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पेट की बीमारियों का आसान हुआ उपचार

हमारे देश में प्राचीन कहावत है कि पेट नरम, पैर गर्म और सिर ठंडा, डाक्टर आये तो मारे डंडा। लेकिन कई बार पेट को ठंडा तथा हाजमा आदि को दुरूस्त रखने के बावजूद खाने की नली, बड़ी आंत, अमाशय, मलाशय और  ग्रहणी  में अल्सर, पोलिप और कैंसर जैसी जानलेवा स्थितियां उत्पन्न हो जाती है। एक समय पेट की ऐसी समस्याओं को दूर करने के लिये पेट को चीर कर आपरेशन करने की जरूरत पड़ जाती थी लेकिन आज गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल वीडियो इंडोस्कोपी और इंटेस्टाइनल इंडोस्कोपी अल्ट्रासाउंड जैसी नवीनतम तकनीकों की मदद से मरीज को कष्ट दिये बगैर और किसी तरह की चीर-फाड़ किये बगैर इन समस्याओं से कुछ मिनटों से लेकर एक-दो घंटे में मुक्ति दिलायी जा सकती है। 
दूरबीन आधारित इंटेस्टाइनल इंडोस्कोपी तथा इंडोस्कोपी अल्ट्रासाउंड की मदद से खाने की नली, अमाशय और छोटी आंत के अगले हिस्से अर्थात ग्रहणी(ड्यूडोनल) और बड़ी आंत के विभिन्न हिस्सों, अमाशय और मलाशय को न केवल देखा जा सकता है बल्कि इन अंगों में आये किसी विकार को तत्काल दूर किया जा सकता है।
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इंडोस्कोपी के लिये इंडोस्कोप नामक पतली एवं लचीली नली का इस्तेमाल किया जाता है जिसके अगले भाग पर लेंस एवं कैमरे लगे होते हैं। यह  इंडोस्कोप वीडियो माॅनीटर से जुड़ा होता है। इंडोस्कोप का अगला छोर शरीर के जिन भागों एवं अंगों से होकर गुजरता है उसके दृश्य वीडियो मानीटर पर देखे जा सकते हैं। वीडियो मानीटर को कम्प्यूटर से जोड़ कर इन दृश्यों की कई प्रतियां बनायी जा सकती है एवं उनका विश्लेषण किया जा सकता है। 
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इंडोस्कोपी की मदद से पेट दर्द, जी मिचलाने, उल्टी और निगलने में दिक्कत जैसी समस्याओं के सही कारणों का पता लगा कर उनका निदान किया जा सकता है। इसकी मदद से खाने की नली एवं बड़ी आंत तथा ग्रहणी में सूजन, अल्सर, ट्यूमर आदि का पता लगाकर उनका इलाज किया जा सकता है। इससे किसी ऊतक की बायोप्सी ली जा सकती है ताकि इस बात की पुष्टि हो सके कि मरीज को आंत या खाने की नली में कैंसर है या नहीं। यह भी पता लगाया जा सकता है कि पेट में अल्सर पैदा करने वाले जीवाणु हेलीकोबैक्टर पाइलोरी मौजूद हैं या नहीं। साथ ही साइटोलाॅजी संबंधी परीक्षण के लिये भी इंडोस्कोपी की मदद ली जा सकती है। इनके अलावा आंत या खाने की नली में सिकुड़न, पोलिप दूर करने और रक्त स्राव को रोकने के लिये इंडोस्कोप की मदद ली जा सकती है। कई बार बच्चे तेजाब निगल जाते हैं जिससे खाने की नली सिकुड़ जाती है। ऐसी स्थिति में इंडोस्कोपी की  मदद से खाने की नली की सिकुड़न को एक बैलून के जरिये दूर किया जाता है। 
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इंडोस्कोपी का एक और रूप कोलोनस्कोपी है जिसकी मदद से मलद्वार एवं बड़ी आंत की जांच की जा सकती है तथा उनमें उत्पन्न अल्सर या पोलिप को निकाला जा सकता है अथवा अन्य खराबियों को दूर किया जा सकता है। इसके तहत अंगुली जितनी पतली लचीली ट्यूब को मलद्वार के जरिये प्रवेश कराया जाता है तथा उसे सरकाकर उसके सिरे को मलाशय एवं बड़ी आंत तक पहुंचाया जाता है। इसकी मदद से बड़ी आंत एवं मलाशय की जांच की जा सकती है, बायोप्सी ली जा सकती है तथा पोलिप को निकाला जा सकता है। पोलिप बड़ी आंत की भीतरी परत में असामान्य वृद्धि है जो आमतौर पर कैंसररहित  होती है। लेकिन पोलिप की परिणति कोलोरेक्टल  कैंसर के रूप में हो सकती है। इसलिये इसे जल्द से जल्द निकाल देना ही उचित रहता है। इसका आकार एक बिन्दु के बराबर भी हो सकता है और कई इंच का भी हो सकता है। कोलोनस्कोपी की मदद से पोलिप को नष्ट करने की विधि को पोलिपक्टोमी कहा जाता है। इसकी मदद से पोलिप को या तो जला दिया जाता है या स्नेयर नामक वायर लूप या बायोप्सी उपकरण की मदद से पोलिप को निकाल दिया जाता है। इस तकनीक को स्नेयर पोलिपक्टोमी कहा जाता है। 
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इंडोस्कोपी आज आपरेशन एवं लैपरोस्कोपी का सुरक्षित विकल्प बनकर सामने आया है। उन्होंने बताया कि इसने लैपरोस्कोपी की सीमाओं को भी दूर कर दिया है। उदाहरण के तौर पर लैपरोस्कोपी की मदद से पित की थैली निकाली जा सकती है। पित्त की थैली को निकालने के बाद कई बार पित्त की पथरी पित्त की थैली की नली में खिसक जाती है। इससे पीलिया होने का खतरा रहता है और 'की होल' सर्जरी नहीं हो पाती है। ऐसे में विशेष  इंडोस्कोपी के जरिये दूरबीन की मदद से पित्त पथरी भी निकाली जा सकती है। 
इंडोस्कोपी के कारण अब पेट के आपरेशन बहुत सीमित हो गये हैं। कई बार वैसे अल्सर जिनसे रक्त निकल रहा हो आॅपरेशन के जरिये निकालना जरूरी होता है लेकिन अब दूरबीन की मदद से अल्सर तक पहुंचकर इंजेक्शन की मदद से उसे ठीक कर दिया जाता है। कई बार पेट की सर्जरी संभव नहीं होती है खास कर आंत या खाने की नली में कैंसर होने पर। लेकिन इंडोस्कोपी से मरीज के जीवन को लंबा किया जा सकता है। इस कैंसर में खाने की नली अवरूद्ध हो जाती है जिससे मरीज खाना भी नहीं खा पाता है। इंडोस्कोपी की मदद से खाने की नली में विशेष स्टंट डाल दिया जाता है। इंडोस्कोपी के लिये मरीज को बेहोश करने अथवा अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ती है। इसमें आपरेशन की तरह का कोई खतरा नहीं है। इसे करते समय मरीज को थोड़ी बेचैनी एवं असुविधा होती है, लेकिन मरीज इसे सहन कर सकता है। 


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