Skip to main content

बच्चों को लेकर अंधविश्वास एवं भ्राँतियाँ

अंधविश्वास हानिकारक हो सकते हैं
शिशुओं की देखभाल को लेकर कई तरह के अंधविश्वास हैं। माताएँ अपने शिशुओं के पालन-पोषण के दौरान या तो पुराने तौर-तरीके का इस्तेमाल करती हैं या फिर पुराने तौर-तरीकों को बेकार समझ कर उन्हें पूरी तरह ठुकरा देती हैं, लेकिन दोनों ही स्थितियाँ अच्छी नहीं हैं। माताओं को यह जानना जरूरी है कि देखभाल के सही एवं वैज्ञानिक तौर-तरीके क्या हैं ताकि वे किसी भ्राँति या अंधविश्वास में पड़े बगैर अपने शिशुओं की सही देखभाल कर सकें। 
अंधविश्वास— जन्म के दो या तीन दिन तक बच्चे को माँ का दूध नहीं चाहिये। उसे माँ के दूध की जगह शहद या अन्य चीजें दी जानी चाहिये। पहले दो-तीन दिनों तक दूध खराब होता है इसलिये उसे फेंक देना चाहिये।
तथ्य— जन्म के तुरन्त बाद ही शिशु को माँ का दूध देना चाहिए। पहले कुछ दिनों में माँ का दूध काॅलेस्ट्रम कहा जाता है। यह स्वास्थ्यवर्द्धक होता है। माँ का दूध नवजात शिशुओं और बच्चों के लिए सबसे उचित आहार है। तीन महीने तक तो शिशु को सिर्फ माँ का दूध ही देना चाहिए और दूध पिलाने के बाद डकार जरूर दिलवा देना चाहिए। इस बीच अगर बच्चे को पानी न भी दिया जाए तो कोई बात नहीं, क्योंकि माँ के दूध में ही पानी की उचित मात्रा होती है। हाँ! सफाई का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए।
अंधविश्वास— माँ के बीमार होने पर बच्चे को स्तनपान नहीं करवाना चाहिए।
तथ्य— माँ के बीमार होने पर बच्चे को स्तनपान करवाना किसी भी प्रकार से नुकसानदेह नहीं है, क्योंकि माँ के दूध से बच्चे को एंटी-बाॅडीज प्राप्त होता है। हाँ! कैंसर, एड्स या मानसिक बीमारी होने पर माताओं को अपने बच्चे को दूध पिलाने की सलाह नहीं दी जाती है।
अंधविश्वास— बच्चे के प्रथम वर्ष में केवल दूध ही पर्याप्त है। अन्य आहार की जरूरत नहीं हैं।
तथ्य— बच्चे को आमतौर पर छह महीने के बाद से दूध के साथ अन्य आहार घोल के रूप में दी जानी चाहिये। आहार ऐसा हो जिसे बच्चा आसानी से पचा सके। घर में बना ताजा और साफ खाद्य पदार्थ साबूदाने की खिचड़ी या खीर, दही का मट्ठा, सूजी की खिचड़ी या खीर, हरी सब्जियों का सूप, उबला अंडा, उबला आलू दही में मसल कर दिया जाना चाहिए। फलों में नारंगी या मौसमी का जूस और केला दिया जा सकता है।
अंधविश्वास— डिब्बाबंद आहार स्वच्छ एवं पौष्टिक होते हैं। बच्चे के लिये यह सुरक्षित एवं फायदेमंद हैं। 
तथ्य— महंगे और डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों का सेवन बच्चे के लिये हानिकारक हो सकता है। इसलिये इसका सेवन आपके बच्चे के लिये मुफीद नहीं है। टेलीविजन, रेडियो और पत्रा-पत्रिकाओं में विज्ञापनों के कारण ये डिब्बाबंद आहार लोकप्रिय हो गये हैं लेकिन ये उपयोगी नहीं हैं। इनकी जगह घर में माताएँ साफ और अच्छे किस्म का चावल या गेहूं लेकर अच्छा आहार बना सकती हैं।
अंधविश्वास— दाँत निकलने पर बच्चे को दस्त होता है इसलिये उसे दाँत निकलने के दौरान गरिष्ठ आहार नहीं देना चाहिये। 
तथ्य— बच्चे के दाँत निकलने को सामान्य रूप में लिया जाना चाहिए। इस दौरान खाने-पीने में किसी तरह के परहेज या अतिरिक्त सावधानी की जरूरत नहीं। लोगों में यह धारणा भी नाहक ही है कि दाँत निकलने के समय बच्चे को तकलीफ होती है और इसीलिए उसे दस्त होता है। पर ऐसी बात नहीं है। 6-8 महीने की उम्र तक बच्चा किसी भी चीज को पकड़कर मुँह में डालने की आदत सीख जाता है जिससे उसे इंफेक्शन होता है और उसे दस्त अधिक होता है। 
अंधविश्वास— बच्चों को बुखार एवं सर्दी-खाँसी होने पर नहलाना नहीं चाहिये।
तथ्य— आम लोगों में धारणा है कि नहलाने से बुखार अथवा सर्दी-खाँसी बढ़ सकती है। लेकिन यह धारणा सर्वथा गलत है। बच्चों में तेज बुखार (102 डिग्री फारेनहाइट) होने पर बुखार उतारने वाली विभिन्न दवाइयाँ काम नहीं कर पाती हैं। ऐसी परिस्थिति में बच्चे को ठंड में गुनगुने पानी और गर्मी में सादा पानी से अच्छी तरह से नहलाना चाहिये। जिससे उसका बुखार जल्द से जल्द सामान्य स्तर पर आ सके।
अंधविश्वास— दही, केला, संतरा, चावल आदि ठण्डा होता है। इसलिये बच्चे को सर्दी के मौसम में या खाँसी-जुकाम होने पर नहीं देना चाहिये।
तथ्य— खाने की कोई भी चीज न तो ठंडी होती है और न ही गर्म होती है इसलिये बच्चे को किसी भी मौसम या किसी भी बीमारी में उपयुक्त पौष्टिक आहार दिया जा सकता है।
इसी तरह के कुछ अंधविश्वासों का निवारण निम्न सवाल जवाब के जरिये किया जा रहा है। 
अंधविश्वास— आँख में घर का बना काजल लगाने से बच्चे की आँखें बड़ी हो जाती हैं।
तथ्य— आँखों का बड़ी या छोटी होना आनुवांशिक है। काजल वगैरह लगाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन आँख में कोई भी काजल लगाने से बच्चे की आँखों में ट्रकोमा होने का खतरा है, जो बाद में बच्चे में अंधेपन का एक प्रमुख कारण है। इसलिए छोटे बच्चे (दो वर्ष से कम) में काजल का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि छोटा बच्चा ट्रकोमा के लक्षण को नहीं बता पाएगा और यह बीमारी बढ़ने पर खतरनाक हो सकती है। दो वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे को काजल लगाना हो तो आँख की बाहरी सतह पर लगाएँ। आँख के अंदर काजल नहीं लगाएँ, क्योंकि काजल से आँख में इंफेक्शन होने का डर है। 
अंधविश्वास— बच्चों में कम उम्र में दाँत निकलना अशुभ होता है। 
तथ्य— सामान्यतः बच्चे में 6 महीने की उम्र के बाद निकलते हैं। लेकिन किसी बच्चे में यह दाँत तीन महीने की उम्र पर भी निकल सकते हैं तो किसी बच्चे में यह 9-10 माह पर निकलते हैं। यह शरीर की एक सामान्य प्रक्रिया है। इसको अशुभ कहना एक अंधविश्वास है। इसलिए आपको इस वजह से परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। 
अंधविश्वास— गर्भवती महिला को सुबह-सुबह दूध और फल देने से बच्चे का रंग साफ हो सकता है। 
तथ्य— यह सब एक कोरा अंधविश्वास है। बच्चे का रंग आनुवांशिकता (यानी माता-पिता, दादा-दादी इत्यादि) के आधार पर तय होता है। अगर गर्भवती महिला की अच्छी तरह से देखभाल की जाए तो बच्चा स्वस्थ होगा और स्वस्थ बच्चे का रंग सामान्य से कुछ साफ होता है।
अंधविश्वास— केला ठण्डा होता है और जाड़े में इसे खाने पर ज्यादा बलगम बनती है। इ​सलिए बच्चों को जाड़े के मौसम में केला नहीं देना चाहिए।
तत्य— केला भी अन्य फलों की तरह एक फल है जिससे बच्चे को काफी कैलोरी मिलती हैै। यह एक अंधविश्वास है कि केला ठण्डा होता है। दुनिया में जितनी खाने की चीजें हैं वह न ठंडी है न गर्म। अगर आप किसी चीज को फ्रिज में रखेंगे तभी वह ठंडी होगी।
अंधविश्वास— चावल ज्यादा खाने से बच्चा मोटा हो जाता है इसलिए बच्चों को रोटी खिलानी चाहिए।
तथ्य— चावल एक प्रकार का अनाज है और इसका कंपोजीशन भी गेहूं जैसा ही होता है। इसलिए अगर बच्चा ज्यादा चावल खाता है तो उससे कोई नुकसान नहीं है। पहाड़ी इलाकों और दक्षिण भारत में भी लोग मुख्यतः चावल ही खाते हैं। अगर बच्चे का वजन ज्यादा हो तो उसे घी और चीनी कम देना चाहिए।
अंधविश्वास— ज्यादा घी और मक्खन खाने से बच्चे के गुर्दे कमजोर हो जाते हैं।
तथ्य— घी और मक्खन खाने से बच्चे के गुर्दे पर कोई फर्क नहीं पड़ता। बच्चे के अच्छे विकास के लिए आहार में वसा (घी, मक्खन आदि), प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, मिनरल इत्यादि जो भी डालना पड़े डाल सकते हैं। चार वर्ष के बच्चे घर के भोजन, जो अन्य सदस्य लेते हैं जैसे चपाती, दाल, दूध, दही, पनीर, चावल, हरी सब्जियाँ, फल, अंडा इत्यादि दे सकते हैं। लेकिन दो तथ्यों का ध्यान रखना है। एक तो उसकी खुराक में प्रोटीन, विटामिन, मिनरल तथा कैलोरी उम्र की आवश्यकतानुसार मिलना चाहिए। दूसरे बच्चे की खुराक स्वादिष्ट होनी चाहिए। 
अंधविश्वास— ग्लूकोज बहुत ठण्डा होता है और बच्चे को निमोनिया कर सकता है। इसलिए बच्चे को ग्लूकोज नहीं देना चाहिए। 
तथ्य— सारे खाने की चीजें जैसे दाल, चावल, गेहूं इत्यादि ग्लूकोज की इकाइयों से ही मिल कर बने हैं और ये सब चीजें खाने के बाद शरीर इसे ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता है। अतः यह सोचना कि ग्लूकोज ठण्डा होता है एक मिथ्या और अंधविश्वास है। अतः बच्चे को पानी में ग्लूकोज-डी मिलाकर पिलाने से कोई नुकसान नहीं है। यह सोचना कि इसके पिलाने से बच्चे को निमोनिया हो जाएगा, बिल्कुल गलत है। ग्लूकोज-डी के साथ-साथ बच्चे को पानी के साथ चीनी, शक्कर या गुड़ भी मिलाकर पिलाया जा सकता है। 
अंधविश्वास— बच्चे को खांसी होने पर मां का दूध पीने पर दूध से खाँसी बढ़ती है
तथ्य— माँ का दूध बच्चे के लिए अमृत समान है। माँ का दूध प्रथम छह माह में न केवल बच्चे को संपूर्ण जीवाणुरहित पौष्टिक आहार प्रदान करता है अपितु बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। माँ का दूध या अन्य किसी दूध से खाँसी का कोई सरोकार नहीं है। खाँसी तो साँस की नली में और उसके आसपास की जगह में किसी इंफेक्शन या एलर्जी की वजह से होता है। यह एक अंधविश्वास है कि दूध पीने से खाँसी बढ़ेगी।


Comments