हवाओं में घुल रहे पॉल्युशन का जहर न केवल फेफड़े, हृदय एवं रक्त संचार प्रणाली को ही नुकसान पहुंचा रहा है है बल्कि पॉल्युशन के कारण हमारी हड्डियां भी कमजोर हो रही है।
नौएडा स्थित फोर्टिस हास्पीटल के आर्थोपेडिक्स विभाग के प्रमुख डा. अतुल मिश्रा बताते हैं कि अनेक स्वतंत्र अध्ययनों में पाया गया है कि वायु प्रदूषण के कारण हमारी सख्त हड्डियों पर भी प्रभाव पड़ता है और जिसके कारण ऑस्टियोपोरोसिस हो सकती है।
डा. मिश्रा के अनुसार नवीनतम शोधों से यह साबित हो चुका है कि वायु प्रदूषण सिस्टेमिक के साथ- साथ टिशू-स्पेशिफिक इंफ्लामेशन को बढ़ाता है। रह्युमेटिक आर्थराइटिस और क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज जैसी क्रोनिक इंफ्लामेट्री बीमारियां बोन मैरो डेंसिटी (बीएमडी) को कम करती हैं, जिससे बोन मैरो से काफी संख्या में प्रतिरक्षा कोशिकाएं निकलने लगती हैं। कई अध्ययनों से पता चला है कि सामान्य प्रदूषण में सीओ और एनओ 2 के कारण लोगों में ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। हाल के वर्षों में किये गये कुछ अध्ययनों से पता चला है कि वायु प्रदूषण न केवल श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है, बल्कि अन्य प्रणालियों पर भी इसका स्थायी प्रभाव पड़ सकता है। वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने पर हृदय रोग का भी खतरा बढ़ जाता है।
हाल के दिनों में वायु प्रदूषण के बढ़ते संकट ने भारत में बड़े पैमाने पर नीति निर्माताओं और अदालतों के साथ-साथ सामान्य जनता का ध्यान आकर्षित किया है। प्रदूषण और स्वास्थ्य पर लैंसेट आयोग की ओर से 19 अक्तूबर को जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों में सबसे अधिक मौत भारत में होती हैं। प्रदूषण के कारण 2015 में दुनिया भर में कुल 90 लाख मौतें हुईं जिनमें से 25 लाख मौतें सिर्फ भारत में हुईं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि भारत और बांग्लादेश में प्रदूषण से संबंधित मौतों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। इन मौतों का मुख्य कारण प्रदूषित हवा है। हाल के सालों में अस्थमा, सीओपीडी, ब्रोंकाइटिस जैसी श्वसन से संबंधित बीमारियों और यहां तक कि फेफड़ों के कैंसर के बढ़ते मामलों का कारण भी रसायनों से भरे प्रदूषित हवा के लगातार संपर्क में रहना माना जा रहा है। यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि जो वायु प्रदूषण फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है, उसका हड्डियों के स्वास्थ्य पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार प्रदूषित वायु के संपर्क में कम समय तक रहने पर भी बुजुर्ग या पहले से बीमार लोगों जैसे कमजोर लोगों में दिल का दौरा, स्ट्रोक, एरीथमिया और हार्ट फेल्योर होने का खतरा बढ़ जाता है।
आर्थराइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा
कई अध्ययनों से यह पता चला है कि वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने पर सिस्टेमिक इंफ्लामेशन और रह्युमेटाॅयड आर्थराइटिस जैसे क्रोनिक इंफ्लामेट्री रोग हो सकते हैं। इसके अलावा, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में किये गये स्वतंत्र अध्ययनों में भी वायु प्रदूषण और बोन मिनरल की निरंतर क्षति के बीच संबंध पाया गया है, जिसकी परिणति ऑस्टियोपोरोसिस के रूप में होती है।
इंटरनेशनल ऑस्टियोपोरोसिस फाउंडेशन द्वारा जारी तथ्यों के अनुसार, ऑस्टियोपोरोसिस दुनिया भर में 89 लाख से अधिक फ्रैक्चर का कारण बनता है। इस प्रकार हर तीन सेकंड में ऑस्टियोपोरोसिस के कारण एक फ्रैक्चर होता है। 50 वर्ष से अधिक उम्र की तीन में से एक महिला, जबकि 50 वर्ष से अधिक उम्र के पांच में से एक पुरुष में ऑस्टियोपोरोसिस के कारण फ्रैक्चर होने की संभावना होती है।
ऑस्टियोपोरोसिस या ब्रिटल बोन डिजीज से दुनिया भर में 20 करोड़ महिलाओं के पीड़ित होने का अनुमान है। कशेरुकाओं (वर्टिब्री) में हड्डियों के द्रव्यमान में 10 प्रतिशत क्षति होने पर कशेरुकाओं में फ्रैक्चर होने का खतरा दोगुना हो सकता है, और इसी तरह, कूल्हे में हड्डियों के द्रव्यमान में 10 प्रतिशत क्षति होने पर हिप फ्रैक्चर होने का खतरा ढाई गुना बढ़ सकता है। आंकड़ों से पता चलता है कि ऑस्टियोपोरोसिस दुनिया भर में बड़े पैमाने पर व्याप्त एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है। क्लिनिकल साक्ष्यों से पता चलता है कि भारत में ऑस्टियोपोरोसिस का प्रकोप काफी अधिक है। वास्तव में, पिछले दो दशकों में, हड्डियों को भंगुर करने वाली बीमारी - ओस्टियोपेनिया और ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित होने वाले लोगों की औसत आयु में गिरावट देखी गई है।
डा. अतुल मिश्रा के अनुसार वायु प्रदूषण कई तरह से हड्डियों को प्रभावित करता है। हम अच्छी तरह से जानते हैं कि धूम्रपान शरीर में सीधे तौर पर सिस्टेमिक नुकसान को प्रेरित करता है जो हड्डियों के खनिजों के अवशोषण को प्रभावित करता है और जिसके कारण अस्थि घनत्व कम हो जाता है।
इसके अलावा, क्रोनिक आॅब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) वाले रोगियों में ऑस्टियोपेनिया और ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा अधिक होता है। ऐसा माना जाता है कि वायु प्रदूषण शरीर में तम्बाकू के धुएँ जैसे परिवर्तन को प्रेरित करता है, लेकिन साथ ही यह क्रोनिक आॅब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज भी पैदा करता है जो फेफड़ों के कार्य को प्रभावित करता है। फेफड़े के कार्य के प्रभावित होने पर सिस्टेमिक इंफ्लामेशन का स्तर बढ़ जाता हैै जो ऑस्टियोपोरोसिस के लिए एक और जोखिम कारक है।
विभिन्न शोधों से यह भी पता चला है कि पर्यावरण में मौजूद प्रदूषक कण पराबैंगनी विकिरण को पृथ्वी की सतह तक पहुंचने में बाधा डालते हैं। लेकिन, मानव शरीर में विटामिन डी का संश्लेषण तब होता है जब त्वचा पराबैंगनी (यूवी) विकिरण के संपर्क में होती है। विटामिन डी रक्त में कैल्शियम के स्तर को नियंत्रित करती है और हड्डियों, मांसपेशियों और दांतों के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करती है, साथ ही सामान्य स्वास्थ्य के अन्य पहलुओं को भी विनियमित करती है। जब मानव शरीर पर्याप्त यूवी विकिरण के संपर्क में नहीं होता है, तो शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाती है। इस कमी के कारण शरीर पर्याप्त कैल्शियम को अवशोषित करने में अक्षम हो जाता है और बोन मिनरल डेंसिटी कम हो जाती है।
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