फास्ट ट्रैक नी रिप्लेसमेंट सर्जरी से घुटना प्रत्यारोपण के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन : डा. अभिषेक वैश्य

 



आर्थराइटिस का सबसे व्यापक रूप ऑस्टियोआर्थराइटिस है जो भारत में विकलांगता का प्रमुख कारण है और जिससे भारत में हर साल डेढ़ करोड़ से अधिक भारतीय प्रभावित होते हैं। इस समस्या के कारण अगले 10 वर्षों में, भारत में दुनिया में सबसे अधिक ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी होगी। लगभग 20 साल पहले, ऑस्टियोआर्थराइटिस बुजुर्गों की बीमारी के रूप में जानी जाती थी और इससे 65 साल से अधिक उम्र के लोग ही प्रभावित होते थे। हालांकि, हड्डी रोग विषेशज्ञ अब 45 से 55 वर्ष के युवा लोगों में भी ऑस्टियोआर्थराइटिस का निदान कर रहे हैं।
नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो हास्पीटल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन डा. अभिषेक वैश्य बताया, ''दुनिया भर में और भारत में आर्थराइटिस के मामले बढ़ने के कई कारण है जिनमें मोटापा का बढ़ना, आरामतलब जीवनशैली, अस्वास्थ्यकर और जंक फूड का सेवन और विटामिन डी की कमी शामिल हैं। आर्थराइटिस के बारे में जागरूकता कायम करना महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे समय पर कार्य करने में मदद मिल सकती है, क्योंकि शुरुआती अवस्था में पहचान हो जाने पर बेहतर उपचार संभव होता है।'' 
उन्होंने  कहा, ''इसके उपचार विकल्प गठिया के प्रकार के आधार पर भिन्न होते हैं और आर्थराइटिस के गंभीर मामलों में फिलिकल थिरेपी, जीवनशैली में परिवर्तन (व्यायाम और वजन नियंत्रित करना), ऑर्थोपेडिक ब्रेसिंग, और दवाओं को भी शामिल किया जाता है। आर्थराइटिस के बहुत अधिक बढ़ जाने पर सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। पिछले कुछ समय के दौरान भारत में नी रिप्लेसमेंट सर्जरी के परिदृश्य में क्रांतिकारी बदलाव आया है। यहां काफी संख्या में युवा और सक्रिय लोग घुटने की समस्याओं से पीड़ित हो रहे हैं और उनमें नी रिप्लेसमेंट कराने की जरूरत पड़ती है।


डा. अभिषेक वैश्य ने बताया कि फास्ट ट्रैक सर्जरी टोटल नी रिप्लेसमेंट में बहुआयामी दृष्टिकोण को अपनाया जाता है, जिसके तहत नी रिप्लेसमेंट से संबंधित जटिलताओं की संभावनाओं को कम करने और रोगी की तेजी से और बेहतर रिकवरी के लिए जितनी जल्दी संभव हो सके रोगी को अपने पैरों पर चलाया जाता है। यह तकनीक रोगी के अनुकूल सर्जिकल तकनीक के क्षेत्र में बहुत आवश्यक अंतर को कम करती है और इस तकनीक से सर्जरी होने पर सर्जरी के बाद रोगी लगभग दर्द रहित जीवन जीने में सक्षम होता है। 
डॉ. वैश्य ने कहा कि इस तकनीक से नी रिप्लेसमेंट सर्जरी कराने वाले अधिकतर रोगी सर्जरी के 4 से 5 घंटे के भीतर ही अपना पहला कदम उठा सकते हैं।
उन्होंने बताया कि 45-60 साल के लोगों में नी रिप्लेसमेंट कराने की मांग पिछले दो से तीन वर्षों में तीन गुना हो गई है। उन्होंने बताया कि परंपरागत नी रिप्लेसमेंट के बाद रोगी 48 घंटे के बाद खड़ा होने और चलने में सक्षम होता है और सर्जरी के बाद उसे अस्पताल में 8 -10 दिनों तक रहना पड़ता है जबकि इस नई तकनीक से सर्जरी कराने पर रोगी सर्जरी के 2-3 घंटे बाद ही खड़ा हो सकता है और चल सकता है और सर्जरी के बाद उसे अस्पताल में लगभग 5- 6 दिन ही रहना पड़ता है। 
'फास्ट ट्रैक सर्जरी' के तहत मुख्य फोकस ऑपरेशन से पहले काउंसलिंग, आपरेशन से पहले और आपरेशन के समय दर्द का प्रबंधन, मुलायम-ऊतक के अनुकूल सर्जिकल तकनीक, रक्त के नुकसान को कम करने की रणनीतियां, हाय-फ्लेक्सियन नी इम्प्लांट, आपरेषन के बाद दर्द के प्रबंधन के लिए शून्य सहनशीलता और प्रभावी फिजियोथेरेपी पर दिया जाता है।
डा. वैश्य के अनुसार फास्ट ट्रैक नी रिप्लेसमेंट की प्रक्रिया आउटपेषेंट प्रक्रिया के रूप में सभी जांच और प्री एनेस्थेटिक चेक-अप करके शुरू की जाती है। रोगी सर्जरी से सिर्फ एक रात पहले अस्पताल में भर्ती होता है। सर्जरी सिंगल षाॅट स्पाइनल एनीस्थिसिया से शुरू की जाती है जो स्पाइनल एनीस्थिसिया की अवधि को कम करती है और रोगी अपने पैर की शक्ति को दो से तीन घंटे के भीतर वापस पा लेता है। सर्जरी के दौरान कोई टूरनिकेट का उपयोग नहीं किया जाता है और इसलिए इसमें एनोक्सिक और दर्द पैदा करने वाले मेटाबोलाइट्स (जो टूरिनिकेट रिलीज के बाद होता है) नहीं होते हैं। इसके कारण सर्जरी के बाद दर्द कम होता है।



इस क्रांतिकारी तकनीक की मुख्य विशेषताएं हैं
1. रोगी सर्जरी के दिन ही सर्जरी के कुछ घंटों के भीतर ही चलना शुरू कर देता है।
2. इसमें छोट चीरा लगाया जाता है, मसल स्पेयरिंग आपरेटिव विधि का इस्तेमाल किया जाता है, पेरीआर्टिक्युलर इंजेक्शन लगाये जाते हैं, एपिडुरल एनाल्जेसिया का उपयोग किया जाता है, ये सभी प्रक्रिया आपरेशन के बाद प्रारंभिक अवधि में दर्द से राहत प्रदान करती है।
3. सर्जरी के बाद केवल 5-6 दिनों में ही घर के लिए डिस्चार्ज कर दिया जाता है। 
4. एक विशेषज्ञ चिकित्सक के द्वारा दो- तीन सप्ताह तक घर पर ही मिनिमल, अत्यंत प्रभावी और पूरी तरह से दर्द और परेशानी मुक्त फिलिकल थेरेपी की सुविधा प्रदान की जाती है।
5. सर्जरी के बाद 2 से 3 सप्ताह के भीतर ही रोगी अपनी दैनिक गतिविधियां और रोजमर्रा के कार्यों को करने लगता है।