बढ़ रहा है ब्रेन अटैक का प्रकोप

  • by @ हेल्थ स्पेक्ट्रम
  • at November 08, 2019 -
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आधुनिक शहरी जीवन में  ब्रेन अटैक का प्रकोप तेजी से बढ़ता जा रहा है। कुछ समय पहले तक बे्रन अटैक (मस्तिष्क घात) को दिल के दौरे(हार्ट अटैक) और कैंसर के बाद असामयिक मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण माना जाता था लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के अनुसार यह आज असामयिक मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण बन गया है। आज की तनावभरी एवं भागदौड़ की जिंदगी में हमेशा मस्तिष्क घात का खतरा मंडराता रहता है। यहां तक कि आज युवा लोग भी इसके शिकार होने लगे हैं जबकि कुछ समय पूर्व माना जाता था कि यह मुख्य तौर पर अधिक उम्र के लोगों को ही ग्रास बनाता है। आधुनिक समय में उच्च रक्त चाप, मोटापा, मधुमेह, शराब, भागदौड़, दिमागी तनाव, अत्यधिक व्यस्तता एवं काम का बोझ और धूम्रपान आदि के कारण बे्रन अटैक का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। 
ज्यादातर मामलों में बे्रन अटैक उस स्थिति में होता है जब किन्ही कारणों से मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति किसी रक्त धमनी के फट जाने, उसमें रक्त का थक्का बन जाने या कहीं से थक्का आ कर वहां फंस जाने, उसमें वसा या कोलेस्ट्रोल के जम जाने के कारण बाधित हो जाती है। 
ब्रेन अटैक यानि मस्तिक घात दो तरह के होते हैं। पहले तरह के बे्रन अटैक में मस्तिष्क की रक्त नलियों में अवरोध आ जाने अथवा बंद हो जाने के कारण मस्तिष्क को होने वाले रक्त प्रवाह में रूकावट आ जाती है। दूसरे प्रकार के मस्तिष्क घात में मस्तिष्क में रक्त जमा हो जाता है। दूसरी अवस्था के ब्रेन अटैक को ब्रेन हैमरेज कहा जाता है जो जानलेवा साबित होता है।
थोड़े समय के लिये हाथ-पैर या शरीर के आधे या पूरे हिस्से का सुन्न पड़ जाना, बैठे-बैठे हाथ-पैर में थोड़ी कमजोरी महसूस होना, सुन्नपन का अहसास होना, आवाज लड़़खड़ाने लगना, आंखों के आगे अंधेरा छा जाना आदि मस्तिष्क घात के संकेत हैं जो हो सकता है कि कुछ समय बाद ठीक हो जाये लेकिन कुछ समय बाद इसी तरह के लक्षण दोबारा उभर सकते हैं। इलाज में बिलंब होने पर दिमाग को पूर्ण घात लग सकता है और मरीज की मौत तक हो सकती है। समय-समय पर थोड़ी देर तक के लिये आने वाले इस तरह के लक्षण को ट्रांससिएट इस्चेमिक अटैक कहते हैं। अगर ये बार-बार या स्थायी तौर पर हों तो मरीज बड़े पक्षाघात का शिकार हो जाता है इससे शरीर का आधा भाग नाकाम (अधरंग) हो जाता है और एक हाथ या पैर कमजोर पड़ जाता है। इलाज से कुछ ही रोगियों में पूरा फायदा हो पाता है और वे अपनी पूर्व स्थिति में पहुंच कर सामान्य ढंग से काम-काज कर पाते हैं। ज्यादातर मरीजों को आंशिक लाभ ही हो पाता है। जिस मरीज में एक बार पक्षाघात होता है उसमें इसके दोबारा होने की आशंका बनी रहती है। इसलिये पक्षाघात के हल्के या बड़े दौरे के बाद मरीज का पूरा निरीक्षण-परीक्षण करके कारणों का पता लगाकर उपचार करना अनिवार्य हो जाता है ताकि उन्हें भविष्य के बड़े खतरों से बचाया जा सके। ब्रेन अटैक होने पर आसपास की मस्तिष्क की कोशिकाओं को भारी क्षति होती है और इन कोशिकाओं को दोबारा जीवित करना मुश्किल होता है। ब्रेन अटैक होने के तीन से छह घंटे के भीतर मरीज को अस्पताल ले आने पर उसे लकवा या अन्य विकलांगता से बचाया जा सकता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में होने वाली नयी शोधों से अर्जित उपलब्धियों की बदौलत आज पक्षाघात के मरीजों को जीवनदान दिया जा सकता है। 
नयी चिकित्सा तकनीकों की मदद से मरीजों को भविष्य में दोबारा पक्षाघात होने के खतरे से बचाया जा सकता है। अगर मरीज तीन घंटे के भीतर सभी सुविधाओं से युक्त अस्पताल पहुंच जाये तो उसे क्लाॅट डिजाॅलविंग थिरेपी की नयी तकनीक से आपरेशन किये बगैर बचाया जा सकता है। इस थिरेपी के तहत मरीज को इंजेक्शन के जरिये टिश्यू प्लासमिनोजेन एक्टिवेटर दिया जाता है जो मस्तिष्क की रक्त धमनी में जमा रक्त के थक्के को घुला देता है। यह नयी तकनीक रक्त के थक्के को घुलाने वाली अन्य परम्परगत तकनीकों की तुलना में कम से कम दस गुना ज्यादा कारगर है। आधुनिक समय में मस्तिष्क की रक्त धमनियों मे रूकावट का पता अल्ट्रासाउंड या कैरोटिड डाप्लर की तकनीक से आसानी से लगाया जा सकता है। एम.आर. एंजियोग्राफी से यह पता चल जाता है कि किस हद तक रूकावट है। परन्तु स्थिति का सही जायजा एंजियोग्राफी से ही पता चल पाता हैं। मस्तिष्क की रक्त धमनी में अवरोध को दूर करने के लिये एंजियोप्लास्टी या आपरेशन की सहायता लेनी पड़ सकती है। ब्रेन अटैक के कुछ मामले में गामा या एक्स नाइफ से भी मरीज का उपचार किया जा सकता है।
बे्रन अटैक के लक्षण अक्सर एंजाइना की तरह लगते हैं जिस कारण मरीज हृदय रोग चिकित्सक के पास चला जाता है जिससे समय नष्ट होता है और मरीज की हालत और गंभीर हो जाती है।
ब्रेन अटैक से बचने के लिये मोटापा, धूम्रपान और शराब सेवन से बचे रहना चाहिये और रक्त चाप पर नियंत्रण रखना चाहिये। बेहतर तो यही है कि 40 साल से अधिक उम्र के लोग नियमित तौर पर अपने रक्त चाप की जांच करायें। क्योंकि रक्त चाप ठीक रहने से बे्रन अटैक की आश्ंाका कम रहती है। 
मधुमेह, उच्च रक्त चाप, अधिक कालेस्ट्रोल और बे्रन स्ट्रोक आनुवांशिक कारणों से भी होते हैं इसलिये जिन परिवारों में इन रोगों का इतिहास रहा हो उस परिवार के सदस्यों को अधिक सावधान रहने की जरूरत है। 
हार्मोनल गर्भनिरोधक गोलियों से रक्त स्राव का खतरा बढ़ता है। किडनी में खराबी होने पर भी गंभीर उच्च रक्त चाप हो सकता है और इससे मस्तिष्क स्राव की आशंका बन सकती है। ऐसे मरीजों को ब्रेन हैमरेज होने पर उनका आपरेशन करना मुश्किल होता है जिससे उनकी मौत की आशंका बढ़ जाती है। करीब 15 साल पहले तक यह माना जाता था कि यह बीमारी लंदन और अमरीका जैसे विकसित देशों में ही होती है लेकिन कई अध्ययनों से यह साबित हो गयाा है कि यह बीमारी गांवों और शहरों में बराबर ही होती है और भारत में भी उतनी ही होती है जितना कि लंदन और अमरीका में, क्योंकि इसका किसी प्रकार के वातावरण, जलवायु या खान-पान से कोई संबंध नहीं है।


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