आज की भाग-दौड़ की जिंदगी में लगभग 11 फीसदी माताएँ अपने शिशुओं को बोतल से दूध पिलाने की आदत डाल देती हैं। शहरों में कामकाजी महिलाएँ और व्यस्त गृहिणियाँ अपनी सुविधा की दृष्टि से अपने बच्चों को बोतल से ही दूध पिलाना ज्यादा उपयुक्त समझती हैं। अब उनके पास गोद में लिटाकर चम्मच या सितुए से दूध पिलाने के लिए समय और धैर्य कहाँ? उधर बच्चा भी आराम से बोतल से दूध पी लेता है, क्योंकि वह तो बोतल का आदी हो चुका है और चूसने की प्रक्रिया में उसे एक खास तरह का आनन्द भी मिलता है। कुछ दशक पूर्व काँच की बोतल हुआ करती थी, जिसके बार-बार टूटने की वजह से लोग जल्दी ही बच्चों को चम्मच से दूध पिलाने की आदत डाल देते थे। अब प्लास्टिक के स्टरलाइज बोतलों के प्रचलन से दो-तीन साल तक लोग एक ही बोतल का प्रयोग करते रहते हैं, जो बहुत ही नुकसानदायक होता है।
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक
बच्चों को बोतल से दूध पिलाने पर उनके शरीर पर गहरा और हानिकारक प्रभाव पड़ता है। कभी भी बच्चे को लिटाकर बोतल से दूध नहीं पिलाना चाहिए। इससे उनके कान में दूध जाने की संभावना रहती है, जिसकी वजह से कान का बहना शुरू हो जाता है।
कई बार माताएँ सोते हुए बच्चे के मुँह में बोतल लगा देती हैं। इससे कभी-कभी गले की नली में ही दूध की कुछ मात्रा रह जाती है, जिससे बच्चे को साँस लेने में कठिनाई होती है और उसके फेफड़ों में निमोनिया जैसी भयंकर बीमारी भी हो सकती है इसके अलावा बोतल से दूध पीनेवाले बच्चों में पेट के संक्रमण की कई बीमारियाँ, जैसेµडायरिया, दस्त आदि होते रहते हैं।
लगातार दूध पीनेवाले बच्चे चबानेवाली चीजें ज्यादा नहीं खाते, क्योंकि उन्हें चूसने की अपेक्षा चबाना अधिक कष्टदायक लगता है। नतीजा यह होता है कि उनको कब्ज की शिकायत हो जाती है। अगर बच्चे की जल्दी ही बोतल छुड़वा दी जाए तो उसका एक फायदा यह भी होता है कि उसे समय से सब कुछ खाने की आदत पड़ जाती है। उचित मात्रा में आहार लेने की वजह से उसका शारीरिक विकास भी उचित रूप से होता है।
बोतल से बचें
जहाँ तक हो सके बच्चों को जन्म के बाद से ही बोतल की आदत न डाली जाए तो बेहतर है। अगर शुरू से ही चम्मच से दूध पिलाने की आदत डाली गयी तो ऐसा बच्चा ग्लास से दूध जल्दी ही पीने लगेगा। किसी कारणवश बोतल से दूध पिलाना ही पड़ जाए तो छह महीने से ज्यादा नहीं पिलाना चाहिए। कई बार लोग तीन-चार वर्ष तक बच्चों को बोतल से दूध पिलाते रहते हैं और जब छुड़ाना चाहते हैं तो कई तरह की परेशानियों से घिर जाते हैं। मसलन बच्चा ग्लास से दूध नहीं पीता, खाना नहीं खाता। जिसकी वजह से वह दुबला और चिड़चिड़ा हो जाता है, उसकी नींद भी पूरी नहीं होती।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार 'चूसने की प्रक्रिया' में एक विशेष तरह का आनन्द मिलता है। देखा गया है कि देर से बोतल छोड़नेवाले बच्चों में आगे चलकर अंगूठा चूसने की आदत पड़ जाती है। ऐसे ही कुछ बच्चे अंतर्मुखी भी हो जाते हैं। माताएँ बोतल दे कर निश्चिंत हो जाती हैं और बच्चे को ज्यादा समय नहीं दे पातीं, जिसकी वजह से इन बच्चों का माँ के साथ गहरा और अच्छा संबंध नहीं हो पाता।
लंबे समय तक बोतल से दूध पीनेवाले बच्चों में बड़े होने पर सिगरेट, बीड़ी, पीने, शराब पीने, तंबाकू चबाने और च्युंगम चबाने की बुरी आदत पड़ जाती है।
जब भी बच्चे को बोतल से दूध पिलाना पड़े, कुछ बातों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए। पहली बात तो कभी भी बिस्तर पर लिटाकर बच्चे के मुँह में बोतल नहीं डालें, हमेशा गोद में लिटाकर दूध पिलायें। दिन में जितनी बार दूध पिलायें उतनी ही बार बोतल को उबालकर स्टरलाइज कीजिए और हर तीन महीने के बाद बोतल बदलें, अन्यथा संक्रमण होने की संभावना बन जाएगी।
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