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योगा से रहें हेल्दी और एनर्जेटिक

प्रधानमंत्री की पहल पर संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योगा दिवस मनाया जाने लगा है। इसके मद्देजर योगा को लेकर देश में नये सिरे से बहस चल पड़ी है तथा योगा को लेकर लोगों में दिलचस्पी पैदा हुयी है। योगाचार्यों और चिकित्सकों की मानें तो योगा न केवल मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को कायम रखता है बल्कि कई तरह की बीमारियों के इलाज में भी सहायक होता है। मानसिक शांति तथा मानसिक समस्याओं के समाधान में यह राम बाण है। योगा हर उम्र की महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है। नियमित रूप से योगा कर महिलाएं न सिर्फ स्वस्थ और चुस्त-दुरुस्त रह सकती हैं बल्कि कई बीमारियों की रोकथाम कर सकती हैं और उनसे छुटकारा पा सकती हैं। इसलिए हर उम्र की महिलाओं को अपनी लाइफ स्टाइल में योगा को अवश्य शामिल करना चाहिए। 
योगा पुरूषों के साथ-साथ महिलाओं को शारीरिक चुस्ती प्रदान करने के अलावा मानसिक समस्याओं से निजात दिलाता है। यह खास तौर पर तनाव, डिप्रेशन एवं अन्य मानसिक समस्याओं के समाधान के लिये अत्यंत कारगर साबित है। 
महिलाओं के लिए योगा के बहुत फायदे हैं। महिलाओं को घर और बाहर के साथ-साथ और भी कई तरह की जिम्मेदारियां निभानी होती हैं जिसके कारण वे अपने आपको बिल्कुल समय नहीं दे सकती लेकिन जो महिलाएं योगा करती हैं वे योगा के जरिए स्वस्थ और फिट रहती हैं। वैसे भी, महिलाओं को पुरूषों के मुकाबले बढ़ती उम्र में अधिक बीमारियां हो जाती हैं यदि महिलाएं रोजाना योगा करेंगी तो बढ़ती उम्र में होने वाली बीमारियों से आसानी से बच सकती हैं। इसके अलावा, महिलाओं को अक्सर छरहरी काया और फिटनेस की फ्रिक रहती हैं लेकिन उनके पास सरल और आसान उपाय नहीं होता लेकिन योगा के जरिए वे अपनी इस समस्या को सुलझा सकती हैं।
गर्भावस्था के दौरान स्वस्थ रहने के लिए भी महिलाओं को योगा की बहुत जरूरत होती हैं क्योंकि इससे बच्चे का विकास भी ठीक तरह से होता है और प्रसव के दौरान और बाद में भी आने वाली समस्याओं से बचा जा सकता हैं।
आमतौर पर देखा गया है कि महिलाएं अपनी सुंदरता के प्रति बहुत जागरूक होती हैं लेकिन हर समय अपने आप पर ध्यान देना संभव नहीं होता। इसलिए वे काॅस्मेटिक उत्पादों का सहारा लेती हैं जिनके अपने दुष्प्रभाव होते हैं। ऐसे में महिलाओं के लिए जरूरी हो जाता है कि वे योगा करें। यदि वे शारीरिक रूप से फिट रहेंगी तो उनकी सुंदरता भी खुद-ब-खुद निखर जाएगी।
योगा का पूरा लाभ लेने के लिये योगा करते समय उम्र और शारीरिक तथा मानसिक स्थिति को ध्यान में रखना जरूरी है। जैसे कुछ कठिन योगा जो किशोरावस्था की महिलाएं कर सकती हैं, वृद्धावस्था की महिलाएं नहीं कर सकती हैं। यही नहीं गर्भवती महिलाओं को भी योगासन के दौरान बहुत सावधानी बरतने की जरूरत होती है। यहीं नहीं कुछ गंभीर बीमारियों से पीड़ित महिलाओं को भी कुछ योगासन नहीं करने की सलाह दी जाती है। इसलिए योगा की शुरुआत करने से पहले किसी योगाचार्य या योग विशेषज्ञ से सलाह लेना और कुछ समय तक उनकी निगरानी में योगा करना आवश्यक है।
महिलाओं के द्वारा किये जाने वाले योगा 
महिलाओं को अपनी आवाज को सुरीला बनाने और श्वास संबंधी समस्याओं से बचने के लिए श्वास क्रियाएं करनी चाहिए।
जो महिलाएं खाने के बाद टहल नहीं पाती और मोटापे व पेट संबंधी समस्याओं से भी बचना चाहती हैं तो इन्हें वज्रासन करना चाहिए।
शरीर को रिलैक्स करने और तनाव मुक्त होने और थकान उतारने के लिए श्वसन करना चाहिए।
महिलाएं यदि अपने लिए समय नहीं निकाल पाती और योगासन को भी कम से कम समय देना चाहती हैं तो उन्हें सूर्य नमस्कार की 12 विधियों को करना चाहिए। इससे न सिर्फ पूरे शरीर की एक्सरसाइज हो जाती हैं बल्कि आप तरोताजा भी महसूस करेंगी।
किशोरावस्था से लेकर मध्य वय की महिलाएं आम तौर पर प्राणायाम, सूर्य नमस्कार, भुजंगासन, गरुणासन, मंडुकासन, शलभासन, पूर्मासन, कुकुटासन, वज्रासन, शवासन, श्वास क्रिया और सूक्ष्मासन कर सकती हैं। 
महिलाओं के लिए उपयोगी प्रमुख योगासन: 
प्राणायाम
प्राणायाम के तहत हम श्वास को धीमी गति से देर तक खींचकर रोकते हैं और फिर बाहर निकालते हैं। प्राणायाम करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखें, जैसे - प्राणायाम करने से पहले हमारा शरीर अन्दर से और बाहर से शुद्ध होना चाहिए। प्राणायाम के तहत हम श्वास को धीमी गति से देर तक खींचकर रोकते हैं और फिर बाहर निकालते हैं। इस योग को करने के लिए जमीन पर आसन बिछाकर बैठना चाहिए। बैठते समय हमारी रीढ़ की हड्डियां एक पंक्ति में अर्थात सीधी होनी चाहिए। प्राणायाम करते समय हमारे हाथ ज्ञान या किसी अन्य मुद्रा में होनी चाहिए। प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में कहीं भी किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए, यदि तनाव में प्राणायाम करेंगे तो उसका लाभ नहीं मिलेगा। सांस का आना जाना बिलकुल आराम से होना चाहिए। 
प्राणायाम कई प्रकार के होते हैं, जैसे - भस्त्रिका प्राणायाम, कपालभाति प्राणायाम, अनुलोम-विलोम प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, अग्नि प्रदीप्त प्राणायाम,  एकांड स्तम्भ प्राणायाम, सीत्कारी प्राणायाम, सर्वद्वारबद्व प्राणायाम, सर्वांग स्तम्भ प्राणायाम, सम्त व्याहृति प्राणायाम, चतुर्मुखी प्राणायाम, प्रच्छर्दन प्राणायाम, चन्द्रभेदन प्राणायाम, यन्त्रगमन प्राणायाम, वामरेचन प्राणायाम, दक्षिण रेचन प्राणायाम, शक्ति प्रयोग प्राणायाम, त्रिबन्धरेचक प्राणायाम, हृदय स्तम्भ प्राणायाम,  मध्य रेचन प्राणायाम, त्रिबन्ध कुम्भक प्राणायाम, ऊर्ध्वमुख भस्त्रिका प्राणायाम, मुखपूरक कुम्भक प्राणायाम,  वायुवीय कुम्भक प्राणायाम, वक्षस्थल रेचन प्राणायाम, दीर्घ श्वास-प्रश्वास प्राणायाम, प्राह्याभ्न्वर कुम्भक प्राणायाम, शन्मुखी रेचन प्राणायाम, कण्ठ वातउदा पूरक प्राणायाम, सुख प्रसारण पूरक कुम्भक प्राणायाम,  नाड़ी शोधन प्राणायाम व नाड़ी अवरोध प्राणायाम।
भुजंगासन
इस आसन में शरीर की आकृति फन उठाए हुए भुजंग अर्थात सर्प जैसी बनती है इसीलिए इसो भुजंगासन या सर्पासन कहा जाता है। यह आसन पेट के बल लेटकर किया जाता है। इस आसन को करने के लिए जमीन पर दरी या कंबल बिछाकर उल्टे होकर पेट के बल लेट जाए। एड़ी-पंजे को मिलाकर रखें। ठोड़ी फर्श पर रखें। कोहनियां कमर से सटी हुई और हथेलियां उपर की ओर हों। अब धीरे-धीरे हाथ को कोहनियों से मोड़ते हुए लाएं और हथेलियों को बाजूओं के नीचे रख दें। फिर ठोड़ी को गरदन में दबाते हुए ललाट को भूमि पर रखे। पुनः नाक को हल्का-सा भूमि पर स्पर्श करते हुए सिर को उपर की ओर उठाएं। सिर और छाती को जितना पीछे ले जा सकते है ले जाएं लेकिन ध्यान रखें कि नाभि भूमि से लगी रहे। 20 सेकंड तक इस स्थिति में रहें। बाद में श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे सिर को नीचे लाकर ललाट को भूमि पर रखें। छाती भी भूमि पर रखें। पुनः ठोड़ी को भूमि पर रखें। इस आसन को करते समय अचानक पीछे की तरफ बहुत अधिक न झुकें। इससे आपकी छाती या पीठ की मांसपेशियों में खिंचाव आ सकता है तथा बांहों और कंधों की पेशियों में भी बल पड़ सकता है जिससे दर्द पैदा होने की संभावना बढ़ती है। पेट में कोई रोग या पीठ में अत्यधिक दर्द हो तो यह आसन न करें। इस आसन से रीढ़ की हड्डी सशक्त होती है और पीठ में लचीलापन आता है। शरीर छरहरा रहता है। 
सूर्य नमस्कार
सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ है। इस योगा में लगभग सभी आसनों का समावेश है। इसलिए यह सम्पूर्ण लाभ पहुंचाता है। इसके अभ्यास से व्यक्ति का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। सूर्य नमस्कार का अभ्यास बारह स्थितियों में किया जाता है। इसकी भी दो स्थितियां होती हैं- पहला दाएं पैर से और दूसरा बाएं पैर से।
विधि:
(1) पहले सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाएं। फिर दोनों हाथों को कंधे के समानांतर उठाते हुए दोनों हथेलियों को ऊपर की ओर ले जाएं। हथेलियों के पीछे के भाग एक-दूसरे से मिले रहें। फिर उन्हें उसी स्थिति में सामने की ओर लाएं। उसके बाद नीचे की ओर गोल घुमाते हुए नमस्कार की मुद्रा में खड़े हो जाएं। 
(2) श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा कमर से पीछे की ओर झुकते हुए भुजाओं और गर्दन को भी पीछे की ओर झुकाएं। यह अर्धचक्रासन की स्थिति मानी गई है।
(3) तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकें। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रखें। कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। इस स्थिति को पाद पश्चिमोत्तनासन या पादहस्तासन की स्थिति कहते हैं।
(4) इसी स्थिति में हथेलियां भूमि पर टिकाकर श्वास को भरते हुए दाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को ऊपर उठाएं। इस मुद्रा में टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर रखें और पैर का पंजा खड़ा रखें। इस स्थिति में कुछ समय रुकें।
(5) श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए हुए बाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को जमीन पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कंठ में लगाएं।
(6) श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दंडवत करें और पहले घुटने, छाती और ठोड़ी पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठाएं। श्वास छोड़ दें। श्वास की गति सामान्य रखें।
(7) इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने को पृथ्वी का स्पर्श कराते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। इस स्थिति को भुजंगासन की स्थिति कहते हैं। 
(8) यह स्थिति पांचवीं स्थिति के समान है। जबकि हम ठोड़ी को कंठ से टिकाते हुए पैरों के पंजों को देखते हैं।
(9) यह स्थिति चौथी स्थिति के समान है। इसमें पीछे ले जाए गए दाएं पैर को पुनः आगे ले आएं।
(10) यह स्थिति तीसरी स्थिति के समान हैं। फिर बाएं पैर को भी आगे लाते हुए पुनः पाद पश्चिमोत्तनासन की स्थिति में आ जाएं। 
(11) यह स्थिति दूसरी स्थिति के समान हैं। जिसमें पाद पश्चिमोत्तनासन खोलते हुए और श्वास भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर ले जाएं। उसी स्थिति में हाथों को पीछे की ओर ले जाएं साथ ही गर्दन तथा कमर को भी पीछे की ओर झुकाएं अर्थात अर्धचक्रासन की मुद्रा में आ जाएं।
(12) यह स्थिति पहली स्थिति की तरह ही नमस्कार की मुद्रा में रहेगी।
बारह मुद्राओं के बाद पुनः विश्राम की स्थिति में खड़े हो जाएं। अब इसी आसन को पुनः करें। पहली, दूसरी और तीसरी स्थिति उसी क्रम में ही रहेगी लेकिन चैथी स्थिति में पहले जहां दाएं पैर को पीछे ले गए थे वहीं अब पहले बाएं पैर को पीछे ले जाते हुए यह सूर्य नमस्कार करें।
सूर्य नमस्कार अत्यधिक लाभकारी है। इसके अभ्यास से हाथों और पैरों का दर्द दूर होकर उनमें सबलता आती है। गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है। इससे त्वचा संबंधित रोग समाप्त हो जाते हैं और त्वचा में निखार आता है। इस अभ्यास से कब्ज जैसे पेट के रोग समाप्त हो जाते हैं और पाचनतंत्र की क्रियाशीलता में सुधार होता है। इन आसनों से हमारे शरीर की छोटी-बड़ी सभी नस-नाड़ियां क्रियाशील हो जाती हैं, इसलिए आलस्य, अतिनिद्रा आदि विकार दूर हो जाते हैं।
शलभासन
यह शरीर के मध्य भाग, कमर और रीढ़ की हड्डी के लिए फायदेमंद आसन है। इससे शरीर के ये हिस्से मजबूत होते हैं और शरीर का संतुलन बना रहता है।
विधि
पेट के बल लेट जाएं।  भीतर की ओर सांस खींचते हुए सिर, छाती व जांघों को उठाएं। हाथ जमीन पर पैरों की ओर रखें। ध्यान रहे कि आपके घुटने न मुड़ें। शरीर का सारा भार पेट पर पड़े। अब सांस छोड़ते हुए सामान्य अवस्था में आ जाएं। स्लिप डिस्क और बैक पेन से परेशान लोग इस आसन को न करें।
गरुणासन
गरुणासन शरीर के संतुलन, तालमेल और एकाग्रता के लिए बहुत फायदेमंद है। यह बाजू और जांघ पर फैट कम करता है। 
विधि 
सीधी खड़ी हो जाएं। अब दाएं घुटने को मोड़ लें और दाहिनी जांघ पर बाईं जांघ रखें। अब बाएं पैर को दाएं पैर पर पूरी तरह आधारित कर लें जिससे बाएं पैर का अंगूठा दाए पैर के पिछले हिस्से को छुए।  अब दाई कोहनी को बाईं कोहनी पर रखकर नमस्कार की मुद्रा में हथेलियां रखें। बाजुओं और कंधों को सीधा रखें। साथ ही घुटनों को भी बहुत मुड़ने न दें। पूरी प्रक्रिया के दौरान सामान्य रूप से सांस लें। अब सिर, कंधा और कमर को एक सीध में रखते हुए सांस खींचें। सांस छोड़ते हुए सामान्य अवस्था में धीरे-धीरे आ जाएं। इसी प्रक्रिया को बाएं घुटने मोड़कर दोबारा करें।
वृद्धावस्था की महिलाओं के लिए योगा
वृद्धावस्था की महिलाओं को ऐसे योगा करने चाहिए जिनसे उनके शरीर विशेष रूप से जोड़ों पर अधिक जोड़ न पड़े। इस उम्र में महिलाएं हालांकि प्राणायाम के कुछ आसान कर सकती हैं लेकिन अगर उन्हें प्राणायाम के कुछ आसनों को करने में परेशानी आ रही हो तो वे सूक्ष्मासन कर सकती हैं।
सूक्ष्मासन: सूक्ष्मासन के व्यायाम में गर्दन घुमाना, आंखें घुमाना, कंधे घुमाना, हाथ घुमाना, कलाई घुमाना, मुट्ठियां बन्द करना व खोलना, कमर घुमाना, घुटने घुमाना, पंजे घुमाना और इन्हें ऊपर-नीचे करना षामिल है।
कोई भी महिला यह व्यायाम कर सकती है। विशेषकर वृद्ध महिला एवं रोगियों के लिए इस आसन का बड़ा महत्व है। सूक्ष्मासन में प्राणायाम के भी कुछ आसन समाहित होते हैं इसलिए इस आसन को करने से प्राणायाम भी स्वतः ही हो जाते है। इसमें कई तरह के आसन शामिल होते हैं इसीलिए इसे योग व प्राणायाम का राजा कहा जाता है। इसके कुछ आसनों को योगासन व प्राणायाम के लिए पूर्व तैयारी के रूप में किया जाता है। अगर कोई व्यक्ति अन्य आसनों को करने में सक्षम नहीं है तो सिर्फ सूक्ष्मासन कर लेने से ही इनकी पूर्ति हो जाती है। इसलिए इस व्यायाम को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
सूक्ष्म व्यायाम कहीं भी किए जा सकते हैं। इस व्यायाम को करने के लिए किसी तैयारी, जगह या प्रशिक्षक की जरुरत नहीं होती है। ये अत्यंत सरल होेते है। सभी योगाचार्य इन आसनों को कठोर आसन कराने से पहले कराते है और वे अन्य कठिन योग न कर पाने की स्थिति में प्रतिदिन इन्हें करने पर बल देते है। 
इस व्यायाम को प्रतिदिन करने से शरीर को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है। इन व्यायामों को करने से शरीर के जोड़ों की जकड़न कम होती है, जोड़ों का लचीलापन बढ़ता है और जोड़ मजबूत होते हैं। जोड़ों को घुमाने में किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती या दर्द नहीं होता। जोड़ बेहतर तरीकेे से काम करने लगते है। ये व्यायाम मांसपेशियों के खिंचाव को कम कर मांसपेशियों के लचीलापन को भी बढ़ाते हैं। वृद्धावस्था की महिलाओं में जोड़ों और मांसपेशियों की जकड़न एक आम समस्या है लेकिन इन व्यायामों को करने से न सिर्फ उनके शरीर के जोड़ों और मांसपेशियों बल्कि पूरे शरीर की अकड़न-जकड़न कम होती है और शरीर में स्फूर्ति आती है।
गर्भवती महिलाओं के लिए योगा
गर्भवती महिलाओं के लिए योगा अत्यंत फायेदमंद साबित होता है। योगा करने से न सिर्फ वे गर्भावस्था के दौरान स्वस्थ रहती है, बल्कि उन्हें बच्चे के जन्म के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होने में मदद मिलती है। उनमें सामान्य प्रसव होने की संभावना बढ़ जाती है और प्रसव के दौरान प्रसव पीड़ा भी कम होती है। गर्भावस्था के दौरान योगा करते समय अत्यंत सावधानी बरतने की जरूरत होती है इसलिए गर्भवती महिलाओं को कुछ विषेश आसन करने की सलाह दी जाती है जिनमें तितली आसन और पद्मासन प्रमुख हैं।
तितली आसन
तितली आसन करते समय व्यक्ति की मुद्रा तितली के समान हो जाती है, इसलिए इस मुद्रा को तितली आसन कहा जाता है। 
आसन विधि: इस आसन को करने के लिए किसी समतल स्थान पर दरी या कंबल बिछाकर उस पर बैठ जाएं। दोनों पैरों को सामने की ओर फैला लें। दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ें और दोनों तलवों को आपस में मिला लें। अपने दोनों हाथों से पैरों की अंगुलियों को पकड़ें और एड़ी को शरीर के पास लाने का प्रयास करें। इस दौरान आप अपने हाथों को बिल्कुल सीधा रखें और शरीर को भी पूरी तरह सीधा रखें ताकि आपकी रीढ़ की हड्डी भी सीधी रहे। सामान्य गति से सांस लें और दोनों पैरों के घुटनों को एक साथ ऊपर की ओर लाएं फिर नीचे की ओर लाएं। लेकिन ऐसा करते समय पैरों को ज्यादा जोर से नहीं हिलाएं और यह ध्यान रखें कि आपके पैर जमीन को न छूने पाए, और किसी प्रकार का झटका न लगे। इस प्रक्रिया को 20-25 बार करें। इसके बाद पैरों को धीरे-धीरे सीधा कर लें और कुछ समय तक शरीर को ढीला छोड़ दें।
गर्भावस्था के दौरान पैरों में थकान और दर्द होना एक आम समस्या है। लेकिन रोजाना सुबह-सुबह इस आसन को करने से पैरों की मांसपेशियां की अच्छी कसरत हो जाती है और मांसपेशियां मजबूत होती हैं जिससे पैरों में थकान और दर्द से राहत मिलती है। गर्भावस्था में तितली आसन करने से डिलीवरी के समय कम दर्द होता है। गर्भवती महिलाओं को यह आसन पहली तिमाही में ही शुरू कर देना चाहिए। 
पद्मासन
संस्कृत शब्द पद्म का अर्थ होता है कमल। इसीलिए पद्मासन को कमलासन भी कहते हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए यह आसन महत्वपूर्ण है।
आसन विधि: जमीन पर दरी या कंबल बिछाकर दोनों पैरों को सीधा कर दंडासन की स्थिति में उस पर बैठ जाएं। दाहिने पैर के अंगूठे को बाएं हाथ से पकड़कर घुटने मोड़ते हुए दाहिने पैर के पंजे को बाईं जांघ के मूल पर रखें। उसके बाद बाएं पैर के अंगूठे को दाहिने हाथ से पकड़कर घुटने मोड़ते हुए बाएं पैर के पंजे को दाहिनी जांघ के मूल पर रखें। ध्यान रखें कि दोनों घुटने दरी पर टिकें हो और पैर के तलवे उपर की ओर हों। रीढ़, गला व सिर को एक सीध में रखें। हथेलियों को घुटनों पर रखें या एक हथेली को दूसरी पर रखकर गोद में रखें। आंखें बंद कर सांसों को गहरा खींचते हुए सामान्य गति से सांस लें। आसन से वापस लौटने के लिए पहले बाएं पैर के पंजे को दाहिने हाथ से पकड़कर लंबा कर दें। फिर दाहिने पैर के पंजे को बाएं हाथ से पकड़कर लंबा कर दें और फिर से दंडासन की स्थिति में आ जाएं। प्रारंभ में यह आसन 30 सेकंड के लिए करें फिर सुविधानुसार समय को बढ़ायें। इस आसन को कम से कम दो से तीन बार करना चाहिए। इस आसन को करते समय यह ध्यान रखें कि आपके पैरों में किसी भी प्रकार का अत्यधिक कष्ट न हो। रीढ़ के निचले हिस्से में किसी प्रकार का दर्द होने पर इस आसन को न करें।
पद्मासन से पैरों का रक्त-संचार कम हो जाता है और अन्य अंगों की ओर रक्त का संचार अधिक होने लगता है जिससे उनमें क्रियाशीलता बढ़ती है। यह तनाव को कम कर चित्त को एकाग्र करता है और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है। इससे छाती और पैरों में मजबूती आती है। इससे गर्भ में बच्चे के स्वस्थ विकास में मदद मिलती है।


 


 


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