हमारे देश में जिगर (लिवर) को अधिक से अधिक कारगर, सर्वसुलभ, समानता आधारित एवं न्यायसंगत बनाया जाना चाहिए और इसके लिए देश के नागरिकों के बीच पूरी तरह से जागरूकता जरूरी है। देश के लोगों के बीच जिगर प्रत्यारोपण को लेकर जागरूकता बढ़ रही है और इसलिए देश के लोग आज अधिक संख्या में जीवित डोनर के तौर पर अपने अंगों को दान देने के लिए आगे आ रहे हैं। साथ ही साथ वे मृत्यु होने की स्थिति में अंग दान के लिए सहमति भी दे रहे हैं। भारत का लिवर प्रत्यारोपण कार्यक्रम काफी सफल हो सकता है लेकिन हमारे देश में इस संबंध में पंजीकरण करने तथा परिणाम की जानकारी देने वाले किसी तंत्र की कमी है।
जीवित लिवर दान क्या है?
जब किसी जीवित व्यक्ति द्वारा किसी अन्य ऐसे व्यक्ति के लिए लिवर का हिस्सा दान दिया जाता है जिसे लिवर प्रत्यारोपण कराने की जरूरत है तो इसे जीवित दाता लिवर प्रत्यारोपण कहा जाता है।
— 'दाता' वह व्यक्ति होता है जो अपना लिवर देता है।
— 'प्रत्यारोपण कराने वाला व्यक्ति या 'प्राप्तकर्ता' वह व्यक्ति होता है जो लिवर प्रत्यारोपण कराने की प्रतीक्षा कर रहा है।
जीवित दाता लिवर प्रत्यारोपण प्रक्रिया में जीवित दाता से प्राप्त लिवर के एक हिस्से को उस व्यक्ति (प्राप्तकर्ता) में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है जिसका लिवर ठीक से काम नहीं करता है।
लिवर दान देने वाले (दाता) के शरीर में बचा हुआ लिवर सर्जरी के बाद दो महीनों के भीतर ही अपना पूर्ण आकार प्राप्त कर लेता है और अपने सामान्य आकार और क्षमता को वापस पा लेता है। यहां तक प्राप्तकर्ता के शरीर में प्रत्यारोपित लिवर का भाग भी बढ़ता है और सामान्य कामकाज पुनः करने लगता है।
कई पत्रिकाओं में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, जीवत दाता लिवर प्रत्यारोपण कराने वाले 15 प्रतिशत से अधिक मरीज विदेश के होते हैं। जागरूकता बढ़ने और लिवर की बीमारियों के बढ़ने के कारण उनमें से 85 प्रतिशत से अधिक जीवित दाता होते हैं। भारत में लिवर प्रत्यारोपण के लिए मध्य पूर्व, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार से विदेशी मरीज काफी संख्या में आ रहे हैं। यहां लिवर प्रत्यारोपण के सालाना 200 से अधिक मामले होते हैं, जो भारत में जीवित दाता लिवर प्रत्यारोपण (एलडीएलटी) में आ रही तेजी को दर्शाता है। और अब तक 2500 से अधिक जीवित दाता प्रत्यारोपण किए गए हैं।
भारत में एलडीएलटी पारदर्शी है
भारत में जीवित दाता से लिवर प्रत्यारोपण में काफी पारदर्षिता होती है। यह पूरी तरह से सुव्यवस्थित प्रक्रिया है जिसके लिए संबंधित विशेषज्ञों से आवश्यक अनुशंसा और अनापत्ति (नो आब्जेक्शन) की जरूरत होती है। सीधे रिश्तेदारों (प्रथम डिग्री के संबंध) के अतिरिक्त किए गए डोनशन को सरकार द्वारा नियुक्त प्राधिकरण समिति से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। यदि कोई विदेशी रोगी को दान करने या प्रत्यारोपण करने की आवश्यकता होती है, तो राज्य अनापत्ति प्रमाणपत्र के साथ-साथ संबंधित दूतावासों से आवश्यक अनुमोदन की स्वीकृति लेनी पड़ती है। दाता को होने वाले जोखिमों के बारे में भी चर्चा की जाती है और प्राप्तकर्ता के आपरेशन की सफलता के बारे में भी सभी रोगियों को बताया जाता है।
जीवित लिवर दाता कैसे बनें?
लिवर डोनेशन अब बहुत सुरक्षित हो गया है। इसमें प्रत्यारोपण के लिए इस्तेमाल करने के लिए दाता से लिवर के हिस्से को निकालने के लिए सर्जरी की जाती है। सर्जरी के 2-3 सप्ताह की अवधि के भीतर ही दाता पूरी तरह से ठीक हो जाता है क्योंकि लिवर खुद को दोबारा उत्पन्न करता है। जीवित दाता बनने के लिए कुछ मानदंड हैं, जिनमें शामिल हैं -
— दाता की उम्र 18-55 साल की उम्र सीमा के भीतर होनी चाहिए और उसे स्वेच्छा से दान करने के लिए तैयार होना चाहिए।
— लिवर दान करने वाले व्यक्ति का वजन 85 किलोग्राम या संबंधित बीएमआई (25 से कम) से अधिक नहीं होना चाहिए ताकि फैटी लिवर के किसी भी जोखिम का निवारण हो जाए।
— दाता का ब्लड ग्रूप या तो प्राप्तकर्ता के समान होना चाहिए या यूनिवर्सल डोनर के समान 'ओ' ग्रूप का होना चाहिए।
इसके बाद दाता का पूर्ण स्क्रीनिंग परीक्षण किया जाता है, जिनमें सीबीसी, पीटी, एलएफटी, सीरम क्रिएटिनिन, एचबीएसएजी, एचसीवी एंटीबॉडी, एचआईवी 1, 2, चेस्ट एक्स रे, ईसीजी और पेट का अल्ट्रासाउंड शामिल होते हैं।
भारत में एलडीएलटी की बढ़ती जरूरत
1995 और 1996 में दो असफल प्रयासों के बाद, पहला सफल मृत दाता लिवर प्रत्यारोपण (डीडीएलटी) 1998 में किया गया था। हालांकि, मृत दाता अंगों की बहुत कम उपलब्धता के कारण, लिवर प्रत्यारोपण कराने का इंतजार करने वाले मरीजों की मौत किसी डोनर से अंग मिलने से पहले ही हो जाती थी। लिवर प्रत्यारोपण केवल उन लोगों के लिए यथार्थवादी विकल्प था जो प्रत्यारोपण कराने के लिए विदेश यात्रा के भारी खर्च का वहन कर सकते थे।
भारत में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक-सामाजिक अवधारणाओं के कारण दान में प्राप्त होने वाले कैडवेरिक अंगों की उपलब्धता में रूकावट आती रही है। लेकिन कम से कम वर्तमान में, एलडीएलटी अब इसका एकमात्र यथार्थवादी विकल्प बन गया है। एलडीएलटी के साथ कुछ बाधाएं भी निहित हैं जिनमें रोगी को उसके गंभीर रूप से बीमार होने से पहले ही प्रत्यारोपण के लिए मृत दाता से प्राप्त अंग का समय पर उपलब्ध नहीं होना, दाता से अंग प्राप्त करने और उसे भेजने में परेषानी, मस्तिष्क से मृत दाताओं के प्रबंधन में विशेषज्ञता की कमी के चलते मामूली ग्राफ्ट की संभावना, प्राप्तकर्ता के बहुत कम समय के नोटिस पर प्रत्यारोपण केंद्र तक पहुंचने में दिक्कत प्रमुख हैं। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि आज तक इस देश में किए गए 70 प्रतिशत से अधिक लिवर प्रत्यारोपण एलडीएलटी हैं।
भारत में दायरा और संभावना
भारत में इसकी संभावना का आकलन करने से पहले, एलडीएलटी कार्यक्रम की शुरूआत के लिए पूर्व-आवश्यकताओं को रेखांकित करना जरूरी है। जाहिर है, इस प्रक्रिया में काफी पैसे और बहुआयामी कुशल कर्मियों की आवश्यकता होती है। हालांकि यह अनिवार्य नहीं है कि किसी अस्पताल या संस्थान को डीडीएलटी करने का अनुभव हो, लेकिन अगर ऐसा अनुभव हो तो फायदेमंद साबित हो सकता है। हर शल्य चिकित्सा टीम के लिए एडवांस्ड हेपेटोबिलरी सर्जरी में महत्वपूर्ण अनुभव वाले कम से कम दो शल्य चिकित्सक और सहायक सर्जनों की आवश्यकता होती है। शल्य चिकित्सा टीम में अत्यधिक कुशल और अनुभवी एनेस्थेटिस्टों, क्रिटिकल केयर चिकित्सकों और ट्रांसप्लांट हेपेटोलॉजिस्ट के समूह को रखा जाना चाहिए, और डायग्नोस्टिक और इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी, डायलिसिस और एंडोस्कोपी, इम्यूनोलॉजी, पैथोलॉजी, ट्रांसफ्यूजन, माइक्रोबायोलॉजी और उच्चतम गुणवत्ता की जैव रसायन सेवाएं चौबीसों घंटे उपलब्ध होनी चाहिए। रैपिड इंफ्युजर, सेल सेवर, नाॅन- इंवैसिव कार्डियक आउटपुट मॉनीटर, अल्ट्रासोनिक सर्जिकल एस्पिरेटर, आर्गन कोगुलेटर और ऑन-साइट लैबोरेट्री से सुसज्जित कम से कम दो अत्याधुनिक आपरेटिंग रूम होना आवश्यक हैं। आपरेशन के बाद, इंवैसिव माॅनीटरिंग, लैमिनार फ्लो और कुशल नर्सिंग स्टाफ के साथ एक आधुनिक गहन देखभाल सुविधा का होना भी आवश्यक है।
निष्कर्ष
एलडीएलटी भारत में डीडीएलटी के लिए आवश्यक बन गया है। लिवर प्रत्यारोपण की सार्वजनिक स्वीकृति को बढ़ावा देना भी आवश्यक है। इससे मृत दाता अंग दान को बढ़ावा देने में भी मदद मिल सकती है। हालांकि, एलडीएलटी केंद्रों के अनियमित प्रसार को रोकने के लिए एक अत्यंत सतर्क दृष्टिकोण को अपनाना आवश्यक है। एलडीएलटी करने के लिए केंद्रों को अनुमति देने से पहले प्रशिक्षण और सेट-अप के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानदंडों का पालन करना और बढ़ावा देना चाहिए और साथ ही परिणामों का आंतरिक और बाहरी आडिटिंग अनिवार्य किया जाना चाहिए। इनके अलावा, यदि एलडीएलटी से लगातार क्लिनिकल लाभ प्राप्त किए जाते हैं, तो जीवित दाता की सभी परिस्थितियों में सुरक्षा की जानी चाहिए।
भारत में जीवित डोनर से प्राप्त जिगर (लिवर) का प्रत्यारोपण ही अधिक सुरक्षित होता है
~ ~
SEARCH
LATEST
6-latest-65px
POPULAR-desc:Trending now:
-
- Vinod Kumar मस्तिष्क में खून की नसों का गुच्छा बन जाने की स्थिति अत्यंत खतरनाक साबित होती है। यह अक्सर मस्तिष्क रक्त स्राव का कारण बनती ह...
-
विनोद कुमार, हेल्थ रिपोर्टर वैक्सीन की दोनों डोज लगी थी लेकिन कोरोना से बच नहीं पाए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक...
-
INDIAN DOCTORS FOR PEACE AND DEVELOPMENT An international seminar was organised by the Indian Doctors for Peace and Development (IDPD) at ...
-
अत्यधिक प्रतीक्षित इंडो इंटरनेशनल फैशन कार्निवल एंड अवार्ड्स सीजन 2: मिस, मिसेज और मिस्टर स्टार यूनिवर्स ने एक शानदार लोगो लॉन्च इवेंट के सा...
-
The woman in the picture with a smile is Salwa Hussein !! She is a woman without a heart in her body. She is a rare case in the world, as...
Featured Post
Air Pollution Fuels Alarming Rise in Childhood Asthma Cases (On World Asthma Day - 6 May)
- Vinod Kumar, Health Journalist In a month, 3-4 kids, aged 6-10, report symptoms like frequent coughing, breathlessness during play, dis...
