– विनोद कुमार
नई दिल्ली ‚ 15 जुलाई। भारतीय मरीजों में स्तन कैंसर के ग्रेड और चरण अन्य देशों की तुलना में अधिक उच्च होते हैं। यहां तक कि पढ़ी-लिखी जो महिलाएं स्तन कैंसर का इलाज कराती हैं वे भी इलाज के लिए वैकल्पिक विधियों को अपनाती हैं।
कीमोथेरेपी या मास्टेक्टोमी सर्जरी के बारे में कई गलतफहमी और जागरूकता की कमी है और इसके कारण ज्यादातर महिलाएं समय पर इलाज नहीं कराती हैं और ज्याद दातर वैकल्पिक दवाइयों के विकल्प को चुनती हैं। हालांकि प्रारंभ में ऐसे उपचार मरीजों के लिए लुभावने लगते हैं लेकिन जैसे ही बीमारी के चरण बढ़ते हैं और बीमारी उनके नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तो वे एलोपैथिक उपचार का विकल्प चुनती हैं। इस कारण वे समय पर इलाज नहीं करा पाती हैं।
मैक्स सपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के ब्रेस्ट ओंकोलॉजी की वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ. एस. वेदा पद्म प्रिया ने कहा, " भारत में, सालाना हर पच्चीस में से एक महिला में स्तन कैंसर का निदान किया जाता है, जो अमेरिका / ब्रिटेन जैसे विकसित देशों की तुलना में कम है जहां सालाना 8 में से 1 रोगी में स्तन कैंसर का निदान किया जाता हैहालांकि इस तथ्य के कारण कि विकसित देशों में जागरूकता की काफी महत्वपूर्ण भूमिका रही है और वहां वहां शुरुआती चरणों में ही ऐसे अधिकतर मामलों का निदान और इलाज किया जाता है और इसलिए वहां जीवित रहने की दर बेहतर होती है। लेकिन जब हम भारतीय परिदृश्य पर विचार करते हैं, तो हम पाते हैं कि यहां उच्च जनसंख्या अनुपात और कम जागरूकता के कारण जीवित रहने की दर काफी कम है। जिन मरीजों में स्तन कैंसर की पहचान होती है उन मरीजों में से हर दो रोगियों में से एक रोगी की अगले पांच वर्षों में मौत हो जाती है जो 50 प्रतिशत मृत्यु दर के लिए जिम्मेदार होते हैं। शहरों में कई रोगियों में रोग की पहचान दूसरे चरण में की जाती है जब टी 2 घाव ऐसे गांठ होते हैं, जिन्हें स्पर्श करने पर महसूस किया जा सकता है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के मामलों में, इन घावों का पता मेटास्टैटिक ट्यूमर में परिवर्तित होने के बाद ही चलता है
स्तन कैंसर दुनिया भर में कैंसर से ग्रस्त मरीजों में मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक हैग्लोबैकन 2017 के हाल के आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय महिलाओं में स्तन कैंसर दुनिया भर में सबसे ज्यादा होता है। कैंसर की मरीजों के सबंध में नई प्रवृतियां सामने आ रही है और अस्पताल आने वाली नई मरीजों के आयु समूह में धीरे-धीरे गिरावट आ रही है और यह 55 वर्ष से कम होकर 40 वर्ष से भी कम उम्र तक गिर गया है। आईसीएमआर 2017 में दर्ज आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल भारत में 1.5 लाख से अधिक स्तन कैंसर की मरीजों को दर्ज किया गया है। वैश्विक स्तर पर, 40 साल से कम उम्र की 7 प्रतिशत आबादी स्तन कैंसर से पीड़ित है, जबकि भारत में, यह दर दोगुनी है यानी 15 प्रतिशत है। और जिनमें 1 प्रतिशत रोगी पुरुष हैं, जिसके कारण विश्व स्तर पर भारत से स्तन कैंसर रोगियों की सबसे ज्यादा संख्या हो जाती हैस्तन कैंसर वंशानुगत होता है, इसके अलावा, कई अन्य जोखिम कारक जैसे निष्क्रिय जीवनशैली, शराब का सेवन, धूम्रपान, युवाओं में मोटापा और तनाव में वृद्धि और खराब आहार के सेवन को भी युवा भारतीय महिलाओं में स्तन कैंसर के मामलों में वृद्धि के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। एनसीबीआई 2016 द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, शाकाहारी महिलाओं को स्तन कैंसर होने का खतरा 40 प्रतिशत कम होता है।
पिछले दशक में, हालांकि स्तन कैंसर के मामलों में वृद्धि हुई है, लेकिन कैंसर देखभाल के प्रति जागरूकता, पहुंच और नजरिये में परिवर्तन के कारण स्तन कैंसर से होने वाली मौतें धीरे-धीरे कम हो रही है। सरोज सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के मेडिकल ओन्कोलॉजी के वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ. पी. एन उप्पल ने कहा, "लोगों में यह जागरूकता पैदा की जानी चाहिए कि प्रारंभिक चरणों में ही अधिकांश स्तन कैंसर का पता लग जाता है, क्योंकि स्तन कैंसर वाली अधिकांश महिला मेटास्टेसिस (जब ट्यूमर शरीर के अन्य अंगों में फैलता है) के बाद अस्पताल आती हैं। कैंसर के मेटास्टैटिक या उन्नत चरणों में, इसका पूरी तरह से इलाज नहीं हो पाता है और उपचार का उद्देश्य रेमिशन (जहां ट्यूमर सिकुड़ता है या गायब हो जाता है) प्राप्त करना होता है।"
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