स्ट्रोक किसी के बीच भेदभाव नहीं करता है। यह किसी भी उम्र समूह, किसी भी सामाजिक स्तर और किसी भी लिंग के लोगों को प्रभावित कर सकता है।
डाॅ. राजीव आनंद ने कहा, ''स्ट्रोक रक्त वाहिकाओं में थक्के बनने (इस्कीमिक स्ट्रोक) या रक्त वाहिकाओं के फटने (रक्तस्रावी स्ट्रोक) के कारण मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति के बाधित होने की वजह से होता है। हालांकि 87 प्रतिषत स्ट्रोक स्वभाव से इस्कीमिक होते हैं, और उनमें से अधिकतर स्ट्रोक का इलाज किया जा सकता है। स्ट्रोक के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात समय का सदुपयोग है। एक स्ट्रोक के बाद, हर दूसरे स्ट्रोक में 32,000 मस्तिष्क कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है। इसलिए स्ट्रोक होने पर रोगियों को निकटतम स्ट्रोक उपचार केंद्र में जल्द से जल्द ले जाया जाना चाहिए। मुख्य तौर पर दो तरह के स्ट्रोक होते हैं। अगर मस्तिश्क की किसी धमनी में अवरोध होने के कारण स्ट्रोक होता है तो यह इस्कीमिक स्ट्रोक का कारण बनता है। रक्त धमनी के फटने के कारण होने वाले रक्त स्राव के कारण होने वाली गड़बड़ी हेमोरेजिक स्ट्रोक का कारण बनती है। भारत में इन स्ट्रोकों में से 12 प्रतिषत स्ट्रोक 40 वर्ष से कम उम्र के लोगों में होता है। स्ट्रोक के 50 प्रतिषत मामले मधुमेह, उच्च रक्तचाप और उच्च कोलेस्ट्रॉल के कारण होते हैं, जबकि अन्य कुछ संक्रमण के कारण होते हैं। इन दिनों इसके पूर्व के कारण बड़ी चिंता के विशय हैं।''
डा. राकेश दुआ ने कहा, ''भारत जैसे विकासशील देशों को संचारी और गैर संचारी रोगों के दोहरे बोझ का सामना करना पड़ रहा है। स्ट्रोक भारत में मौत और विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है और भारत में हर साल स्ट्रोक के 15 लाख नये मामले होते हैं। किसी व्यक्ति के चेहरे, हाथ, आवाज और समय (एफएएसटी) में परिवर्तन होने पर उस पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है क्योंकि उस व्यक्ति को जल्द ही किसी भी समय स्ट्रोक हो सकता है। चेहरे का असामान्य होना जैसे, मुंह का लटकना, एक हाथ का नीचे लटकना और अस्पश्ट आवाज स्ट्रोक के कुछ सामान्य लक्षण हैं और समय पर उपचार होने पर इसे होने से रोकने में मदद मिल सकती है। उन्होंने कहा कि स्ट्रोक की पहचान करने तथा मरीज को अस्पताल ले जाने में समय की बर्बादी होती है।''
उन्होंने कहा, ''स्ट्रोक की पहचान करने और रोगी को अस्पताल लाने में अक्सर ज्यादा समय लग जाता है। रोगी को अस्पताल लाये जाने के बाद, उसकी सीटी स्कैन की जाती है जिससे स्ट्रोक की पुष्टि हो जाती है। उसके बाद हम मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति को बंद कर देने वाले मस्तिश्क के थक्के को घोलने के लिए दवा युक्त एक इंजेक्षन लगाते हैं। कई बार, हीमैटोमा बन जाने के बाद, जो मस्तिश्क में दबाव को बढ़ा देता है या स्ट्रोक के काफी बड़ा होने पर हमें मरीज की जान बचाने के लिए मस्तिश्क के दबाव को हटाने के लिए या मस्तिश्क के मृत भाग को निकालने के लिए न्यूरो सर्जरी करनी पड़ती है। स्ट्रोक के रोगी को हमेशा न्यूरोलाॅजी एवं न्यूरो सर्जरी की सुविधा वाले, और जहां एमआरआई, सीटी स्कैन, ब्लड बैंक और अच्छा न्यूरो आईसीयू टीम हो, वैसे केंद्र में ले जाया जाना चाहिए।''
डॉ. अमरदीप कोहली ने कहा, ''वर्तमान में, दिल्ली सहित भारत के कई शहरों में, स्ट्रोक रोगियों में से सिर्फ तीन प्रतिशत रोगियों को ही थक्के को हटाने के लिए थ्रोम्बो एम्बोलाइटिक दवाइयां मिल पा रही है क्योंकि उन्हें समय पर अस्पताल लाया जाता है। बाकी रोगियों को देर से सुपर स्पेषलिटी हाॅस्पिटल लाने और इसके कारण थक्के को घोलने वाली दवा नहीं मिल पाने के कारण वे लकवा से ग्रस्त हो जाते हैं। इसलिए हमें इन रोगों, इनके सही इलाज और इनके रोकथाम के उपायों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए एक सचेत प्रयास करने की जरूरत है जिससे लोगों को इन समस्याओं से निपटने में मदद मिलेगी।
भारत में अकाल मृत्यु और विकलांगता के लिये मुख्य तौर पर जिम्मेदार है स्ट्रोक
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