रक्त चाप को अक्सर हृदय रोगों से जोड़ कर देखा जाता है लेकिन अगर कम उम्र में रक्त चाप बढ़ने की समस्या हो तो यह किडनी में खराबी का संकेत हो सकता है और ऐसी अवस्था में किडनी की जांच कराकर समुचित इलाज कराना चाहिये अन्यथा किडनी प्रत्यारोपण की नौबत आ सकती है।
किडनी विशेषज्ञों का कहना है कि उच्च रक्त चाप किडनी फेल्योर का प्रमख कारण है। इसे चिकित्सकीय भाषा में अंतिम स्थित का गुर्दा रोग अथवा इंड स्टेज रीनल डिजिज (इएसआरडी) कहा जाता है जिसके मरीज को या तो नियमित रूप से डायलिसिस करानी पड़ती है या किडनी प्रत्यारोपण कराना पड़ता है।
नेफ्रोलॉजिस्ट डा. जितेन्द्र कुमार का कहना है कि हमारे देश में मधुमेह का प्रकोप बढ़ने के साथ किडनी में खराबी की समस्या तेजी से बढ़ रही है और पिछले 15 वर्शों में किडनी की खराबी से ग्रस्त मरीजों की संख्या दोगुनी हो गयी है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के नेफ्रोलॉजी विभाग के डा. सुरेश चन्द्र दास और संजय कुमार अग्रवाल के अनुसार गंभीर किडनी रोग विश्व भर में खतरनाक बीमारी है लेकिन भारत जैसे विकासशील देशों के लिये यह और गंभीर समस्या है क्योंकि इसका उपचार बहुत मंहगा है और यह जीवन भर चलता है। दुनिया भर में करीब दस लाख किडनी मरीजों को जीवित रहने के लिये डायलिसिस या प्रत्यारोपण करना पड़ता है।
डा. जितेन्द्र कुमार बताते हैं कि हर साल डेढ़ से दो लाख लोग पूरे भारत में किडनी में खराबी की अंतिम अवस्था से ग्रस्त (एडवांस किडनी फेल्योर) होने के मामले आते हैं। उन्होंने कहा कि 20 से 30 प्रतिषत मधुमेह के मरीजों को किडनी समस्या होने की आषंका होती है। एक अनुमान के अनुसार 2030 में भारत में सबसे अधिक मधुमेह के मरीज होंगे और ऐसे में किडनी फेल्योर के मरीजों की संख्या में कई गुना इजाफा होगा।
डा. जितेन्द्र कुमार ने बताया कि रक्त चाप को सही रखने में किडनी की मुख्य भूमिका होती है। दूसरी तरफ रक्त चाप मेंं गड़बड़ी होने पर किडनी पर असर पड़ता है। बढ़ा हुआ रक्त चाप किडनी को नुकसान पहुंचाता है और यह गंभीर किडनी रोग का कारण बनता है। रक्त चाप बढ़ने से किडनी सहित पूरे षरीर की रक्त नलिकाओं को नुकसान पहुंचता है। किडनी की रक्त नलिकाओं के नुकसान पहुंचने से शरीर से अतिरिक्त तरल एवं फालतू पदार्थों का निकलना बंद हो सकता है। इससे रक्त चाप और बढ़ जाता है। इस तरह से यह खतरनाक चक्र चलता रहता है।
उन्होंने बताया कि खास तौर पर 15-20 साल की उम्र में रक्त चाप के बढ़ने की समस्या किडनी में गड़बड़ी के कारण होती है लेकिन अक्सर लोग जानकारी के अभाव में इसकी अनदेखी करते है लेकिन अगर किडनी में खराबी के कारण रक्त चाप बढ़ रहा हो तब अगर तीन से चार महीने तक समुचित इलाज नहीं कराना घातक साबित हो सकता है। उन्हांंने कहा कि इलाज कराने में तीन से चार महीने का विलंब होने से किडनी स्थायी रूप से खराब हो सकती है और ऐसी स्थिति में डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण ही विकल्प होता है जबकि शुरूआती अवस्था में इलाज कराने पर कुछ कुछ हजार रुपये खर्च कर किडनी को खराब होने से बचाया जा सकता है।
किडनी की बीमारी खामोश बीमारी है जिसके अक्सर कोई खास लक्षण नहीं होते हैं या ऐसे लक्षण होते हैं जिससे भ्रम पैदा हो जाता है। जैसे पैरों में हल्का-हल्का सूजन आना। ऐसे में लोग सोच लेते हैं कि पैर लटकाने के कारण या ज्यादा चलने के कारण पैर में सूजन आ गया है। इसके अलावा पेशाब में प्रोटीन के आने के लक्षण की तरफ भी लोग ज्यादा ध्यान नहीं देते। पेशाब रुक-रुक कर होने या पेशाब में जलन होने या रात में बार-बार पेशाब के लिए उठने जैसे लक्षण को भी ज्यादा उम्र का प्रभाव समझ कर टाल दिया जाता है। देते हैं। इसके अलावा गैस या खाना हजम करने में दिक्कत जैसी समस्या को भी पेट की खराबी समझ कर टाल दिया जाता है।
बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर किडनी खराब कर सकता है
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