— भांग (कैनबिस) से बनने वाली दवाइयां पुरानी बीमारियों के मरीजों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले, सस्ता इलाज प्रदान करती हैं।
— देश में बनने वाली दवाइयांें के उत्पादन और खपत को मुख्यधारा में लाने के रास्ते में कई चुनौतियां मौजूद हैं।
— भांग के पौधे भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा होने के बावजूद गलत धारणाओं का शिकार हैं।
— विशेषज्ञों ने एनडीपीएस अधिनियम में व्यापक संशोधन किए जाने की अपील की।
पिछले कुछ वर्षों में, भांग (कैनबिस) ने विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियों में अपनी प्रभावकारिता के कारण पश्चिमी देशों में चिकित्सा की मुख्यधारा में अपना स्थान बनाया है लेकिन भारत में मरीजों को अभी भी भांग से बनने वाली दवाइयांे के लाभ से वंचित होना पड़ रहा है जबकि हमारे देश में विभिन्न बीमारियों के इलाज में इस आश्चर्यजनक पौधे के गुणों के उपयोग की हजारों वर्षं पुरानी परंपरा रही है।
भारत में कनाडा और नीदरलैंड जैसे देशों की तर्ज पर भांग से व्युत्पन्न औषधीय उत्पादों की नई श्रेणियों को स्थापित करने के लिए अपनी कानूनी नियामक प्रणाली में बदलाव किए जाने तथा भांग और इसके उप-उत्पादों की व्याख्या और परिभाषा को विस्तारित किए जाने की जरूरत है ताकि भांग से बनने वाली दवाइयां अधिक व्यापक रूप से उपलब्ध हों। बॉम्बे हेम्प कंपनी (बोहेको), वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और भारतीय एकीकृत चिकित्सा संस्थान (आईआईआईएम) की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित “भारत में भांग अनुसंधान एवं विकास: वैज्ञानिक, चिकित्सा और कानूनी परिप्रेक्ष्य“ विशयक सम्मेलन में विशेषज्ञों ने यह अपील की।
बॉम्बे हेम्प कंपनी के सह-संस्थापक जहान पेस्टन जैमास ने कहा, “भारत में क्रोनिक बीमारियां बढ़ रही हैं, और मौजूदा चिकित्सा समाधान पर्याप्त साबित नहीं हो रहे हैं। इस परिदृश्य में, भांग से बनने वाली दवाइयां शहरी और ग्रामीण भारत में मरीजों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले, सस्ता समाधान उपलब्ध करा सकती हैं। सन् 2020-2025 तक भारत की वृद्ध आबादी के 100 मिलियन होने का अनुमान है। दुर्भाग्यवश, बुजुर्गों को प्रभावित करने वाली कई महत्वपूर्ण बीमारियों के इलाज के लिए अन्य तरह की दवाइयों पर अनुसंधान विकास बहुत कम हो रहा है। भांग में मानव शरीर के भीतर सीबी 1 और सीबी 2 रिसेप्टर्स के साथ जुड़ने के गुण होते हैं। मानसिक विकारों, रह्युमेटिज्म, ओस्टियो-आधारित बीमारियों और हृदय रोगों जैसी स्वास्थ्य समस्याओं को काफी हद तक भांग के उपयोग की मदद से कम किया जा सकता है। भांग के लगभग नगण्य दुश्प्रभाव होते हैं, जैसा कि वैश्विक नियामक और कई शोध कार्यों से पता चलता है।''
भांग से बनने वाली आधुनिक दवाइयों की भारत मंे नाममात्र उपस्थिति क्यों है, इस बारे में बॉम्बे हेम्प कंपनी के अनुसंधान और विकास निदेशक अवनीश पांड्या ने कहा, “कोई भी दवा चिकित्सकीय रूप से प्रभावी तभी होगी जब मरीज को उसकी मानक, स्थिर और अनुमानित खुराक दी जाएगी। भारत में, भांग के फूलों के शीर्ष से प्राप्त मानक कैनाबीनोइड आउटपुट वाले मानकीकृत भांग पौधों की कमी है ताकि लगातार मानक औषधि प्राप्त होती रहे। भांग और इसके अलग यौगिकों पर नैदानिक परीक्षणों की भी कमी है। आयुर्वेदिक दवाओं के विपरीत, उनकी अनुमानिकता के कारण नैदानिक परीक्षण एकल अणु यौगिकों पर आधारित होते हैं जो दवा के प्रति बहु-यौगिक, बहुमुखी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए, या तो भांग को नैदानिक परीक्षणों के मार्ग पर चलना पड़ता है, या नैदानिक परीक्षणों को बहु-यौगिक, जटिल फॉर्मूलेशन के अनुसार समायोजित करना पड़ता है। टीएचसी (मनोचिकित्सकीय यौगिकों) को छोड़कर कैनाबीनोइड पर नियामक स्पष्टता की कमी है। साथ ही साथ 1985 से ही भांग की खपत को लेकर सामाजिक - सांस्कृतिक भ्रांति जुड़ी हुई है। इन कारणों से भारतीय बाजार में भांग आधारित दवाओं की कमी है।“
निमहांस के सेंटर फॉर एडिक्शन मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. विवेक बेनेगल ने कहा, “हालांकि भांग एक मनोचिकित्सकीय दवा है और यह नशा पैदा करती है लेकिन तंबाकू, अल्कोहल, हेरोइन, कोकीन इत्यादि की तुलना में इसमें नषे की लत पैदा करने की क्षमता कम होती है। वास्तव में, भांग के पौधे और सामान्य रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले इसके अन्य रूपों जैसे गांजा, अफीम, चरस आदि में कई ऐसे रसायन मौजूद होते हैं जो मनोचिकित्सकीय नहीं होते हैं, और इनमें टीएचसी (मुख्य रसायन जो नशा और लत के कारण बनते हैं)ं के विपरीत प्रतिक्रियाएं देखी जाती है। ऐसा एक रसायन कैनाबीडियोल है जो चिकित्सा और औशधीय क्षमताओं के कारण वैज्ञानिक समुदाय में अपने प्रति रूचि पैदा कर रहा है। यह देखा गया है कि भांग का नषा करने वालों में टीएचसी की नशे की लत कम होती है। यह दिलचस्प है क्योंकि वर्तमान में भांग पर निर्भर हो जाने वाले लोगों के लिए कोई लाइसेंस प्राप्त उपचार नहीं है। कुछ प्रारंभिक अध्ययनों से हेरोइन, अल्कोहल और यहां तक कि तंबाकू जैसे ओपियोड के आदी व्यक्तियों पर कैनाबीडियोल के फायदेमंद प्रभावों की खोज हुई है। नशे की लत जैसे विकारों के इलाज में यह रसायन उपयोगी हो सकता है। लेकिन इससे पहले, इस अणु का कड़ा वैज्ञानिक परीक्षण किया जाना चाहिए। भारत में मौजूदा कानून, विशेष रूप से एनडीपीएस अधिनियम के कारण ऐसा होना मुष्किल है, क्योंकि भांग को मौजूदा समय में संदेह की नजर से देखा जाता है।''
एनडीपीएस मामलों के विशेषज्ञ उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील प्रसन्ना नंबूदिरी ने कहा, “एनडीपीएस अधिनियम, 1985 की धारा 10 (2) (डी) के तहत जो रोक है, उसके अनुसार भांग की पैदावार करने वालों को राज्य सरकार के अधिकारियों के यहां भांग को जमा कराना होता है और यह चिकित्सकीय एवं वैज्ञानिक उद्देश्य के लिए भांग के पौधों की पैदावार करने की दिशा में एक बड़ी बाधा है। भांग की खेती करने के संबंध में एनडीपीएस नियम बनाने के मामले में अनेक राज्य सरकारों की विफलता भी एक बड़ी रूकावट है। उगाई गई ऐसी भांग को राज्य सरकार निजी निकायों को दोबारा बेच नहीं सकती है। इसके कारण, दवाइयों के रूप में उपयोग के लिए कैनाबीनोइड के निष्कर्षण में निजी संस्थाओं की कोई भूमिका नहीं रह जाती है। चिकित्सा लाभ के लिए भांग की पैदावार के बाद के कार्यों के लिए निजी संस्थाओं की भागीदारी के लिए एनडीपीएस अधिनियम में व्यापक संशोधन किए जाने की आवश्यकता होगी। इसके लिए दवाइयों के रूप में उपयोग के लिए कैनाबीनोइड के निश्कर्शण तथा भांग की पैदावार को नियंत्रित, अनुमोदित तथा विनियमित करने के अधिकर का स्थानांतरण राज्य सरकारों से केन्द्र सरकार को होना चाहिए, ठीक उसी तरह से जैसा कि बिना रस निकाले गए खसखस के पुवाल के मामले में हुआ।''
विशेषज्ञों ने बताया कि भारत की तुलना में पष्चिमी देश भांग आधारित दवाओं के अनुसंधान विकास के मामले में बहुत आगे हैं। बॉम्बे हेम्प कंपनी के सह-संस्थापक जहान पेस्टन जैमास ने कहा, ''कनाडा और अमरीका में, नियमन ढांचे के भीतर ही हमेषा ही दुर्लभ बीमारियों या खतरे का सामना करने वाले मरीजों के उपयोगार्थ नई दवाइयों के परीक्षण, प्रयोग एवं उपयोग के लिए भांग आधारित दवाओं के अलग-अलग माध्यम होते हैं। हाल में ही, एफडीए ने भांग आधारित दवा एपिडियोलेक्स को अनुसूची वी औशधि (दुरूपयोग की सीमित संभावना) के रूप में वर्गीकृत किया। इसने शोध और चिकित्सा अनुप्रयोगों के लिए सिंथेटिक कैनाबीनोइड (नाबिलोन, ड्रेनबिनोल) युक्त दो दवाओं को भी मंजूरी दी। कनाडा की सरकार ने मेडिकल मारिजुआना एक्सेस प्रोग्राम बनाया है जिसके तहत मरीज अपने चिकित्सक से प्रमाणपत्र प्राप्त कर सकेंगे तथा विभिन्न प्रकार के मानक एवं उच्च गुणवत्ता के भांग हासिल कर सकेंगे। वर्श 2005 से, कैंसर से होने वाले दर्द से ग्रस्त मरीजों को पौधा आधारित कैनाबिस दवा (सटिवेक्स) उपलब्ध कराई जा रही है। जून 2018 के बाद से, अकेले कनाडा में 330,000 पंजीकृत चिकित्सकीय कैनाबीस ग्राहक और मरीज़ हैं। भारत को ऐसे देशों से भांग के पौधों की मानक खेती से लेकर उत्पाद विकास और मरीजों के लिए इसे सुगम बनाने के कार्यक्रम तक बहुत कुछ सीखना है।
सम्मेलन में बोलते हुए, विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में भांग आधारित दवाओं के मामले में पश्चिमी देशों के स्तर तक पहुंचने के लिए तीन महत्वपूर्ण पहलुओं की कमी है। इनमें अनुमानित आउटपुट वाले मानक भांग किस्मों या उपभेदों की अनुपलब्धता, मानक सामग्रियों की कमी के कारण भांग के संबंध में नगण्य नैदानिक शोध; मानक भांग किस्मों से मानक उत्पाद विकास का अभाव षामिल है। विषेशज्ञों ने भारत सरकार से भांग पारिस्थितिक प्रणाली के पौधे प्रजनन पक्ष के लिए मदद प्रदान करने की अपील की क्योंकि भारत में 1985 से ही मानक भांग की पैदावार नहीं हुई है।
पैनलिस्टों ने भांग से बनने वाले औषधीय उत्पादों से संबंधित कई मिथकों का जिक्र किया। इन मिथकों में एक मिथक यह है कि सिंथेटिक कैनाबीनोइड आधारित दवाइयां कैनबिनोइड्स की तुलना में अधिक प्रभावी एवं अधिक सुरक्षित होती हैं और इनमें अनुमान लगाने की संभावना अधिक होती है। विषेशज्ञों ने कहा कि यह सोचना गलत है कि भांग से बनने वाली दवाइयांे को लेने का प्रमुख तरीका धूम्रपान है। वास्तव में, भांग के सेवन के कई ऐसे तरीके हैं जिनसे स्वास्थ्य संबंधी बहुत कम खतरे होते हैं, जैसे कैप्सूल, तेल, टिंचर, पैच, सब- लिंगुअल स्प्रे और वैपोराइजर के रूप में।
भांग से बनने वाली आधुनिक दवाइयों के उत्पादन और खपत के मामले की मुख्य चुनौतियों के बारे में बात करते हुए, सीएसआईआर-आईआईआईएम के प्लांट बायोटेक्नोलाॅजी विभाग के प्रमुख डॉ. धीरज व्यास ने कहा, ''भारत में उगाई जाने वाली भांग की कोई मानक बीज या किस्म नहीं है। चूंकि भांग को एनडीपीएस अधिनियम में मादक चीज माना जाता है, ऐसे में अनुसंधान-ग्रेड सामग्री की अनुपलब्धता के कारण शोध कार्य भी प्रतिबंधित है। भांग की मानक किस्मों के उत्पादन की अनुसंधान परियोजनाएं हाल ही में भारत में सीएसआईआर - आईआईआईएम द्वारा बॉम्बे हेम्प कंपनी के सहयोग से शुरू हुई हैं, और ऐसी कोई मानक एक्स्ट्रैक्ट या रस नहीं है जिनसे दवाइयां बनाई जा सके। चूंकि कोई मानक दवाएं उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए रोगी तेल के रूप में कैनाबिस का प्रयोग करना नहीं चाहते हैं। डॉक्टरों में सभी स्तनपायी प्राणियों में मौजूद एंडोकैनाबीनोइड्स और एन्डोकैनाबिनोइड प्रणाली के बारे में जागरूकता की कमी है। इसके कारण, भारत में केवल कुछ डॉक्टर ही मरीज को भांग से बनने वाली दवाइयांे की सलाह देने की स्थिति में होते हैं।'
विशेषज्ञों का मानना है कि भांग के पौधे भ्रांतियों के शिकार रहे हैं जबकि ये भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं। हजारों सालों से विभिन्न बीमारियों के इलाज में ये विष्वसनीय घटक माने जाते रहे हैं। इसके बाद भी आधुनिक चिकित्सा में जब भांग के उपयोग की बात आती है तो कई तरह के संशय जुड़ जाते हैं।
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