अगर आपका लाडला दिन भर चिप्स और पाॅपकार्न के पैकेट लेकर टेलीविजन के सामने बैठा रहता है तो सावधान हो जाइये, क्योंकि आपका बच्चा बचपन में ही मोटापे का शिकार हो सकता है।
शोधकर्ताओं के अनुसार शारीरिक उद्यम किए बगैर बैठे-बैठे कुछ न कुछ खाते रहने की आदत के कारण ब्रिटेन में तीन वर्ष के बच्चे भी मोटापा के शिकार हो रहे हैं। ब्रिटेन में तीन वर्ष के बच्चों पर किए गए शोधों में पाया गया है कि बच्चों के निष्क्रिय रहने के कारण इनके अधिक वजन एवं मोटापे के शिकार होने का खतरा होता है।
द लैंसेट मेडिकल जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार जब इन बच्चों पर दोबारा पांच वर्ष की आयु में परीक्षण किया गया तब भी समान नतीजे निकले। विशेषज्ञों के अनुसार तीन वर्ष के बच्चांे को अपने उम्र के हिसाब से दिन भर में कम से कम एक घंटे की सामान्य से कड़ी मेहनत के कामों में व्यस्त होने चाहिए। परन्तु स्काॅटलैंड में किये गये परीक्षणों के दौरान तीन वर्ष की उम्र के 78 स्काॅटिश बच्चों को मुश्किल से 20.25 मिनट तक ही क्रियाशील देखा गया। वैज्ञानिकों के अनुसार बच्चों की आरामतलब जीवन शैली उनमें मोटापे के खतरे को बढ़ा देती है।
शोधकर्ताओं की टीम के प्रमुख ग्लास्गाओं विश्वविद्यालय के डाॅ. जाॅन रीले कहते हैं, 'हमने शाारीरिक क्रियाशीलता के बारे में की गई अनुसंशाओं के संबंध में वस्तुगत प्रमाण भी उपलब्ध कराए हैं परन्तु ज्यादातर युवा इन अनुसंशाओं पर खरे नहीं उतरते।'
ज्यादातर बाल विशेषज्ञों का मानना है कि छोटे बच्चे स्वतः ही क्रियाशील होते हैं। वैज्ञानिकों ने बताया कि आज पांच और उससे कम उम्र के बच्चों के लिए उनकी रूचि के टेलीविजन कार्यक्रमों की भरमार है जो उनके माता-पिता या दादा-दादी के समय में नहीं थे। टेलीविजन देखने के दौरान इन बच्चों को मोटापा बढ़ाने वाले आहार, खाद्य पदार्थों, मिठाइयों और भिन्न प्रकार के पेय पदार्थों के विज्ञापनों से भी ललचाया जाता है।
इंटरनेशनल ओबेसिटी टास्क फोर्स के नेविल रिग्वी कहते हैं, ' अधिकतर बच्चे टेलीविजन देखते हैं और कम्प्यूटर एवं इलेक्ट्राॅनिक गेम खेलते हैं। बच्चों को रंगीन और ऐनिमेटिंग चीजें लुभाती हैं इसलिए वे टेलीविजन से चिपके रहते हैं और वे जितना ज्यादा टेलीविजन देखेंगे, उनका खाने के प्रति उतना ही अधिक झुकाव होगा। बच्चे जंक फूड के बहुत विज्ञापन देखते हैं। इस तरह बच्चों को कम उम्र में ही मोटापा बढ़ाने वाले शर्करा युक्त भोजन के उपभोक्ता के रूप में तैयार किया जा रहा है। अभिभावक भी कई बार बच्चों की जिद्द के आगे झुकते हुये बच्चों के लिये अहितकारी कदम उठाते हैं। ज्यादातर माता-पिता यह मानते हैं कि चंचल या शैतान बच्चे से छुटकारा पाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उसे टेलीविजन के सामने बैठा कर चिप्स का एक बड़ा पैकेट पकड़ा दिया जाये। लेकिन यह सोचना गलत है।'
डा. रिग्वी कहते हैं कि बच्चों को घर से बाहर जाकर खेलना-कूदना पसंद होता है और उन्हें इसका मौका दिया जाना चाहिए। उन्हें सक्रिय जीवन का पूरा आनंद उठाने दिया जाना चाहिए। डाॅ. रीले की टीम ने बच्चों की शारीरिक गतिविधियों के स्तर पर उनकी ऊर्जा खपत या टोटल एनर्जी एक्सपेंडीचर (टीईई) को मापा। मापी गई औसत टीईई खर्च की जाने वाली टीईई से 200 कैलोरी कम थी। परीक्षण में शामिल किए गए बच्चों के समूह में से 72 बच्चों का पांच वर्ष की आयु में भी परीक्षण किया गया।
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