सुबह जागने पर सिरदर्द, किसी एक कान में घनघनाहट की आवाज गूंजने और सुनने की क्षमता में कमी आने तथा चाल में लड़खड़ाहट होने जैसी समस्याएं एकोस्टिक न्यूरोमा नामक ट्यूमर के संकेत हो सकते हैं जिसकी अनदेखी की बहरेपन और असामयिक मौत जैसी घातक परिणति हो सकती है। लेकिन एकोस्टिक न्यूरोमा से ग्रस्त मरीजों के लिये खुशखबरी यह है कि अब माइक्रोसर्जरी, गामा नाइफ एवं स्टीरियोटेक्टिक रेडियोथिरेपी जैसी नवीनतम तकनीकों की मदद से इसका इलाज पूरी सफलता के साथ होना संभव हो गया है।
मस्तिष्क के श्रवण संबंधी आठवें नर्व के बहुत धीमी गति से बढ़ने वाले ट्यूमर को एकोस्टिक न्यूरोमा कहा जाता है। यह ट्यूमर कैंसर रहित होता है। यह देखा गया है कि न्यूरोफाइब्रोमेटोसिस नामक जेनिटिक बीमारी से ग्र्रस्त लोगों में एकोस्टिक न्यूरोमा ट्यूमर होने की आशंका बहुत अधिक होती है।
एकोस्टिक न्यूरोमा के मामले हालांकि तुलनात्मक रूप से बहुत कम पाये जाते हैं लेकिन मस्तिष्क के सामान्यतम ट्यूमरों में से करीब आठ प्रतिशत ट्यूमर एकोस्टिक न्यूरोमा ट्यूमर के होते हैं। एक अनुमान के अनुसार हर साल एक लाख में एक व्यक्ति इस बीमारी का शिकार होता है।
इसके लक्षणों में सिर दर्द, उल्टी एवं जी मिचलाने, सुनने की क्षमता में कमी होने, चक्कर आने, चलने-फिरने में संतुलन बना नहीं पाने, चेहरे अथवा एक कान पर सूजन तथा दर्द, आधे चेहरे के सुन्न हो जाने तथा कभी-कभी देखने में दिक्कत जैसे लक्षण हो सकते हैं।
एकोस्टिक न्यूरोमा ट्यूमर के बारे में विस्तृत एवं सही जानकारी के लिये एम.आर.आई.कराना जरूरी होता है। इसके अलावा सीटी स्कैन, श्रवण परीक्षण (आडियोलाॅजी), संतुलन बनाने की क्षमता की जांच (इलेक्ट्रोनिस्टैग्मोग्राफी) तथा श्रवण एवं ब्रेन स्टेम के परीक्षण के लिये बी ए ई आर (बे्रन स्टेम आडिटरी इवोकड रिसपांस) जैसे परीक्षणों की भी जरूरत पड़ सकती है।
अगर एकोस्टिक न्यूरोमा ट्यूमर तीन संेटीमीटर से बड़ा हो तो ट्यूमर को हटाने के लिये आॅपरेशन का सहारा लेना पड़ता है। लेकिन ट्यूमर जब तीन सेंटी मीटर से छोटा होता है तब मरीज को गामा नाइफ से भी फायदा होता है। कुछ साल पहले होने वाले आॅपरेशनों से आसपास के स्नायुओं मुख्य तौर पर पांचवी, सातवीं, नौवीं और दसवीं नर्व के क्षतिग्रस्त होने की आशंका रहती थी लेकिन अब माइक्रोसर्जरी तकनीकों के विकास के कारण आसपास के नर्व ऊतकों को नुकसान पहुंचने की आशंका कम हो गयी है। कुछ मामलों में जब आपरेशन से गंभीर दुष्परिणाम होने की आशंका हो तो ट्यूमर के पूरे हिस्से को नहीं हटाया जाता है। आपरेशन के दौरान ट्यूमर के छोड़े हुये टुकड़े को गामा नाइफ अथवा रेडियोथिरेपी के जरिये समाप्त किया जाता है। ऐसी परिस्थिति आम तौर पर केवल उस समय आती है जब ट्यूमर ब्रेन स्टेम से चिपका हुआ होता है एवं ट्यूमर को निकालने के आपरेशन से बे्रन स्टेम के क्षतिग्रस्त होने की आशंका रहती है।
एकोस्टिक न्यूरोमा ट्यूमर को निकालने के लिये होने वाला आपरेशन अत्यंत जटिल किस्म का होता है और इसकी सफलता के लिये सुप्रशिक्षित सर्जन के अलावा माइक्रोस्कोप, नर्व स्टिमुलेटर और अल्ट्रासोनिक एसपाइरेटर जैसे आधुनिकतम उपकरणों की जरूरत होती है।
जो मरीज आपरेशन नहीं कराना चाहते या जिन मरीजों के लिये आपरेशन के खतरनाक होने की आशंका होती है अथवा जिनके ट्यूमर तीन सेंटी मीटर से छोटे होते हैं उनका इलाज गामा नाइफ या स्टीरियोटेक्टिक रेडियोथिरेपी से किया जाता है।
माइक्रोसर्जरी से एकोस्टिक न्यूरोमा का उपचार
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