके मुंह में पानी या गंगाजल नहीं डालें।
0 उसके आसपास भीड़ नहीं करें।
0 उससे ऐसी बात नहीं करें जिससे उसकी निराशा बढ़े।
0 मरीज को सामान्य चिकित्सक के पास नहीं ले जायें बल्कि उसे हृदय चिकित्सा की सुविधाओं से सम्पन्न अस्पताल में ले जायें।
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