Header Ads Widget

We’re here to help you live your healthiest, happiest life.

मधुमेह लील सकता है आंखों की रौशनी

मधुमेह का आंखों पर कई तरह से दुष्प्रभाव पड़ता हैं। बढ़े हुये रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) के कारण आंखों के विभिन्न अंग संकट में घिर जाते हैं। मधुमेह के करीब 80 प्रतिशत मरीजों को जीवन के किसी न किसी मोड़ पर डायबेटिक रेटिनोपैथी, मोतियाबिंद और काला मोतिया जैसी समस्यायें होने के खतरे बहुत अधिक होते हैं। मधुमेह के मरीज नियमित रूप से आंखों की जांच कराकर तथा आंखों में होने वाली दिक्कतों का इलाज समय से आरंभ करके अपनी अनमोल नेत्र ज्योति की हिफाजत कर सकते हैं।
बार-बार चश्में का बदलना 
मधुमेह होने पर आंखों के लेंस की फोकस करने की क्षमता बिगड़ जाती है और मरीजों को अपने चश्में का नम्बर बार-बार बदलना पड़ता है। चश्में का नम्बर बार-बार बदलना मधुमेह का एक प्रमुख लक्षण है और कई बार इसी लक्षण के आधार पर मधुमेह की पहचान होती है। 
मधुमेह एवं मोतियाबिंद 
मधुमेह के मरीजों को कम उम्र में ही मोतियाबिंद हो सकता है। जिन मरीजों में रक्त शुगर में अधिक उतार-चढ़ाव होता है उनमें उतना ही जल्द मोतियाबिंद होता है। 
मधुमेह के कुछ मरीजों को डायबेटिक केटरेक्ट होता है जिससे उनकी आंखों की लेंस की पारदर्शिता चली जाती है। उनकी आंखों के लेंस में हिमवृष्टि जैसी आकृतियां उभर आती हंै। इसमें ऐसा लगता है मानों लेंस पर बर्फ के फाये जम गये हों। 
मधुमेह के मरीजों में होने वाले सामान्य मोतियाबिंद और डायबेटिक केटरेक्ट के इलाज के लिये आपरेशन का सहारा लेना पड़ता है। यह आपरेशन बिना टांकों के हो सकता है। इसे फेको-इमल्शिफिकेशन कहा जाता है। फेको-इमल्शिफिकेशन का ईजाद इस शताब्दि की सर्वाधिक महत्वपूर्ण चिकित्सकीय उपलब्धियों में से एक है। इस तकनीक के तहत काॅर्निया के बाहरी हिस्से में बहुत सूक्ष्म (तीन मिलीमीटर का) चीरा लगाकर एक अत्यंत महीन एवं अत्यंत छोटा अल्ट्रासोनिक औजार को प्रवेश कराया जाता है। यह औजार अल्ट्रासोनिक तरंग पैदा कर मातियाबिंद को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देता है। इन टुकड़ों को आंखों से आसानी से निकाल दिया जाता है। मोतियाबिंद की परम्परागत सर्जरी की तुलना में फेको-इमल्शिफिकेशन सर्जरी में अत्यंत छोटा चीरा लगाए जाने के कारण घाव जल्दी भर जाते हैं। इसमें आपरेशन के बाद टांके लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ती है। इस आॅपरेशन में एनेस्थेटिक सूई का इस्तेमाल नहीं किया जाता है बल्कि आंखों में एनेस्थिसिया की सिर्फ कुछ बुंदें डाली जाती हैं। इस आपरेशन में बहुत कम समय लगता है, आॅपरेशन के बाद मरीज को बहुत कम दवाईयां लेनी होती है, बहुत कम सावधानियां बरतनी होती है और मरीज की आंखें जल्द ठीक हो जाती हैं इसलिए इस आपरेशन से मरीज को अधिक संतुष्टि मिलती है।
मधुमेह और काला मोतिया
मधुमेह के मरीजों में काला मोतिया (ग्लूकोमा) होने की आशंका सामान्य लोगों की तुलना में आठ गुना अधिक होती है। काला मोतिया में आंख के भीतर का दाब बढ़ जाता है जिससे पर्दे पर जोर पड़ता है और नजर कमजोर हो जाती है। इसलिये मधुमेह के मरीजों को इसके प्रति हमेशा सावधान रहना चाहिये। मधुमेह के पुराना होने पर पुतली के आसपास नयी धमनियां पनपने से भी आंख का दाब बढ़ सकता है। इसे सेकेंडरी ग्लूकोमा कहा जाता है। 
काला मोतिया का इलाज उसकी स्थिति एवं उसके प्रकार पर निर्भर करता है। इसके इलाज आम तौर पर दवाईयों, लेजर सर्जरी और सामान्य सर्जरी से होते हैं। दवाईयों का सेवन लगातार करना पड़ता है। अधिकतर मरीजों में काला मोतिया दवाईयों से ही नियंत्रण में रहता है। लेकिन एक स्थिति ऐसी आती है जब दवा बेअसर होने लगती है। ऐसे में लेजर सर्जरी से काला मोतिया को ठीक किया जाता है। इसमें न तो चीर-फाड़ करनी पड़ती है और न ही मरीज को अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है। लेजर सर्जरी के दौरान मरीज की आंखों को थोड़ी देर के लिए सुन्न किया जाता है और मरीज का लेजर से इलाज किया जाता है। अलग-अलग किस्म के काला मोतिया के लिए भिन्न-भिन्न लेजर का इस्तेमाल किया जाता हैै। आर्गन लेजर से सेकेंडरी ग्लूकोमा ठीक किया जाता है तो याग लेजर से एंगल क्लोजर ग्लूकोमा को ठीक किया जाता है। जब मरीज लेजर से ठीक होने के काबिल नहीं होते तो उसकी सामान्य सर्जरी करनी पड़ती है। काला मोतिया के मरीजों को सर्जरी के बाद अपनी आंखों को धूल-मिट्टी से बचाना चाहिए, आंखों को मलना या रगड़ना नहीं चाहिए तथा आंखों पर किसी तरह का दबाव नहीं पड़ने देना चाहिए।  
डायबेटिक रेटिनोपैथी
मधुमेह के मरीजों को होने वाली आंखों की सबसे प्रमुख समस्या डायबेटिक रेटिनोपैथी है जिसमें आंखों के पर्दे को नुकसान पहुंचता है। इस बीमारी में आंखों के पर्दे की सूक्ष्म रक्त वाहिकायें फूल जाती हैं, शिरायें बेतरतीब हो जाती हैं और उनमें फैलाव आ जाता है, पर्दे पर जगह-जगह खून के गोलाकार धब्बे उभर आते हैं तथा पीला एवं साफ पानी जम जाता है। जब तक ये परिवर्तन पर्दे के बाहरी हिस्से तक सीमित रहते हैं तब तक कोई लक्षण प्रकट नहीं होता है लेकिन जब मैक्यूला नामक पर्दे का सबसे संवेदनशील हिस्सा इसकी चपेट में आता है तब आंखों से दिखना बहुत कम हो जाता है। 
कुछ रोगियों में कुछ ही समय बाद पर्दे पर नई रक्त वाहिकायें पनपने लगती हैं। ये नयी रक्त वाहिकायें कमजोर होती हैं तथा इनमें जगह-जगह दरारें आ जाती हैं। इससे पर्दे पर खून उतर आता है और नजर धुंधली हो जाती है। धमनियों से बहे खून के पर्दे के ठीक आगे विट्रियस में भी पहुंचने की आशंका होती है। बार-बार रक्तस्राव होने से आंख का आंतरिक दाब भी बढ़ सकता है। इसे प्रोलिफरेटिव रेटिनोपैथी कहा जाता है। इसमें कभी भी अंधता उत्पन्न हो सकती है। मधुमेह जितना पुराना होता है डायबेटिक रेटिनोपैथी की आशंका उतनी ही अधिक होती है। 
औद्योगिक देशों में डायबेटिक रेटिनोपैथी नेत्रअंधता का प्रमुख कारण है। एक अनुमान के अनुसार मधुमेह की पहचान के 20 साल बाद टाइप एक किस्म के मधुमेह के सभी मरीजों को तथा टाइप दो किस्म के मधुमेह से ग्रस्त 60 प्रतिशत मरीजों को किसी न किसी किस्म की डायबेटिक रेटिनोपैथी हो सकती है। 
रेटिनोपैथी की आरंभिक अवस्था में पहचान हो जाने पर इसका इलाज हो सकता है। डायबेटिक रेटिनोपैथी में दवाईयों से बहुत अधिक लाभ नहीं मिलता है। इसके उपचार का एकमात्र कारगर तरीका लेजर उपचार है। फोटोकोएगुलेशन नामक लेजर आधारित तकनीक के तहत जेनोन आर्क या लेजर की शक्तिशाली किरणों की मदद से पर्दे की कमजोर हुयी रक्त वाहिनियों को बंद कर दिया जाता है ताकि उनसे आगे खून नहीं बहे और नयी वाहिनियां नहीं पनपे। लेजर उपचार नेत्र ज्योति को बरकरार रखने तथा रोग को बढ़ने नहीं देने में मददगार साबित हुआ है। 
रेटिनल डिटैचमेंट 
आंखों में उतरने वाले खून के तीन-चार महीनों में उसके खुद साफ होने की संभावना होती है लेकिन ऐसा नहीं होने पर वह पर्दे को अपनी तरफ खींच कर रेटिना में डिटैचमेंट ला सकता है। रेटिनल डिटैचमेंट की आरंभिक अवस्था में इलाज करना आसान होता है लेकिन लापरवाही बरतने पर बाद में नेत्र अंधता उत्पन्न हो सकती है। रेटिना में छेद का समय पर पता लग जाने पर उसका इलाज किया जा सकता है। लेकिन रेटिना के फट जाने पर आपरेशन करना आवश्यक हो जाता है। रेटिना में छेद होने या रेटिना फटने के बाद इलाज में जितना अधिक विलंब होता है इलाज उतना ही मुश्किल एवं जटिल हो जाता है और नेत्र अंधता की आशंका उतना ही अधिक होती है। 


Post a Comment

0 Comments