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दहशत कहीं जान पर न बन जाये

अचानक मैं बिना किसी कारण डर के मारे सिहर उठी। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा, मेरी छाती तेजी से चलने लगी और मुझे सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी। मुझे लगा कि मेरी मौत निकट आ गयी है।'' पसीने से तर-बतर मिनाक्षी जैन ने एक ग्लास पानी पीने के बाद पूरे वाकये के बारे में बताया - कल जब वह पास के एक शॉपिंग मॉल में गयी थीं तब उनके साथ कुछ ऐसा ही हुआ जिसके तुरंत बाद उन्हें निकट के एक अस्पताल में ले जाया गया जहां उनकी ईसीजी की गयी। ईसीजी से पता चला कि हृदय की धड़कन में असामान्यता है लेकिन एंजियोग्राफी करने पर उनकी रक्त धमनियों में किसी रुकावट का पता नहीं चला। 
डा. पुरूषोत्तम लाल पैनिक अटैक के प्रकोप के बारे में कहते हैं, ''छाती में दर्द की शिकायत लेकर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में आने वाले 25 प्रतिशतत मरीज दरअसल ''पैनिक अटैक'' से ग्रस्त होते हैं। ''पैनिक अटैक'' के दौरान मरीज को जो परेशानियां होती हैं या उसे जो लक्षण उभरते हैं उनसे यह समझ लिया जाता है कि उन्हें या तो दिल का दौरा पड़ा है या उन्हें कोई और जानलेवा बीमारी है। जिन मरीजों में इस तरह के लक्षण होते हैं उन्हें कई खर्चीले चिकित्सकीय परीक्षण कराने पड़ते हैं और तब जाकर पता चलता है कि उन्हें कोई अन्य बीमारी नहीं है। 
पैनिक अटैक होने पर अचानक डर, चिंता और घबराहट जैसे लक्षणों एवं अन्य तरह के कश्टों के अलावा कुछ और लक्षण उभर सकते हैं। यह दौरा कुछ नियमित समय के अंतराल पर पड़ सकता है अथवा चिंता, घबराहट, सामाजिक कारणों से होने वाले तनाव या भय के साथ भी यह दौरा पड़ सकता है। ''पैनिक अटैक'' कई मिनट तक जारी रह सकता है और इसमें मरीज को अत्यधिक कश्ट होते हैं। इसके लक्षण दिल के दौरे की तरह होते हैं। रात में पड़ने वाले ''पैनिक अटैक'' 10 मिनट से कम होते हैं लेकिन कुछ लोगों को बिल्कुल सामान्य होने में अधिक लंबा समय लग सकता है। 
48 वर्षीय श्रीमती मिनाक्षी जैन का यह मामला बोस्टन के मैसाच्युसेट्स जनरल हास्पीटल के एक ताजे अध्ययन के निष्कर्षों की पुष्टि करता है जिसमें यह पाया गया कि जिस उम्रदराज महिला को कम से कम एक बार पूर्ण ''पैनिक अटैक'' का दौरा पड़ा हो उसे दिल का दौरा पड़ने या स्ट्रोक की आशंका अधिक होती है और उन्हें अगले पांच वर्षों में असामयिक मौत का खतरा अधिक होता है। 
डा. लाल कहते हैं, ''पैनिक अटैक हाइपरटेंशन जैसे हृदयवाहिक रोगों के जोखिम कारकों के साथ जुड़े हो सकते हैं। चिंता या घबड़ाहट हृदय एवं हृदय रक्त वाहिका प्रणाली पर बुरे प्रभाव डाल सकती है जैसे कि दिल की धमनियों में सिकुड़न, रक्त के जमा होने की प्रवृति बढ़ने और हृदय धड़कन की ताल में गड़बड़ी।''
आम तौर पर चिकित्सक पैनिक अटैक से ग्रस्त मरीजों को आश्वस्त करते हैं कि उन्हें कोई गंभीर खतरा नहीं है। लेकिन इस तरह के आष्वासन मरीजों की परेशानियां और बढ़ा सकते हैं। अगर डॉक्टर मरीज से ''कुछ गंभीर नहीं है'', ''जो कुछ भी है आपका वहम है'' और ''चिंता की कोई बात नहीं है'' जैसी बातें कह कर सांत्वना दे तो मरीज के मन में यह गलत धारणा बैठ सकती है कि उसे दरअसल कोई दिक्कत नहीं और इसका इलाज या तो संभव नहीं है या इलाज कराना जरूरी नहीं है। वास्तविकता यह है कि पैनिक अटैक निश्चित ही गंभीर स्थिति है, हालांकि यह हृदय के लिये घातक नहीं है।  
दहशत से भरी श्रीमती जैन कहती हैं, ''उस घटना के बाद से मैं इतनी डरी हुई हूं कि जब मैं बाहर जाने लगती हूं तो हर समय मेरे पेट में दर्द होने लगता है और मुझे लगता है कि कोई और पैनिक अटैक पड़ने वाला है अथवा मेरे साथ कुछ अनहोनी होने वाली है।'' श्रीमती जैन अब ज्यादातर घर में ही रहती हैं और घर में रहकर ही चिकित्सक की सलाह लेती हैं। 


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