मस्तिष्क की बीमारियों के इलाज के लिए आपरेशन अब गुजरे जमाने की बात हो गयी है। गामा नाइफ की मदद से अब मस्तिष्क को खोले और चीर-फाड़ किए बिना ही मस्तिष्क की बीमारियों को ठीक किया जा रहा है। परम्परागत आपरेशन के कई दुष्प्रभाव होने के कारण दुष्प्रभाव और कष्ट रहित गामा नाइफ का इस्तेमाल देश में व्यापक रूप से होने लगा है।
गामा नाइफ एक तरह का न्यूरोसर्जिकल यंत्रा है। मस्तिष्क के आपरेशन में सामान्य तौर पर धातु या प्लास्टिक के औजारों से या लेजर की किरणों से मस्तिष्क के प्रभावित हिस्सों को काटा जाता है, लेकिन गामा नाइफ में किसी धातु या प्लास्टिक के औजारों के बगैर ही गामा किरणों की मदद से मस्तिष्क के प्रभावित हिस्से को काटा जाता है।
हालांकि रेडियोथेरेपी के लिए गामा किरणों का इस्तेमाल कई सालों से किया जा रहा है, परंतु गामा नाइफ का इस्तेमाल हाल के वर्षों में ही शुरू हुआ है। सामान्यतः गामा किरणें कोबाल्ट 60 के टुकड़ों से निकलती है। गामा नाइफ के अंदर 201 गामा किरणें होती हैं। ये किरणें गोल छातेनुमा संरचना के अंदर जमा रहती हैं। जब ये किरणें वहां से निकलती हैं तो एक जगह पर फोकस होती हैं। फोकस के स्थान पर 201 गुना तीव्रता हो जाती है। गामा नाइफ से इलाज के दौरान रोगी के सिर को इस तरह रखा जाता है ताकि मस्तिष्क का वह खास हिस्सा फोकस पर आ जाये जिसे काटा जाना है या जिस पर रेडियेशन देना है। इसके लिए स्टीरियो टेक्टिक डेविलियेशन सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है।
गामा नाइफ का आविष्कार प्रोफेसर लार्ज लेकसेल ने 1951 में किया। उन्होंने इस पद्धति को रेडियोसर्जरी नाम दिया। इससे मस्तिष्क की हड्डी या त्वचा को काटे या खोले बिना मस्तिष्क के अंदर छोटे से छोटे हिस्से को भी काटा जा सकता है और इससे मस्तिष्क के सामान्य हिस्सों को क्षति नहीं पहुंचती।
गामा नाइफ की मदद से ट्यूमर, नसों के गुच्छे, कैंसर, पार्किन्सन, मिर्गी, पागलपन जैसी कई दिमागी बीमारियों का इलाज हो सकता है। पहले इन बीमारियों के उपचार के लिए मस्तिष्क को खोलकर आपरेशन करना पड़ता था, लेकिन अब गामा नाइफ की बदौलत मस्तिष्क को खोले बिना ही इनका इलाज आसानी से और कारगर तरीके से किया जा सका है।
मस्तिष्क के ट्यूमर के इलाज में गामा नाइफ का इस्तेमाल व्यापक रूप से होने लगा है। मस्तिष्क में ट्यूूमर होने पर रोगी की कार्यक्षमता में काफी फर्क आ जाता है, रोगी के हाथ-पैर में कमजोरी आ सकती है या उसके सोचने के ढंग में खराबी हो सकती है या इसी तरह की कई अन्य समस्याएं हो सकती हैं । इस तरह के ट्यूमर को गामा नाइफ की किरणों से जलाकर खत्म किया जा सकता है। कुछ ट्यूमर आस-पास की हड्डियों या झिल्लियों से निकलकर मस्तिष्क कोशिकाओं को दबा कर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे ट्यूमर को भी गामा नाइफ से ठीक किया जा सकता है। यह फंक्शनल न्यूरोसर्जरी कहलाती है जिसमें कि मस्तिष्क की एम.आर. आई. सामान्य होती है, लेकिन मरीज को काफी तकलीफ होती है। ऐसे रोगियों के मस्तिष्क का छोटा आपरेशन करने से फायदा पहुंचता है।
कुछ लोगों के मस्तिष्क में जन्मजात नसों के गुच्छे होते हैं। ये गुच्छे धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं और मस्तिष्क के हिस्सों को क्षति पहुंचाते हैं। इन्हें भी गामा नाइफ द्वारा पूरी तरह से काटा जा सकता है। इसके अलावा मस्तिष्क के अंदर कुछ ऐसे हिस्से भी होते हैं जिनका इलाज परम्परागत रूप से संभव नहीं है, परंतु गामा नाइफ द्वारा इनका इलाज सफलता पूर्वक किया जा सकता है।
कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जिनमें मस्तिष्क के अंदर कोई खराबी नहीं होती, परंतु मस्तिष्क के किसी खास हिस्से का आपरेशन करने से रोगी को फायदा पहुंचता है। मिसाल के तौर पर कैंसर के रोगियों को तेज दर्द होता है, पार्किन्सन के रोगी के हाथ हिलते रहते हेैं, मिर्गी के रोगी को झटके आते हैं, लेकिन इनके मस्तिष्क का आपरेशन करने से इन्हें फायदा होता है। पहले ऐसे रोगियों के आपरेशन मस्तिष्क को खोलकर किए जाते थे, पर अब इनका इलाज गामा नाइफ से संभव है।
हालांकि गामा नाइफ से मस्तिष्क की कई बीमारियां शत-प्रतिशत ठीक हो जाती हैं, लेकिन हर बीमारी को इससे ठीक नहीं किया जा सकता है। गामा नाइफ के कोई दुष्प्रभाव नहीं होते हैं, लेकिन आपरेशन करते समय यह ध्यान रखना जरूरी होता है कि उसके आस-पास मस्तिष्क की कोई स्नायु (नर्व) तो नहीं आ रही हैं, क्योंकि स्नायु, सामान्य मस्तिष्क और ट्यूमर की रेडियेशन संवेदनशीलता में काफी फर्क होता है। मस्तिष्क के कई स्नायु अधिक रेडियेशन बर्दाश्त नहीं कर पाते और ऐसे स्नायु के पास उच्च रेडियेशन देने पर उन्हें क्षति पहुंच सकती है। परम्परागत आपरेशन के दौरान रक्त स्त्राव होने, मस्तिष्क के सामान्य हिस्सों को क्षति पहुंचने, आपरेशन के बाद मस्तिष्क के भीतर ट्यूमर के छूट जाने या ट्यूूमर के साथ-साथ मस्तिष्क के और भी हिस्सों को स्थायी क्षति पहुंचने जैसे कई दुष्प्रभाव होते हैं, लेकिन गामा नाइफ में ऐेसे कोई दुष्प्रभाव नहीं होते हालांकि अब परम्परागत आपरेशन के दौरान माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल शुरू होने के कारण मस्तिष्क में बहुत छोटा सा छेद करके ही गहराई में आपरेशन किया जा सकता है, परंतु इसमें भी ऐसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
गामा नाइफ से आपरेशन करने के दौरान मरीज को बेहोश नहीं करना पड़ता। मरीज की चमड़ी को सुन्न करके मस्तिष्क पर धातु का एक फ्रेम (बैकिलियोफ्रेम) कसा जाता है और इसके ऊपर विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक बाॅक्स लगाए जाते हैं। इसके बाद एम. आर. आई., सिटी स्कैन या ऐजियोग्राम किया जाता है और इन तस्वीरों को कम्प्यूटर में डाल दिया जाता है। इस दौरान मरीज पूरे होश में रहता है। वह बात भी कर सकता है और सब कुछ देख-सुन सकता है। जब कम्प्यूटर के अंदर सारी तस्वीरें पहुंच जाती हैं तो उसका विश्लेषण करके यह पता किया जाता है कि आपरेशन करने के स्थान के आस-पास कोई ऐसी चीज तो नहीं है जिसमें किरणें जाने से उसे क्षति पहुंचे। इन सब को ध्यान में रखकर ही रोगी को रेडियेशन दिया जाता है। इसके लिए रोगी को मात्रा 48 घंटे ही अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है। जिस दिन रोगी को भर्ती किया जाता है, उस दिन उसका सिर्फ निरीक्षण ही किया जाता है और वह आराम करता है। अगले दिन सुबह उसका इलाज शुरू होता है और शाम तक खत्म हो जाता है। इसके बाद रोगी आराम करता है और अगले दिन वह घर जा सकता है। यही नहीं वह उसी दिन से काम पर भी लौट सकता है।
गामा नाइफ से इलाज काफी हद तक एम. आर. आई पर निर्भर करता है। मस्तिष्क में किसी खराबी का पता करने के लिए सबसे विकसित तकनीक एम.आर.आई. ही है। जब एम.आर.आई. में कोई ट्यमूर स्पष्ट और पूरा दिख रहा होता है तो उसे गामा नाइफ से पूरी तरह से ठीक कर दिया जाता है लेकिन पांच-दस प्रतिशत ट्यूमर ऐसे होते हैं जो एम.आर.आई. में पूरा नहीं दिख पाते हैं, उनका कोई किनारा या हिस्सा छूट जाता है तो ऐसी स्थिति में उस हिस्से को सामान्य मान कर ही इलाज किया जाता है और उस पर अधिक तीव्रता का रेडियेशन नहीं दिया जाता है क्योंकि इलाज के दौरान आस-पास के हिस्सों को रेडियेशन से बचाना बहुत जरूरी होता है। ऐसी स्थिति में वहां दोबारा ट्यूमर बनने की संभावना तीन प्रतिशत तक होती है।
मस्तिष्क की बीमारियों के इलाज में नयी तकनीकें साबित हो रही हैं कारगर
~ ~
SEARCH
LATEST
6-latest-65px
POPULAR-desc:Trending now:
-
- Vinod Kumar मस्तिष्क में खून की नसों का गुच्छा बन जाने की स्थिति अत्यंत खतरनाक साबित होती है। यह अक्सर मस्तिष्क रक्त स्राव का कारण बनती ह...
-
विनोद कुमार, हेल्थ रिपोर्टर वैक्सीन की दोनों डोज लगी थी लेकिन कोरोना से बच नहीं पाए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक...
-
INDIAN DOCTORS FOR PEACE AND DEVELOPMENT An international seminar was organised by the Indian Doctors for Peace and Development (IDPD) at ...
-
अत्यधिक प्रतीक्षित इंडो इंटरनेशनल फैशन कार्निवल एंड अवार्ड्स सीजन 2: मिस, मिसेज और मिस्टर स्टार यूनिवर्स ने एक शानदार लोगो लॉन्च इवेंट के सा...
-
The woman in the picture with a smile is Salwa Hussein !! She is a woman without a heart in her body. She is a rare case in the world, as...
Featured Post
Air Pollution Fuels Alarming Rise in Childhood Asthma Cases (On World Asthma Day - 6 May)
- Vinod Kumar, Health Journalist In a month, 3-4 kids, aged 6-10, report symptoms like frequent coughing, breathlessness during play, dis...
