बदलने वाली है चांदनी चौक की रौनक 

मुगल बादशाह शाहजहां की बेटी जहांआरा द्वारा डिजाइन किये गये चांदनी चौक को तीन सदियों बाद पहले बड़े कमर्शियल डैवलपमेंट की बदौलत नया रूप मिलने जा रहा है। यह नया रूप चांदनी चौक का नया लैंडमार्क बन कर सामने आएगा। 


चांदनी चौक एशिया का सबसे बड़ा थोक व खुदरा बाजार है। यह ऐतिहासिक बाजार हलचल से भरपूर है, यहां लंबे ट्रैफिक जाम लगते हैं। सड़कों, गलियों में पैदल चलने वालों, वाहनों व अन्य वजहों से जगह की तंगी बनी रहती है। 


चांदनी चौक में बड़े पैमाने पर रिडैवलपमेंट  प्रोजेक्ट चल रहा है ताकि यहां पहुंचने की राह सुगम की जा सके, यातायात सुचारु हो और बाजार में आने वालों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जा सकें। पुनर्विकास का यह काम दिसंबर 2018 से आरंभ हुआ है और उम्मीद है की मार्च 2020 तक यह पूरा हो जाएगा। रिडैवलपमेंट प्रोजेक्ट के दो खास हिस्से हैं- मल्टी लैवल पार्किंग और कमर्शियल स्पेस; जिन्हें उत्तरी एमसीडी व ओमैक्स पीपीपी प्रोजेक्ट के तहत विकसित कर रहे हैं। ओमैक्स, भारत की अग्रणी रियल ऐस्टेट कंपनियों में से एक है।


चांदनी चौक में इस पैमाने का विकास कार्य सदियों में नहीं हुआ है। यह कमर्शियल कॉम्पलैक्स इस किस्म का पहला कमर्शियल डैवलपमेंट है और इससे कारोबार एवं ग्राहकों को बहुत बढ़ावा मिलेगा। गौर तलब है की इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, बुनियादी सुविधाओं के अभाव के चलते यहां आने वाले खरीददारों की तादाद में गिरावट आई है। मुगलकालीन थीम पर आधारित इस कॉम्पलैक्स के भीतर-बाहर वास्तुशिल्प के शानदार नमूने होंगे, खानेपीने की लज़ीज़ चीज़ें होंगी तथा यहां ऐसा प्रतीत होगा जैसे इतिहास जाग उठा है। इसे चांदनी चौक के दिल में एक नए लैंडमार्क के तौर पर विकसित किया जा रहा है, इसका इंटीरियर आसपास के वास्तुशिल्प से प्रेरित है।


कहा जाता है की चांदनी चौक में कई मौजूदा दुकानें आदि अनधिकृत और असंगठित हैं जिसके चलते कई व्यापारी सीलिंग अभियान, आग व अन्य जोखिमों के साथ रह रहे हैं। कमर्शियल डैवलपमेंट से अब न केवल खरीददारों के लिए सुविधाएं बढ़ जाएंगी व चांदनी चौक का सौंदर्य कायम रहेंगे बल्कि मौजूदा खामियों का भी निवारण होगा जिनका सामना व्यापारी वर्तमान में कर रहे हैं। इसके अलावा कई स्थानीय व्यापारियों एवं विनिर्माताओं को भी चांदनी चौक में आपूर्ति करने का अवसर प्राप्त होगा और वे एक संगठित सैटअप में अपनी पहचान बना सकेंगे। 


गांधी मैदान में बन रहा कमर्शियल कॉम्पलैक्स इस इलाके के लिए अपनी किस्म का एक खास डैवलपमेंट है। यहां पार्किंग स्पेस भी होगा- अंडरग्राउंड के तीन लैवल, ओवरग्राउंड के दो लैवल (थर्ड और फोर्थ फ्लोर पर)। यहां 2100 वाहन और 80 से अधिक टूरिस्ट बसें पार्क की जा सकेंगी। ग्राउंड एवं फर्स्ट फ्लोर खुदरा कारोबार के लिए होंगे तथा सैकिंड फ्लोर फूड कोर्ट व फाइन डाइनिंग के लिए समर्पित रहेगा जहां पूरे भारत व चांदनी चौक के विशिष्ट व्यंजन परोसे जाएंगे।


इस विकास कार्य से न केवल ज्यादा खरीददार चांदनी चौक की ओर आकर्षित होंगे बल्कि इससे झंझट मुक्त व सुविधाजनक अनुभव मिलेगा और इस ऐतिहासिक बाजार के दिल आकर लोग खरीददारी व खानपान का आनंद ले सकेंगे।


बच्चों ने दादा—दादी के स्नेह को याद किया 

ग्रैंडपेरेंट्स डे हर बच्चे के लिए बहुत खास होता है। दादा दादी और पोते एक दूसरे के साथ एक पवित्र बंधन को साझा करते हैं। द विज़डम ट्री स्कूल, नोएडा एक्सटेशन, ने 28 सितंबर,2019 को ग्रैंडपेरेंट्स डे मनाया। स्कूल के नर्सरी और केजी. के छोटे टोट्स ने अपने दादा-दादी, नाना-नानी के प्रति अपने प्यार, स्नेह और कृतज्ञता को दिखाने के लिए ग्रैंडपेरेंट्स डे' को बड़े उत्साह के साथ मनाया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रैंडपेरेंट्स द्वारा हमारे लिए किए गए उनके त्याग, समर्पण और योगदान को स्वीकार कर उन्हें सच्चे दिल से धन्यवाद देना था।
छात्रों के दादा- दादी और नाना- नानी को स्कूल में आमंत्रित किया गया, ताकि आनंद और खुशी से भरे इस विशेष दिन का आनंद लिया जा सके।
इसके बाद एक विशेष कार्यक्रम हुआ जिसमें बड़ी संख्या में बच्चों के साथ उनके ग्रैंडपेरेंट्स ने हिस्सा लिया। ग्रैंडपेरेंट्स के हमारे जीवन में महत्वपूर्ण योगदान के लिए सम्मानित करने के स्कूल के इस प्रयास ने उन्हें खुशी से अभिभूत कर दिया। इस मौके पर दादा-दादियों ने अपने अनुभवों भी साझा किया। 
ग्रैंडपेरेंट्स डे के अवसर पर अध्यक्ष श्री के के श्रीवास्तव और प्रिंसिपल श्रीमती सुनीता ए. शाही भी मौजूद थी। उऩकी इस खास मौजूदगी ने छात्रों और शिक्षकों के प्रयास को सफल बनाने में बड़ा योगदान दिया।


हमारे गुरू ही हमारे जीवन के असली मार्गदर्शक होते हैं


भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिवस के अवसर पर शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए देश भर में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। हर किसी के जीवन में 'गुरु' का बहुत महत्व होता है। 
शिक्षक दिवस के मौके पर स्कूलों में उत्सव, धन्यवाद और स्मरण की गतिविधियां होती हैं। 
इस मौके पर दि विज़डम ट्री स्कूल, नोएडा एक्सटेंशन में पांच सितम्बर को शिक्षक दिवस को बहुत खुशी और उत्साह के साथ मनाया। महान शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती मनाने के लिए तथा स्कूल के लक्ष्य और दृष्टीकोण के प्रति शिक्षकों की अटूट प्रतिबद्धता को दिखाने के लिए छात्रों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।
कक्षा सात और आठ के छात्रों द्वारा एक विशेष प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न प्रकार के रोमांचित तथा मंत्रमुग्ध करने वाले कार्यक्रम शामिल थे। प्रार्थना सभा की शुरुआत गुरु वंदना से हुई, इसके बाद शिक्षकदिवस पर भाषण और भजन गायन द्वारा शिक्षकदिवस के महत्व पर प्रकाश डाला गया। छात्रों ने पढ़ाई के महत्व को शानदार नृत्य और कव्वाली द्वारा प्रस्तुत किया गया जो आज के दिन का मुख्य आकर्षण था। इसके पश्चात् छात्रों ने प्रत्येक शिक्षक को मंच पर एक कार्ड और बैज़ देकर सम्मानित किया और धन्यवाद दिया।
चेयर मैन श्री के. के. श्रीवास्तव और प्रिंसिपल श्रीमती सुनीता ए. शाही ने इस अवसर पर प्रकाश डाला और छात्रों से बात करते हुए प्रिंसिपल ने कहा, “शिक्षक दिवस हमारे छात्रों को न केवल सिखाने के लिए, बल्कि उनके सच्चे गुरु और रोल मॉडल होने के लिए, सभी शिक्षकों के प्रति हमारी ईमानदारी का आभार व्यक्त करने का सबसे अच्छा अवसर है। इस तथ्य के बारे में कोई शक नहीं है कि वर्तमान समय में छात्रों को पढ़ाने के लिए अतुलनीय समर्पण, ज्ञान और धैर्य की आवश्यकता है । जो शिक्षक तेज, जिज्ञासु और वास्तविकता को समझते है वे पूरी जिम्मेदारी और प्रतिबद्धता के साथ टिककर शिक्षण करते है तथा वे शिक्षक ही प्रत्येक दिन के असली नायक होते है। ”


अभिनेत्री गौहर खान ने दिल्ली में ककूना सेंटर फॉर एस्थेटिक ट्रांसफॉर्मेशन का उद्घाटन किया  

अभिनेत्री गौहर खान नई दिल्ली। अभिनेत्री गौहर खान ने उद्घाटन मौके पर कहा, 'एस्थेटिक एवं कॉस्मेटिक सर्जरी का ताल्लुक मुख्य रूप से युवा दिखने से होता है लेकिन वास्तव में इसका महत्व कहीं ज्यादा है। प्रत्येक महिला की चाहत रहती है कि वह अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयासों से खूबसूरत दिखे। दरअसल यह चिकित्सा का वह क्षेत्र है जहां बहुत सारे लोगों की उम्मीदें पूरी होती हैं, एक मायने में नई जिंदगी भी मिलती है। कुछ लोग इस उपचार के बाद पूरे आत्मविश्वास के साथ घर से बाहर निकलते हैं। जले और एसिड हमले से पीड़ित व्यक्तियों, जन्मजात विकृतियां और स्तन कैंसर के मरीजों को भी मैं समझती हूं कि इससे लाभ मिलेगा। महिलाओं, यहां तक कि कुछ पुरुषों को भी अपने जीवन को नए सिरे से पटरी पर लाने के लिए सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है, चाहे यह उनकी प्रोफेशनल जिंदगी के लिए जरूरी हो या फिर व्यक्तिगत जिंदगी के लिए। यह मेडिकल प्रैक्टिसनर्स पर निर्भर करता है कि उन्हें यथासंभव कितना सुरक्षित समाधान दे सकते हैं।
उन्होंने कहा, ''मुझे एक ऐसे सौंदर्य क्लिनिक के साथ जुड़ने में खुशी है जो मरीजों को शिक्षित करने पर बात करता है। बड़े पैमाने पर इस अनियंत्रित उद्योग में योग्य, कुशल प्रोफेशनल्स का घोर अभाव है और इस लिहाज से ककूना सेंटर फॉर एस्थेटिक ट्रीटमेंट अपनी सेवा की विश्वसनीयता और अनुभव की परख कराने के लिए आपको आमंत्रित करता है।' 
भारत सौंदर्य और वेलनेस सेक्टर में खर्च करने तथा संभावनाओं के मामले में विश्व के पांच शीर्ष देशों में शुमार है। वैश्विक स्तर पर यह उद्योग सालाना 15 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है जबकि भारत में यह 18.6 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। 


क्या ई-सिगरेट पर प्रतिबंध से जन स्वास्थ्य को होगा नुकसान?


सरकार ने पिछले दिनों ई सिगरेट पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन कई विशेषज्ञों एवं संस्थाओं का कहना है कि सरकार के इस कदम से जन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचेगा।  
काउंसिल फॉर हार्म रिड्यूस्ड अल्टरनेटिव्स (सीएचआरए) और एसोसिएशन ऑफ वैपर्स इंडिया (एवीआई) ने ई-सिगरेट पर प्रतिबंध के नतीजों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों को आगाह करते हुए कहा कि इससे लाखों स्मोकर्स सुरक्षित विकल्पों से वंचित हो जाएंगे और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसका खासा नकारात्मक असर पड़ेगा। सीएचआरए सुरक्षित विकल्पों को अपनाकर तम्बाकू से होने वाले नुकसान को कम करने की दिशा में काम करने वाला राष्ट्रीय संगठन है। वहीं एवीआई देश भर में ई-सिगरेट का प्रतिनिधित्व करने वाला एडवोकेसी ग्रुप है।
सीएचआरए ने कहा कि सरकार द्वारा ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करना खासा दुखद है, जो सिगरेट की तुलना में 95 प्रतिशत कम नुकसानदेह है। यह इसलिए भी हैरत की बात है, क्योंकि दूसरी तरफ सरकार नशे की लत और संक्रामक बीमारियों पर रोकथाम के लिए इससे जुड़े कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देती है।
निकोटिन की तुलना में सिगरेट के जलने से निकलने वाले जहरीले रसायन और टार दुनिया भर में होने तम्बाकू जनित बीमारियों की मुख्य वजह हैं। वैपर्स बॉडी ने संकेत किया कि ई-सिगरेट में निकोटिन तो होता है, लेकिन टार नहीं होता है क्योंकि यह जलती नहीं है। एवीआई ने कहा कि ई-सिगरेट पर प्रतिबंध से देश के 12 करोड़ स्मोकर्स कम जोखिम वाले माध्यम निकोटिन के सेवन से वंचित हो जाएंगे।
सीएचआरए के डायरेक्टर सम्राट चौधरी ने कहा, 'चाहे रिफाइंड तेल हो या कम प्रदूषण वाली कारें हों, हम रोजमर्रा के जीवन में सुरक्षित उत्पादों को अपनाकर नुकसान में कमी के विचार पर अमल करते हैं। तम्बाकू के इस्तेमाल में भी कम नुकसान वाले विकल्पों को अपनाकर यूजर्स की जिंदगी को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया जा सकता है। सरकार अभी तक तम्बाकू की बुरी आदत छोड़ने के लिए लोगों से भावनात्मक अपील करने पर निर्भर रही है, लेकिन उसने गम्स और पैचेस से इतर विकल्पों की अभी तक कोई पेशकश नहीं की। इनकी सफलता की दर खासी कम रही है। सरकार की सभी उत्पादों और सेवाओं के लिए उपभोक्ताओं को ज्यादा विकल्प उपलब्ध कराने की नीति से इतर ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाना पीछे हटने वाला कदम है।'
एवीआई के डायरेक्टर प्रतीक गुप्ता ने कहा, 'हमारी हैल्थ बॉडीज द्वारा वैपिंग के स्वास्थ्य पर असर के संबंध में कराई गई स्टडीज को देखते हुए ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने का विचार बिना सोचा-समझा है। इसके अलावा यूके जैसे देशों में हुई कई वैज्ञानिक स्टडीज के बाद एक्सपर्ट्स और सरकारों ने स्मोकर्स के बीच वैपिंग को प्रोत्साहन दिए जाने की बात को मान लिया है। इसलिए ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने की जल्दबादी समझ से परे है।'
ई-सिगरेट न सिर्फ सिगरेट की तुलना में कम नुकसानदेह है, बल्कि इससे स्मोकर्स को निकोटिन पर निर्भरता से छुटकारा पाने में भी मदद मिलती है। इसके अलावा वैपिंग आसपास खड़े लोगों के लिए कम जोखिम भरी है, जो पैसिव स्मोकिंग के शिकार होते हैं।
अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और यूके जैसे विकसित देशों में ई-सिगरेट के इस्तेमाल को रेग्युलेटरी मंजूर के अच्छे नतीजे सामने आए हैं। इन देशों में हाल के वर्षों में स्मोकिंग की दर तेजी से गिरी है।
इसके विपरीत भारत में स्मोकिंग का चलन तेजी से बढ़ रहा है और ऐसे में स्मोकर्स की इच्छा-शक्ति पर निर्भर रहने के बजाय काफी कुछ करने की जरूरत है, क्योंकि इसमें असफलता की दर 95 प्रतिशत के आसपास है। इसके अलावा, एक सीमा से ज्यादा टैक्स बढ़ाने के दूसरे नुकसान हो सकते हैं और स्मोकर्स ज्यादा नुकसानदेह और सस्ते विकल्पों की ओर रुख कर सकते हैं।
चौधरी ने कहा, 'हम सरकार और स्वास्थ्य विभागों सें तम्बाकू की महामारी से लड़ने में तम्बाकू के नुकसान में कमी की भूमिका पर गंभीरता से विचार करने का अनुरोध करते हैं, जिससे देश में हर साल 10 लाख लोगों की मौत हो रही है।' उन्होंने कहा कि स्वीडिश स्नस के रूप में कम जोखिम वाले धुआंरहित तम्बाकू भी उपलब्ध है, जो ई-सिगरेट के समान ही है और जिसे नुकसान में 95 प्रतिशत की कमी पाई गई है। उन्होंने कहा, 'इसके लिए “छोड़ो या मर जाओ” के नैतिकतावादी नजरिए की तुलना में ज्यादा व्यावहारिक नजरिए की जरूरत होगी।'
गुप्ता ने किशोरों यानी टीन्स में वैपिंग का इस्तेमाल बढ़ने के आरोपों के जवाब में कहा, 'दुनिया की तुलना में भारत में वैपर्स, पूर्व स्मोकर्स हैं। हम कम उम्र और नॉन स्मोकर्स द्वारा इसके इस्तेमाल का विरोध करते हैं और इस दिशा में उठाए जाने वाले कदमों का समर्थन करेंगे।'
एवीआई डायरेक्टर ने कहा कि सरकार किशोरों को इसके इस्तेमाल से रोकने के लिए सिगरेट और अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम के अंतर्गत ई-सिगरेट की बिक्री को रेग्युलेट कर सकती है।


लिवर डिजीज सेंटर

कोलकाता स्थित मुख्यालय वाले मेडिका हॉस्पिटल्स ने साउथ एशियन लिवर इन्स्टीट्यूट के सहयोग से-मेडिका सेंटर फॉर लिवर डिजीज - की शुरुआत की है।


मेडिका सेंटर फॉर लिवर डिजीज का उद्देश्य, पूर्वी भारत में प्रत्यारोपण सहित लिवर की तमाम बीमारियों की इलाज संबंधी जरूरतों को पूरा करना है। इस सेंटर में लिवर, पैनक्रियाज और पित्त की थैली संबंधी बीमारियों के इलाज की सुविधा उपलब्ध है। मेडिका के लिवर प्रत्यारोपण कार्यक्रम में जीवित एवं कडैवर (मृत) दोनों, दाता (डोनर) शामिल होंगे। मेडिका, पूर्वी भारत के उन चंद अस्पतालों में से एक है, जहां प्रत्यारोपण सर्जरी सहित, लिवर संबंधी जटिल बीमारियों के इलाज की सुविधा है।


मेडिका सुपरस्पेशलटी हॉस्पिटल में गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी के निदेशक डॉ. प्रदीप्ता कुमार सेठी कहते हैं, लिवर डिजीज सेंटर की शुरुआत, निश्चित तौर पर एक सामयिक निर्णय है। इसमें संदेह नहीं कि अब हम लिवर संबंधी बीमारियों से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए समग्र दृष्टिकोण अपना सकेंगे।


 मेडिका सेंटर फॉर लिवर डिजीज के बारे में बात करते हुए साउथ एशियन लिवर इन्स्टीट्यूट के संस्थापक प्रो. (डॉ.) टॉम चेरियन ने कहा, हम चाहते हैं कि लिवर संबंधी बीमारियों का विश्वस्तरीय इलाज हो। और विश्वस्तरीय क्या है? इसका सीधा-सा मतलब है कि लिवर की बीमारी का इलाज चाहे लंदन में हो या कोलकाता में, दोनों में कोई अंतर नहीं होना चाहिए। मैं, भरोसा दिलाना चाहता हं कि लिवर की बीमारी का इलाज, जिस तरह लंदन में करता था, उसी तरह यहां कोलकाता में भी करूंगा। हमने कोलकाता के बहुत से मरीजों का इलाज किया है, वो अच्छा जीवन जी रहे हैं और अपने शहर लौट आए हैं। लेकिन अपने इलाज के लिए, उन्हें बहुत लंबी यात्रा करनी पड़ती थी। मुझे खुशी है कि हम उस इलाज को इस महान शहर तक लाने में सक्षम हैं, जो शानदार लिवर सर्विस के लिए सर्वथा उचित है।


मेडिका अस्पताल समूह के चेयरमैन डॉ. आलोक रॉय ने कहा, लिवर डिजीज सेंटर बहुत बड़ा कदम है, और मेरा मानना है कि यह न केवल कोलकाता और बंगाल, बल्कि समूचे पूर्वी भारत के लिए भी मील का पत्थर है। हमारे पास लिवर संबंधी बीमारियों एवं उससे जुड़ी दिक्कतों से निपटने के लिए आधारभूत ढांचे के अलावा डॉक्टरों और सर्जनों की शानदार टीम है।


अधिक उम्र में मां बनने का खतरनाक चलन

आज के समय में कई तरह की खतरनाक प्रवृतियां सामने आ रही हैं जिनमें से एक प्रवृति यह है कि आज महिलाएं मीनोपॉज होने के बाद नई प्रजनन तकनीकों का सहारा लेकर मां बन रही हैं। हाल ही में ऐसी रिपोर्टें सामने आई कि 74 साल और 70 साल की महिलाओं ने आईवीएफ के जरिए शिशुओं को जन्म दिया और इससे आईवीएफ तकनीक के गलत इस्तेमाल का संगीन मुद्दा सामने आया। 
डॉ. ज्योति बाली ने मातृ आयु और आईवीएफ तकनीक के दुरुपयोग के मुद्दे के बारे में बताया कि जीवन के तीसरे, चौथे, 5 वें और अब छठे दशक तक प्रसव में देरी करने वाली महिलाओं का अनुपात शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रहा है।
डॉ. ज्योति बाली बेबीसन फर्टिलिटी एंड आईवीएफ सेंटर की मेडिकल डायरेक्टर हैं और साथ ही दिल्ली चैप्टर, इंडियन सोसायटी ऑफ असिस्टेड रिप्रोडक्शन और दिल्ली गायनकोलॉजी फोरम की सेक्रेटरी हैं तथा नेशनल वुमन विंग, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ज्वाइंट सेक्रेटरी हैं।



इस तथ्य पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि यह एक आम भ्रामक धारणा है कि प्राकृतिक प्रजनन क्षमता की भरपाई आईवीएफ द्वारा की जा सकती है। उम्र बढ़ने के साथ बांझपन में प्राकृतिक गिरावट होती है। लेकिन जानकारी की कमी और इसकी बढ़ती लोकप्रियता दोनों के कारण बड़ी उम्र में मां बनने की यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है यह होने वाले बच्चे और मां दोनों के लिए उचित नहीं है साथ ही प्रजनन विशेषज्ञों के लिए भी चुनौतीपूर्ण होता है।ऐसे में इस समस्या से बचने का एक मात्र उपाय है कि आप क्रायोप्रिजर्वेशन तकनीक का इस्तेमाल करके अपने अण्डाणुओं को फ्रीज करवा के रख ले। जिसे बाद में इस्तेमाल किया जा सकता है। 35 वर्ष की आयु क्रायोप्रिजर्वेशन के लिए उचित समय है। हालांकि फिर भी हम छठे दशक में जाकर गर्भधारण करने और करवाने की गलत प्रैक्टिस का पूरी तरह से विरोध करते हैं। आई सी एम आर गाइडलाइन के मुताबिक 50 वर्ष की आयु तक ही गर्भधारण किया जाना चाहिए। इससे अधिक आयु में गर्भ धारण करना अवैध है।


युवा एवं खेल मंत्री किरेन रिजिजू ने इंटरनेट का उपयोग करके स्टार्ट-अप्स और वेंचर्स के विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बने प्लेटफार्म का अनावरण किया

युवा एवं खेल मंत्री किरेन रिजिजू ने इंटरनेट का उपयोग करके स्टार्ट-अप्स और वेंचर्स के विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बने प्लेटफार्म का अनावरण किय
 
युवा व खेल मंत्री किरेन रिजिजू ने सोशल मीडिया के स्मार्ट इस्तेमाल से उपक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए इपलिक्स मीडिया का अनावरण किया
 
नई दिल्ली, सितंबर 22, 2019: किरेन रिजिजू, केंद्रीय राज्य मंत्री (युवा मामले एवं खेल), भारत सरकार, एक अद्वितीय अवधारणा- इपलिक्स मीडिया का अनावरण करने के लिए यहां होटल ताज महल में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे। मंत्री ने प्रोजेक्ट -इपलिक्स मीडिया शुरू करने की घोषणा की।
 
इस कार्यक्रम की मेजबानी जैग  चीमा और नील गोगिया ने की। चीमा एक पंजाबी एनआरआई, सीरियल एंटरप्रिन्योर और प्रेरक वक्ता हैं, जिन्हें देश-विदेश में फिटनेस उद्योग में उच्च मानक स्थापित करने के लिए जाना जाता है। नील गोगिया एक युवा डिजिटल उद्यमी हैं, जिनका काम इन्फ्लुएंसर्स और ब्रांडों के बीच के गैप को कम करना है। इपलिक्स उचित तरीके से इंटरनेट और सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए वेंचर्स की व्यावसायिक वृद्धि में क्रांति लाने के लिए तैयार है। फिटनेस संबंधी आइडियाज और जागरूकता का प्रसार भी इस पहल का एक प्रमुख उद्देश्य रहेगा।
 
मीडिया को संबोधित करते हुए, किरेन रिजिजू ने कहा, 'स्वास्थ्य हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और यह हमारी शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न अंग होना चाहिए। हम सभी को इस पर विचार करना चाहिए कि कैसे हम देश को फिट और स्वस्थ रखने के लिए समाज में एक फिटनेस चेतना ला सकते हैं। मैं इस पहल के लिए इपलिक्स को बधाई देता हूं।Ó
 
'किरेन रिजिजू एक युवा और डायनामिक मंत्री हैं और युवा मामलों के प्रभारी हैं। वे इस इनिशिएटिव के अनावरण के लिए सबसे सही व्यक्ति हैं, क्योंकि हमारा मंच प्रेरणा देता है और युवाओं को तकनीकों के साथ अपने उद्यम को बढ़ाने में मदद करता है। आज की एक्टिविटी का उद्देश्य इंटरनेट पर आधारित एक अद्वितीय ईको सिस्टम को दिखाना है, जो व्यवसाय में जुटे युवाओं के स्टार्ट-अप और आइडियाज की प्रगति के लिए आयोजित की गयी थी। हमारा मानना है कि इस तरह के प्लेटफार्म में भारतीय अर्थव्यवस्था काविकास करने और सैकड़ों हजार युवाओं को रोजगार प्रदान करने की क्षमता है,जैग चीमा ने कहा। 
गोगिया ने आगे कहा, 'इपलिक्स मीडिया भारत में प्रतिभा प्रबंधन के लिए अपनी तरह का एक अनूठा मंच होगा और लोगों को ब्रांड बनाने और व्यापार का विस्तार करने के लिए प्रभावशाली मार्केटिंग का उपयोग करने में मदद करेगा।Ó
 
आयोजन का एक अन्य उद्देश्य भी था - किसी उत्पाद या सेवा पर ब्रांड निर्माण और इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग के असर के बारे में चर्चा करना। किसी भी उद्यम के इन दो महत्वपूर्ण पहलुओं के महत्व को रेखांकित करने के लिए दो बहुत ही प्रासंगिक पैनल डिस्कशन भी हुए।
 
इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग पर चर्चा काफी जानकारीपूर्ण रही। पैनल डिस्कशन में मेजबान नील गोगिया,  जैग  चीमा, सलीम खान- एमएसके, अभिनव महाजन, तान्या खानिजो, रोहित राज, श्लोक श्रीवास्तव और निहारिका सिंह की भागीदारी देखी गई। पैनल ने इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग द्वारा सोशल मीडिया स्पेस में मौजूद संभावनाओं पर चर्चा की और बताया कि यह किस तरह से ब्रांडों और उपक्रमों को विकसित कर सकती है। ब्रांड पैनल में नील गोगिया और जग चीमा की बातचीत बहुत दिलचस्प रही। इतना ही नहीं, नीरव शाह, डिजिटल मार्केटिंग हेड- सिस्का, ने ढेर सारी जानकारियां शेयर कीं। हितेश, संस्थापक- द मैन कंपनी, विजय शर्मा, जिमपैक और जिम डोनेली की बातचीत भी प्रभावी थी।
 
उल्लेखनीय है कि जैग  चीमा ने प्रतिष्ठित क्रिस गेथिन जिम की स्थापना की है, जो कि क्रिस गेथिन के प्रतिष्ठित फिटनेस ट्रेनर हैं। साथ में उन्होंने बॉलीवुड अभिनेताओं जैसे ऋतिक रोशन, जॉन अब्राहम, रणवीर सिंह आदि की बॉडी को रीशेप किया है। चीमा ने भारत में फिजिक ग्लोबल की शुरुआत की, जो दुनिया भर के फिटनेस उत्साही लोगों के लिए फिटनेस मेंटरिंग करने वाली संस्था है। उन्होंने फिटनेस की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए दिल्ली-मुंबई की दूरी साइकिल से छह दिन में पूरी की। चीमा भी एक परोपकारी हैं, जिन्होंने अप्रैल 2017 में, एक ट्रायथलॉन पूरा किया और जालंधर में पंजाब की अवांछित, परित्यक्त लड़कियों के लिए होम स्थापित करने हेतु हजारों पाउंड जुटाए।


‘प्लास्टिक दो, थैला लो’ अभियान

गीता काॅलोनी में 'प्लास्टिक दो, थैला लो' अभियान 


21 सितम्बर 2019
कृष्णा नगर, पूर्वी दिल्ली



गोयल हाॅस्पिटल एंड यूरोलाॅजी सेंटर ने आज कृष्णा नगर के गीता कॉलोनी स्थित अखाड़े वाली गली में फ्री हेल्थ चेकअप कैम्प संचालन व मुफ्त दवाईयां वितरण किया। कैम्प संचालन के दौरान यूरोलाॅजी सेंटर के संचालक एवम् भाजपा चिकित्सा प्रकोष्ठ दिल्ली के सहप्रभारी डाॅ अनिल गोयल ने अखाड़े वाली गली में 'प्लास्टिक दो, थैला लो' अभियान की शुरुआत किया।

उन्होने भारत प्रदूषण नियंत्रण संघ (IPCA) से मिलकर गलियों मे प्लास्टिक इकट्ठा किया व कपडे थैला का वितरण किया। IPCA प्लास्टिक कचरा को इकट्ठा करके विद्युत ऊर्जा उत्पन्न कर रही है। 

उन्होने अखाड़े वाली गली के घर-घर में जाकर प्लास्टिक के थैले व सामान से होने वाला नुकसान के बारे में बताया और स्थानीय को प्लास्टिक उपयोग न करने का शपथ दिलाया । 

उनके साथ पूर्वी दिल्ली नगर निगम पार्षद संदीप कपुर ने स्थानीय को कपड़े के थैले बांटे। उन्होने प्लास्टिक के थैले को छोड़कर कपडें के थैले व सामान प्रयोग करने की सलाह दिया। 

फ्री हेल्थ चेकअप कैम्प संचालन व मुफ्त दवाईयां वितरण पर करीब 300 स्थानीय निवासियों को मुफ्त स्वास्थ्य परीक्षण के साथ-साथ मुफ्त दवाईयां वितरण किया गया।


Claw Toes : हाई हील और संकरे जूते चप्पलों से पैरों की में हो सकती है स्थाई विकृति


What is Claw Toes : महिलाओं में हाई हील वाली सैंडिलों और और बहुत संकरी जूतियों के पहने का चलन बढ़ रहा है लेकिन लंबे समय तक इनका प्रयोग करने से पैरों की उंगलियों में स्थाई विकृति आ सकती है और पैरों की उंगलियां पक्षियों के पंजे की तरह मुड़ सकती हैं। ऐसी उंगलियों को 'क्लॉ टो' कहा जाता है जिसमें पैरों की उंगलियां अंग्रेजी के अक्षर 'वी' के आकार की हो जाती है। इसमें उंगलियां बीच की जोड़ के पास उठ जाती है और अंतिम जोड़ के पास नीचे झुक जाती है और देखने में ये उंगलियां पक्षियों के पंजे की तरह लगती हैं। ये उंगलियां केवल देखने में ही खराब नहीं लगती बल्कि ये आपके लिए कष्ट का कारण बन सकती हैं और आपके लिए खड़ा होना और चलना फिरना दूभर हो सकता है।


विशेषज्ञों के अनुसार हाई हील वाली सैंडियों एवं जूतियों के पहनने के कारण शरीर का पूरा वजन उंगलियां पर आ जाता है। इसके अलावा बहुत अधिक तंग जूते-सैंडिलें पहनने से पैरों की उंगलियां मुड जाती है। ऐसे जूते पैरों की मांसपेशियों को कमजोर बनाती हैं और "क्लॉ टो" जैसी समस्याओं को जन्म देती हैंसमय के साथ यह समस्या बढ़ती जाती है और कुछ समय बाद अस्थाई विकृति का रूप ले लेती है जिसे ठीक करने के लिए सर्जरी कराने की नौबत आ जाती है।


नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन तथा आर्थराइटिस केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डा. राजू वैश्य कहते हैं कि हर व्यक्ति को अपने पैरों के अनुरूप सही माप के जूते एवं चप्पलों का ही प्रयोग करना चाहिए। ऐसा करने से पैरों से संबंधित अनेक समस्याओं को रोका जा सकता है। जिन जूते-चप्पलों के आगे के हिस्से बहुत पतले होते हैं या जिनमें बहुत अधिक हील होते हैं उन्हें लंबे समय तक पहने से पैर की उंगलियों में 'क्लॉ टो' या 'हैमर टो' के अलावा घुटने एवं कमर में दर्द जैसी समस्याएं हो सकती है। हाई हील वाले जूते और सैंडिलों के कारण पैर के निचले गद्देदार हिस्से (फैट पैड) तथा पैर के आगे के हिस्से, खास तौर पर पैर की उंगलियों पर बहुत अधिक दवाब पड़ता हैहील जितनी अधिक होगी दवाब उतना ही अधिक होगा तथा पैर के निचले एवं आगे के हिस्से क्षतिग्रस्त होने की आषंका उतनी ही अधिक होगी।


एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में करीब 20 प्रतिशत लोग क्लॉ टो से प्रभावित हैं। उम्र बढ़ने के साथ यह समस्या बढ़ती है। यह समस्या 70 साल या अधिक उम्र के लोगों में अधिक पाई जाती है। भारत में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार पुरूषों की तुलना में महिलाओं में यह समस्या चार से पांच गुना अधिक होती है। क्लॉ फुट वह स्थिति है, जिसमें पैरों की उंगलियां पक्षियों के नखों के समान अंदर की ओर मुड़ जाती हैं। क्लॉ फुट की समस्या जन्मजात भी हो सकती है, या आपकी उंगलियां उम्र बढ़ने के साथ अंदर की ओर मुड़ सकती हैं। कई बार पैरों की उंगलियों में संकुचन मांसपेशियों की कमजोरी, आर्थराइटिस या जन्मजात समस्याओं के कारण होता है, लेकिन इनमें से अधिकतर मामले टाइट जूतों के कारण होते हैंपैरों की उंगलियों की गतिशीलता के आधार पर क्लॉ टोज को वर्गीकृत किया जाता है। यह दो प्रकार के होते हैं -लचीले और कठोरइसमें पंजों के अगले हिस्से के निचले भाग पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे दर्द हो सकता है और कॉर्न तथा कैलस विकसित हो सकते हैंडा. राजू वैश्य के अनुसार 'क्ला टो' का मुख्य कारण मधुमेह और गठिया (रूमेटाइड आर्थराइटिस) भी है।


भारत में क्ला टो का एक प्रमुख कारण गठिया है, खास तौर पर महिलाओं में। गठिया से ग्रस्त अनेक लोगों में क्लॉ टो के अलावा बुनियंस, कैलुसेस की भी समस्या उत्पन्न होती है। आरंभिक स्थिति में मरीज को कुछ विशेष एक्सरसाइज करने और खास डिजाइन किए शूज पहनने की सलाह दी जाती है ताकि दबाव को कम किया जा सके, लेकिन अगर उंगलियों में कड़ापन एवं विकृति ज्यादा हो तो सर्जरी की जरूरत पड़ती हैगठिया से ग्रस्त कई लोगों में पैरों की उंगलियों में कार्न दिखाई देने लगते हैं। जब कॉर्न का आकार बहुत बड़ा हो जाता है तो उन्हें काटकर निकालना पड़ता है'क्ला टो' होने पर में मुड़ी हुई उंगलियां में लचीलापन होता है लेकिन धीरे-धीरे ये सख्त हो जाती है और चलने में दिक्कत होने लग सकती है।


विशेषज्ञों का कहना है कि अगर पैरों की उंगलियों पर लगातार दबाव पड़ता रहे तो पैरों की उंगलियों की यह विकृति कड़े क्लॉ टोज में बदल जाती है, जिसका उपचार करना अधिक कठिन होता है। क्लॉ फुट होने के कई कारण हैंटखनों की सर्जरी या चोट इसका एक कारण हो सकती हैक्षतिग्रस्त तंत्रिकाएं पैरों की मांसपेशियों को कमजोर कर देती हैं, जिससे पैरों का संतुलन गड़बड़ा जाता है और उंगलियां मुड़ जाती हैं। सूजन के कारण भी उंगलियां नखों की तरह मुड़ जाती हैं। इसके अलावा रूमेटाइड आर्थराइटिस भी प्रमुख कारण है। इस ऑटो इम्यून रोग में इम्यून तंत्र जोड़ों के स्वस्थ उतकों पर आक्रमण करता है, जिसके कारण जोड़ों की सबसे अंदरूनी परत सूज जाती है एवं जोड़ों में क्लॉ टोज होता हैन्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के कारण भी यह समस्या हो सकती हैयह एक जन्मजात विकृति है। जैसे सेलेब्रल पाल्सी मस्तिष्क के असामान्य विकास के कारण, मांसपेशियों की टोन प्रभावित होती है जिससे या तो वो बहुत कड़ी या बहुत ढीली हो जाती हैं। डायबिटीज- डायबिटीज के कारण पैरों की तंत्रिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं जिसके कारण इस प्रकार की विकृति होती हैस्ट्रोक- स्ट्रोक के कारण तंत्रिकाएं गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और आपकी मांसपेशियों को प्रभावित करती हैं, इनमें पैरों की मांसपेशियां भी सम्मिलित होती हैं।


Treatment of Claw Toes : इंडियन कार्टिलेज सोसायटी के अध्यक्ष डा. राजू वैश्य के अनुसार अगर इस रोग का पता जल्दी ही चल जाए और उपचार उपलब्ध हो जाए तो गंभीर जटिलताओं को रोका जा सकता है और जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता हैअगर इसके साथ दूसरी स्वास्थ्य समस्याएं जैसे डायबिटीज और रूमेटाइड आर्थराइटिस भी हैं तो उसका उपचार भी साथ में होगा। सर्जरी गंभीर मामलों में ही ही होती हैक्लॉ टो की समस्या की गंभीरता और उंगलियां की विकृति के आधार पर उपचार में दवाईयां, फिजियोथेरेपी और कुछ घरेलु उपाय सम्मिलित होते हैंऑपरेशन की जरूरत गंभीर मामलों में होती है


प्रसव से पहले और प्रसव के बाद व्यायाम कैसे करें 

आप किसी भी समय नियमित व्यायाम करती हैं, आपकी सेहत और आपकी कार्य क्षमता में सुधार होगा, एनर्जी लेवल बढ़ेगा और आपका मूड ठीक होगा, आपको अच्छी नींद आएगी और अपकी मांसपेशियों की ताकत में सुधार होगा। गर्भावस्था में भी अगर आप बेहतर तरीके से व्यायाम कार्यक्रम बनाती हैं तो इससे उसी तरह के लाभ होंगे। गर्भावस्था के पूर्व और बाद में नियमित व्यायामक करने से आपका स्वास्थ्य सुधरता है, अतिरिक्त वजन बढ़ने और पीठ दर्द होने के खतरे कम होते हैं और इससे यह प्रसव भी आसान बन सकता है। साथ में जन्म लेने वाले बच्चे के जीवन की स्वस्थ शुरूआत हो सकती है। हालांकि यह जरूरी है कि आप अपने चिकित्सक के साथ व्यायाम संबंधी आदत में किसी भी बदलाव के बारे में चर्चा करें ताकि आप गर्भावस्था के सही चरण पर सही व्यायाम करें। 
नीचे कुछ व्यायाम दिए गए हैं जिन्हें आप गर्भावस्था से पहले और बाद में अपने शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए कर सकती हैं। 


पूर्व प्रसव
मोटे तौर पर प्रसव पूर्व व्यायामों को गर्भावस्था के दौरान ट्राइमेस्टर के अनुसार परिवर्तित किया जाता है -
1. साँस लेने के व्यायाम अनिवार्य हैंः गर्भावस्था के दौरान, बढ़ते बच्चे के कारण डायाफ्राम फैल जाता है जिससे काम करने की आपकी क्षमता में कमी आती है और सांस लेने में दिक्कत होती है। इससे सांस की अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं जो मां और बच्चे दोनों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं। इसलिए, गर्भवती महिलाओं के लिए श्वसन के व्यायाम बहुत जरूरी है। 


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2. पेट की मांसपेशियों को मजबूत करने तथा पीठ की मांसपेशियों को मजबूत बनाने के व्यायाम : प्रसवकाल के दौरान पेट को मजबूत करने और पीठ की मांसपेशियों को स्थिर करने वाले व्यायाम पर आपको जरूर ध्यान देना चाहिए। चूंकि कई बार हार्मोन में बदलाव के कारण पीठ के निचले हिस्से के आस-पास के क्षेत्र विशेष रूप से कमजोर हो जाते हैं, इसलिए पेट के सही व्यायाम करना महत्वपूर्ण है।
3. स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज से बचें : प्रसवपूर्व की फिटनेस के दौरान स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज से बचें और पैरों और एड़ियों को मजबूत बनाने वाले व्यायाम पर अधिक ध्यान दें ताकि पैरों के निचले हिस्से में सूजन की समस्या से बचा जा सके। 
4. संतुलन बनाए रखने का प्रयास करें : प्रसवपूर्व व्यायायम करने के दौरान अपने शरीर का संतुलन बनाए रखना बहुत ही महत्वपूर्ण है। शरीर और संतुलन पर ध्यान देना जरूरी है क्योंकि जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है मां की शारीरिक मुद्राएं भी बदलती है। इसलिए बच्चे की सामान्य वृद्धि और सही मुद्रा बनाए रखने के लिए, शरीर का संतुलन बनाने रखने का प्रयास करना जरूरी है। 
प्रसव के बाद :
1. पेल्कि फ्लोर को वापस पूर्व स्थिति में लाना : मूत्राशय के कमजोर होने जैसी दीर्घकालिक समस्याओं से बचने के लिए पेल्विक फ्लोर को धीरे-धीरे पूर्व स्थिति में लाने के लिए काम करें। आप पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए कुछ केगेल व्यायाम का अभ्यास करके ऐसा कर सकती हैं। यह बच्चे के जन्म के बाद होने वाली मूत्र असंयम (इंकंटीनेंस) को रोकने में मदद करता है। केगल्स करने के लिए, योनि के आस-पास की मांसपेशियों को इस तरह से निचोड़ें मानो कि आप मूत्र के प्रवाह को रोकना चाहती हैं। इसे लगभग 10 सेकंड तक रोकें, सामान्य रूप से सांस लें और फिर धीरे-धीरे छोड़ें।
2. एब्स सिट-अप एक्सरसाइज से बचेंः बच्चे को जन्म देने के बाद कई महिलाएं डायस्टेसिस रेक्टी से पीड़ित हो जाती हैं। यह पेट की मध्य रेखा की चौड़ाई में वृद्धि है। यह स्थिति गर्भावस्था के दौरान और गर्भावस्था के बाद महिलाओं में काफी सामान्य और सामान्य है। इसलिए, एब सिट अप जैसी एक्सरसाइज से बचना जरूरी है जो पेट पर अधिक दबाव डाल सकती हैं।
3. अनुभवी प्रशिक्षक की निगरानी : प्रसव बाद व्यायाम के लिए एक उचित ट्रेनर की निगरानी या मार्गदर्शन जरूरी है। अनुभवी ट्रेनर आपको प्रभावी तरीके से अपनी पेट की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करेगा।
4. शारीरिक मुद्रा और एलाइनमेंट को पूर्व स्थिति में लाना : बच्चा पैदा होने के बाद, शरीर कई बदलावों से गुजरता है; इसलिए शरीर के आकार को पूर्व स्थिति में वापस लोने के लिए अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है। देखभाल करने के दौरान पीठ और कंधे के दर्द जैसे संभावित चोट से बचने के लिए मुद्रा एलाइनमेंट पर ध्यान देना जरूरी है। 


अपने आहार में से कैसे करें चीनी कम 

Image Source : www.insider.com अक्सर आइसक्रीम की स्कूप के लिए तरसने या चॉकलेट खाने की लालसा करने में निश्चित रूप से कुछ भी गलत नहीं है। इसमें केवल एक ही चीज गलत है कि बहुत अधिक चीनी का स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव होता है और यह वजन घटाने के लिए हानिकारक हो सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि फल, सब्जियां और दूध और दुग्ध उत्पाद जैसी चीजों में स्वाभाविक रूप से पाए जाने वाले शर्करा, बाहरी शर्करा की तुलना में अधिक पौष्टिक होते हैं, क्योंकि उनमें महत्वपूर्ण विटामिन और पोषक तत्वों के साथ-साथ फाइबर और प्रोटीन भी होते हैं जो उनके पाचन को धीमा कर देते हैं और उन्हें ऊर्जा का अधिक स्थिर स्रोत प्रदान करते हैं।
खाद्य पदार्थों में स्वाभाविक रूप से पायी जाने वाली चीनी ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने और आपके समग्र स्वास्थ्य दोनों के लिए काफी फायदेमंद है, इसलिए अपने भोजन में बाहर से चीनी डालना बंद करें।
यहाँ मैं आपको खान-पान से संबंधित कुछ ऐसे सरल तरीकों के बारे में बता रही हूं जिससे आप अपने आहार में चीनी की कटौती कर सकते हैं :
1. न्यूट्रिशनल लेबल को सावधानी पूर्वक पढ़ें
आप कुछ सामान्य बातों का पालन कर अपने स्वास्थ्य की बेहतर देखभाल कर सकते हैं जैसे कि आप क्या खा रहे हैं यह जानना जरूरी है। आप अपनी भूख मिटाने के लिए जिस खाद्य पदार्थ का सेवन करना चाह रहे हैं उसके लेबल को ध्यान से देंखें। खाद्य पदार्थ पर लगे लेबल आपको पोषक तत्वों से भरपूर खाने के बारे में स्मार्ट विकल्प की तलाश करने में मदद करते हैं। चीनी को अक्सर अन्य नामों के रूप में भी लिखा जाता है इसलिए यह अवयव सूची को पढ़ने में समझदारी है। कुछ व्यंजनों में चीनी छिपी हुई होती है। उन्हें लेकर सतर्क रहें।
2. अपने नाश्ता को स्वादिष्ट बनाने के लिए फल और दालचीनी को शामिल करें
पैक किए गए अनाज, दही, चिप्स में अक्सर चीनी काफी मात्रा में होती है। आप इनमें शहद, मेपल सिरप या किसी अन्य स्वीटनर को डाल सकते हैं। लेकिन अगर सावधानी नहीं बरतेंगे तो आप अतिरिक्त चीनी डाल सकते हैं इसलिए इसके बजाय, सादे दही में ताजे फल और कुछ नट्स डालना एक अच्छा विचार है। आप अपने पारिज में एक छोटी चुटकी दालचीनी डालें। दालचीनी में चीनी नहीं होती है, लेकिन इसमें चीजों को मीठा बनाने की प्रवृत्ति होती है। स्वादिष्ट चीजों में हमेशा ढेर सारी चीनी नहीं होती है।
3. आप खुद जूस तैयार करें या फल खाएं, क्योंकि फल खाना अधिक बेहतर है
सभी संसाधित जूस स्वास्थ्यवर्द्धक नहीं होते हैं। वे चीनी पानी की तुलना में थोड़ा अधिक फायदेमंद होते हैं। इसलिए संषय में न पड़ें। कुछ मौसमी ताजा फल लें, इसे कच्चा खाएं या इससे ताजा जूस तैयार करें और इसमें चीनी और प्रीजर्वेटिव नहीं डालें।
4. मौसमी फल खाएं
प्रीजर्व किये गए और बेमौसमी फलों की तुलना में स्वादिष्ट ताजा मौसमी फलों जैसा कुछ नहीं है। इसलिए मौसमी फल खाने की आदत बना लें।
5. बेक करते समय या पुडिंग बनाते समय चीनी कम डालें
ज्यादातर मामलों में, आप अपने पसंदीदा व्यंजनों में चीनी की मात्रा में एक तिहाई की कटौती कर सकते हैं, या यहां तक कि आधा कर सकते हैं। चीनी की कम मात्रा से स्वादिश्ट, साथ ही अधिक स्वास्थ्यवर्द्धक डेजर्ट बन सकते हैं। इसलिए, जब आप अपने पसंदीदा खीर या कस्टर्ड पुडिंग को पकाने की योजना बनाते हैं, तो आप चीनी कम डाल सकते हैं।
6. कोला की बजाय एक गिलास पानी पीएं
इस बात पर बहस करना बेमानी है कि लोग कोला या पानी पीना पसंद करते हैं क्योंकि पानी की बजाय कोई भी पेय चीनी रहित नहीं होता है। सादे पानी के स्वास्थ्य लाभ स्पष्ट हैं। और, स्वाभाविक रूप से यह चीनी रहित है।
7. अपने दैनिक पेय में चीनी को शामिल न करें
रोजाना एक चम्मच चीनी के साथ कॉफी और चाय पीना लोगों की आदत होती है जो आपके वजन घटाने के लक्ष्यों में बाधा डाल सकती है। इसके बजाय, दूध का उच्च गुणवत्ता वाले चीनी रहित पेय बनाने की कोशिश करें।


क्यों होता है कमर दर्द और क्या है इसका उपचार

कमर दर्द किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है। यह समस्या 35 और 55 वर्ष के बीच आयु वर्ग के लोगों के बीच काफी आम है। एक अनुमान के अनुसार करीब 75 से 85 प्रतिशत लोगों को उनके जीवन काल में किसी न किसी रूप में कमर दर्द होता है।
कमर दर्द कई कारणों से हो सकता है जिनमें कमर की हड्डी में बीमारी, कमर की मांसपेशियों की कोई समस्या, डिस्क की समस्या, रीढ़ में चोट, ट्यूमर, टी.बी. या अन्य संक्रमण और दिमागी तनाव। हालांकि ज्यादातर मामलों में मांसपेशियों में समस्या के कारण ही कमर दर्द होता है। मांसपेशियों में खिंचाव, ठंड लगने, गलत तरीके से बैठने, ज्यादा देर तक काम करने, भारी सामान उठाने आदि कारणों से मांसपेशियों में समस्या आ सकती है।
फोर्टिस हास्पीटल, नौएडा तथा फोर्टिस एस्कार्ट हार्ट हास्पीटल, नई दिल्ली के ब्रेन एवं स्पाइन विभाग के निदेशक डा. राहुल गुप्ता बताते हैं कि उम्र बढ़ने के कारण डिस्क का पानी कम होता जाता है और कमर का लचीलापन घटता जाता है। कमर दर्द की समस्या से ग्रस्त करीब पांच से दस प्रतिशत लोगों में डिस्क के आसपास की नसों पर दबाव पड़ना शुरु हो जाता है। उम्र बढ़ने पर डिस्क का लचीलापन और पानी घटने के साथ ही डिस्क के बाहरी हिस्से का लिगामेंट भी ढीला पड़ जाता है। इससे थोड़ा सा वजन उठाने या हल्का झटका लगने पर डिस्क बाहर आ जाती है। इससे सायटिका का दर्द होता है। डिस्क बाहर निकल कर पीछे की तरफ फूल जाती है या नसों की तरफ निकल कर उन्हें दबाने लगती है। ज्यादा दबाव आने पर मरीज को कई बार लकवा मार देता है या मरीज टट्टी-पेशाब पर से नियंत्रण खो देता है।




कमर के किसी भी हिस्से में होने वाले दर्द को कमर दर्द कहा जाता है। यह आम तौर पर रीढ़ की मांसपेशियों, जोड़ों, नसों, हड्डियों या रीढ़ के अन्य हिस्सों से शुरू होता है। कमर दर्द हमारे पैरों एवं पीठ में भी जा सकता है और यह अवसाद (डिप्रेशन) और तनाव/चिंता जैसे अन्य कारकों से भी जुड़ा हो सकता है।
कमर दर्द की समस्या दिन भर काम करने वाली गृहणियों एवं ऑफिस में डेस्क पर बैठकर काम करने वाले कर्मचारियों को अधिक होती है। लेकिन कमर दर्द की समस्या से आजकल हर उम्र का व्यक्ति परेशान रहता है। आजकल बच्चों से लेकर बड़़े-बूढ़ों को भी कमर दर्द की शिकायत होती है। कमर दर्द का एक कारण अधिक देर तक एक ही अवस्था में बैठकर काम करना भी है। भारी वजन उठाने के कारण मांसपेशियों में अधिक खिंचाव आ जाता है जिससे कमर में दर्द हो जाता है। हमेशा ऊँची ऐडी की सैंडिल या जूतों को पहनने के कारण भी कमर में दर्द हो जाता है। कभी-कभी अधिक नर्म गद्दों पर सोने से भी कमर में दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अधिक देर तक ड्राइव करने के कारण भी लोगों को कमर में दर्द की शिकायत हो जाती है। बुजुर्गों के कमर में दर्द बढ़ती उम्र के कारण हो जाता है। जैसे-जैसे वृद्ध लोगों की उम्र बढती जाती है, वैसे-वैसे उनके जोड़ों में दर्द, कमर में दर्द तथा पीठ में दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
डा. राहुल गुप्ता के अनुसार कमर दर्द कई तरह से हो सकता है जैसे – अचानक तीव्र शुरुआत, लगातार लंबे समय तक दर्द, सुस्ती एवं दर्द, सुस्ती सहित दर्द, गहरी सनसनाहट, भेदने वाला तीव्र दर्द, गर्म या ठंडा महसूस होने के साथ कमर दर्द, कभी नहीं रुकने वाला लगातार दर्द, थोड़े समय के लिए आराम, उसके बाद फिर से दर्द का शुरू हो जाना, किसी खास हिस्से में दर्द और चारों तरफ फैलता हुआ दर्द।
कमर दर्द खतरनाक बीमारियों का संकेत हो सकता है
डा. राहुल गुप्ता बताते हैं कि आम तौर पर जब कमर दर्द होता है तो हम सोचते हैं कि शायद गलत वजन उठा लिया होगा या शायद गद्दा-बिस्तर ठीक नहीं है या हम गलत मुद्रा में बैठकर टीवी देख रहे थे। परंतु याद रहे कि कमर दर्द इतनी आसान समस्या भी नहीं है। सामान्य-सा प्रतीत होने वाला कमर दर्द किसी बड़ी मुसीबत का भी संकेत हो सकता है और अगर इसके सही कारण का पता नहीं चला और सही समय पर इलाज नहीं हुआ तो यह आपको जीवनभर के लिए विकलांग तक बना सकता है। कमर दर्द के कारण कई हो सकते हैं। डिस्क खिसक जाना, स्पोंडिलोसिस, कमर की हड्डी (मेरूदंड या बर्टिबा) में पैदाइशी विकृति, बढ़ी उम्र के कारण इन हड्डियों का कमजोर हो जाना आदि बहुत-से कारण तो वे हैं जो सीधे मेरूदंड की बीमारी से ताल्लुक रखते हैं। शरीर के किसी अंग में पनप रहा कैंसर भी कमर दर्द पैदा कर सकता है। कैल्शियम मेटाबॉलिज्म का नियंत्रण करने वाले सिस्टम (पैराथायरॉइड/ विटामिन डी/ किडनी आदि) की गड़बड़ी भी हड्डियों को कमजोर करके कमर दर्द पैदा कर सकती है। यह पढ़कर आपको डरने की जरूरत नहीं है बल्कि जागरूक और सावधान होने की जरूरत है।
कमर दर्द का उपचार
डा. राहुल गुप्ता के अनुसार कमर दर्द के इलाज के लिये सबसे पहले इसके कारणों का पता लगाया जाता है। कमर दर्द के कारणों की सही-सही और सबसे अधिक जानकारी मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग (एम.आर.आई.) से मिलती है। इससे यह पता चल जाता है कि किस नस पर कितना दबाव पड़ रहा है। आरंभिक स्थिति में कमर दर्द के इलाज के तौर पर चिकित्सक मरीज को आराम करने तथा व्यायाम करने की सलाह देते हैं। कई चिकित्सक मरीज को टै्रक्शन लगाने की भी सलाह देते हैं। लेकिन मरीज को कमजोरी, सुन्नपन और पेशाब करने में दिक्कत होने पर आपात स्थिति में ऑपरेशन करने की जरुरत पड़ जाती है। ऑपरेशन कई तरीकों से की जाती है। ऑपरेशन के दौरान दोनों तरफ की हड्डी या एक तरफ की हड्डी को काटकर उसमें छेद कर दिया जाता है। कमर दर्द के कारगर एवं कष्टरहित इलाज की खोज के लिये दुनिया भर में अध्ययन-अनुसंधान चल रहे हैं। इनकी बदौलत कमर दर्द के इलाज की अनेक कारगर एवं कष्टरहित विधियां एवं तकनीकें उपलब्ध हो गयी हैं। रीढ़ की सर्जरी पूरी तरह से सुरक्षित होती है। सर्जरी से कोई नुकसान नहीं बल्कि फायदा ही होता है। सर्जरी के 95 प्रतिशत से अधिक मामले सफल साबित होते हैं लेकिन सर्जरी सेंटर अच्छा होना चाहिए जहां योग्य एवं कुशल सर्जन हों तथा सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हों।


 



डा. राहुल गुप्ता के बारे में
डा. राहुल गुप्ता  नौएडा स्थित फोर्टिस हास्पीटल तथा नई दिल्ली स्थित फोर्टिस-एस्कार्ट हास्पीटल एंड रिसर्च सेंटर में न्यूरो सर्जरी विभाग के निदेशक हैं। उन्होंने जापान के नागोया विश्वविद्यालय से इंडोवैस्कुलर प्रक्रियाओं में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया है। उनके पास अनेक सरकारी संस्थाओं में फैकल्टी के रूप में काम करने का व्यापक अनुभव है।
उन्होंने रोहतक स्थित गवर्नमेंट मेडिकल कालेज से एमबीबीए एवं एमएस (जनरल सर्जरी) तथा चंडीगढ स्थित पीजीआईएमईआर से एमसीएच (न्यूरोसर्जरी) की उपाधि हासिल की। इसके बाद नागोया, जापान स्थित यूनिवर्सिटी आफ मेडिकल साइंसेस से सुगिता स्कॉलर प्राप्त किया। वह पीजीआईएमईआर (चंडीगढ) तथा जी बी पंत हास्पीटल (दिल्ली) में सहायक प्रोफेसर एवं अतिरिक्त प्रोफेसर रह चुके हैं।


अब युवा भी बन रहे हैं हार्ट अटैक के शिकार

जीवन के सबसे मूल्यवान और सबसे सक्रिय अवस्था से गुजर रहे युवा भी अब दिल की बीमारियों से अछूते नहीं रहे हैं। दिल की बीमारियों के कारण अब युवाओं और स्वस्थ दिखने वाले लोगों की भी दिल के दौरे के कारण अचानक मौत होने लगी है। दिल के दौरे से अब केवल उच्च कोलेस्ट्रॉल और उच्च रक्तचाप से पीड़ित अधिक वजन के पुरुष ही पीड़ित नहीं हो रहे हैं, बल्कि अब चिकित्सकों के पास खुद पैदा किये गये जोखिम कारकों के कारण 30 से 40 वर्ष के युवा दिल के रोगी भी इलाज के लिए आ रहे हैं। 
हृदय रोग विशेषज्ञ तथा नई दिल्ली स्थित कालरा हास्पीटल एंड श्री राम कार्डियो थोरेसिक न्यूरोसाइंसेस सेंटर के निदेशक एवं प्रमुख कार्डियोलॉजिस्ट डा. आर. एन. कालरा ने युवा पीढ़ी में बढ़ती दिल की बीमारियों के मद्देनजर मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों को नियमित अंतराल पर अपना चेकअप कराने की सलाह दी। 
डा. कालरा कहते हैं कि हमारे देश में हार्ट अटैक सहित कोरोनरी हार्ट रोगों (सीएचडी) का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। इसने भारतीय आबादी में पहले नम्बर के हत्यारे के रूप का स्थान ले लिया। ऐसे में लोगों को दिल की बीमारियों के बारे में शिक्षित करना बहुत ही महत्वपूर्ण है ताकि वे इन रोगों से बचने के लिए अपने रोजमर्रे के जीवन में सुधार ला सकें तथा हृदय रोगों से मुक्त होकर स्वस्थ जीवन जी सकें। 


डा. कालरा कहते हैं, ''दिल के दौरे के 60 प्रतिशत से अधिक मामलों को सही खान-पान, व्यायाम और धूम्रपान से परहेज जैसे जीवन षैली में सुधार की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन मौजूदा समय में युवा पीढ़ी अपनी जिंदगी इस तरह से जी रही है मानो उनका कोई भविष्य नहीं है। अस्वस्थ जीवन शैली के साथ-साथ गलाकाट प्रतियोगिता के कारण होने वाला तनाव और धूम्रपान जैसे कारक युवा में दिल की बीमारी पैदा करने के लिए बिल्कुल सही कारक साबित होते हैं। युवा पीढ़ी का तेजी से हृदय रोग का शिकार होना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। पहले दिल की बीमारी से पीड़ित पिता को उसके बेटे इलाज के लिए अस्पताल लेकर आते थे। लेकिन अब मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि पिता दिल की बीमारी से पीड़ित अपने बेटे को इलाज कराने के लिए अस्पताल लेकर आते हैं।''
युवाओं में मुख्य तौर पर धूम्रपान की लत, कामकाज से जुड़े अथवा कामकाज से इतर कारणों से होने वाले तनाव, अस्वास्थ्यकर आहार, अपर्याप्त शारीरिक श्रम तथा अधिक नमक वाले एवं पैकेट वाले खाद्य पदार्थों के सेवन के कारण दिल के दौरे बढ़ रहे हैं। यह पाया गया है कि जो युवक दिन भर में 10 सिगरेट पीते हैं उनके दिल की समस्याएं होने की आशंका 50 फीसदी बढ़ जाती है। धूम्रपान एवं गलत खानपान से कॉलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ जाता है जिससे दिल की धड़कन 50 प्रतिशत बढ़ जाती है और रक्त चाप 30 प्रतिशत बढ़ जाता है।
डा. आर. एन. कालरा बताते हैं कि युवाओं में दिल के दौरे का खतरा तब तक नहीं घटने वाला है जब तक कि कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाएगा। आज की समस्या यह है कि हम बहुत ही स्थूल जीवन शैली को अपना रहे हैं और ऐसी जीवन शैली में बहुत अधिक शारीरिक श्रम की गुंजाइश नहीं है। आज युवा मानसिक तथा शारीरिक तौर पर बहुत ही अधिक दवाब में हैं। इस समस्या का मुख्य समाधान यह है कि हम अपनी जीवन शैली में व्यापक बदलाव लाएं और अगर ऐसा करते हैं तो इससे समय से पूर्व होने वाले दिल के दौरे को रोका जा सकता है। यह देखा गया है कि नियमित रूप से व्यायाम करने वाले लोगों को जीवन में दिल की बीमारी होने या दिल के दौरे से मौत होने की आशंका कम होती है।
युवा हमारे देश के भविष्य हैं और युवाओं के स्वास्थ्य संबंधी मसलों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। सभी बीमारियों में से कार्डियो वैस्कुलर रोग समेत गैर संचारी रोग उनके लिए सबसे बड़े खतरे हैं। आधुनिक जीवन षैली इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है। दिल के दौरे का कारण बनने वाली जीवन शैली से जुड़ी अन्य आदतों में व्यायाम नहीं करने की आदत और जंक फुड का अधिक सेवन शामिल है। इसके अलावा आज के समय में युवा लोग अपना वक्त स्मार्टफोन, टैब, कम्प्यूटर, लैपटॉप आदि के जरिए व्यतीत करते हैं जो हमारे दिल के लिए बहुत अधिक नुकसानदायक है। 
डा. कालरा का सुझाव है कि लोगों को जंक फुड पर निर्भर रहने के बजाय स्वास्थ्यवर्द्धक आहार खाना चाहिए। स्वास्थ्यवर्द्धक आहार को अपनाना न केवल आसान है बल्कि यह काफी कारगर भी है। व्यस्त दिनचर्या होने के बावजूद अपनी जीवन शैली को संतुलित बनाने की कोशिश करें, अपनी प्राथमिकताओं को तय करें और उन्हें व्यवस्थित करें। आपको योग, नृत्य या अन्य तरह के व्यायाम अपनाना चाहिए। इससे आपको खुद को शारीरिक एवं मानसिक तौर पर स्वस्थ रखने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, फल एवं सब्जियों का सेवन अधिक मात्रा में करनी चाहिए, धूम्रपान, मादक द्रव्यों एवं स्टेरॉयड से दूर रहना चाहिए तथा हर सप्ताह कम से कम पांच दिन 45 मिनट तक व्यायाम करना चाहिए, शराब का सेवन कम करना चाहिए, 6 से 7 घंटे सोना चाहिए, मधुमेह एवं रक्त चाप को काबू में रखना चाहिए तथा टेलीविजन एवं स्मार्टफोन कम देखना चाहिए। इन सब उपायों को अपनाकर दिल की बीमारियों के खतरे को 80 प्रतिषत तक कम किया जा सकता है।