शिक्षा के तमाम प्रचार-प्रसार के बावजूद आज भी बच्चों की छोटी-मोटी बीमारियों को लेकर माता-पिता के बीच खासी चिंता बनी है, खासकर पहली संतान के माता-पिता के लिए। बच्चों की बड़ी बीमारियों के प्रति तो लोग काफी सचेत रहते हैं लेकिन छोटी-छोटी बीमारियों को लेकर काफी परेशान हो जाते हैं। कई बार तो समझ नहीं पाते हैं कि इन बीमारियों का घरेलू इलाज किया जाए या फिर डाॅक्टर को दिखाया जाए। इन छोटे-छोटे रोगों पर काबू पाना उतना ही जरूरी है, जितना कि विकास से संबंधित अन्य काम।
उल्टी-दस्त- तीन वर्ष तक के बच्चों में उल्टी-दस्त की बीमारी बहुत सामान्य है। एक अनुमान के मुताबिक विकासशील देशों में प्रतिवर्ष 50 लाख यानी प्रति मिनट 10 बच्चे इस रोग से मुत्यु की चपेट में आ जाते हैं। इस रोग का मुख्य कारण आँतों का संक्रमण, वायरस, बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ, फंगस और अधिक पोषण या कम पोषण की स्थिति तो है ही, साथ ही साथ बच्चों को दूध पिलाने के लिए जिस बोतल का इस्तेमाल किया जाता है कई बार उसमें कीटाणु हो जाते हैं। इसलिए जितनी जल्दी हो सके बोतल की आदत छुड़ा दें तो बेहतर है। इन सबके अलावा गंदे हाथ, गंदा पानी और दूषित भोजन आदि भी दस्त और उल्टी का प्रमुख कारण है।
पहले लोगों में यह धारणा थी कि केवल डाॅक्टर ही इसका इलाज कर सकता है। लेकिन अगर माँ तुरन्त घर पर ही इसका उपचार शुरू कर दे और बच्चे को अधिक मात्रा में तरल पदार्थ दिया जाए तो उसके शरीर में पानी की कमी नहीं होगी। आपको सिर्फ दस्त और उल्टी के साथ निकले हुए पानी की पूर्ति करना है। यह पूर्ति घर में उपलब्ध किसी भी प्रकार के तरल पदार्थ देकर की जा सकती है जैसे-चावल का माँड, दाल का पानी, दूध-चीनी, नमक का घोल, नींबू का शर्बत, नमकीन मट्ठा या लस्सी, छाछ, हल्की चाय या केवल साफ पानी। ओ.आर.एस. घोल भी सही ढंग से बनाकर बच्चे को बार-बार थोड़ी मात्रा में देना चाहिए।
इन सबसे न केवल बच्चे को ताकत मिलेेगी, बल्कि उसकी प्राण रक्षा भी होगी। आमतौर पर लोगों में धारणा बनी है कि जब बच्चों को उल्टी और दस्त हो तो उसे खाने-पीने के लिए कम दिया जाए, क्योंकि इससे दस्त नहीं होगा। लेकिन यह बिल्कुल गलत है। दस्त के शिकार बच्चों को और अधिक पोषण की जरूरत होती है।
दाँत निकलना
बच्चों के दाँत निकलने की परेशानियों के बारे में वे कहते हैं कि इसे सामान्य रूप में लिया जाना चाहिए।
आमतौर पर लोेगों में यह धारणा बनी रहती है कि इसके दौरान बच्चे को तकलीफ होती है और उन्हें दस्त होने लगता है, पर ऐसी बात नहीं है।
इस समय बच्चों के खाने-पीने में किसी भी तरह का परहेज नहीं करना चाहिए। 6-8 महीने की उम्र में बच्चे किसी भी चीज को पकड़कर मुँह में डालने की कोशिश करते हैं। मसूढ़े फूल जाने के कारण बच्चों को मसूढ़ों में खुजली होने लगती है और उसे बेचैनी सी होती है। इसी खुजलाहट को कम करने के लिए बच्चा कभी अपने हाथ को तो कभी पास पड़ी किसी भी वस्तु को मुँह में डालकर काटता है जिससे संक्रमण हो जाता है और इसी वजह से उन्हें दस्त अधिक होता है। यह बच्चे की स्वाभाविक प्रवृति है।
सर्दी-जुकाम
सर्दी-जुकाम का घरेलू उपचार सबसे अच्छा है। दरअसल यह वायरस के कारण होता है और इसमें नाक बहती है। जब ज्यादा जुकाम होता है तो बुखार, बदन दर्द और भूख कम हो जाती है। इन स्थितियों में गर्म सिकाई और गर्म पानी का भाप देना बहुत ही फायदेमंद होता है। जब बुखार जाए तो पैरासिटामोल देना चाहिए।
घमौरियाँ
गर्मी के दिनों में बच्चों के शरीर पर घमौरी हो जाती है जिससे इन्हें बहुत बेचैनी और खुजली वगैरह होने लगती है, अक्सर अधिक या मोटे कपड़े पहनाने से या कभी-कभी बुखार के कारण भी शरीर में दाने हो जाते हैं, जो चेहरे, गर्दन, काँख, पेट और पीठ में हो जाता है। इससे बचाव के लिए बच्चों को कम और पतले ढीले सूती कपड़े पहनाएँ। कमरे को ठण्डा रखने का प्रयास करें। खुजलाहट के लिए कैलामाइन लोशन लगाएँ।
घरेलू इलाज भी लाभकारी हो सकते हैं बच्चों के लिये
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